कुरल-काव्य/परिच्छेद ३ मुनि-महिमा

कुरल-काव्य
तिरुवल्लुवर, अनुवादक पं० गोविन्दराय जैन

पृष्ठ ११४ से – ११५ तक

 

 

परिच्छेद ३
मुनि-महिमा

विषयाशा जिनने तजी, बनकर तप के पात्र।
उनकी महिमा तो बड़ी, गाते हैं सब शास्त्र॥१॥
ऋषियों की सामर्थ्य को, नाप सके नर कौन?
स्वर्ग गये जनवृन्द को, गिन सकता ज्यों कौन॥२॥
तुलना कर शिवलोक से, छोड़ा सब संसार।
उस त्यागी के तेज से, जग में ज्योति अपार॥३॥
स्वर्ग-खेत के बीज वे, संयम-अंकुश मार।
करते गज सम इन्द्रियाँ वश में पूर्ण प्रकार॥४॥
शम-दम के भण्डार में, कैसी होती शक्ति।
इच्छित हो तो देखलो, स्वर्गाधिप की भक्ति॥५॥
अनहोती होती करें, वे ही उच्च महान्।
होती अनहोती करें, वे ही नीच अजान॥६॥
करतीं जिसकी इन्द्रियाँ, नीतिविहित उपभोग।
रखता है वह सत्य ही, भू-शासन का योग॥७॥
धर्मग्रन्थ भी विश्व के, ऋषियों का जयघोष।
करते हैं जिनके सदा, सत्य वचन निर्दोष॥८॥
त्याग शिखर जो है चढ़ा, तजकर सकल विकार।
क्षण भर उमके क्रोध को, सहना कठिन अपार॥९॥
मुनि ही ब्राह्मण सत्य हैं, जिनका साधु स्वभाव।
कारण उनके ही रहे, सब पर करुणा भाव॥१०॥

 

परिच्छेद ३
मुनि-महिमा

१—जिन लोगों ने इन्द्रियो के समस्त उपभोगो को त्याग दिया है और जो तापसिक जीवन व्यतीत करते है, धर्मशास्त्र उनकी महिमा को और सब बातों से अधिक उत्कृष्ट बताते है।

२—तुम तपस्वी लोगों की महिमा को नहीं नाप सकते। यह काम उतना ही कठिन है जितना कि दिवगत आत्माओं की गणना करना।

३—जिन लोगों ने परलोक के साथ इहलोक की तुलना करने के पश्चात् इसे त्याग दिया है, उनकी महिमा से यह पृथ्वी जगमगा रही है।

४—जो पुरुष अपनी सुदृढ इच्छा-शक्ति के द्वारा पाँचों इन्द्रियों को इस तरह वश में रखता है, जिस तरह हाथी अंकुश द्वारा वशीभूत किया जाता है, वास्तव में, वही स्वर्ग के खेतों में बोने योग्य बीज है।

५—पचेन्द्रियों की तृष्णा जिसने शमन की है, उस तपस्वी के तप में क्या सामर्थ्य है, यदि यह देखना चाहते हो तो देवाधिदेव और इन्द्र की ओर देखो।

६—महान् पुरुष वे ही है, जो अशक्य कार्यों को भी सम्भव कर लेते है और क्षुद्र वे है, जिनसे यह काम नहीं हो सकता।

७—जो, स्पर्श, रस, गंध, रूप और शब्द इन पाँच इन्द्रिय-विषयों का यथोचित उपभोग करता है, वह सारे ससार पर शासन करेगा।

८—संसार भर के धर्म-ग्रन्थ, सत्यवक्ता महात्माओं की महिमा की घोषणा करते हैं।

९—त्याग की चट्टान पर खड़े हुए महात्माओं के क्रोध को एक क्षण भी सह लेना असम्भव है।

१०—साधुप्रकृति पुरुषों को ही ब्राह्मण कहना चाहिये, कारण वे ही लोग सब प्राणियों पर दया रखते है।