कुरल-काव्य/परिच्छेद ५२ पुरुषपरीक्षा और नियुक्ति
परिच्छेद ५२
पुरुषपरीक्षा और नियुक्ति
गुण दुर्गुण जाने उभय,[१] चलता पर, शुभचाल।
ऐसे को ही कार्य में, कर नियुक्त नरपाल॥१॥
जिसकी प्रतिभा से रहे, शासन में विस्फूर्ति।
और हटे विपदा वही, करे सचिवपद-पूर्ति॥२॥
निर्लोभी, करुणाभरा, कर्मठ, बुद्धिविशाल।
राज्यकार्य को राखिए, ऐसा नर भूपाल॥३॥
ऐसे भी नर हैं बहुत, जिनका पौरुष ख्यात।
वे भी नर कर्तव्य से, अवसर पर हटजात॥४॥
प्रीतिमात्र से कार्य का, भार न दो नरनाथ।
कार्यकुशल हो शान्तिमय, यह भी देखो साथ॥५॥
जिसकी जैसी योग्यता, वैसा दो अनुरूप।
कार्य उसे फिर काम को, करवाओ मनरूप॥६॥
पहिले देखो शक्ति को, फिर उसके सब कार्य।
तब दो सेवक हाथ में, गतसशय हो, कार्य॥७॥
उस पद को उपयुक्त यह, हो यदि यह ही भाव।
तब उसके अनुरूप ही, करो व्यवस्था राव॥८॥
भक्त कुशल भी भृत्यपर, रुष्ट रहे जो देव।
भाग्यश्री उस भूप की, फिरजाती स्वयंमेव॥९॥
भृत्यवर्ग के कार्य को, प्रतिदिन देखो भूप।
शुद्ध भृत्य हों राज्य में, फिर विपदा किसरूप॥१०॥
परिच्छेद ५२
पुरुष परीक्षा और नियुक्ति
१—जो आदमी नेकी को भी देखता है और बदी को भी देखता है, लेकिन पसन्द उसी बात को करता है कि जो नेक है, बस उसी आदमी को अपनी नौकरी में लो।
२—जो मनुष्य तुम्हारे राज्य के साधनों को विस्फूर्त कर सके और उस पर जो आपत्ति पड़े उसे दूर कर सके, ऐसे ही आदमी के हाथ में अपने राज्य का प्रबन्ध सोपो।
३—उसी आदमी को अपना कर्मचारी चुनो कि जिसमे दया, बुद्धि और द्रुत-निश्चय है अथवा जो लालच से परे है।
४—बहुत से आदमी ऐसे है जो सब प्रकार की परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो जाते है, फिर भी ठीक कर्तव्यपालन के समय वे बदल जाते हैं।
५—आदमियों के तद्विषयक ज्ञान और उसकी शान्तिपूर्ण कार्य कारिणी शक्ति का विचार करके ही उनके हाथों में काम सौंपना चाहिए, इसलिए नहीं कि वे तुमसे प्रेम करते है।
६—प्रवीण मनुष्य को चुनकर उसे वही काम दो जिसके वह योग्य है, फिर जब काम करने का ठीक समय आवे तो उससे काम प्रारम्भ करवा दो।
७—पहिले सेवक की शक्ति और उसके योग्य काम का पूर्ण विचार करलो तब उसकी जवाबदारी पर वह काम उसके हाथ में दो।
८—जब तुम निश्चय कर चुको कि यह आदमी इस पद के योग्य है तब तुम उसे उस पद को सुशोभित करने योग्य बना दो।
९—जो व्यक्ति अपने भक्त और कार्यनिष्णात कर्मचारी पर रुष्ट होता है, भाग्यलक्ष्मी उससे फिर जायगी।
१०—राजा को चाहिए कि वह प्रतिदिन हर एक काम की देखभाल करता रहे, क्योंकि जब तक किसी देश के कर्मचारियों में दूषण न होंगे तब तक उस देश पर कोई आपत्ति न आयेगी।
- ↑ दोनों।