इतिहास तिमिरनाशक 2/इतिहास तिमिरनाशक

इतिहास तिमिरनाशक भाग 2
राजा शिवप्रसाद 'सितारे हिंद'

लखनऊ: नवलकिशोर प्रेस, पृष्ठ ५ से – १८ तक

 

दूसरा हिस्सा

आगे अंग्रेजों को यहां आने के लिये समुद्र का रास्ता मालूम न था जहाजी तिजारत यहां से ख़ाली ईरान अरब और मिसर वा चीनवालों के साथ जारी थी यानी ये लोग अपने जहाज अरब और बंगाल ही की खाड़ी के अंदरचलाया करने थे। समुद्र को बे हद और अपार समझ कर कभी उन खाड़ियों को बाहर न जाते थे। और यह तो कब उन का हियाव हो सकता घा कि हिंद के समुद्र से निकल कर अफ्रीका के पच्छिम अटलांटिक समुद्र में पहुंचते। लेकिन जो सब चीजें हिंदुस्तान में जहाज़ों पर मिसर और बसरे को जाती थीं और फिर वहां से खुशकी और तरी की राह फ़रंगिस्तान में पहुं- चती थीं उन को तिजारत में इतना फाइदा उठता था कि फरंगिस्तान वाले वहां की सीधी राह पाने के लिये निहायत बेचैन थे और हर तरफ़ से उस को ढूंढ़ खोज कर रहे थे। कोई यह समझ कर कि ज़मीन मोल है हिंदुस्तान आने के लिये अपना जहाज़ सीधा घच्छम को चलाता और अमेरिका के किनारे जा अटकता। कोई † यह समझ कर कि पुराने महाद्वीप के चारों तरफ़ समुद्र के किनारे किनारे उत्तर को ले जाना ओर वहां उत्तर समुद्र के जमे हुए बर्फ में फंस रहता। और कोई ‡ यह समझ कर कि अफ्रीका के पुरब हिंदुस्तान है उस के गिर्द घूमने को निकलता पर आधी दूर जाके मारे तूफान के पीछे मुड़ आता। और उस जगह का नाम तूफ़ानी अंतरीक्ष रखता॥ यहां तभ कि सन १४९० में पुर्तगाल के बादशाह इमानुअलमे वास्कोडिगामा को तीनजहाज लेकर दखन


कोलम्बस्॥ † डच और अंगरेज़॥ ‡ आर्थालोम्यू डिमाजू॥
की राह हिंदुस्तान जानेका हुक्म दिया उस ने न कुछ तूफ़ान का ख़याल किया न तूफ़ानी अंतरीम का। चलतेचलते ग्यारह महीने के लगभग अर्से में अफ़्रीका घूमकर मलीबार के किनारे कल्लीकोट में लंगर आ डाला। उस वक्त वहां के राजा का नाम पुर्तगाल वालों ने शामीरिम लिखा है वह तो इन की ख़ातिर्दारी करना चाहता था लेकिन अरब वालों ने डाह खा के उस का दिल इन से फेर दिया। वास्नोडिगामा ने जबयह मालूम किया तुर्त लंगर उठा के पाल अपने मुलक की तरफ उड़ाया। दूसरे साल पुर्तगाल के बादशाहने १३ जहाज़रवाना किये। और उन पर आठ पादरी और १२०० सिपाही भी भेजे। अल्वारिज़ काबरल उनका अपसर था। छ जहाज़ इन में से कालीकोट पहुंचे राजा इन की भीड़ भाड़ देख कर दवदबे में आ गया। जिन हिंदुओं को वास्कोडिगामा जाते वक्त यहां गया था और अब अलवारिज काबरल वाससलाया था इन्हों ने पुर्तगाल का बहुत बढ़ावे को साथ बयान किया निदान राजा ने पुर्तगाल बालोंका कलल्कोट में कोठी खोलने की परवानगी दी। और फिर धीरे धीरे इन्हों ने ओर भीजगह कोठी खोलनी शुरू की। सन् १५१० में बिजयपुर वालों से गोवा छीन लिया। और तब वही बराबर उनका यहांदरस-हुकूमत बना रहा।

पुर्तगाल वालोंको देखादेखी डच और फ्रांसीसी वाले भी अपने जहाज़ इधर लाने लगे फिर यह कबहोसकताथा कि १५९९ ई० अंगरेज़ चुपचाप बैठे रहते‌। सन् १५९९ में इंगलिस्तान के कुछ आदमियों ने साझा करके तीस लाख रुपये पूंजी के तौर पर इकट्ठाकिये। और उस वक़्तको मलिका कोन अलीज़ेवयसेइस मज़मून की एक सनद लेली कि पंदरह बरस तक बे ठनकोपर- वानगी कीई दूसरा आदमी उनके मुल्क का पूरबमें तिजारतन करने पावे। साझियोंको अंगरेज़ो में कम्पनीकहते हैं इसीलियेइन साभियोका नाम ईष्टइंडिया कम्पनी पड़यया। इनका जलसा


मशरिकी हिंदुस्तान के साथी।


जो साल में चार बार यानो सिमाहीवार हुआ करताथा कोर्ट

आफ प्रोप्राइटर्स यानी मालिकों की कचहरी कहलाया। उसमें जो पांच हज़ार रुपये और उस से ऊपर के हिस्सेदार थे उन्हें राय देने का इख़तियार था। और आईन कानून बनानाऔर नफ़े का बांटना भी इन्हीं के हाथ था। बाकी सब काम के लिये यह अपने दर्मियान से साल के साल चौबीस आ- दमी कारवारी मुकर्रर कर देते थे इस चौबीसी का नाम कोर्ट आफ़ डेरेकृर्स रहा बीस हज़ार से कम का हिस्सेदार डेरेकृर नहीं हो सकता था। और उन का मीरमजलिस चेअरमैनकह- लाता था। हिंदुस्तान में होते होते तीन इहाते हो गये। यानी कलकत्ता बम्बई मंदरास और तीनोंमें तीन प्रेसिडेंट वा गवर्नर अपनी अपनी कौंसल समेत रहने लगे। उस वक़्त मुलकी साहिब लोगों के चार दर्ज थे। पांच बःस तकमुतसट्टी पांच से आठ तक कोठीवाले आठ से ग्यारह तक छोटे सो- दागर ओर ग्यारह बरस हिन्दुस्तान में रहने के बाद बड़े सोदागर कहलाते थे इन्हीं, बड़े सोदागरोंमें से पुराने साहिबों को चुन कर कौंसल का मेम्बर बनाते थे।

निदान सन् १९०९ में सर हिनरी मिडलटन इस कम्पनी-१९०९ ई० का भेजा हुआ तीन जहाज़ लेकर सूरत में आया लेकिनख़रीद फरोख़त के बाद में हाकिम से तकरार हो जाने के सबब उस वक्त वहां कोठी खोलने की परवानगी नहीं मिली। सन् १९१३ जहांगीर ने इन्हेंसूरत घोघा खंभात ओर अहमदाबाद में और फिर थोड़ेही दिनों बाद शाहजहांने सिंध और बंगाले में भी कोठियां खोलने की परवानगी दी। महसूल साढ़े तीन रूपया सेकुड़ा ठहरा यह उसवकतकिसके ख़यालमें था कि इसीकम्पनी के नौकर उस की औलाद और उस के जानशीन को कैद कर के रंगन ले जावेंगे। और सारे हिंदुस्तान में अपना सिक्का चलावेंगे।

सन् १९३९ में इन्होंने चंद्रगिरि के राजा से जो बिजय-१९३९ ई० नगर बालों की औलादमें से था परवानगोलेकर मंदराजबसाया

१६६८ ई० और वहां सेंटजार्ज किला बनाया। सन् १६६८ मैं इंगलिस्तान के बादशाह दूसरे चार्लस ने बम्बई का ठापूजो उसने पुर्तगाल वालो से दहेज़ में पाया था। सोरुपये साल ख़राज पर कम्पनी को दे डाला। कलकत्ता भी उन दिनों निरा एक गांवसाया। छोटानटी और गोबिंदपुर इनदोनों गावों के साथ उस को सनद दिल्ली के बादशाह से लेकर वहां इन्हों ने फोर्ट विलियम किला बनाया।

सन् १७१५ में कालकते के प्रेसिडेंट ने कुछ तुहफ़तिहाइफा के साथ दी साहिबौं को एलचियों के तौर पर फर्रूख़सियर के दर्बार में भेजा। बादशाह उन दिनों बीमार था। मर्जीभगवान की इन्हीं एलचियों के साथ हमिल्टन नाम जो डाकृर था। उसी के इलाज से चंगा हुआ। हुक्म दिया इनाम मांग जो मांगलया। मुहमांगा पावेगा। इस ने अपने लिये तो कुछ न मांगा पर अर्ज़ किया कि अगर ज़हाँपनाह खुश हैं तो कम्पनी को बंदले में अड़तीस गाँव की ज़मीदारी खरीदने की परवानगी मिले। और कलकत्ते के प्रेसिडेंट की दस्तक से जो माल रवाना हो महसूल के लिये उस की तलाशी न ली जावें। सच पूछों तो डाकर हमिल्टन ने बड़ी हिम्मत का काम किया। अपना नुकसान सह के अपने मुल्क वालों का फाइदा चाहना हकीकत में बड़ी हिम्मत का काम है बादशाह ने उसकीदोनों बातों को मान लिया। उनदिनों में हिंदुस्तान से छीटओरसूती कपड़ा इंगलिस्तान को बहुत जाताथा अंगरेजोंकाइरादायाकि कलकत्ते के गिर्द ज़मींदारी लेकर इतने जुलाहे बसावे किफिर कपड़ों की तलाश गांवगांव न करनीपड़े। क्याअपरम्पारमहिमा है सर्वशक्तिमान जगदीश्वर की कि यहां के जुलाहे तो जुलाहे ही बने रहे और इंगलिस्तान वाले जहाज़ भर भर कर अब यहां सूती कपड़े पहुंचाने लगे। निदान ज़मींदारीतोउस वक्त बंगाले के सूबेदारने अंगरेजोंके हाथ नहीं लगनेदोज़मी- द्वारौको बेचनेकी मनाही करदी। लेकिनइसके मालपरमहमल

मुआफही जानेसे उसे बहुत नुकसान पहुंचा। प्रेसिडेंटनेंसारा. माल अपनी दस्तक से मंगाना और रवाना करना शुरू किया यानी जो माल कम्पनी का नहीं था उसको भी अपने औरदुसरे' साहिबों के फाइदे के लिये दस्तक दे कर महसूल कोतलाशी से बचाने लगा।

इस असें में फरासीसियोंने पडुच्चेरीको मजबूत करलिया था। जब सन् १७४४ में इंगलिस्तान और फरासीस के दर्मियान १७४४ ई.दुश्मनी पैदा हुई तो उन्होंने हज़ार दो हज़ार सिपाहींभेजकर मंदरास घेर लिया। अंगरेज़ वहां इस वक्त ३०० सेज़ियादा न थे पांच दिन घिरे रह कर फरासीसियों के कौल करार पर दर्वाज़ा खोल दिया। और जो कुछ था उन के हवाले किया। लेकिन थोड़े ही दिनों बाद कुछ अंगरेज़ी जंगी जहाज़ आगये तो इन्हों ने मंदरास में भी कबजा किया और पटुच्चे रोजारा। पर महीने भर बाद बरसात आजाने के सबब घेरा उठा लेना पड़ा।

तमजोर का राजा प्रतापसिंह नाबालिग़ था उस के भाई साहूची ने अंगरेज़ों से कहा कि तननोर वाले प्रतापसिंह से नाराज़ और मुझसे राज़ी हैं अगर गद्दी दिला दो देवीकोटे का किला और जिला तुम्हारे हवाले कर अंगरेज़ी फ़ौज चढ़गयी। शादव तल लेफ्रिनेंट था धावा इसी के नाम से हुआ किला टूटने पर प्रतापसिंह ने देबीकोटा अंगरेजों को दे दिया थोर पाहूजी के आने को कुछ सालाना मुकर्रर कर दिया अंगरेज़ी सार वस बात से राजी हो गयी।

पटुच्चेरी का फरासीसी गवर्नर डुप्रे अगरेजोंसे बड़ी लागरखता था। जोबातइसमुलुकमें अबअंगरेजो कोहे वह उसेफ़रासीसियों केलिये हासिल किया चाहताथा। सन १४८ मेंदखनकेसूबेदार १७४८ ई० आसिफजाह के मरनेपर जब उसके बेटे पोतों में तकरारहुई


  • यह १०४ बरस का होकर मरा।
गये। और जो बेचारे बेख़बरी में किले के अंदर रहे बह दूसरे

दिन सिराजुदोला की कैदमें आये। जब उनके अफसर हालवेल साहिब को मुश्क बांध कर उस के साम्हने लाये उसने तुर्त उस को मुश्क खुलवा दो ओर कहा कि खातिरजमा रक्वो तुम्हारा कुछ नुकसान न होने पावेगा। लेकिन रात को जन कैदियों के रखने के लिये कोई मकान न मिला तो सिराजुद्दौला के आदमियों ने १४६ अंगरेज़ों को एक कोठरी में जो कुल १८ फुट लंबी ओर १४ फुट चौड़ी थी बंद कर दिया। इसकोठरी का नाम अंगरेजो में “लेकहोल यानी काली विल रक्खागया है जो कुछ उन कैदियों के जी पर रात को बीती उन्हीं साक्षी जानता होगा बहुतेरे घायल थे बहुतेरे शराब के नशे में गर्मी को शिद्दत थी प्यास निहायत थी। सुबह को जुर्ष दाज़ा खुला कुल २३ जीते निकले सो शकल उनको भी मुदी कीसी बनगयी थी। हालवेल साहिब को सिराजुद्दोला के साम्हने ले गये उसने इस की कुछ भी दाद फर्याद न सुनी यही पूछता रहा कि बतलाओ अंगरेज़ों ने ख़ज़ाना कहां गाड़ा है और उसके और दो और अंगरेज़ों के पैरों में बेड़ियां डलवा कार इन तीनों को तोएक खुली कश्ती परकैद रहने के लिये मुर्शिदाबाद भेजा ओरबाकी को छोड़ दिया। मुर्शिदाबाद में अलोवर्दीखां को बेगम ने इन तीनों को भी सिराजुद्दौला से सिफारिश करके छुड़वा दिया। जब यह ख़बर मंदरास में पहुंची वहां बालोंने ६००गोरे ओर १५०० सिपाही दे कर लाइव को नो अब इंगलिस्तान सेलेफ्रि- नंट कर्नल हो आया था १० जहाजों पर कलकृते रवानाकिया। १०५०ई० दूसरी जनवरी सन् १०५७ को क्लाइवने कलकत्ता लिया तीसरी फरवरी को सिराजुद्दौला ४०००० आदमियों की भीड़ भाड़ ले; कर कलकत्ते के पास पहुंचा लेकिन क्लाइव ने किले से निकाल कर उस पर एक ऐसा हल्ला किया कि अर्चि उसहल्ले में लाइव को १२० गोरे १०० सिपाही और दो तोपें खोकर फिरकिले में पनाह लेनी पड़ी। पर सिरानुद्दोला ने २२ अफसर और ६०० आदमियों के मारे जाने से घबरा कर इस शर्त पर सुलह कर

ली‌। कि जो कुछ कम्पनी का माल असबाब लूट और ज़बतीमें आया था सब लौटा दिया जावे कम्पनी के आदमी कलकते में किला चाहे जैसा मजबूत बनावें। टकसाल अपनी जारी करें। अढ़तीसों गांव पर जिन की सनद १७१७ से उन्हों ने पायीथी अपना कबज़ा रक्खें। और महसूल को मुअाफ़ी के लिये उन की दस्तक काफ़ी समझी जावें। इस में शक नहीं कि यह शर्त सिराजुद्दौलाने खाली भुलावा देने और काबूपाने के लिये की थी। जी में उसके दगा थी। वह अंगरेजों से दिली नफरत रखता था और फ्रासांसियोंकी पच्छ करताथा। बलकि उन्हें नौकर भी रखने लगा था। क्राइव ने खूब समझ लिया था कि इस मुल्क में या तो अंगरेज़ ही रहेंगे और या फ्रांसीसी, दोनोंको हर्गिज़ गुज़ारा नहीं। एक नियाम में दो तलवारों का रहना कभी होता नहीं। पस जब सिराजुद्दौलाने फ्रांसीसियों का सहारा ढूंढा। तो क्लाइव को ख़ामख़ाहउसका इलाज करनापड़ा। सिराजुद्दौलासे सबनाखुश थे। उसके जुल्म से लोग तंग आगये थे‌। हर एक को उस के हाथ से अपनी इज्ज़त का खौफ़ था। हर एक अपने जी में उसका ज़वाल चाहता था। निदान उसके बख़शी अलीवर्दीखां के दामादमीर- जाफर और उसके दीवानरायदुल्लम और * जगतसेठ महताब राय ने अपनी जान माल और इज्जत अबद्घ उस ज़ालिम के हाथ से बचाने को मुर्शिदाबाद के रज़ीडंट वाट्स साहिब की मारिफत लाइव के पास यह पयामभेजा किअगर आपसिराजु- द्दौला की जगह पर मीरजाफ़र को सूबेदार बनाओतोहम सब आपकी मदद करते हैं। कलाइवने कहला भेजाकि खातिर्जमा रक्खीमें ५००० आदमी लेकर आता हूं जिन्होंने आज तक कभी पीठ नहीं दिखलायी अगर तुम सिराजुद्दौला को गिरफ्तारनकर सको हमलोग ज़रूरउसे मुल्क से निकाल सकते हैं।, और फिर साथ ही उन शतों पर जो सिराजुदोला के साथ ठहरी थीं


इस किताब बनाने, बालेके परदादा के चचेरे भाई॥
मीरजाफर से एक अ़हदनामा लिखवा लिया लेकिन उसमें इतना ओर बढ़ाया गया कि कलकत्ते से दखन कालपी तक कम्पनी की ज़मीदारी समझी जावे फ्रांसीसियों का जो कुछही वह अंगरेजों का और फ्रांसीसी हमेशाके लिये बंगाल से निकाल दिये जावें। और मीरजाफर की तरफ से करोड़ रुपये कम्पनी को पचास लाख कलकते के अंगरेज़ों को बीस लाख हिंदुस्ता- नियों को सात लाख धर्मनियों को पचास लाख सिपाही और ज़हाजियों को और दस लाख कौंसल के मेम्बरों को नुकसानीके तौर पर मिलें।

सेठ अमीचंद का कलकते में चार लाख रुपया लूटा गया था। और कुछ और भी नुकसान हुआ था। वह सिराजुद्दौलाके ज़रा मुंह लग गयाथा। और इस सबब से वाट्स साहिब काभी उससे बहुत काम निकलता था। वाट्स साहिब ने अमीचंद को भी इस मश्वरे में शरीक किया। लेकिन अमीचंद को लालच नेघेरा। कहा किजोकुछ अंगरेजोको ख़ज़ाने सेमिले ५) सैकड़ा मुझे दो नहीं तो मैं अभी सिराजुद्दौला से यह सारा भेदं खोल दूंगा बाट्स ने लाइब को लिखा लाइवं ने देखा कि अमीचंद तो हम सब को आफ़त में डाला चाहता है नाचारदो काग़ज़ों पर दो तरह का अहदनामा लिखा लाल काग़जें पर जो अहदनामा लिखा उस में तो अमीचंद को सेकड़ा देने का इकरार था। और सफेद कागज़ पर जो लिखा उस में उस का नाम ही न था। इन दोनों कागजों पर जब कौंसल वालों के दस्तखत होने लगे अडमिरल यानी अमीरुल बहर वाट्सन ने लाल काग़ज़ पर दस्तख़त करनेसे इनकार किया लेकिन कौंसलवालों ने उसका दस्तखत आप बनालिखा गोया फ़ार्सी मसल पर गर ज़रूरत बुवद रवा बाशदा काम किया।

निदान क्लाइव तीन हजार आदमी और ९ तोपलेकरकल- कत्ते से निकला। सिराजुद्दौला भी पचास हज़ारसवार पियादे और ४० से ऊपर तोपें लेकर पलासीतक आया। चाल्लीसपचास

फ्रांसीसी भी उस के साथ थे तेईसवी मई को उसी जगह लड़ाई हुई। सिराजुद्दोला ने पगड़ी उतारकर मीरजाफरकेपैरों पर रखदी। और कहा कि अब मुसाफ़ कीजिये। लेकिन उसने यही सलाह दी कि आज लड़ाई मौकूफ़ रखिये। फ़ौज पीछे हटा लीजिये कल लड़ेंगे और राय दुल्लभ ने अर्ज की कि हजूर का मुर्शिदाबाद ही तशरीफ़ ले चलना बिहतर है। बसइसी में खेर है।

निदान सिराजुद्दौला की फौज का मुड़ना था। और अंगरेजो का चीतों की तरह हिरनों पर लपकना। सिराजुद्दौलाकी फ़ौज भागी। अंग्रेजों ने छ मील तक पीछा किया यही पलासीकी फ़तह गीया हिंदुस्तान में अंगरेज़ी अमलदारी को नेवजमी।

सिराजुद्दौला के पैर मुर्शिदाबाद में भी न जमे भरोसा तो उसे किसीका थाहीं नहीं और भरोसा इसे तबही सकता जब उस ने किसी के साथ कुछ भलाई की होती। एक बैगमऔरएक खोजा साथ ले कर भागा लेकिन राजमहल के पास एक फ़कीर ने उसे पहचान लिया सिराजुद्दौला ने किसी ज़माने में उस के नाक कान कटवाये थे फक़ीर ने तुर्त वहां के हाकिम से खबर कर दी। वह मीरजाफ़र का भाई था सिराजुद्दौलाको बाँध कर मुर्शिदाबाद भेज दिया मीरजाफर को कुछ किसी कदर रहम आया। लेकिन उसका बेटा मीरननिरायल्थरथा। बे अपने बाप की इतिला के उसकी जान ले डाली। सिराजुद्दौला की उमर तब तक बीस बरस की भी नहीं हुई थी।

ख़ज़ाने की जब मौजूदात ली गयी डेढ़करोडरूपयाशुमार में आया, तो भी अहदनामे के बमुजिब सबके देने को काफ़ी न था। तब यह ठहरा कि आधा तो चुका दिया जावे। और आधा तीन किस्तों में तीन साल के दर्मियान दिया जावे।

काइव को मीरजाफर ने अहदनामे केसिवाय सोलहलाखरुपया और दिया अमीचंद जी फूलेहुये थे। उन्हीं ने अपने हिसाब से अपने हिस्से का रुपया तीस पैंतीस लाख जोड़ रक्खा था जब अहदनामा पढ़ा गया और इन्हीं ने अपना नाम न मना

घबराये। और बोल उठे कि साहिब वह तो लाल काग़ज़ पर था। लाइव ने जवाबदियाकिठीक लेकिनयह सफ़ेद काग़ज़पर है क्ह लाल काग़ज़ खाली आपको सबज़ बाग़ दिखलानेकेलिये था आप को इस में से एक पैसा भी नहीं मिलेगा। अमीचंद ग़श खा के ज़मीन पर गिर पड़ा। नौकर पालकी में डाल के घर ले गये डेढ बरस के अंदर पागल है। के मर गया।

उधर दखन में अंगरेज़ और फ़रासीसियों की लड़ाई न १७५८ ई० मिटी। कोंटवाली ने भी जो १७५८ में फ़रासोसियों की तरफ़ से यहाँ का गवर्नर जनरल हो कर आया था ड्रूप्रे की तरह अंगरेज़ों को उखाड़ना और फ़रासीसियों को अमलदारी को फैलाना चाहा यहां तक कि अंगरेजो ने मौसली पट्टन उनसे छीन कर दखन के सूबेदार सलाबतजंग से उस की और कई और ज़िलों की अपने नाम सनद लिखवाली‌। और यहभी उस से इकरार ले लिया कि वह फ़रासोसियोंसे कभीकुछ सरोकार न रक्खे और सन १७६५ में सिवाय कल्लीकट और सूरत की कोठियों के और कुछभी फ़रासीसियोंके कबज़में न छोड़ाकहते हैं कि जब अंगरेजों ने पटुच्चेरी लिया और उस पर अंगरेज़ी निशान चढ़ाया किने और जहाजों पर की तोपें सलामी से गोया कान बहरे करती थी।हज़ार तापों को सलामी कुछहंसी ठट्ठा न थी। लाली बुरी तरह से फरासीसमें कतलकियागया। और फिर तभी से फरासीसियों ने निराश होकर यहां अपनी अमलदारी जमाने का खयाल बिलकुल छोड़ दिया। हिंदुस्तान के दिन अच्छे थे क्योंकि अंगरेज़ी अम्लदारी में अमर


• अफसोसहै कि क्लाइव ऐसेमर्दसे ऐसी बातज़हूरमें आवे। पर क्या करें ईश्वर को मंजूर है कि आदमी का कोईकामबऐ ब न रहे। इस मुलक में अंगरेज़ी अम्लदारी शुरू से आज तक मुआ़मले की सफ़ाई और क़ोल करारकी सचाई में गायाधोबी का धोया हुआ सफ़ेद कपड़ा रहा है। ख़ाली इसी अमीचंद ने उस में यह एक छोटा सा लगा दिया है।
हज़ार ऐब हों तो भी फ़रासीसी अ़मलदारी से करोड़ दजै हम उसको बिहतर कहेंगे। फरासीसियों को जहां कहीं और मुल्क में अ़मल्दारी हुई सिवाय लूट क़त्ल और रअ़य्यत की तबाही के और कुछ भी सुनने में नहीं आया और अंगरेज़ों ने जिस जगह कबज़ा किया दिन पर दिन उस को तरक्की होती गयी जिन लोगों ने फ़रासीस की तवारीख़ पढ़ी है और वहां वालों के सुभाव से अच्छे वाकिफ़ है कभी हमारे इस लिखने पर अंगरेजों को खुशामद का शुबहा न करेंगे।

सन् १७५९ में दिल्ली के वलीअह्द आलीगुहर ने अपने बाप १७५९ ई० बादशाह आलमगीरसानी से नाराज़ हो कर अवध क सूबेदार की बहूकावट से बिहार पर चढ़ाई की लेकिन लाइव मीर जाफ़र को मदद को पहुंच गया ।इस लिये वलीअहदको भागना पड़ा। बादशाह ने जो ज़मीदारी कम्पनी को दी थी उस की मालगुजारी तीस लाख रुपये के करीब जगतसेठको सिफारिश से जागीर के तौर पर खिताब के साथ दे कर क्लाइव को अपने अमीरी में शुमार कर लिया। और वलीअ़हद को गिरफ्तारोके लिये शुक्का भी लिख दिया।

सन १७६० में क्लाइव इंगलिस्तान को गया और वहां अपने १७६० ई० बादशाह से बड़ी इज्ज़त के साथ लार्ड का खिताब पाया। ऐसा दौलतमंद हो कर आज तक कभी कोई यहां से फरंगि- स्तान को नहीं लौटा। वलीअहद अपने बाप के मारे जाने पर जब बादशाह हुआ। शाहआलम अपना लकब रक्खा। फ़ौज ले कर बिहार पर चढ़ा। पटने के साम्हने आ पड़ा। अंगरेजों ने उसे फिर शिकस्त दी और पीछा किया। मीरवभी साथ था उरे पर बिजली गिरने से मर गया। मीरजाफर के दामाद कासिमअलीखांको नीयत बिगड़ी उसने बर्दवान मेदनी. पुर और चटगांव ये तीन ज़िले और पांच लाख रूपये कम्पनीको ओर बीस लाख कांसलवालों को देने का करार करके अंगरेजों को इस बात्तपर राज़ीकर लियाकि मोरजाफर कोतोवह सूबे- सरी में मोकूफ करें। और कासिमझ लीनां को उस को जगह

मसनद पर बिठायें। बादशाह से भी चौबीस लाख रूपया साल अदा करने के इक्रार परसनद हासिल हो गयी का़सिमअ़लीख़ाँ का इरादा मीरजाफ़र की जान लेने का था। लेकिन वह कल- कत्ते में जा रहा इस से बचगया। बहाने अंगरेज़ो के पास मीरजाफ़र को मौकूफ़ी के बहुतथे पहले वह क़िस्तों का रुपया बिल्कुल अदा नहीं कर सकी था। दूसरे बादशाह से लिखा पढ़ी करता था तीसरे डच लोगों से साजिश रखता था।

उनदिनों में कम्पनीके नौकरों को तिजारतंकी कुछमनाही न थी तऩखाह से बढ़ कर तिजारतं में फाइदा उठाते थे। पान सुपारी तमाकू वगैरः सब चीज़ को तिजारत करते थे जब कम्पनी को तरह कम्पनी के नौकरों ने भी माल परमह सूल देना बंद किया बल्कि जो लोग कम्पनी के नौकर नहीं थे उन के माल को भी अपने नाम से वे महसूल चलाने लगे का़सिम अ़ली ख़ां घबराया। अपनी आमदनी का एक बड़ा सा हिस्सा उड़ जाता देखा। कौंसलवालों के लिखा लेकिन कौंसल वाले भी तो तिजारतं करते थे। अपने माल पर महसूल देना किसे अच्छा लगता है कासिमअलीख़ाँ का लिखनाकुछभी ख्याल में न लाये। कासिमअलीखाँ ने गुस्से में आकर परमिट बिलकुल मौकूफ़ कर दी यह बात सुन कर कि अब किसी के माल पर कुछ महसूल न लिया जायगा अंगरेजों के वो छूट गये क्योंकि फिर फेक क्या बाकी रहा। जिसभाव इनकामाल पड़ता था उसीभाव औरों का भी पड़गया। अंगरेजानेकासिम . अलीखांसे कहा कि तुमसिवाय हमलोगोंके और किसीकामाल बे महसूल मत जाने दो और जबउसने इनकायहग़ैरवाजिब कहना न मान कर मुकाबले पर कमर बांधी इन्होंने उस की मौकूफ़ी और मीरजाफ़र की बहाली का इश्तिहार दे दिया। मीरजाफर ने इन्हें तीस लाख रुपया नकद देने और बारह हज़ार सवार और बारह हज़ार पियादों का खर्च चलाने के लिये इकरार नामा लिख दिया। चौबीसवीजुलाईको अंगरेज़ी फ़ौन मुर्शिदाबाद में दाखिल हुई और कासिमअलीख़ाँ वहांसे

पटने की तरफ भागा। रास्ते में उस को फ़ौज से और अंग्रेजों से गढ़िया और उधवानाले में दो लड़ाइयांहुई क़ासिमअ़लीखां की तरफ़ से समझ जो साविक़ फ़रासीसियों केयही सार्जन्ठ था खूब लड़ा। लेकिन फ़तह अंगरेज़ों की रही इस खौफ़ से कि जगतसेठ अंगरेज़ों का मददगार है क़ासिमअ़लीखां ने उसे हवालात में अपने साथ रक्खा जब मुंगेर से आगे बढ़ा जगत सेठ महताबराय और उस के भाई सरूपचंद को रास्ते में अपने हाथ से कत्ल कर डाला। साम्हने खड़ा करकेतीरों से मारा। उनके साथ एक उनका नमकहलाल खिदमतगार धुनी रहगया था। बहुतेरा समझाया। लेकिनसाथ न छोड़ा। जब क़ासिमअलोखां तीर चलाता। वह साम्हने भाकरखड़ा हो। जबवह मरकर गिरगयाहै तब दोनों भाइयोंके तीर लगा है। पटने पहुंच कर उस जामि ने दो सो के लगभग अंगरेज़ों को जिन्हें उसने कैद कर रक्खाया। कटवा डाला।

अंगरेजों ने कर्मनासा नदी तक उसका पीछाकिया निदान वह इलाहाबाद में बादशाह के पास जाकर नवाब वज़ोरशुजा उद्दौला अवध के सबेदार को कुछ फोन के साथ चढ़ालाया। और पटने में अंगरेज़ों से खड़कर और शिकस्त खाकर फिर भागा। अंगरेजों ने फिर पीछा किया। बक्सर में शुजा छट्टोला से एक अच्छी लड़ाई हुई उसके साथ पचास साठ हजार सिपाह को भीड़ भाड़ थी और अंगरेजों के साथ कुल ८५० गोरे और ०२१५ हिन्दुस्तामो सवार और पियादे लेकिन शुजाउद्दौला को शिकस्त खाकर भागनाण्डा। उसके दो हज़ार आदमी इस लड़ाई में काम आये बादशाह ने 'अंगरेज़ों को इस फतह की मुबारकबाद दी और लिखा कि खूब हुआ जा में अपने वज़ोर को केद से छूटा और फिर वह उस तारीख से अंगरेजों को हिमायत में चला आया। अंगरेज़ी फ़ोज़ इलाहाबाद को तरफ़ बढ़ी। रास्ते में चनारगढ़ का किला घेरा ज़ियादा बनारस में रहगयी।


Sombre


१७६५ ई० सन् १७६५ के शुरू में मीरजाफ़र इस दुन्यासे कूच कर गया। और उसके भाई नज़्मुद्दौला को अंगरेज़ों ने मस्नद

पर बिठाया। इससे यह क़रार हो गया कि नाइब सूबेदार अंगरेज़ों की सलाह से मुकर्रर हुआ करे और में उनकी मंजूरी के मौकूफ़ न किया जावे।


लार्डक्लाइव

तीसरी मई को लार्ड क्लाइव गवर्नर और कमांडर इनचीफ होकर फिर कलकत्तेमें पहुंचा। और इंतिज़ामकीदुरुस्तीकेलिये रायदुल्लम ओर जगतसेठ खुशहालचंदको मुहम्मदरज़ाखां नाइब सुबेदारके शामिल किया। जिसरोज़ लार्ड क्लाइव कलकत्ते में पहुंचा। उसीरोज़ शुजाउद्दौला कोड़े में अंगरेज़ोंसे शिकस्त खाकर और सिवाय अंगरेज़ों पर भरोसारखनेके ओर कुछइलाज न देखकर जेनरल कार्नल के पास चलाआया। अंगरेज़ोंनेउसकी बहुत ख़ातिरदारी की। और पचासलाख रुपया लड़ाईका ख़र्च लेकर और इलाहाबाद और कोड़ाबादशाहको दिलवाकर सुलह करली। बनारस का राजा बलवंतसिंह बक्सर की लड़ाई में अंगरेज़ों से मिल गया था। वल्कि कहते कि नव्याबवज़ीर का जो मारचा इसके सुपुर्द था इसने उस मैं अंगरेज़ी लशकर चला आने दिया और यही नब्वाब वज़ीरकी शिकस्तका बड़ा सबबहुआ। इसी लिये इन्होंने सुलहनामे में यहभी लिखवा लिया कि शुजाउद्दौला बलवंतसिंह को किसीतरहपर न छेड़ें। और कुछ नुक्सान न पहुंचावे।

बादशाह से इस वादेपर कि छब्बीस लाख रुपया सालाना जिसका क़ौल क़रार मीरजाफ़र से हुआ था अब बराबर पहुंचा चला जायगा लार्ड क्लाइव ने कम्पनी के लिये बंगाला बिहार और उड़िसा तीनों सूबों की दीवानी का फ़र्मान लिख- वालिया। नाज़िम नाम को नज़मुद्दोला बनारहा। लेकिनउस से यह अ़ह्द मान होगया कि सिवाय पचास लाख रुपया सालाना लेने के ओर कुछ सरोकार मुल्क से न रक्खे मुल्का काकामसब अंगरेज़ों के हाथमें रहे लार्ड क्लाइव लिखता