कामना
जयशंकर प्रसाद

वाराणसी: हिंदी पुस्तक भंडार, पृष्ठ ५५ से – ५८ तक

 

तीसरा दृश्य

स्थान-कुटीर

(विनोद और लीला)

लीला—मेरा स्वर्ण-पट्ट ?

विनोद—अभी तक तो नहीं मिला।

लीला—आज तक तो आशा-ही-श्राशा है।

विनोद—परंतु अब सफलता भी होगी।

लीला—कैसे?

विनोद-अपराध होना आरम्भ हो गया है। अब तो एक दिन विचार भी होगा। देखो, कौन-कौन खेल होते है।

लीला-तुम उन दोनों को कहाँ रख आये ?

विनोद-पहले विचार हुआ कि उपासना-गृह

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कामना


या संग्रहालय मे रक्खे जायें । फिर यह निश्चित हुआ कि नहीं, मित्र-कुटुम्ब के लिए जो नया घर बन रहा है, उसी में रखना चाहिये । और, उन शिकारियों को वहाँ रक्षक नियत किया गया है।

लीला-इस विचार-योजना मे कुछ-न-कुछ तुम्हे मिलेगा।

विनोद-परंतु लीला, हम लोग कहाँ चले जा रहे हैं, कुछ समझ रही हो ? समझ मे आने की ये बाते हैं?

लीला-अच्छी तरह । ( मदिरा का पात्र भरती हुई ) कहीं नीचे, कहीं बड़े अंधकार में ।

विनोद-फिर मुझे क्यो प्रोत्साहित कर रही हो ?

(लीला पात्र मुंह से लगा देती है, विनोद पीता है)

लीला-आज तुम्हे गाना सुनाऊँगी।

विनोद-(मद-विह्वल होकर) सुनाओ प्रिये !

(लीला गाती है)

छटा कैसी सलोनी निराली है,
देखो आई घटा मतवाली है।
आओ साजन मधु पियें, पहन फूल के हार ;
फूल-सदृश यौवन खिला, है फूल की बहार ।
भरी फूलों से बेले की डाली है ॥ छटा० ॥

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शीतल धरती हो गई, शीतल पड़ी फुहार ;
शीतल छाती से लगी, शीतल चली बयार ।
सभी ओर नई हरियाली है ॥ छटा० ॥

(सहसा कामना का कई युवकों के साथ प्रवेश)

कामना—फूल के हार कहाँ लीला | तपा हुआ सोने का हार है । शीतलता कहाँ, ज्वाला धधक उठी है। यह आनंद करने का समय नही है ।

विनोद—क्या है रानी ?

कामना—विनोद, ये शिकारी उन अपराधियो के रक्षक है, इन्हे दिन-रात वहाँ रहना चाहिये । तब इनके जीवन-निर्वाह का प्रबंध—

विनोद—जैसी आज्ञा हो ।

(विलास का प्रवेश)

विलास—ये शिकारी नहीं, सैनिक हैं, शांति- रक्षक है । सार्वजनिक संग्रहालय पर अधिकार करो। इनमे से कुछ उसकी रक्षा करेगे, और बचे हुए कारागार की।

विनोद—कारागार क्या ?

विलास—वही, जहाँ अपराधी रक्खे जाते है, जो शासन का मूल है, जो राज्य का अमोघ शस्त्र है।

लीला—(विनोद से) यह तो बड़ी अच्छी बात है।

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कामना

कामना-विनोद, मैं तुमको सेनानी बनाती हूँ। देखो, प्रबंध करो। आतंक न फैलने पावे ।

विलास-यह लो सेनापति का चिन्ह ।

(एक छोटा-सा स्वर्ण-पट्ट पहनाता है। कामना तलवार हाथ मे देती है । सब भय और आश्चर्य से देखते हैं)

कामना-(शिकारियों से ) देखो, आन से जो लोग इसकी आज्ञा नही मानेगे, उन्हे दंड मिलेगा।

(सब घुटने टेकते हैं)

विलास-परंतु सेनापति, स्मरण रखना, तुम इस राजमुकुट के अन्यतम सेवक हो। रानसेवा में प्राण तक दे देना तुम्हारा धर्म होगा।

विनोद-(घुटने टेककर) मै अनुगृहीत हुआ।

लीला-(धीरे से) परंतु यह तो बड़ा भया- नक धर्म है।

कामना-हाँ विलासनी।

विलास-आज राजसभा होगी। उसी में कई पद प्रतिष्ठित किये जायेंगे। वहीं सम्मान किया जाय ।

कामना-अच्छी बात है।

(विनोद अपने सैनिकों के साथ परिक्रमण करता है)

[ पट-परिवर्तन ]

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