कुरल-काव्य/परिच्छेद ७२ श्रोताओं का निर्णय

कुरल-काव्य
तिरुवल्लुवर, अनुवादक पं० गोविन्दराय जैन

पृष्ठ २५२ से – २५३ तक

 

 

परिच्छेद ७२
श्रोताओं का निर्णय

वचनकला सीखो प्रथम, रखो सुरुचि का ध्यान।
श्रोताओं का भाव लख, दो वैसा व्याख्यान॥१॥
हे शब्दों के पारखी, सद्वक्ता आचार्य।
पहिले देखो श्रोतृमन, फिर दो भाषण आर्य॥२॥
श्रोताओं के चित्त जो, नहीं परखता योग्य।
वचनाला-अनभिज्ञ वह, नही किसी के योग्य॥३॥
प्राज्ञों में ही ज्ञान की, चर्चा उत्तम तात।
मूर्खों में पर मूर्खता, समझ करो तुम बात॥४॥
मान्यजनों के सामने, करो न बढ़कर बात।
वाणी-संयम धन्य है, उज्ज्वल गुण विख्यात॥५॥
जो मनुष्य यदि हो नहीं, वक्ता सफल समर्थ।
तो सभ्यों में भ्रष्टसम, रखे नही कुछ अर्थ॥६॥
गुणियों के दरबार में, गुणमणि का भण्डार।
विद्वज्जन हैं खोलते, रुचि रुचि के अनुसार॥७॥
प्राज्ञों को निजज्ञान का, देना मानो दान।
जीवित-तरु को सींचकर, करना और महान॥८॥
भाषण से निजकीर्ति के, इच्छुक हे गुणवान।
कभी न दो तुम भूल कर, अज्ञों में व्याख्यान॥९॥
भिन्नपक्ष के सामने, भाषण का है अर्थ।
मानों मलिन प्रदेश में, सुधा-वृष्टि सा व्यर्थ॥१०॥

 

परिच्छेद ७२
श्रोताओं का निर्णय

१—जिसने वक्तृता का उत्तम अभ्यास किया है और सुरुचि प्राप्त कर ली है उसे प्रथम श्रोताओं की पूरी परख करनी चाहिए पीछे उनके अनुरूप भाषण देना चाहिए।

२—ए! शब्दों का मूल जानने वाले पवित्र पुरुषों। पहिले अपने श्रोताओं की मानसिक स्थिति को समझ लो और फिर उपस्थित जनसमूह की अवस्था के अनुसार अपनी वक्तृता देना आरम्भ करो।

३—जो व्यक्ति श्रोतृवर्ग के स्वभाव का अध्ययन किये बिना भाषण देते है वे भाषणकला जानते ही नहीं और न वे किसी अन्य कार्य के लिए उपयोगी है।

४—बुद्धिमान और विद्वान् लोगो की सभा में ही ज्ञान और विद्वत्ता की चर्चा करो, किन्तु मूर्खों को उनकी मूर्खता का ध्यान रखकर ही उत्तर दो।

५—धन्य है वह आत्म-सयम जो मनुष्य को वृद्ध जनों की सभा में आगे बढ़कर नेतृत्व ग्रहण करने से मना करता है। यह एक ऐसा गुण है जो अन्य गुणों से भी अधिक समुज्ज्वल है।

६—बुद्धिमान लोगों के सामने असमर्थ और असफल सिद्ध होना धर्ममार्ग से पतित हो जाने के समान है।

७—विद्वानों की विद्वत्ता अपने पूर्ण तेज के साथ सुसम्पन्न गुणियों की सभा में ही चमकती है।

८—बुद्धिमान लोगों के सामने उपदेशपूर्ण व्याख्यान देना जीवित पौधों को पानी देने के समान है।

९—ए! वक्तृता से विद्वानों को प्रसन्न करने की इच्छा रखने वाले लोगो। देखो, कभी भूलकर भी मूर्खों के सामने व्याख्यान न देना।

१०—अपने से मतभेद रखने वाले व्यक्तियों के समक्ष भाषण करना ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार अमृत को मलिन स्थान पर डाल देना।