कोविद-कीर्तन  (1927) 
महावीर प्रसाद द्विवेदी

प्रयाग: इंडियन प्रेस, लिमिटेड, पृष्ठ मुखपृष्ठ से – - तक

 

कोविद-कीर्तन





लेखक
महावीरप्रसाद द्विवेदी





प्रकाशक
इंडियन प्रेस, लिमिटेड, प्रयाग



१९२७



प्रथम संस्करण]
[मूल्य
 

          Published by
            K. Mittra,
at The Indian Press, Ltd.,
           Allahabad














                                              Printed by
                                                A Bose,
                                    at The Indian Press, Ltd
                                          Benares-Branch

निवेदन

इस संग्रह में चुने हुए १२ विद्वानों के संक्षिप्त जीवन-चरित सन्निविष्ट हैं। उनमें से केवल एक––आचार्य्य शीलभद्र––प्राचीन और अवशिष्ट सभी अर्वाचीन विद्वानों के हैं। ये सभी चरित काल-क्रम के अनुसार, एक के अनन्तर एक, रक्खे गये हैं। अर्थात् जिसका प्रकाशन पहले हुआ है वह पहले और जिसका पीछे हुआ है वह पीछे रक्खा गया है। कारण यह है कि ये चरित, समय-समय पर, अधिकांश चरितनायकों की निधन-वार्ता विदित होने पर, लिखे गये हैं। अतएव इनका बहुत कुछ सम्बन्ध समय से है। कौन चरित कब "सरस्वती" में प्रकाशित हुआ, यह बात प्रत्येक लेख के नीचे लिख दी गई है।

काल-क्रम के अनुसार लेखों को इस संग्रह में रखने का एक और भी कारण है। इसके कोई-कोई लेख बहुत पुराने––पच्चीस-छब्बीस वर्ष से भी अधिक पुराने––हैं। उन्हे पढ़ने से पाठकों को यह मालूम हो जायगा कि जिस समय के वे लेख हैं उस समय हिन्दी की लेखन-शैली कैसी थी और अब कैसी है। उस समय की शैली की तुलना आजकल की शैली से करने पर दोनों के गुण-दोषों का निर्णय करने में बहुत कुछ सहायता मिल सकती है।

विद्वानों, महात्माओं और नामाङ्कित साहित्य-सेवियों के जीवन-चरित कभी पुराने नहीं होते, क्योंकि उनसे जो शिक्षा मिलती है वह सदा ही एक सी मिला करती है। राम और कृष्ण, व्यास और वाल्मीकि, कालिदास और अश्वघोष, सूरदास और तुलसीदास का चरितगान जैसे सौ-दो सौ वर्ष पहले बोधवर्द्धक था वैसे ही आज भी है और आगे भी बना रहेगा। जो बात प्राचीनों के विषय मे चरितार्थ है वही नवीनो के विषय मे भी चरितार्थ है। उनके चरितानुशीलन से मनोरञ्जन और लाभग्रहण की मात्रा मे कुछ कमी चाहे भले ही हो, पर उनका पाठ सर्वांश में व्यर्थ कभी नहीं हो सकता।

इस पुस्तक में जिन पुण्यशील पुरुषों के चरितों का संग्रह है उनके सांसारिक जीवन, उनके विद्वत्व, उनके स्वभाव-वैचित्र्य, उनके कार्य-कलाप, उनके लेखन-कौशल और उनके ग्रन्थ-निर्माण आदि से सम्बन्ध रखनेवाले ज्ञानार्जन से उत्साहवान्, महत्वाकांक्षी और अनुकरण-प्रेमी सज्जन बहुत कुछ लाभ उठा सकते हैं। शर्त यह है कि इच्छाशक्ति की कमी उनमें न हो। क्योंकि इच्छा होने और उद्योग करने ही से मनुष्य सद्गुणों की प्राप्ति में समर्थ हो सकता है।

दौलतपुर, रायबरेली, महावीरप्रसाद द्विवेदी
१३ जुलाई १९२७



विषय-सूची


लेखाड़्कलेख-नाम
१ वामन शिवराम आपटे, एम० ए०
२ विष्णु शास्त्री चिपलूनकर
३ महामहोपाध्याय पं० आदित्यराम भट्टाचार्य, एम० ए०
४ पण्डित मथुराप्रसाद मिश्र
५ पण्डित कुन्दनलाल
६ बौद्धाचार्य्य शीलभद्र
७ ख़ानबहादुर शम्सुल-उल्मा, मौलाना मुहम्मद ज़काउल्लाह
८ रावबहादुर गणेश वेङ्कटेश जोशी, बी० ए०
९ इच्छाराम सूर्य्यराम देसाई
१० राय श्रीशचन्द्र बसु बहादुर
११ रायबहादुर पण्डित परमानन्द चतुर्वेदी, बी० ए०
१२ सिंहल द्वीप के बौद्ध विद्वान् आचार्य सुमड़्गल


पृष्ठ

११
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४९
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१३३



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