चंद्रकांता संतति भाग 2  (1896) 
द्वारा देवकीनन्दन खत्री

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अपनी बहिन लाड़िली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देव-मन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहाँ रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उसका हाल पीछे लिखेंगे, इस समय तो भूतनाथ का कुछ हाल लिखकर हम अपने पाठकों के दिल में एक प्रकार का खुटका पैदा करते हैं।

भूतनाथ कमलिनी से विदा होकर सीधे काशीजी की तरफ नहीं गया, बल्कि मायारानी से मिलने के लिए उसके खास बाग (तिलिस्मी बाग) की तरफ रवाना हुआ और दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही बाग के फाटक पर जा पहुँचा। पहरे वाले सिपाहियों में से एक की तरफ देखकर बोला, "जल्द इत्तिला कराओ कि भूतनाथ आया है।" इसके जवाब में उस सिपाही ने कहा, "आपके लिए रुकावट नहीं है आप चले जाइए, जब दूसरे दर्जे के फाटक पर जाइएगा तो लौंडियों से इत्तिला कराइयेगा।"

भूतनाथ बाग के अन्दर चला गया। जब दूसरे दर्जे के फाटक पर पहुँचा, तो लौंडियों ने उसके आने की इत्तिला की और वह बहुत जल्द मायारानी के सामने हाजिर किया गया।

मायारानी––कहो भूतनाथ, कुशल से तो हो? तुम्हारे चेहरे पर खुशी की निशानी पाई जाती है, इससे मालूम होता है कि कोई खुशखबरी लाये हो और तुम्हारे शीध्र लौट आने का भी यही सबब है। तुम जो चाहो कर सकते हो! हाँ, क्या खबर लाये?

भूतनाथ––अब तो मैं बहुत कुछ इनाम लूँगा, क्योंकि वह काम कर आया हूँ जो सिवा मेरे दूसरा कोई कर ही नहीं सकता था।

मायारानी––वेशक तुम ऐसे ही हो, भला कहो तो सही क्या कर आये?

भूननाथ––वह बात ऐसी नहीं है कि किसी के सामने कही जाये। [ २१५ ]मायारानी––(लौंडियों को चले जाने का इशारा करके) बेशक मुझसे भूल हुई कि इन सभी के सामने तुमसे खुशी का सबब पूछती थी। हाँ, अब तो सन्नाटा हो गया।

भूतनाथ––आपने अपने पति गोपाल सिंह के लिए जो उद्योग किया था, वह तो बिल्कुल ही निष्फल हुआ। मैं अभी कमलिनी के पास से चला आ रहा हूँ। उसे मुझ पर पूरा भरोसा और विश्वास है और वह मुझसे अपना कोई भेद नहीं छिपाती। उसकी जवानी जो कुछ मुझे मालूम हुआ है उससे जाना जाता है कि गोपालसिंह अभी किसी के सामने अपने को जाहिर नहीं करेगा बल्कि गुप्त रहकर ही आपको तरह-तरह की तकलीफें पहुँचावेगा और अपना बदला लेगा।

मायारानी––(काँप कर) बेशक वह मुझे तकलीफ देगा। हाय, मैंने दुनिया का सुख कुछ भी नहीं भोगा। खैर, तुम कौन-सी खुशखबरी सुनाने आये हो सो तो कहो।

भूतनाथ––कह तो रहा हूँ––पर आप स्वयं बीच में टोक देती हैं तो क्या करूँ। हाँ तो इस समय आपको सताने के लिए बड़ी-बड़ी कार्रवाईयाँ हो रही हैं और रोहतासगढ़ से फौज चली आ रही है क्योंकि गोपालसिंह और तेजसिंह ने कुमारों की दिलजमई करा दी है कि राजा वीरेन्द्रसिंह और रानी चन्द्रकान्ता को मायारानी ने कैद नहीं किया वल्कि धोखा देने की नीयत से दो आदमियों को नकली चन्द्रकान्ता और वीरेन्द्रसिंह बना कर कैद किया है। अब कुँअर इन्द्रजीतसिंह के दो ऐयारों को साथ लेकर गोपालसिंह किशोरी और कामिनी को छुड़ाने के लिए मनोरमा के मकान में गये हैं।

मायारानी––ना बोले रहा नहीं जाता! मैं न तो कुँअर इन्द्रजीतसिंह आनन्द या उनके ऐयारों से डरती हूँ और न रोहतासगढ़ की फौज से डरती हूँ, मैं अगर डरती हूँ तो केवल गोपालसिंह से बल्कि उसके नाम से, क्योंकि मैं उसके साथ बुराई कर चुकी हूँ और वह मेरे पंजे से निकल गया है। खैर, यह खबर तो तुमने अच्छी सुनाई कि वह किशोरी और कामिनी को छुड़ाने के लिए मनोरमा के मकान में गया है। मैं आज ही यहाँ से काशीजी की तरफ रवाना हो जाऊँगी और जिस तरह होगा, उसे गिरफ्तार करूँगी!

भूतनाथ––नहीं-नहीं, अब आप उसे कदापि गिरफ्तार नहीं कर सकतीं, आप क्या बल्कि आप-सी अगर दस हजार एक साथ हो जाये तो उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती।

मायारानी––(चिढ़कर) सो क्यों?

भूतनाथ––कमलिनी ने उसे एक ऐसी अनूठी चीज दी है कि वह जो चाहे कर सकता है और आप उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती।

मायारानी––बह कौन ऐसी अनमोल चीज है?

इसके जवाब भूतनाथ ने उस तिलिस्मी खंजर का हाल और गुण बयान किया जो कमलिनी के कुँअर इन्द्रजीतसिंह को दिया था और कुँअर साहब ने गोपालसिंह को दे दिया था। अभी तक उस खंजर का पूरा हाल मायारानी को मालूम न था इसलिए उसे बड़ा ही ताज्जुब हुआ और वह कुछ देर तक सोचने के बाद बोली––

मायारानी––अगर ऐसा खंजर उसके हाथ लग गया है तो उसका कोई भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता। बस में अपनी जिन्दगी से निराश हो गई। परन्तु मुझे विश्वास नहीं [ २१६ ]होता कि ऐसा तिलिस्मी खंजर कहीं से कमलिनी के हाथ लगा। यह असम्भव है, बल्कि ऐसा खंजर हो ही नहीं सकता। कमलिनी ने तुमसे झूठ कहा होगा।

भूतनाथ––(हँसकर) नहीं-नहीं, बल्कि उसी तरह का एक खंजर कमलिनी ने मुझे भी दिया है। (कमर से खंजर निकाल कर और हर तरह पर दिखाकर) देखिये, यही है।

मायारानी––(ताज्जुब से) हाँ-हाँ, अब मुझे याद आया। नागर ने अपना और तुम्हारा हाल बयान किया था तो ऐसे खंजर का जिक्र किया था और मैं इस बात को बिल्कुल भूल गई थी। खैर तो अब मैं उस पर किसी तरह फतह नहीं पा सकती।

भूतनाथ––नहीं, घबराइये मत, उसके लिए भी मैं बन्दोबस्त करके आया हूँ।

मायारानी––वह क्या?

भूतनाथ ने वह कमलिनी वाली चिट्ठी बटुए में से निकाल कर मायारानी के सामने रखी जिसे पढ़ते ही वह खुश हो गई और बोली, शाबाश भूतनाथ, तुमने बड़ा ही काम किया! अब तो तुम उस नालायक को मेरे पंजे में इस तरह फँसा सकते हो कि कमलिनी को तुम पर कुछ भी शक न होगा।

भूतनाथ––बेशक ऐसा ही होगा। मगर अब हम लोगों को अपनी राह बदल देनी पड़ेगी अर्थात् पहले जो यह बात सोची गई थी कि किशोरी का छुड़ाने के लिए जो कोई वहाँ जायेगा, उसे फँसाते जायेंगे, सो न करना पड़ेगा।

मायारानी––तुम जैसा कहोगे वैसा ही किया जायेगा, बेशक तुम्हारी अक्ल हम लोगों से तेज है। तुम्हारा ख्याल बहुत ठीक है अगर उसे पकड़ने की कोशिश की जायेगी तो वह कई आदमियों को मारकर निकल जायेगा और फिर कब्जे में न आवेगा, और ताज्जुब नहीं कि इसकी खबर भी लोगों को हो जाये, जो हमारे लिए बहुत बुरा होगा।

भूतनाथ––हाँ, अतः आप एक चिट्ठी नागर के नाम की लिख कर मुझे दीजिए और उसमें केवल इतना ही लिखिए कि किशोरी और कामिनी को निकाल ले जाने वाले से रोक-टोक न करे बल्कि तरह दे जाये और उस मकान के तहखाने का भेद मुझे बता दें, फिर जब ये दोनों किशोरी और कामिनी को ले जायेंगे तो उसके बाद मैं उन्हें धोखा देकर दारोगा वाले बँगले में जो नहर के ऊपर है ले जाकर झट फँसा लूँगा। वहाँ के तहखानों की ताली आप मुझे दे दीजिये। कमलिनी की जुबानी मैंने सुना है कि वहाँ का तहखाना बड़ा ही अनूठा है, इसलिए मैं समझता हूँ कि मेरा काम उस मकान से बखूबी चलेगा। जब मैं गोपालसिंह को वहाँ फँसा लूँगा तो आपको खबर दूँगा, फिर आप जो चाहे कीजियेगा!

मायारानी––बस-बस, तुम्हारी यह राय बहुत ठीक है, अब मुझे निश्चय हो गया कि मेरी मुराद पूरी हो जायेगी!

मायारानी ने दारोगा वाले बँगले तथा तहखाने की ताली भूतनाथ के हवाले करके उसे वहाँ का भेद बता दिया और भूतनाथ के कहे बमूजिव एक चिट्ठी भी नागर के नाम की लिख दी। दोनों चीजें लेकर भूतनाथ वहाँ से रवाना हुआ और काशीजी की तरफ तेजी के साथ चल निकला।

च॰ सा॰