कार्ल मार्क्स फ्रेडरिक एंगेल्स/टिप्पणियां

कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स
लेनिन

मास्को: प्रगति प्रकाशन, पृष्ठ ५९ से – निवेदन तक

 





टिप्पणियां

¹ब्ला० इ० लेनिन ने 'कार्ल मार्क्स' शीर्षक अपना लेख ग्रानात विश्वकोष के लिए १९१४ के वसंत में गैलीशिया स्थित पोरोनिनो में लिखना प्रारंभ किया और उसी वर्ष की नवंबर में स्विट्ज़रलैंड स्थित बर्न में समाप्त किया। १९१८ में यह लेख पुस्तिका के रूप में प्रकाशित हुआ था। इसकी भूमिका में लेनिन ने लिखा था कि जहां तक उन्हें याद है, यह लेख १९१३ में लिखा गया था।

यह लेख उक्त विश्वकोष में १९१५ में व० इल्यीन के हस्ताक्षर के साथ प्रकाशित हुआ। लेख के साथ परिशिष्ट के रूप में 'मार्क्सवाद की संदर्भ-सूची' जोड़ी गयी थी। सेन्सर से बचने के लिए विश्वकोष के संपादकों ने लेख के दो हिस्से ('समाजवाद' और 'सर्वहारा के वर्ग-संघर्ष की कार्यनीति') छोड़ दिये थे और बाक़ी लेख में भी काफ़ी हेरफेर किये थे।

१९१८ में 'प्रिबोई' पब्लिशर्स ने यह लेख ब्ला० इ० लेनिन की भूमिका के साथ पुस्तिका के रूप में प्रकाशित किया। लेख का स्वरूप वही था जो विश्वकोष में था; पर इस पुस्तिका में 'मार्क्सवाद की संदर्भ-सूची' नहीं दी गयी थी।

पांडुलिपि के अनुसार यह लेख पूर्ण रूप में पहली बार १९२५ में 'मार्क्स-एंगेल्स-मार्क्सवाद' शीर्षक संग्रह में प्रकाशित किया गया। यह संग्रह रूस की कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) की केंद्रीय समिति के लेनिन संस्थान द्वारा तैयार किया गया था।-पृष्ठ ५

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³वामपंथी हेगेलवादी अथवा तरुण हेगेलवादी - १९ वीं शताब्दी के चौथ और

पांचवें दशकों में यह जर्मन दर्शन की आदर्शवादी प्रवृत्ति थी। इसने हेगेल के दर्शन से आमूल-परिवर्तनवादी निष्कर्ष निकालने और जर्मनी के पूंजीवादी रूप-परिवर्तन की आवश्यकता प्रमाणित करने का प्रयत्न किया। द० स्ट्रॉस, ब० और ए० बावेर, म० स्टर्नर इत्यादि वामपंथी हेगेलवादियों के प्रतिनिधि थे। कुछ समय तक ल० फ़ायरबाख और तरुण का० मार्क्स और फे० एंगेल्स इन हेगेलवादियों से संबद्ध थे। पर बाद में इन्होंने तरुण हेगेलवादियों के साथ अपने संबंध तोड़ दिये और 'पवित्र परिवार' (१८४४) तथा 'जर्मन विचारधारा' (१८४५-४६) में उनके दर्शन के आदर्शवादी तथा निम्न-पूंजीवादी स्वरूप की आलोचना की। - पृष्ठ ६


³प्रस्तुत संस्करण में मार्क्सवाद के और मार्क्सवाद पर लिखे गये साहित्य का सिंहावलोकन नहीं दिया गया है। - पृष्ठ ७


⁴यहां का० मार्क्स के 'मोज़ेल संवाददाता की रिहाई' शीर्षक लेख की ओर संकेत है। -पृष्ठ ७


प्रुदो (१८०६-१८६५) - फ्रांसीसी निम्न-पूंजीवादी समाजवादी और अराजकतावादी ; मार्क्सवाद-विरोधी और विज्ञान-विरोधी प्रूदोंवाद के संस्थापक। निम्न-पूंजीवादी दृष्टिकोण से बड़ी पूंजीवादी संपत्ति की आलोचना करते हुए प्रूदों निजी संपत्ति को शाश्वत बनाने का सपना देखते थे। उनका सुझाव था कि जन "विनिमय" बैंकों की स्थापना की जाये। वह मानते थे कि इनकी सहायता से मजदूरों को स्वयं अपने उत्पादन-साधन मिल जायेंगे, मजदूर कारीगर बन जायेंगे और उनके माल की “न्यायसंगत" बिक्री सुनिश्चित होगी। प्रूदों सर्वहारा की ऐतिहासिक भूमिका और महत्व समझ न पाये और उन्होंने वर्ग-संघर्ष, सर्वहारा-क्रांति और सर्वहारा के अधिनायकत्व के प्रति नकारात्मक रुख अपनाया। अराजकतावादी होने के कारण उन्होंने राज्य की आवश्यकता अस्वीकार की। पहली इंटरनेशनल पर अपने विचार

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लादने के प्रूदों के प्रयत्नों के विरुद्ध मार्क्स और एंगेल्स ने डटकर संघर्ष

किया। मार्क्स ने 'दर्शनशास्त्र की निर्धनता' में प्रूदोंवाद की कड़ी आलोचना की। मार्क्स , एंगेल्स और उनके अनुयायियों द्वारा छेड़े गये दृढ़ संघर्ष के फलस्वरूप पहली इंटरनेशनल में मार्क्सवाद को प्रूदोंवाद पर संपूर्ण विजय मिली।

लेनिन ने प्रूदोंवाद को मजदूर वर्ग का दृष्टिकोण समझ लेने में असमर्थ “कूपमंडूक की संकीर्ण मनोवृत्ति" की संज्ञा दी। पूंजीवादी "सैद्धांतिकों" द्वारा वर्गों की सुसंगति के प्रचार में प्रूदों के विचारों का विस्तृत उपयोग किया जा रहा है। - पृष्ठ ८

कम्युनिस्ट लीग’ - क्रांतिकारी सर्वहारा का सबसे पहला अंतर्राष्ट्रीय संगठन। १८४७ की गर्मियों में लंदन में इसकी स्थापना हुई। इसके संगठक का० मार्क्स और फ्रे० एंगेल्स थे। इन्होंने उक्त संगठन के निर्देश पर 'कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र' लिखा। लीग के उद्देश्य इस प्रकार थे: पूंजीवादी वर्ग का तख्ता उलटना, वर्ग-विरोध पर आधारित पुराने पूंजीवादी समाज की समाप्ति और ऐसे नये समाज की स्थापना जिसमें न कोई वर्ग होंगे और न निजी संपत्ति ही। 'कम्युनिस्ट लीग' ने सर्वहारावादी क्रांतिकारियों के स्कूल, सर्वहारा पार्टी के बीज और 'अंतर्राष्ट्रीय मजदूर सभा' (पहली इंटरनेशनल) की पूर्ववर्ती संस्था के रूप में महान् ऐतिहासिक भूमिका अदा की। लीग नवंबर १८५२ तक बनी रही। लीग के प्रमुख नेताओं ने आगे चलकर पहली इंटरनेशनल में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। देखिये फे० एंगेल्स का 'कम्युनिस्ट लीग के इतिहास के संबंध में' शीर्षक लेख । -पृष्ठ ८

नोये राइनिशे त्साइटुङ’ (नया राइनी समाचारपत्र) कोलोन में १ जून , १८४८ से १६ मई, १८४६ तक प्रकाशित होता रहा। का० मार्क्स और फ्रे० एंगेल्स इस पत्र के प्रबंधक थे। मार्क्स प्रधान संपादक थे। पत्र ने जन समूहों को शिक्षित किया , प्रतिक्रांति के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया। समूचे जर्मनी में पत्र का प्रभाव अनुभव किया गया। ‘नोये राइनिशे

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त्साइटुङ' दृढ़ और पक्का रुख अपनाये था , युयुत्सु अंतर्राष्ट्रीयतावाद की

उसकी नीति थी और उसमें प्रशा की सरकार और कोलोन के शासक- अधिकारियों के विरुद्ध राजनीतिक लेख प्रकाशित हुआ करते थे। अतः सामंती-राजवादी तथा उदार-पूंजीवादी समाचारपत्र और स्वयं सरकार भी बुरी तरह इसके पीछे पड़ी रही। मई १८४९ में प्रतिक्रांति ने आम चढ़ाई शुरू की और उस समय प्रशा की सरकार ने इस बात से लाभ उठाकर कि मार्क्स को प्रशा का नागरिकत्व नहीं दिया गया है, उन्हें प्रशा से निर्वासित करने का आदेश जारी किया। मार्क्स के निर्वासन और पत्र के अन्य संपादकों के विरुद्ध की गयी दमनात्मक कार्रवाइयों के कारण पत्र का प्रकाशन बंद हो गया। 'नोये राइनिशे त्साइटुङ' का अंतिम अर्थात् ३०१ वां अंक १६ मई, १८४६ को निकला। यह लाल स्याही में छपा हुआ था। मजदूरों से विदा लेते हुए संपादकों ने लिखा था कि "हमारे अंतिम शब्द सदैव और सर्वत्र यही रहेंगे : मजदूर वर्ग की मुक्ति! " 'नोये राइनिशे त्साइटुङ' के संबंध में देखिये , एंगेल्स का 'मार्क्स और 'नोये राइनिशे त्साइटुङ (१८४८-१८४९) शीर्षक लेख ।- पृष्ठ ८


बकूनिनवाद-म० अ० बकूनिन के नाम पर पहचानी जानेवाली एक प्रवृत्ति । बकूनिन अराजकतावाद का एक विचारक था और था मार्क्सवाद तथा वैज्ञानिक समाजवाद का विक्षिप्त शत्रु । उसके अनुयायियों (बकूनिनवादियों) ने मजदूर आंदोलन के मार्क्सवादी सिद्धांत और कार्यनीति के विरुद्ध घोर संघर्ष किया। बकूनिनवाद के सिद्धांत का निचोड़ था सर्वहारा के अधिनायकत्व सहित हर प्रकार के राज्य की अस्वीकृति और सर्वहारा की विश्व-ऐतिहासिक भूमिका को समझ लेने की दृष्टि से उनका दिवालियापन। बकूनिन ने वर्गों के “समानीकरण" का , नीचे से "स्वतंत्र संस्थाओं" के एकीकरण का विचार प्रतिपादित किया। बकूनिनवादियों की राय थी कि “विख्यात" व्यक्तियों की एक गुप्त क्रांतिकारी संस्था जनता के विद्रोहों का मार्गदर्शन करे और ये विद्रोह फ़ौरन किये जायें। इस प्रकार उनकी मान्यता थी कि रूसी किसान

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फ़ौरन विद्रोह करने के लिए तैयार हैं। बकूनिनवादियों की षड्यंत्रों,

फ़ौरी विद्रोहों और आतंक की कार्यनीति दुस्साहसिक थी और विप्लवों के संबंध में मार्क्सवादी सीख के विरुद्ध थी। बकूनिनवाद नरोदवाद के वैचारिक स्रोतों में से एक था।

बकूनिन और बकूनिनवादियों के संबंध में देखिये : का० मार्क्स और फ्रे० एंगेल्स लिखित 'समाजवादी जनवाद और अंतर्राष्ट्रीय मजदूर सभा का गठजोड़' (१८७३); फ्रे० एंगेल्स लिखित 'कार्यरत बकूनिनवादी' (१८७३) और 'परावसी साहित्य' (१८७५) और लेनिन लिखित 'अस्थायी क्रांतिकारी सरकार' (१९०५), इत्यादि।- पृष्ठ १०


अज्ञेयवाद (एग्नोस्टिसिज्म - यह शब्द यूनानी शब्दों से बना है : ए- नहीं, ग्नोसिस - ज्ञान) - अज्ञेयवादी भौतिक वस्तुओं का अस्तित्व मानते हैं पर उनकी ज्ञेयता अस्वीकार करते हैं।

समीक्षावाद (क्रिटिसिज़्म) - कान्ट ने अपने आदर्शवादी दर्शन को यह नाम दिया था। कारण कि मनुष्य के बोध की समीक्षा को वह अपने दर्शन का प्रधान प्रयोजन मानते थे। इस “समीक्षा" के फलस्वरूप कान्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मनुष्य वस्तुओं की प्रकृति को समझ लेने में असमर्थ है।

निरीक्षणवाद (पोजिटिविज्म) - पूंजीवादी दर्शन और समाजशास्त्र की एक बहुप्रचलित प्रवृत्ति । फ्रांसीसी दार्शनिक और समाजशास्त्री कोन्त (१७९८-१८५७) इसके संस्थापक थे। निरीक्षणवादी आंतरिक नियम- शासित संपर्कों और संबंधों को जानने की संभावना को अस्वीकार करते हैं , वस्तुगत विश्व को जानने और परिवर्तित करने के साधन के रूप में दर्शन की महत्ता को अस्वीकार करते हैं और उसे केवल पृथक् पृथक् विज्ञानों द्वारा प्राप्त किये गये तथ्यों के सारांश और किसी व्यक्ति के अपने निरीक्षणों के परिणामों के वर्णन तक ही सीमित कर देते हैं। निरीक्षणवाद अपने को पदार्थवाद और आदर्शवाद से “ऊंचा" मानता है वास्तव में वह है आत्मवादी आदर्शवाद ही का एक प्रकार।- पृष्ठ १३

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¹⁰बादशाह की सत्ता की पुनःस्थापना - फ्रांस के इतिहास में १८१४ से १८३० तक का काल। इस काल में फ्रांस में पुनःस्थापित बुर्बोन वंश के हाथों में सत्ता थी। १७६२ की पूंजीवादी क्रांति ने इस वंश का तख्ता उलट दिया।-पृष्ठ २०

¹¹"सीमान्त उपयोग का सिद्धान्त" -आस्ट्रियाई पूंजीवादी अर्थशास्त्री बोह्म- बावर्क ने मार्क्स के मूल्य-सिद्धांत के विरोध उक्त सिद्धांत का विस्तार किया। वह माल के मूल्य की व्याख्या जनता के लिए उसके उपयोग के आधार पर करता है, न कि उसके उत्पादन में लगी हुई सामाजिक श्रम की मात्रा के आधार पर।-पृष्ठ ३०

¹²«Die Neue Zeity (नया ज़माना) - जर्मन सामाजिक-जनवाद की सैद्धांतिक पत्रिका। यह १८८३ से १९२३ तक स्टुटगार्ट से प्रकाशित होती रही। १९१७ तक का० काउत्स्की और बाद में ग० कूनोव इसके संपादक रहे। १८८५ और १८६५ के बीच का० मार्क्स और फे० एंगेल्स के कई लेख इसमें प्रकाशित हुए। एंगेल्स अक्सर पत्रिका के संपादकों को सलाह दिया करते और मार्क्सवाद से भटक जाने के लिए उनकी कड़ी आलोचना करते। यह पत्रिका फ़० मेहरिंग, प० लफ़ार्ग और अंतर्राष्ट्रीय मजदूर वर्ग आंदोलन के अन्य नेताओं के लेख भी प्रकाशित करती थी। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक के उत्तरार्द्ध में, एंगेल्स की मृत्यु के बाद पत्रिका ने अवसरवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए संशोधनवादियों के लेख प्रकाशित करना शुरू किया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान में (१९१४-१९१८) पत्रिका ने मध्य-पक्षवादी स्थिति अपनायी और वस्तुतः सामाजिक-अंधराष्ट्रवादियों का समर्थन किया।-पृष्ठ ४०

¹³देखिये का० मार्क्स का पत्र फ्रे० एंगेल्स के नाम , ता० , ६ अप्रैल, १८६३ । -पृष्ठ ४१

¹⁴देखिये फ्रे० एंगेल्स का पत्र का० मार्क्स के नाम , ता. ५ फ़रवरी, १८५१।-पृष्ठ ४२

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¹⁵देखिये फे० एंगेल्स का पत्र का० मार्क्स के नाम १८५८ ।-पृष्ठ ४२


¹⁶चार्टिज्म - अंग्रेज़ मजदूरों का जन क्रांतिकारी आंदोलन। यह उनकी कठिन आर्थिक परिस्थिति और राजनीतिक अधिकारों के अभाव के कारण आरंभ हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी के चौथे दशक के उत्तरार्द्ध में आम सभात्रों और प्रदर्शनों के रूप में प्रारंभ होकर यह छठे दशक के पूर्वार्द्ध तक सविराम जारी रहा।

दृढ़ क्रांतिकारी सर्वहारावादी नेतृत्व और एक निश्चित कार्यक्रम का अभाव चार्टिस्ट आंदोलन की असफलता का मुख्य कारण रहा।-पृष्ठ ४२


¹⁷देखिये फ्रे० एंगेल्स के पत्र का० मार्क्स के नाम , ता० ८ अप्रैल और ९ अप्रैल, १८६३। -पृष्ठ ४२


¹⁸देखिये फ्रे० एंगेल्स का पत्र का० मार्क्स के नाम , ता० ८ अप्रैल तथा का० मार्क्स का पत्र फे० एंगेल्स के नाम, ता. ९ अप्रैल , १८६३ और का० मार्क्स का पत्र फे० एंगेल्स के नाम, ता० २ अप्रैल , १८६६ । - पृष्ठ ४३


¹⁹देखिये का० मार्क्स लिखित 'पूंजीवादी वर्ग और प्रतिक्रांति', दूसरा लेख । - पृष्ठ ४४


²⁰देखिये का० मार्क्स का पत्र फे० एंगेल्स के नाम , ता० १६ अप्रैल , १८५६ । -पृष्ठ ४४


²¹देखिये फे० एंगेल्स के पत्र का० मार्क्स के नाम, ता० २७ जनवरी और ५ फ़रवरी, १८६५।- पृष्ठ ४४

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²²पार्टीक्युलारिज्म (विशिष्टतावाद) -किसी राज्य के

पृथक भागों या प्रदेशों की अपनी स्थानीय विशिष्टताएं और स्वायत्तता अधिकार सुरक्षित रखने की इच्छा।-पृष्ठ ४५


²³जंकर - प्रशा का भू-स्वामी अभिजात वर्ग। - पृष्ठ ४५


²⁴देखिये फ़े० एंगेल्स के पत्र का० मार्क्स के नाम, ता० ११ जून और २४ नवंबर, १८६३ ; ४ सितंबर, १८६४; २७ जनवरी, १८६५ और ६ दिसम्बर, १८६७; और का० मार्क्स के पत्र फ़े० एंगेल्स के नाम, ता० १२ जून, १८६३ ; १० दिसंबर, १८६४ ; ३ फ़रवरी, १८६५ और १७ दिसंबर, १८६७ । -पृष्ठ ४५


²⁵समाजवादियों के विरुद्ध असाधारण कानून १८७८ में जर्मनी में बिस्मार्क की सरकार ने जारी किया था। इसका उद्देश्य था मजदूरों और समाजवादी आंदोलन की कमर तोड़ना। इस कानून ने सामाजिक-जनवादी पार्टी के सभी संगठनों , आम मजदूर संगठनों और मजदूर समाचारपत्रों को कुचल दिया ; समाजवादी साहित्य जब्त किया गया और सामाजिक-जनवादियों का निष्कासन प्रारंभ हुआ। पर दमनात्मक कार्रवाइयों से सामाजिक- जनवादी पार्टी किसी प्रकार निरुत्साहित नहीं हुई। उसने गुप्त क्रियाकलापों का सहारा लिया। पार्टी का केंद्रीय मुखपत्र 'सोसिअल-देमोक्रात' विदेश में प्रकाशित होने लगा और नियमित रूप से पार्टी कांग्रेसों का आयोजन हुआ (१८८०, १८८३ और १८८७ में); गैरक़ानूनी केन्द्रीय समिति के नेतृत्व में सामाजिक-जनवादी संगठनों और दलों ने जर्मनी में शीघ्रतापूर्वक अपने क्रियाकलाप भूमिगत रूप में फिर से आरंभ किये। साथ-साथ पार्टी ने जनसमूहों के साथ अपने संबंध सुदृढ़ कर लेने के लिए क़ानूनी संभावनाओं का उपयोग भी बड़े पैमाने पर किया। पार्टी का प्रभाव बराबर बढ़ रहा था। जर्मन राइख़स्टाग के चुनावों में सामाजिक-जनवादियों को दिये गये वोटों की संख्या १८७८ और १८९० के बीच बढ़ते बढ़ते तिगुनी से अधिक हो गयी।

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का० मार्क्स और फ़े एंगेल्स ने जर्मन सामाजिक-जनवादियों की

बड़ी सहायता की। मजदूर आंदोलन के बराबर बढ़ते हुए दबाव के कारण १८९० में समाजवादियों के विरुद्ध असाधारण कानून रद्द किया गया।- पृष्ठ ४५


²⁶देखिये का० मार्क्स के पत्र फे० एंगेल्स के नाम, ता. २३ जुलाई , १८७७, १ अगस्त, १८७७ और १० सितंबर, १८७६ और फ्रे० एंगेल्स के पत्र का० मार्क्स के नाम , ता०२० अगस्त तथा ९ सितंबर, १८७९।- पृष्ठ ४६


²⁷यह पंक्तियां न० अ० नेक्रासोव की 'दोब्रोल्यूबोव की स्मृति में' शीर्षक कविता से ली गयी हैं। - पृष्ठ ४७


²⁸फ्रे० एंगेल्स, "'जर्मनी में किसान युद्ध' की भूमिका"। - पृष्ठ ५०


२९यहां फे० एंगेल्स लिखित 'राजनीतिक अर्थशास्त्र की समालोचना की रूपरेखा' की ओर संकेत है। - पृष्ठ ५३


³⁰यहां फे० एंगेल्स' लिखित 'ड्यूहरिंग मत-खंडन । श्री यूजेन ड्यूहरिंग द्वारा विज्ञान में प्रवर्तित क्रांति' की ओर संकेत है। -पृष्ठ ५५


³¹फ़े० एंगेल्स की पुस्तक 'समाजवाद : काल्पनिक और वैज्ञानिक' १८६२ में रूस में प्रकाशित हुई तो उसका यह शीर्षक था। यह फे. एंगेल्स लिखित 'ड्यूहरिंग मत-खंडन' के तीन अध्यायों पर आधारित थी। - पृष्ठ ५५


³²यहां ब्ला० इ० लेनिन का संकेत फे० एंगेल्स के 'रूसी जारशाही की विदेश नीति' शीर्षक लेख की ओर है। यह लेख 'सोसिअल-देमोक्रात' की पहली दो पुस्तकों में 'रूसी जारशाही की विदेश नीति' शीर्षक के साथ प्रकाशित हुआ था।

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सोसिअल-देमोकात’-१८९० से १८९२ तक विदेशों (लंदन -

जेनेवा) में 'श्रम मुक्ति' दल द्वारा प्रकाशित साहित्यिक और राजनीतिक समीक्षा पत्रिका। रूस में मार्क्सवादी विचार फैलाने में इसका बड़ा हाथ रहा। पत्रिका के कुल मिलाकर चार अंक निकले। सोसिअल-देमोक्रात के कार्य में ग० व० प्लेखानोव, प० ब० अक्सेलरोद और व० इ० जासुलिच ने सक्रिय भाग लिया।-पृष्ठ ५५


³³यहां लेनिन का संकेत फे० एंगेल्स के 'मकानों का सवाल' शीर्षक लेख की ओर है। - पृष्ठ ५५


³⁴यहां फे० एंगेल्स के 'रूस में सामाजिक संबंध' शीर्षक लेख और इस लेख के उपसंहार की ओर संकेत है। ये जेनेवा में १८६४ में प्रकाशित 'रूस के संबंध में फ्रेडरिक एंगेल्स के विचार' शीर्षक पुस्तक के हिस्से रहे।- पृष्ठ ५५


³⁵‘‘पूंजी’ का चतुर्थ खंड’ - १८६२-६३ में मार्क्स द्वारा लिखित 'अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत' को एंगेल्स के दृष्टिकोण के अनुसार लेनिन द्वारा दिया गया नाम । 'पूंजी' के द्वितीय खंड की प्रस्तावना में एंगेल्स ने लिखा थाः "द्वितीय और तृतीय पुस्तकों में विचारित कितने ही अंशों को हटाने के बाद मैं इस पांडुलिपि (अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत' - सं०) का आलोचनात्मक भाग 'पूंजी' के चतुर्थ खंड के रूप में प्रकाशित करना चाहता हूं।" पर एंगेल्स की मृत्यु हुई और वह प्रकाशन के लिए चतुर्थ खंड तैयार न कर पाये। यह खंड पहली बार १६०५, १९१० में जर्मन भाषा में प्रकाशित हुआ। प्रकाशन से पहले कार्ल काउत्स्की ने इसका संपादन किया था। इस संस्करण में वैज्ञानिक प्रकाशन से संबंधित मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया था और मार्क्सवाद के कई सिद्धांत ग़लत ढंग से प्रस्तुत किये गये थे।

सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति का मार्क्सवाद- लेनिनवाद संस्थान १८६२-६३ की पांडुलिपि के अनुसार 'अतिरिक्त मूल्य

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के सिद्धांत' ('पूंजी' का चतुर्थ खंड) का नया (रूसी) संस्करण तीन

भागों में प्रकाशित कर रहा है। - पृष्ठ ५५


³⁶यहां फ़े० एंगेल्स द्वारा १५ अक्तूबर, १८८४ को इ० फ़० बेकर के नाम लिखे गये पत्र की ओर संकेत है।-पृष्ठ ५६


³⁷देखिये का० मार्क्स , 'सभा के अस्थायी नियम', 'अंतर्राष्ट्रीय मजदूर सभा के सामान्य नियम'; फ्रे० एंगेल्स , ‘कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र' के १८९० में प्रकाशित जर्मन संस्करण की भूमिका ।- पृष्ठ ५७







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२१, जूबोव्स्की बुलवार, मास्को, सोवियत संघ।