उपयोगितावाद  (1924) 
द्वारा जॉन स्टुअर्ट मिल, अनुवादक उमराव सिंह कारुणिक

[ प्रकाशक ] उपयोगितावाद

लेखक--
स्टुअर्ट मिल
अनुवादक

उमरावसिंह कारुणिक








प्रकाशक——

ज्ञान प्रकाश मन्दिर, माछरा, मेरठ
[ आवरण ] ज्ञान प्रकाश ग्रन्थमाला की चौथी पुस्तक












उपयोगितावाद
[ आवरण-पृष्ठ ]

उपयोगितावाद
अर्थात्
स्टुअर्ट मिल की संसार-प्रसिद्ध पुस्तक 'युटिलेटिरियनिज्म' का हिन्दी अनुवाद


अनुवादक-
उमराव सिंह कारुणिक बी॰ ए॰,
रचयिता "कार्नेगी" इत्यादि।


प्रकाशक-
चौधरी शिवनाथ सिंह शाण्डिल्य
ज्ञानप्रकाश मन्दिर,
पो॰ माछरा, ज़ि॰ मेरठ।

पहिला संस्करण]
[मूल्य १)
सन् १९२४ ई॰

केवल १६ पृष्ठ विद्या प्रिंटिंग प्रेस, मेरठ में मुद्रित।

[ विषय-सूची ]
विषय सूची।
विषय पृष्ठ
निवेदन ९-१०
भूमिका ११-१६
जीवन चरित्र १७-२६
पहिला प्रकरण २७-३५
दूसरा प्रकरण ३६-६९
तीसरा प्रकरण ७०-८४
चौथा प्रकरण ८५-९७
पांचवां प्रकरण ९८-१३८
 
[ निवेदन ]

निवेदन।

यों तो इङ्गलैंड के प्रसिद्ध तत्त्ववेता स्टुअर्ट मिल के सब ही ग्रन्थ एक से एक बढ़िया है, किन्तु Liberty (स्वाधीनता), Subjection of Women (स्त्रियों की पराधीनता), Representative Government (प्रतिनिधि-सत्तात्मक राज्य-व्यवस्था) तथा Utilitarianism (उपयोगितावाद)-ये चार ग्रन्थ-विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। प्रस्तुत पुस्तक मिल की Utilitarianism नामक पुस्तक का अनुवाद है।

बहुत दिन हुवे लेखक ने इस पुस्तक का हिन्दी में अनुवाद करने का विचार किया था किंतु यह मालूम होने पर, कि साहित्याचार्य पं॰ रामावतार जी पाण्डेय इस पुस्तक का अनुवाद ग्रन्थ-रत्नाकर कार्यालय के लिए कर रहे हैं, यह विचार छोड़ दिया था। दार्शनिक पुस्तकों का अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद करना बहुत ही कठिन है। श्रद्धेय पं॰ महाबीर प्रसाद द्विवेदी या साहित्याचार्य पं॰ रामावतार पाण्डेय प्रभृति विद्वान् ही इस कार्य को सफलता पूर्वक कर सकते हैं। इस कारण लेखक को यह जानकर बड़ा हर्ष हुवा था कि साहित्याचार्य जी ने इस पुस्तक का अनुवाद करना आरम्भ कर दिया है। किन्तु कई वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी जब 'Utilitarianism' का अनुवाद प्रकाशित नहीं हुवा तो हिन्दी के प्रसिद्ध प्रेमी श्रीयुत चौधरी शिवनाथसिंह के आग्रह से लेखक ही को इस पुस्तक का अनुवाद करना पड़ा। [  ]संभव है अनुवाद-संबन्धी अनेक भूलें हो गई हों। यद्यपि ऐसे कठिन कार्य में हाथ न डालना ही उचित था, किंतु यह सोच कर कि जिन बातों का विचार इस पुस्तक में है उनके जानने की बड़ी आवश्यकता है, अनुवाद करने का साहस करना ही पड़ा।

माननीय पं॰ महाबीर प्रसाद द्विवेदी के कथनानुसार इस समय हिन्दी में जितनी पुस्तकें लिखी जायें खूब सरल भाषा में लिखी जानी चाहिये। इस कारण इस पुस्तक की भाषा यथा संभव सरल रखने का प्रयत्न किया गया है, किंतु फिर भी पुस्तक का विषय ऐसा कठिन है कि वहीं २ पर विवश होकर संस्कृत के क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग करना ही पड़ा है।


मेरठ उमरावसिंह कारुणिक बी॰ ए॰
१-१-२४

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