कुरल-काव्य/परिच्छेद ६७ स्वभावनिर्णय

कुरल-काव्य
तिरुवल्लुवर, अनुवादक पं० गोविन्दराय जैन

पृष्ठ २४२ से – २४३ तक

 

 

परिच्छेद ६७
स्वभावनिर्णय

इच्छाबल से भिन्न क्या, यश में दिखे महत्व।
पहुँचे उसके अंश तक, और न कोई तस्व॥१॥
कार्यविनिश्चय के लिए, विज्ञ करें दो भाग।
दृढ़ रहना उद्देश्य में, कर अशक्य का त्याग॥२॥
कर्मठ कहें न ध्येय को, कार्यसिद्धि के पूर्व।
आते नर पर अन्यथा, संकट अटल अपूर्व॥३॥
वस्तुकथन तो लोक में, अहो सरल विख्यात।
विधिवत करना हाथ से, किन्तु कठिन है बात॥४॥
अति महत्व के कार्य कर, जिन की कीर्ति विशाल।
महिमा उन की विश्व में, सेवा में भूपाल॥५॥
पूर्णशक्ति के साथ में, यदि सच्चा संकल्प।
तो मिलती उस भाँति ही, वस्तु यथासंकल्प॥६॥
आकृति को ही देखकर, मत समझो वेकाम।
चलते रथ में अक्षसम, करते वे ही काम॥७॥
जो तुमने सद् बुद्धि से, ठानलिया है कार्य।
सिद्ध करो निश्शक वह, पूर्ण शक्ति से आर्य॥८॥
हर्षोत्पादक कार्य में, जुटंजाओ घर टेक।
डटे रहो तुम अन्त तक, जो भी कष्ट अनेक॥९॥
चरित्रगठन के अर्थ जो, रखें न कुछ भी सत्व।
लोकमान्य ते न वे, रखकर अन्य महत्व॥१०॥

 

परिच्छेद ६७
स्वभाव-निर्णय

१—यश का महत्व और कुछ नहीं बल्कि उस इच्छाशक्ति की महत्ता है जो उसके लिए प्रयास करती है और अन्य बातें उस अंश तक नहीं पहुँचती।

२—ऐसे सभी कामों से बचाव रखना जो निश्चय असफल होगे और अपने उद्देश्य से बाधाओं के कारण विचलित न होना, ये दोनों सिद्धान्त विद्वानों के पथप्रदर्शक है।

३—कर्मठ पुरुष अपने उद्देश्य को तभी मालूम होने देता है जब अपने ध्येय को प्राप्त कर लेता है, क्योकि असमय में ही भेद खुल जाने से ऐसी बाधाये आ सकती है जिनका कि पीछे उल्लघन कठिन हो जायगा।

४—किसी मनुष्य के लिए एक वस्तु के विषय में कहना सरल है परन्तु उसको अपने हाथ से करना वास्तव में कठिन है।

५—जिस मनुष्य ने महान् कार्यों को करने का यश कमा लिया है उसकी सेवाओं के लिए राजा भी विनती करेगा और वह सबके द्वारा प्रशसित होगा।

६—मनुष्य जो जो इच्छायें करता है उन्हें अपने इष्टरूप में ही पा सकता है, यदि वह शुद्ध अन्त करण से उनका सच्चा संकल्प करे।

७—किसी आदमी की प्रकृति से ही घृणा नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसे भी आदमी है जो भरी गाड़ी में धुरा की कील के समान है।

८—जब आपने अपनी सारी बुद्धिमत्ता से एक काम करने की ठान ली है तब डगमगाना नहीं चाहिए बल्कि लक्ष्य को शक्ति से प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।

९—ऐसे कार्यों के करने में जुट जाओ जो प्रसन्नता बढ़ाते है चाहे तुम्हें ऐसा करने मे अनेक कठोर दुखों की पीड़ा उठानी पड़े, अपने हृदय को कड़ा करो और अन्त तक दृढ़ रहो।

१०—जिन लोगों में चरित्र के निर्णय करने की शक्ति नही होती उन्होंने अन्य दिशाओं में चाहे कितनी ही महत्ता प्राप्त कर ली हो संसार उसकी कुछ परवाह नहीं करेगा।