कुरल-काव्य/परिच्छेद ९० बड़ों के प्रति दुर्व्यवहार न करना

कुरल-काव्य
तिरुवल्लुवर, अनुवादक पं० गोविन्दराय जैन

पृष्ठ २८८ से – २८९ तक

 

 

परिच्छेद ९०
बड़ों के प्रति दुर्व्यवहार न करना

सन्तों के अपमान से, निज रक्षा का कार्य।
करलो यदि हो कामना, क्षेम-कुशल की आर्य॥१॥
सत्पुरुषों की अज्ञ यदि, करे अवज्ञा हास।
टूटे उनकी शक्ति से, शिर पर विपदाकाश॥२॥
हितूजनों को लाँघकर, जाओ करलो नाश।
करो बली से बैर जो, करदे सत्तानाश॥३॥
शक्तिसहित बलवान का, करता जो अपमान।
वह क्रोधी निजनाश को, करता यम आह्वान॥४॥
बलशाली या भूप का, करके क्रोध उभार
पृथिवी पर नर को नहीं, सुख का कुछ आधार॥५॥
पूर्ण भयंकर आग से, बच सकते नर-प्राण।
पर मान्यों से द्वेष रख, कैसे उनका त्राण॥६॥
आत्मबली योगीष जो, करें कोप की वृद्धि।
जीवन में फिर हर्ष क्या, क्या हो वैभव-सिद्धि॥७॥
गिरिसमान ऋषि उच्च हैं, उनकी शक्ति असीम।
उखड़े उनके कोप से, सुदृढ़ राज्य निस्सीम॥८॥
व्रत से जिन का शुद्ध मन, वे ऋषि यदि हों रुष्ट।
स्वर्गाधिप तब इन्द्र भी, होता पद से भ्रष्ट॥९॥
आत्मशक्ति के देवता, ऋषि का कोप महान।
बचे नहीं बलवान का, नर ले आश्रयदा॥१०॥

 

परिच्छेद ९०
बड़ों के प्रति दुर्व्यवहार न करना

१—जो आदमी अपनी भलाई चाहता है, उसे सबसे अधिक सावधानी इस बात की रखनी चाहिए कि वह महान् पुरुषो का अपमान करने से अपने को बचावे।

२—यदि कोई मनुष्य, महात्माओं का निरादर करेगा तो उनकी शक्ति से उसके शिर पर अनन्त आपत्तिया आ टूटेगी।

३—क्या तुम अपना सर्वनाश करना चाहते हो? तो जाओ किसी के सदुपदेश पर ध्यान न दो और जाकर उन लोगो के साथ छेडाखानी करो कि जो जब चाहे तुम्हारा नाश करने की शक्ति रखते हैं।

४—जो दुर्बल मनुष्य, बलवान् और सत्ताधारी पुरुषो का अपमान करता है वह मानो यमराज को अपने पास आने के लिए सकेत करता है।

५—जो लोग, पराक्रमी राजा के क्रोध को उभारते है, वे चाहे कही जावे कभी सुख समृद्ध न होगे।

६—दावाग्नि मे पडे हुए लोग चाहे भले ही बच जाये पर उन लोगो की रक्षा का कोई उपाय नहीं है कि जो शक्तिशाली पुरुषो के प्रति दुर्व्यवहार करते है।

७—यदि आत्मबलशाली ऋषिगण तुम पर क्रुद्ध हे नो विविध प्रकार के आनन्द से उल्लसित तुम्हारा भाग्यशाली जीवन और समस्त ऐश्चर्य से पूर्ण तुम्हारा धन फिर कहा होगा?

८—जिन राजाओ का अस्तित्व शाश्वतरूप से स्थायी भित्ति पर स्थापित है वे भी अपने समस्त बन्धुबान्धवो सहित नष्ट हो जायेंगे यदि पर्वत के समान शक्तिशाली महर्षिगण उनके सर्वनाश की कामना भर करे।

९—और तो और स्वय देवेन्द्र भी अपने स्थान से भ्रष्ट हो जाय और अपना प्रभुत्व गवा बैठे, यदि पवित्र प्रतिज्ञा वाले सन्त लोग क्रोध भरी दृष्टि से उसकी ओर देखे।

१०—यदि आध्यात्मिक ऋद्धि रखने वाले महर्षिगण रुष्ट हो जाये तो व मनुष्य भी नहीं बच सकने कि जो सुष्टद से सुबढ़ पाश्य के ऊपर निर्भर ह।