कुरल-काव्य/परिच्छेद ३३ अहिंसा

कुरल-काव्य
तिरुवल्लुवर, अनुवादक पं० गोविन्दराय जैन

पृष्ठ १७४ से – १७५ तक

 

 

परिच्छेद ३३
अहिंसा

सब धर्मों में श्रेष्ठ है, परम अहिंसा धर्म।
हिंसा के पीछे लगे, पाप भरे सब कर्म॥१॥
सन्तों के उपदेश में, ये ही दो हैं सार।
जीवों की रक्षा तथा, भूखे को आहार॥२॥
कहता सारा लोक है, परम अहिंसा-धर्म।
उसके पीछे सत्य है, ऋषियों का यह मर्म॥३॥
मत मारो बुध भूलकर, लघु से भी लघु जीव।
वह ही उज्ज्वल मार्ग है, जिसमें दया अतीव॥४॥
जिसने त्यागे विश्व के, पाप भरे सब कर्म।
उन में भी वह मुख्य है, जिसे अहिंसा धर्म॥५॥
धन्य! अहिंसा का व्रती, जिसमें करुणाभाव।
उस के सुदिनों पर नहीं, काल बली का घाव॥६॥
जीवन संकटग्रस्त हो, पाकर विपदा-काल।
तो भी पर के प्राण को, मत ले विज्ञमराल॥७॥
सुनते हैं बलिदान से, मिलतीं कई विभूति
वे भव्यों की दृष्टि में, तुच्छ घृणा की मूर्ति॥८॥
जिनकी निर्भर जीविका, हत्या पर ही एक।
मृतभोजी उनको विबुध, माने, हो सविवेक॥९॥
सड़े गले उस देह को, देख सतत धीमान।
घातक वह था पूर्व में, सोचें मन अनुमान॥१०॥

 

परिच्छेद ३३
अहिंसा

१—अहिंसा सब धर्मों में श्रेष्ठ है। हिंसा के पीछे सब प्रकार के पाप लगे रहते है।

२—क्षुधावाधितों के साथ अपनी रोटी बाँट कर खाना और हिंसा से दूर रहना, यह सब धर्म उपदेष्टाओं के समस्त उपदेशों में श्रेष्ठतम उपदेश है।

३—अहिंसा सब धर्मों में श्रेष्ठ धर्म है। सच्चाई की श्रेणी उसके पश्चात् है।

४—सन्मार्ग कौनसा है? यह वही मार्ग है जिसमे छोटे से छोटे जीव की रक्षा का पूरा ध्यान रखा जावे।

५—जिन लोगों ने इस पापमय सांसारिक जीवन को त्याग दिया है उन सब में मुख्य वह पुरुष जो हिंसा के पाप से डर कर अहिंसामार्ग का अनुसरण करता है।

६—धन्य है वह पुरुष जिसने अहिसाव्रत धारण किया है। मृत्यु जो सब जीवों को खा जाती है उसके सुदिनो पर हमला नहीं करती।

७—तुम्हारे प्राण संकट मे भी पड़ जावे तब भी किसी की प्यारी जान मत लो।

८—लोग कहते है कि बलि देने से बहुत सारे वरदान मिलते है, परन्तु पवित्रहृदय वालों की दृष्टि में वे वरदान जो हिंसा करने से मिलते है जघन्य और घृणास्पद हैं

९—जिन लोगों का जीवन हत्या पर निर्भर है, समझदार लोगों की दृष्टि में वे मृतकभोजी के समान हैं।

१०—देखो, वह आदमी जिसका सड़ा हुआ शरीर पीवदार घावों से भरा हुआ है, वह पिछले भवों में रक्तपात बहाने वाला रहा होगा, ऐसा बुद्धिमान लोग कहते है।