आल्हखण्ड/१ संयोगिनि स्वयम्बर पृथीराज जयचंद युद्ध

आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ १ से – चित्र तक

 

श्रथ अाल्हखण्ड ॥ संयोगिनि स्वयम्बर पृथीराज और जयचन्द का युद्ध वर्णन ॥ सिंहावलोकनछन्द ॥ बन्दत तोहिं सदा गणनायक जासु कृपा दुख दारिद नारी। नाशै दारिद दोष सबै उर अन्तर आतमज्ञान प्रकाशै ॥ प्रकाशै आतमज्ञान जबै तब दुःख सबै जगको सुखभाशै । भाशै सुखको दुख सत्य जबै ललिते न तबै यमराजो फाँशै । सुमिरन ।। कौरव पाण्डव दोउ दल जूझे करिके कुरुक्षेत्र मैदान ।। सोई जनमे सब दुनिया में आल्हा ऊदन भादि महान । जिनकी कीरति घर घर फैली छैलिकै लीन जगतको छाय॥ को यश बरणे तिन क्षत्रिन के हमरे बूत कही ना नाय २ जैसे थाल्हा रणशूरन को आल्हा ऊदन दीन गड़ाय ।।

तैसे छापा सब गुणियन हित मुंशी साहब दीन वढाय ३

ब्राह्मण कायथ मुसलमान औ नौकर रहे बहुत अँगरेज॥
काम देखिकै सब काहू को सोवैं नवल भवन तब सेज ४
को गति बरणे तिन मुंशीकै जिनको बढ़ो अमित परताप॥
लाखन पुस्तक के ऊपरमाँ जिनके परै अबौंलग छाप ५
तिन सुत बाबू प्रागनरायण जिन मन शान्ति रही दर्शाय॥
को गुण बरणै तिन बाबूके गाये कथा बहुत बढिजाय ६
छं॰ जिला जौन उन्नाम तासु पूरबदिशि माहीं।
पांच कोस है ग्राम नाम पँड़री तिहिकाहीं॥
किरपाशंकर मिश्र वृत्ति पण्डित की जाहीं।
तिनसुत ललितेनाम ग्रन्थ निर्मापक आहीं ७
ते यश बरणैं अब जयचँद का लैकै रामचन्द्र का नाम॥
प्रथम स्वयम्बर संयोगिनि का पाछे बरणौं युद्ध ललाम ८
सबकनबजियात्यहिकनउजमाँ बीचम बसै तहाँ नरपाल॥
छूटि सुमिरनीगै ह्यांते अब सुनिये कनउज केर हवाल ९

अथ कथाप्रसंग॥

जयचँद राजा कनउज वाला आला सकल जगत सिरनाम॥
को गति वरणे त्यहिमंदिरके सोहै सोन सरिस त्यहिधाम?
केसरि पोतो सब मंदिर है औछति लागि बनातन केर॥
सुवा पहाड़ी तामें बैठे चक्कस गड़े बुलबुलन केर २
लाल औ मैनन के गिनती ना तीतर घुमिरहे सब ओर॥
पले कबूतर कहुँ घुटकत हैं कहुँ कहुँ नाचि रहे हैं मोर ३
लागि कचहरी है जयचंद के बैठे बड़े बड़े नरपाल॥
बना सिंहासन है सोने का तामें जड़े जवाहिर लाल ४
तामें बैठो महराजा है दहिने घरे ढाल तलवार॥

जामा पहिरे रेशमवाला आला कनउज का सरदार ५
पाग बैंजनी शिरपर सो है तापर कलँगी करै बहार॥
कवि औ पण्डित बहु बैठे हैं भारी लाग राजदर्बार ६
नचै पतुरिया सन्मुख ठाढ़े ओढ़े काशमीर कै सारि॥
जूरा झलकै त्यहि सारी विच काली नागिनिके अनुहारि ७
फूल चमेलिन के जूरा में नखतन सरिसकरै उजियारि॥
हवा सोहै गल बेलाका छैला ताको रहे निहारि ८
बालाहालैं त्यहि कानन में गालन छुवैं और टरिजाँय॥
अद्भुत बेसरि स्वहै नाक में शोभा कही तासु ना जाय ९
दुलरी तिलरी पंचलरीलों सो गलबिच में करैं बहार॥
बाजू सोहैं दोउ बाहुन में जोशन शोभाअमित अपार १०
सोहैं कलाइन में ककना भल तामें चुरियाँ करैं बहार॥
छल्ला सोहैं त्यहि अँगुरिन में ताको क्षत्री रहे निहार ११
सोने करगता तीन लरनको सो कम्मर में करें बहार॥
कड़ा के ऊपर छड़ा बिराजैं तापर पायजेब झनकार १२
पैर जमावै कमर झुकावे अँगुरिन भाव बतावति जाय॥
जौनि रागिनी जब वाजिबहै ताको तबै देय दर्शाय १३
जब दिशि जावति है राजाके पावै द्रव्य जाय हर्षाय॥
माफी पाये है कनउज में लरिकातीनिसाखिलोंखाँय १४
लाग अखाड़ा रजपूतन का शोभा कही बूत ना जाय॥
खाये अफीमन के गोला बहु पलकैं मूंदैं औ रहिजाँय १५
उड़े तमाखू बुटवल वाली धुवना सरग रहा मड़राय॥
भाँग जमाये बहु बैठे हैं मनमाँ रहे रामयश गाय १६
त्यही समइया त्यहि अवसरमाँ राजै गयो सोच मनछाय॥

बरके लायक संयोगिनि है काके संग बियाही जाय १७
यहै सोचिकै मन राजाने तुरतै पण्डित लीन बुलाय॥
सइति बतावो अब जल्दी सों जामें रचा स्वयम्बर जाय १८
सुनिकै बातैं महराजा की पण्डित साइति दीन बताय॥
मन्त्री बैठ रहै पासैमाँ राजै हुकुमदीन फर्माय १६
न्यवत पठायो सब राजन को कनउज साजि करो तय्यार॥
हुकुम पायकै महराजा को मन्त्री तुरत भयो हुशियार २०
उठि सिंहासन सों ठाढ़ो भो राजा कनउज का सरदार॥
किह्यो पैलगी सब बिप्रन को क्षत्रिन कीन्ह्यो राम जुहार २१
ब्राह्मण क्षत्री गे अपने घर महलन गयो चॅदेलाराय॥
आवत दीख्यो जब राजा को बांदी चली तड़ाका धाय २२
खवरि सुनाई महरानी को महलन आवत कन्त तुम्हार॥
सुनिकैं बातैं ये बांदी की रानी तुरत भई हुशियार २३
आगे ठाढ़ी भइ द्वारे पर राजा अटे बराबरि आय॥
पहिले राजा गे मन्दिर को पाछे चली आपहू जाय २४
पौढ्यो पलँगा पर महराजा आपौ बैठि चरण ढिग जाय॥
हरुये हरुये दोउ हाथन सों दोऊ लीन्ह्यो पैर उठाय २५
सो धरि राख्यो निज गोदी में औ छाती में लिह्यो लगाय॥
चापन लागी धीरे धीरे सोवन लाग चँदेलोराय २६
आपौ सोई महराजा सँग मनमें रामचन्द्र को ध्याय॥
भोर भ्वरहरे पह फाटत खन पक्षी रहे सबै चिल्लाय २७
मन्त्री जागा महराजा का लीन्ह्यो द्वारपाल को टेरे॥
जल्दी लावो कोतवाल को यामें करो कछू ना देर २८
सुनिकै बातैं ये मन्त्री की चलिमो द्वारपाल शिरनाय॥

जायकै पहुँच्यो कोतवाल दिग औ सबखबरिसुनायो जाय २९
पाय इत्तिला द्वारपाल सों तुरतै अटा भवन में आय॥
सावधान ह्वै हाथ जोरिकै मन्त्रिहिशीश नवायोजाय ३०
ठाढ़े देख्यो कोतवाल को मन्त्री हुकुम दीन फर्माय॥
मंच गड़ावो दिशि पूरब में मारग साफ करावो जाय ३१
ह्वई स्वयम्बर संयोगिनि का पुर में डौंड़ी देव पिटाय॥
झण्डा गाड़ो राजमहल में बन्दनवार देव बँधवाय ३२
सुनिकै बातैं ये मन्त्री की तुरतै कोतवाल चलिजाय॥
कलम दवाइति कागज लैकै सीताराम चरण मनध्याय ३३
चिट्ठी लिखिकै सब राजन को मन्त्री धावन लीन बुलाय॥
दै दै चिट्ठी हरकारन को राजनन्यवत दीन पहुँचाय ३४
साजि सांड़िया को जल्दी सों धावन तुरत भये असवार॥
चिट्ठी लैकै महराजा कै पहुँचे राजन के दर्बार ३५
चिट्ठी पावत महराजा कै राजा सबै भये हुशियार॥
अपनी अपनी सब फौजन को राजन तुरत कीन तय्यार ३६
बाजे डंका अहतंका के बंका चलत भये नरपाल॥
मारु मारु करि मौहरि बाजीं बाजीं हाव हाव करनाल ३७
ढाढ़ी करखा बोलन लागे बन्दिन कीन समरपद गान॥
दान मान दै सब बिप्रन को राजन कीन तुरत प्रस्थान ३८
खर खर खर खर कै रथ दौरैं चह चह रहीं धुरी चिल्लाय॥
दाबति आवैं सब कनउज का भारी अंधकार गा छाय ३९
मस्ता हाथी घूमत आवैं छैला घोड़ नचावत जाँय॥
रातौ दिन का धावा करिकै कनउज धुरा दबायनि आय ४०
को गति बरणै तेहि समया कै हमरे बून कही ना जाय॥

तम्बू गड़िगे सब राजन के झण्डा आसमान फहरायँ ४१
भोर भ्वरहरे मुरगा बोलत जागा कनउज का नरपाल॥
दिशा फराकत सों छुट्टी करि मज्जनकरतभयोतिहिकाल४२
पहिरिकै धोती रेशमवाली आसन बैठ चँदेलाराय॥
संध्या करिकै त्यहि अवसर की औ जपमाली लीन उठाय ४३
मन्त्र गायत्री को जपिकै फिरि तर्पण करन लाग महराज॥
अक्षत चन्दन धूप दीप औ लै पकवान शम्भु के काज ४४
भोग लगायो शिवशङ्कर को ध्यायो रामचन्द्र को नाम॥
फिर वुलवायो तिन बिप्रन को जिनके जपै तपै का काम ४५
गऊ मँगायो पैंतालिस फिर व्याई एक बेर की जौन॥
बछरा नीचे हैं जिनके फिरि सोने सींग मढ़ी हैं कौन ४६
खुरौ मढ़े हैं जिन चांदी के पीठ म परीं बनातन झूल॥
पूँछ पकरिकै तिन गौवन की राजा दानदेत मनफूल ४७
भूसा दाना एकमास को बिप्रन घरै दीन पहुँचाय॥
आयकै पहुॅच्यो फिरि मंदिरमें यकइस बिप्रनलीन बुलाय ४८
दही दुध औ पेरा बरफी चटनी भांति भांति तय्यार॥
भोजन दीन्ह्यो तिन बिप्रन को राजा कनउजका सरदार ४६
सीध मॅगायो पैंतालिस फिर औरे बिप्रन लीन बुलाय॥
सहित दक्षिणा के दीन्ह्यो सो राजा बड़ा प्रेम मनलाय ५०
ऐसो दान नित्यप्रति देवै राजा बिप्रन घरै बुलाय॥
पाछे भोजन आपौ करिकै तब दरबार पहूॅचै जाय ५१
ऐसो दानी महराजा यह राजा कनउज का सरदार॥
जायकै पहूँच्यो तिहि मंदिरमाँ जहँपर भरीलाग दरबार ५२
आवत दीख्यो जब राजा को ठाढ़े भये शूर सरदार॥

बैठि सिंहासन पर राजागे दहिने लिये ढाल तलवार ५३
बैठे क्षत्रिय निज निज आसन मनमें रामचन्द्र को ध्याय॥
हाथ जोरिकै मन्त्री बोल्यो वो महराज कनउजी राय ५४
देश देश के राजा आये एक न अयो पिथौराराय॥
सुनिकै बातैं ये मन्त्री की जल्दी हुकुम दीन फर्माय ५५
मुरति वनावो तुम कपड़ा की भीतर पैरा देव भराय॥
जहाँ उतारे जूता जावैं तहँ पर खड़ा देव करवाय ५६
हुकुम पायकै महराजा को मन्त्री कीन तैसही जाय॥
मुरति पिथौरा की बनवायो तहँपर खड़ा दीन करवाय ५७
बैठक बैठे सब राजा तहँ आपौ गयो चँदेलाराय॥
बाजन बाजे चौगिर्दाते हाहाकार शब्दगा छाय ५८
सजिगाकनउजत्यहिऔसरमाँ शोभा कही बूत ना जाय॥
बन्दनवारे घर घर बाँधे घर घर रहे पताकाछाय ५६
सजीं सुहगिलैं चौगिर्दाते गावैं गीत मंगलाचार॥
त्यही समइया त्यहि औसरमाँ बोल्यो कनउजका सरदार ६०
जल्दी लावो संयोगिनि को साइति आयगई नगच्याय॥
हुकुमपायकै महराजा का चकरन खबरि जनाई जाय ६१
खबरि पायकै संयोगिनि फिरि महलन तुरत भई हुशियार॥
औ बुलवायो फिरि बँदियनको सोलह करनलागि श्रृंगार ६२

सवैया॥

मज्जन चीर औ कुण्डल अंजन नाकमें मौक्तिक बेससवाँरी।
कंचुकि औ क्षुदावलि कंकर्ण कुसुमित अम्बर चन्दनधारी॥
खायकै पान औ धारिमणीनको हार औ नूपुर की झनकारी।
सिंदुर भाल बिशाल लखे ललितेमनलज्जितमन्मथनारी ६३

सजि सँयोगिनि गै पलमाँइक बँदियन हुकुम दीन फरमाय॥
डोला लावो अब जल्दी सों बँदिया चली हुकुमकोपाय ६४
लाईं डोला सो जल्दी सों औ त्यहि खबरि सुनाई जाय॥
सुनिकै बातैं सो बांदी की मनमें श्रीगणेशको ध्याय ६५
सुमिरि भवानी शिवशंकरको औ सूर्य्यन को माथ नवाय॥
बैठी डोला में संयोगिनि सीता रामचरण मनलाय ६६
चारि कहरवा मिलिडोला लै तुरतै चले पूर्व दिशिधाय॥
आगे डोला संयोगिनि को पाछे चलीं सहेली जाँय ६७
दौरति जावें पुरबासी सब दासिन भीर भई अधिकाय॥
चढ़िगे मंचन नर नारी सब राजन देखि देखि हर्षाय ६८
बड़ी भीर भय तब कनउज में औ तिल डरे भुई ना जाय॥
शोभा गावैं जो कनउज की तौफिरिएकसाल लगिजाय६६
डोला लैकै संयोगिनि को महरन तहाँ उतारा जाय॥
जहॅना बैठे सब राजा है एकते एक रूप अधिकाय ७०
उतरिकै डोला सों संयोगिति माला दहिन हाथ ले लीन्ह॥
सुमिरिभवानीसुत गणेश को महिफिलमध्यगमनतबकीन्ह७१
बैठे राजा सब महिफिल में एक ते एक शूर सरदार॥
कोउ कोउ राजा तीस बरसका कोउ कोउ वर्षअठारहक्यार ७२
काले नीले पीले लाले उजले शोभा के अधिकाय॥
जामा पहिरे रेशमवाले चम् चम् चमकि २ रहिजाँय ७३
सोहैं डुपट्टा तिन जामन पर गल में परे मोतियन हार॥
रंगबिरंगी पगड़ी शिर पर तिनपर कलँगी करैं बहार ७४
हाथ लगाये हैं मुच्छन पर दहिने परी ढाल तलवार॥
पीठ दिखावै नहिं बैरी को ऐसे सबै शूर सरदार ७५

लैकै माला संयोगिनि तहँ घूमत फिरै सखिन के साथ ।।
मन नहिं भावै कोउ राजा त्यहि जाको करै आपनो नाथ ७६
देखैं राजा संयोगिनि तहँ औ शिर नीचे लेयँ नवाय॥
माला डाले नहिं काहू के क्षत्री गये सबै शर्माय ७७
सोतो देखै पृथीराज को नहिं तहँ देखि परैं महराज॥
चकृत ह्वैकै चौगिर्दा ते देखनलागि छांड़िकै लाज ७८
जब नहिं देख्यो दिल्लीपतिको तब मन सोचि सोचि रहिजाय॥
काह विधाता कै मर्जी है जो नहिं अयो पिथौराराय ७९
क्वारी रहिवे हम दुनिया में, या फिरि ब्याहकरख तिनसाथ॥
त्यहिते तुमका हम ध्याइत है सुनिल्यो दीनबन्धु रघुनाथ ८०
जइस मनोरथ तुम सीताको पुरयो आप चराचर नाथ॥
तइस मनोरथ अब हमरो है ब्याही जायँ पिथौरा साथ ८१
त्वही गोसइयाँ दीनबन्धु है ओ दशरथ के राजकुमार॥
बेगि मिलावो दिल्लीपति को तब सब होवैं काज हमार ८२
चरण तुम्हारे जो मनलावै गावै राम राम श्री राम॥
सो फल पावै मनभावै जो पूरण होयँ तासु के काम ८३
यह सुनि राखा हम बिप्रन ते ताको सत्य करो भगवान॥
मूरति दीख्यो फिरि कपड़ाकी तामें करनलागि अनुमान८४
है यह मूरति पृथीराजकी मनमाँ ठीक लीन ठहराय॥
लैकै माला संयोगिनि सो मूरति गले दीन पहिराय ८५
देखि तमाशा सब राजा यह आशा छाँड़ि हृदयते दीन॥
बिदा मांगिकै महराजाते राजन गमन तहाँते कीन ८६
कूचके डंका बाजन लागे घूमन लागे लाल निशान॥
चलिमेराजा निज निज घरका करिकै शम्भुचरणको ध्यान ८७

चढ़िकै डोला में संयोगिनि सोऊ चली महल को जाय॥
उठि महराजा फिरिमहिफिलते औ दरबार पहूंचे आय ८८
मंत्री बैठत भो बाँयें पर दहिने बैठि बिप्र सब जाय॥
त्यही समइया त्यहि औसर में राजा बोल्यो भुजा उठाय ८९
कौन पिथौरा को जानत है सन्मुख ठाढ़ होय सो आय॥
सुनिकै बातैं महराजाकी बूढ़ो बिप्र उठा हर्षाय ९०
हमसों परचय पृथीराजसों ओ महराज कनौजीराय॥
पाँच बरस हम दिल्ली रहिकै पूजाकीन तासु घर जाय ९१
भोजन पाये त्यहि महलनमें बैठ्यन संग तासु महराज॥
पूँछन चाहो का महराजा सो तुम कहौ आपनो काज ९२
सुनिकै बातैं त्यहि ब्राह्मण की बोला तुरत कनौजीराय॥
कस रजधानी है दिल्ली की कैसो वीर पिथौराराय ९३
सुनिकै बातैं ये जयचँद की बोला बिप्र बहुत सुख पाय॥
नाम हस्तिनापुर दिल्लीका जानो आपु कनौजीराय ९४
आगे राजा शन्तनु ह्वैगे गंगा भई जासु की नारि॥
तिनसुत भीषम फिरि पैदा भे कीन्ह्यो परशुराम सों रारि ९५
दिन सत्ताइस का संगरभा दूनों तरफ चले तहँ तीर॥
मूर्च्छित ह्वैगे परशुराम जब गंगा आय छिनीक्यो नीर ९६
सनमुख ह्वैगे फिरि दोऊ मिलि युद्धको होनलाग सामान॥
तब समुझायो बहु गंगाने अब नहिं करो युद्ध को ठान ९७
तुम्हरो चेला यहु भीषम है ओ जमदग्नितनय बलवान॥
नाम तुम्हारो जग में ह्वैहै मानो सत्यबचन भगवान ९८
चेला जिनको अस बलवन्ता है भगवन्ता के अनुमान॥
धन्य बखानों तिन गुरु केरी रहिहै सदा जगतमें मान ९९

कहि ये बातैं परशुराम सों फिरि बहुपुत्र सिखावनदीन॥
सुनिकै बातैं निज माताकी भीषमकहाबचनछलहीन १००
बिजयपत्र जो म्बहिं लिखिदेवैं तौ हम लौटि धामको जायँ॥
नाहिं तो टरिहौं ना संगर ते चहुतनधजीधजीउड़िजाय १०१
सुनिकै बातैं ये भीषम की औ हठ दीख टरै को नाहिं॥
तब तो गंगा परशुराम सों बोलींहाथजोरित्यहिठाहिं १०२
लरिका अरुझो बिजयपत्र को ओ जमदग्नितनय महराज॥
बिजयपत्र अब याको दीजै कीजैआपशिष्यकोकाज १०३
सुनिकै बिनती बहु गंगाकी तबतिनबिजयपत्रलिखिदीन॥
बिजयपत्र लै तहँ भीपमने औ पैलगी गुरूको कीन १०४
माथ नायकै फिरि गंगा को भीषम दीन्ह्यो शंख बजाय॥
परशुराम निज आश्रम गमने भीषम घरै पहूंचे आय १०५
चित्र बिचित्रबीर्य्य रहैं राजा भीषमकर छोट दोउभाय॥
तेऊ मरिगे बिना पूत के तिनघरब्यास पहूंचे आय १०६
आँधर पांडु बिदुर तिनलरिका जिनकारहा जगतयशछाय॥
अँधरे केरे दुर्य्योधन भे पांडुकेभये युधिष्ठिरराय १०७
दोऊ मिलिकै संगर ठान्यो तहँ सब क्षत्री गये बिलाय॥
भयो परीक्षित फिरि दिल्लीपति ज्यहिभागवतसुन्योहर्षाय१०८
कलियुगआयो त्यही राज में ओ महराज कनौजीराय॥
को गतिबरणैत्यहि कलियुगकै हमरे बूत कही ना जाय १०६
ऐसी दिल्ली की रजधानी जामें बसै पिथौराराय॥
रूपउजागर सब गुण आगर शोभाकही तासु ना जाय ११०
नित प्रति पूजै शिवशंकर का नाहर दिल्ली का सरदार॥
गदका बाना पटा बनेठी इनमाँबहुतभांतिहुशियार १११

चढ़ी जवानी पृथीराजकी पृथीराजकी कुश्ती लड़ै अखाड़े जायँ॥
खनखनठनठन भनभनमनमन कैसो शब्द कानमें जाय ११२
वाण चलावैं जहाँ तानिकै ताको तुरतै देयँ नशाय॥
ऐसे राजा पृथीराज हैं ओमहराज कनौजीराय ११३
सुनिकै बातैं त्यहि बाम्हन की फिरि ना बोल्यो चँदेलाराय॥
सभा विसर्जन करि जल्दी सों महलमें तुरत पहूँच्योजाय ११४
कियो बियारी फिरि मंदिर में सोयो रामचन्द्रको ध्याय॥
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडागड़ानिशाकोआय ११५
तारागण सब चमकन लागे पक्षिन चुप्पसाधि तब लीन॥
चलेआलसीखटिया तकितकि नाहकजन्म विधातै दीन ११६
आगे लड़ि हैं पृथइराज अब करि हैं घोर शोर घमसान॥
बैठो यारो अब थकिआयन मानो सत्यबचनपरमान ११७

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुँशीनवलकिशोरात्मजबाबूप्रयागनारायण
जीकीआज्ञानुसारउन्नायप्रदेशान्तर्गतपॅड़रीकलांनिवासि मिश्रवंशोद्भव
बुधकृपाशङ्करसूनु पण्डितललिताप्रसादकृत संयोगिनि
स्वयम्बरोनामप्रथमस्तरंगः १ ॥


सवैया॥

 भो शरणागतपाल कृपाल उदार अपार सबै गुण तेरे।
यांचि भयों शरणागत में न लह्यों अजहूं तुमको कहुँ हेरे॥
गावत संत महंत सबै कि हृदय विच रामरहैं सबे केरे।
सो नहिं टेरे सुनैं ललिते फलिते न भयेहैं मनोरथमेरे १

सुमिरन॥

बलेश्वरी पँड़री की गइये जिनकाविदितजगतपरताप॥
मन औ वाणी सों जो घ्यावै ताके छूटिजायँ सब ताप १

नित प्रति पाठ होयँ दुर्गाके औ तहँ करें यती नित बास॥
बिधिसों पूजन जोकोउ कीन्ह्यो पूरणभई तासु की आस २
अगे दरक्खत है नींवी का बायें पीलूका अधिकार॥
बरगद पीपर गूलर दहिने जिनकीशोभा अमितअपार३
प्रातःकाल नारि सब जावैं ध्यावैं देवी चरण मनाय॥
सायंकाल पुरुष सब जावैं गावैं वेद ऋचन को जाय ४
पिता हमारे किंरपाशङ्कर तहँपर पाठकीन बहुकाल॥
फिरिम्बहिं सौंप्यो तिनदेबीका मानो सत्य सत्य सब हाल ५
तेरह बरसैं हमका गुजरीं चाकरभये नवल दरबार॥
छट्टी लैकै नवरात्रन में जावैं अवशि महीना क्वार ६
पाठ सुनावैं श्री दुर्गा की बालेश्वरी शरण में जाय॥
जो कुछ मनमें हमरे होवै सो अभिलाष पूरि ह्वैजाय ७
प्रथम भागवत तहँपर बाँची साँची कथा कहौं सब गाय॥
रुक्यों न काहू पदमें तहँ पर देवी कृपाभई अधिकाय ८
छूटि सुमिरनी गै देबी कै सुनिये जयचँद क्यारहवाल॥
चन्दभाट दिल्लीको जाई आई दिल्लीका नरपाल ९

अथ कथाप्रसंग॥

भोर भ्वरहरे पह फाटत खन सोयकै उठा कनौजीराय॥
प्रातक्रिया करि सब जलदी सों फिरि दरबार पहूंचा आय १
बैठ्यो राजा सिंहासन पर भारी लागि गयो दरबार॥
किह्यो पैलगी सब बिप्रनको क्षत्रिन कीन्ह्यो राम जुहार २
बूढ़ बिप्रसों फिरि बोलतभा दिल्ली कौन पठावा जाय॥
सुनिकै बातें चन्देले की बोल्यो बिप्र बबन हर्षाय ३
चन्दभाटको तुम पठवो अब सो पिरथीका लवै बुलाय॥

देखन केरी अभिलाषा जो ओ महराज कनौजीराय ४
बूढ़े वाम्हन की बातैं सुनि लीन्ह्यो चन्दभाट बुलवाय॥
औसमुझायो फिरित्यहिकोसब यहु रणवाघु चँदेलोराय ५
सुनिकै बातैं चंदेले की चलिभो चन्दभाट शिरनाय॥
चढिकै घोड़ाकी पीठीमाँ दिल्ली शहर पहूंचा जाय ६
जायकै पहुँच्यो त्यहिफाटकमाँ जहँ दरवार पिथौरा क्यार॥
दीख पौंरिया चन्दभाट को गरूई हांक दीन ललकार ७
हुकुम दर्ररो हुकुम दर्ररो साहेबजादे बात बनाव॥
कहॉते आयो औ कहँ जैहौ जल्दी आपन नाम बताव ८
सुनिकै वातैं दरवानी की बोल्यो चन्दभाट ततकाल॥
देश हमारो कनउज जानो जावैं जहाँ बैठ नरपाल ९
मोहिं पठायो जयचँद राजा हमरो चन्दभाट है नाँउ॥
खवरि जनावो पृथुइराज को ओ दरवानी वात वनाउ १०
सुनिकै बातैं चन्दभाट की सो दर्बार सो दबार पहुंचा जाय॥
हाथ जोरिकै दोउ बोलतभा औ चरणनमें शीशनवाय ११
चन्दभाट कनउज ते आयो ओ महराज पिथौराराय॥
हुकुम जो पावों महराजा की तो मैं लावों साथ लिवाय १२
सुनिकै बातैं दरवानी की बोले पृथीराज महराज॥
लावो लावो त्यहि जल्दी सों आयोचन्दभाटक्यहिकाज १३
सुनिकै बातैं महराजा की दौरत चला पौंरिया जाय॥
सँग माँ लैकै चन्दभाट को औ दर्वार पहूंचा आय १४
चन्दभाट तब लखि पिरथी का दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
कह्यो सॅदेशा चन्देला जो सो पिरथीका दियो सुनाय १५
सुनि संदेशा चन्देले का भा मन खुशी पिथौराराय॥

साल दुसाला दिह्यो भाट को गल माँ हार दीन पहिराय१६
आगे पठयो चन्द भाट को पाछे हिरसिंह लियो बुलाय॥
चन्द कबीश्वर को बुलवायो तासों कह्योहाल समुझाय १७
बाना बदल्यो पृथुइराज ने मन माँ श्रीगणेशको ध्याय॥
सुमिरि भवानी शिवशङ्कर को औ सुर्य्यन को माथनवाय १८
तीनों चलिभे फिरि दिल्लीसों सीता राम चरण मन लाय॥
आठ रोज को धावा करिकै कनउज धुरादबाइनिआय १९
त्यहीसमइयात्यहि अवसर माँ राजा कन उज का सरदार॥
मन्त्री बैठरहै बायें माँ तासों बोल्यो बचन उदार २०
एक मना सोना को लैकै औ कारीगर लेव बुलाय॥
मूरति रचिकै दरवानी की सो द्वारे पर देव धराय २१
सुनिकै बातैं महराजा की मन्त्री तुरत उठा शिरनाय॥
मुरति पौंरिया की बनवायों औ द्वारे पर दियो रखाय २२
त्यही समइया त्यहि अवसरमाँ पहुँचा चन्दभाट फिरिआय॥
खबरि सुनायो सब दिल्ली की औ चरणनमें शीशनवाय २३
हिरसिंह ठाकुर चन्द कबीश्वर तिनके साथ पिथौराराय॥
तीनों मिलिकै त्यहि पाछे सों औ दरबार पहूंचे आय २४
दीख सिंहासनपर जयचँदको भारी तहां दीख दखार॥
बैठै क्षत्री अरझ्वारा सों एक सों एक शूर सरदार २५
दयर मुकदिमा बहु खूनी हैं बहुतक ठाढ़े तहां वकील॥
कऊ जेहल को पहुँचायेगे काहु कि दीनहथकड़ीढील २६
त्यही समइया त्यहिअवसर माँ आगे चन्दकवीश्वर जाय॥
बहु पद गायो सभा मध्य में आपन दीन्ह्यो नाम बताय २७
कह्यो सँदेशा पृथुइराज ने ओ महराज कनौजीराय॥

बहुत कामहैं यहि समया में ताते सक्यों नहीं मैं आय २०
सुनि संदेशा दिल्लीपति का बोला तुरत कनौजीराय॥
सरबरि हमरी का नाहीं है ह्याँ मुहँ कौन दिखावैं आय २९
सुनिकै बातैं चन्देले की हिरसिंह ठाकुर उठा रिसाय॥
ऐसी तुमको पै चहिये ना जैसी कहौ कनौजीराय ३०
आज पिथौरा सब लायक है ठाकुर समरधनी चौहान॥
सनमुख लरिहै जो संगर में रहिहै नहीं तासु को मान ३१
हम तो नौकर पृथुइराज के तैसे नौकर अहिन तुम्हार॥
कच्ची बातैं पै कहिये ना राजा कनउज के सरदार ३२
हमैं बतइये अब टिकने को ओ महराज कनौजीराय॥
थके थकाये हम आये हैं दोऊ नैन रहे अलसाय ३३
पाछे ठाढ़े पृथुइराज है तिनको दीख चँदेलाराय॥
मन अनुमान्योतब बहुविधिसों औ मन्त्रीको लियोबुलाय ३४
सुखिया वांदी को बुलवाओ तासों पान दिवाओ आय॥
वह पहिचानै भल पिरथी को सनमुख जातै गई लजाय ३५
सुनिकै बातैं महराजा की मन्त्री चाकर लीन बुलाय॥
तिनसों मंत्री यह ब्वालत भा सुखिया बांदी लओबुलाय ३६
पाहुन आये हैं दिल्ली सों तिन को पान खवावै आय॥
एक के कहतै तब दुइदौरे चाकर तीन पहूंचे जाय ३७
सुखिया सुखिया कै गोहरावा सुखिया बांदी बात बनाउ॥
तुम्हैं बुलावा महराजा है जल्दीनिकरि महलतेआउ ३८
सुनिकै हल्ला तिन चकरन को सुखिया चलीतड़ाकाधाय॥
द्वारे आई दरवाजे के पूंछनिलागिहालसबआय ३९
हाल पायकै सब चकरन ते मनमाँ गई सनाका खाय॥

लज्जा करिहौं यहि समया में मारा जाय पिथौराराय ४०
यहै सोचिकै मन अपनेमाँ महलन तुरत पहूँची आय॥
लैकै डिब्बा सोनेवालो तामें बीरा धरे लगाय ४१
लैकै डिब्बा फिरि महलन सों चकरन साथ चली हर्षाय॥
जायकै पहुँची त्यहि मन्दिर में जहँ पर बैठ कनौजीराय ४२
औ रुख दीख्यो महराजा को सब को दीन्हो पान गहाय॥
रंचक लज्जा जब दीख्यो ना तब मनस्वचा कनौजीराय ४३
नहीं पिथौरा इन तीनोंमाँ नाहक गयो हृदय भ्रमछाय॥
यहै सोचि कै मन अपने माँ फिरि मंत्रीकोलियोबुलाय ४४
इन्हैं टिकावो लै बगिया माँ खीमा तहाँ देव गड़वाय॥
हुकुम पायकै महराजा का तीनों निकर द्वारपर आय ४५
मूरति दीख्यो फिरि द्वारेपर जो अनुहारि पिथौरा केरि॥
बार बार तहँ तीनों मिलिकै सब अँग रहे तासुके हेरि ४६
मूरति दीख्यो निज सूरतिकै तब नरिमरा पिथौराराय॥
जायकै पहुँच्योफिरि बगियामें तम्बू गड़ा तहाँपर आय ४७
विछेउ पलँगरा तहँ निपारि को मखमल गद्दा दियो डराय॥
धरेउ उशीशे में गिरदा को तामें ल्यट्यो पिथौराराय ४८
त्यही समइया त्यहि औसरमाँ औ पदमिनिका सुनो हवाल॥
त्यहिसुनिपावानिजमहलनमाँ बगियाटिक्योआयनरपाल ४९
तब ललकारा निज बांदिनका अबहीं पलकी लवो लिवाय॥
सुनिकै वातैं संयोगिनि की सब पलकी लईं सजाय ५०
सुमिरि भवानी शिवशंकर को मनमें श्रीगणेश को ध्याय॥
बैठि पालकी में संयोगिनि मनमें सियामातु पदलाय ५१
जायकै पहुँची त्यहि बगिया में जहँ पर टिका पियौराराय॥

उतरिकै पलकी सों जल्दासों माला गले दीन पहिराय ५२
विरा खवायो पृथुइरान को आपन नाम दीन बतलाय॥
हाथजोरिकै संयोगिनि फिरि बोली आरतवचन सुनाय ५३
देवी देवता हम सब ध्याये ओ महराज पिपौराराय॥
दर्शन तुम्हरे तब हम पाये तुवमन काह देउ बतलाय ५४
बातैं सुनिकै संयोगिनि की बोल्यो पृथुइराज महराज॥
लड़ब चँदेले सों सँभराभरि पदमिनिअवशितुम्हारेकाज ५५
मानभंग करि चन्देले को डोला लै दिल्ली तब जाउँ॥
जो असकनउज मॉकरिहाना तौ नहिं कह्यो पिथौरानाउँ ५६
धीरज राखो अपने मनमॉ अबतुम लौटि महलकोजाउ॥
पन्द्रह सोलह दिनके भीतर हम तुम होव एकही गई ५७
वातैं सुनिकै महराजा की तब चरणन में शीश नवाय॥
बेठि पालकी में संयोगिनि सीता रामवाण पदध्याय ५८
चारि कहरवा मिलि डोला लै महलन तुरत दीन पहुँचाय॥
गै संयोगिनि जब महलन को पौढ़ी तुरत पलँग पर जाय ५९
खेत छूटिगो दिननायक सों झण्डा गड़ो निशाकोआय॥
तारागण सब चमकन लागे सन् सन् सनासन्न गाछाय ६०
सोय पिथौरा गे तम्बू में महलन स्ववा चँदेलाराय॥
पक्षी बोले चौगिर्दाते मुरगन वॉग दीन हर्षाय ६१
जगा चँदेला तब महलन में तम्बू जगा पिथौराराय॥
प्रातक्रिया करि तबदोनों नृप आपन आपनइट मनाय ६२
वैठ्यौ महलन में चन्देला तम्बू में पिथौरराय॥
अपने मन्त्री को बुलवायो यहु महराज कनौजीराय ६३
साल दुत्ताला मोतिन माला हीरा पन्ना लीन मँगाय॥

चन्दकवीश्वर के मिलने को तुरतै चला चँदेलाराय ६४
जायकै पहुँच्यो त्यहि तम्बू में जहँ पर बैठ बीर चौहान॥
चन्दकबीश्वर के आगेधरि कीन्ह्योबहुतभांतिसनमान ६५
उठा पिथौरा तब आसन ते आयो जहाँ चँदेलाराय॥
हाथ पकरिकै चन्देले को अपने हाथे दिह्यो चपाय ६६
देखि वीरता पृथुइराज की तब पहिचना कनौजीराय॥
चन्दकबीश्वर को दैकै सब फिरि दरबार पहूँचा आय ६७
हुकुम लगायो निज मन्त्री को बहुतक मल्ल लेउ बुलवाय॥
जाय न पावैं दिल्लीवाले इनका कटा देउ करवाय ६८
त्यही समझ्या त्यहि अवसरमाँ पृथुइ कूच दीन करवाय॥
कनउज तेरी उत्तर दिशिमाँ पहुंचे पांच कोसपर जाय ६९
हिरसिंह ठाकुरको तहँते फिरि तुरतै दिल्ली दीन पठाय॥
साजिकै फौजै चतुरंगिनि को हमको यहाँ मिलौ तुमआय ७०
सुनिकै बातैं पृथुइराज की हिरसिंह चला तुरत शिरनाय॥
जायकै पहुँच्यो फिरि दिल्ली में औ सब खबरि सुनाई जाय ७१
सुनिक बातें सब हिरसिंह की मनमाँ कान्हकुँवर मुसुकाय॥
हुकुम लगायो निज मन्त्री को पुरमें डौंड़ी दो बजवाय ७२
हुकुम पायकै कान्हकुँवर को पुरमें बजन नगारा लाग॥
धम् धम् धम् धम् बाजन लाग्यो मानों मेघ गरज्जन लाग ७३
शब्द नगारा का सुनतै खन क्षत्री सबै भये हुशियार॥
अपने अपने तब चकरनको क्षत्रित गरू दीन ललकार ७४

सवैया॥

कोऊ कहैंदल हाथिन लाउ सजाउ बछेड़न को गोहरावैं।
कोऊ कहैं रथ बैल सँवारु गँवारू अबे का देर लगावैं॥

कोऊ तहॉ नलकी पलकी सजि सुन्दरतापर सेज लगावैं।
गावैं कहाँलों कबीललिते फलिते रघुनाथके जे गुणगावैं ७५
बन्दन करिकै श्रीगणेश को दशरथ नन्दन हृदय मनाय॥
तब हम गावैं फिरि आल्हाको जामें काज सिद्धि ह्वै जाय ७६
सजा रिसाला घोड़नवाला लगभग तीसलाख अनुमान॥
पन्द्रहलाख सजे हाथी तहँ पैंतिसलाख सिपाही ज्वान ७७
सजि सजि तोपैं अष्टधातु की सोऊ होन लगी तय्यार॥
बैल नहायेगे तोपन में गाड़िन गोला मेरे अपार ७८
हथी महावत हाथी लैकै औ पृथ्वीमाँ देयँ बिठाय॥
धरिकै सीढ़ी सँखूवाली हौदा तिनपर देयँ चढ़ाय ७९
बारह कलशा सोनेवाले ते हौदापर देयँ धराय॥
डरैं अँगारी जिन हाथिन के तिनकीशोभाकही न जाय ८०
को गति बरणौ तिन हाथिनकै घण्टा गरे रहे हहराय॥
छाय अँधेरिया में दिल्ली में हाथी हाथी परैं दिखाय ८१
अंगद पंगद मकुना भौंरा सोहैं श्वेत बरण गजराज॥
मैनकुंज मलया धौरागिरि कहुँ दुइदन्ता रहे विराज ८२

सवैया॥

हाथिन के दल बादलसों नभ छायगयो रजभानु लुकाने।
मेरु समान महान सबै जिनके पदभार अहीश सकाने॥
नाद करैं तिन ऊपर बीर अधीर भये सुरराज छिपाने।
ललिते गजराज लखमहराज तबै मनमें अतिही हर्षाने ८३
सजिगे हाथी जब सबियॉ तहँ घोड़ासजनलागि त्यहिकाल॥
कोउ कोउ घोड़ा हंस चालपर कोउकोउजातमोरकीचाल ८४
गुण की मौहरि बाजन लागी रणका होन लाग व्यवहार॥

ढाढ़ी करखा बोलन लागे बिप्रन कीन बेद उच्चार ८५
कूच के डंका बाजन लागे घूमन लागे लाल निशान॥
को गति बरणै त्यहि समया कै एकते एक सुघरूवा ज्वान ८६
हुकुम पाय कै कान्ह कुँवरको हिरसिंह कूच दीन करवाय॥
आगे हलका भा हाथिन का पाछे चला रिसाला जाय ८७
चले सिपाही त्यहि पाछे सों एक सों एक दई के लाल॥
खर खर खर खर कै रथ दौरैं रब्बा चलैं हवा की चाल ८८
जैसे नदियाँ चलैं समुंदर तैसे चली फौज त्यहि काल॥
डगमग डगमग पृथ्वी हाली मारग बासी भये बिहाल ८९
शूर सिपाही ईजति वाले दहिनी धरैं मूछ पर हाथ॥
मनै मनावैं रामचन्द्र को बारम्बार नाय कै माथ ९०
कायर सोचैं यह मनमाँ सब लैकै बड़ी बड़ी तहँ श्वास॥
हम मरिजइबे समरभूमि में होई वंश हमारो नाश ९१
हम भगिजावैं जो रस्ताते तोहू नहीं जीव की आश॥
लौटि पिथौरा जब घर जैहै करि है अवशिहमारो नाश ९२

कुंडलिया॥


यारो सायर दशभले कायर भले न पचाश।
सायर रणसम्मुख लड़ैं कायरप्राण कि आश॥
कायर प्राण कि आश भागि रणते ह्वैआवैं।
आपु हँसावहिं और कुटुँब को नाम धरावैं॥
कहि गिरिधरकबिराय बातचारहुयुग जाहिर।
सायर भलेहैं पांच संग सौ भले न कायर ९३
ऐसे कायर सब सोवत भे जिनकी कही कथा ना जाय॥
परैं नगारन में चोटैं जब उनके होयँ करेजे घाय ९४

शूर सिपाही बाजा सुनि सुनि मनमाँ अधिक अधिक हरपायँ॥
मारु मारु कै कोउ बोलत भे कोऊ दांतन ओठ चबायँ ९५
या बिधि फौजैं सब दिल्ली की दाबति चली कनौजै जायॅ॥
आठ दिनौना के अर्सा में पहुंची जहॉ पिथौराराय ९६
देखिकै फौजैं दिल्ली वालो ठाकुर समरधनी चौहान॥
गले लगायो फिर हिरसिंह को कीन्ह्योबहुतभांति सनमान ९७
गोबिंद राजै कान्ह कुँवर को भेंटन भयो पिथोराराय॥
कुँजधर ठाकुर और मुकुन्दा येऊ मिले शीश को नाय ९८
तम्बू गाडगे महराजन के डेरा गड़े सिपाहिन केर॥
बीचम तम्बू पृथुइराज को चारो तरफ रहे सब घेर ९९
गड़िगे झण्डा सब तम्बुन ढिग ते सब आसमान फहरायँ॥
को गति बरणै तिन झण्डन कै हमरे वूत कही ना जाय १००
तंग बछेड़न के छूटतमे क्षत्रित छोरिधरा हथियार॥
ह्याँ महराजा कनउज वाला आला शूरवीर सरदार १०१
बहु ढुँढवावा त्यहि पिस्थी का पापा कतों न पता निशान॥
तब बुलवावा फिरि मंत्री को करिकै बहुतभांति सनमान १०२
हम सुनिपावा हरकारा सों मंत्री सुनो बचन धरिध्यान॥
चढिकै आवा दिल्लीवाला ठाकुर समरधनी चौहान १०३
काल्हि सबेरे संगर ह्वैहै सीताराम लगईहैं पार॥
पुरमें डौंड़ी को बजवावो सबियाँ होय फौज तय्यार १०४
सुनिकै बातैं महराजा की मंत्री चला शीशको नाय॥
जाय नगरची को बुलवायो ताको दीन्ह्यो हुकुमसुनाय १०५
ब्यारी करिकै फिरि संध्याको सोये तुरत पलॅगपर जाय॥
यहु महराजा कनउजवाला सोऊ महल पहूँचाजाय १०६

चौकी परिगै तहँ सोने की तापर बैठ राम को ध्याय॥
मधुर मिठाई औ मेवा कछु भोजनकीनबहुतसुखपाय १०७
खबरि सुनाई सब रानी को जो चढ़िअवा पिथौराराय॥
सुनिकै बातैं महराजा की रानी बोली शीश नबाय १०८
तुम ना भाग्यो समरभूमि ते चहुतन धजीधजी उड़िजाय॥
कोउ अमरौती ना खावा है ना क्वउआवा पीठिमढ़ाय १०९
कालके हाथ कमान चढ़ी है ना कोउ बची बूढ़ ना ज्वान॥
यकदिन मरना है सबही को स्वामीकरो वचन परमान ११०
जो तुम भगिहौ समरभूमिते बूड़ी तीनिसाखिको नाम॥
लड़िकै मरिहौ जो सम्मुख में जैहौ तुरत राम के धाम १११
वचिक अइहाँ जो कनउज में पैहौ सदा नृपन में मान॥
जीवन ताही को भलजानो जाकीरहै जगतमें शान ११२
ऐसी बातैं रानी कहिकै पलँगापरै गई अलसाय॥
राजौ सोये फिरि महलन में औअतिबिक्दनींदकोपाय ११३
खेत छुटिगो दिननायक सों झंडागड़ा निशा को आंय॥
तारागण सब चमकन लागे चोरनखुशीभई अधिकाय ११४
होई लड़ाई अब आगे जस तब तस देबे गाय सुनाय॥
बैठो यारो अब दमलेवो सीताराम चरणको ध्याय ११५

इति श्रीलखनऊ निवासि (सी,आई, ई) मुंशी नवलकिशोरात्मज बाबू
प्रयागनारायणजीकी आज्ञानुसार उन्नामपदेशान्तर्गत पॅडरीकलां
निवासि मिश्रवंशोद्भव बुधकृपाशङ्करसूनु पं॰ ललिताप्रसादकृत
पृथुइराज की चढ़ाई वणनंनाम द्वितीयस्तरंगः २॥


सवैया॥

हे मममातु बिदेह कुमारि खरारि कि नारि पियारि पिताकी।
जेऊ गये शरणागत में सुखि तेऊभये वसुधामें पताकी॥
अन्तसमय स्वइ ऐसे भये जिनकी शरणागत इन्द्रहुताकी।
दीन पुकार करै ललिते बलितेऊहौं जाऊं बिदेह सुताकी १

सुमिरन॥


काली ध्यावों कलकत्ते की शारद मइहर की सरनाम॥
बिन्ध्यबासिनी के पद ध्यावों ज्वालामुखिको करों प्रणाम १
देवी चण्डिका बकसरवाली तिनके दोऊ चरण मनाय॥
देबी कुसेहिरी औ दुर्गा को ध्यावों बार बार शिरनाय २
महाकाल शिव उज्जैनी के जिनकाविदितजगतपरताप॥
तिनके दर्शन के कीन्हे ते छूटत नरन केर सब ताप ३
मैं पद ध्यावों शिवशंकर के काशी विश्वनाथ महराज॥
जिनके दर्शन के कीन्हे ते अबहूं रहत जगत में लान ४
फेरि मनावों रामेश्वर को पशुपतिनाथ क्यारकरिध्यान॥
बैजनाथ लोधेश्वर गावों पावों वृद्धि और बल ज्ञान ५
छूटि सुमिरनी गै देवन कै शाका सुनो शूरमन केर॥
फौजैं सजिहैं चन्देले की कनउज लेई पिथौरा घेर ६

अय कथाप्रसंग॥


भयो आगमन जब सुर्यन को पक्षिन कीन बहुत तब शोर॥
मुर्गा बोले सब गाँवन में जंगल नचनलाग तब मोर १
जगानगड़ची फिर कनउजमाँ करिकै कृष्णचन्द्र को ध्यान॥
घरा नगाड़ा फिरि सँड़ियापर बाजन लाग घोर घमसान २
शब्द नगाड़ा का सुनतैखन पत्री सबै भये हुशियार॥

पहिरि सिपाही झिलमैंलीन्ह्यो हाथ म लई ढाल तलबार ३
कच्छी मच्छी नकुला सब्जा हरियल मुश्की घोड़ अपार॥
साजन लागे सब जल्दी सों जिनका तनक न लागैबार ४
डारि हयकलैं तिनके गलमा मुखमा दीन लगाम लगाय॥
गंगा यमुनी छोड़ि रकाबै पूंजी पटा दीन पहिराय ५
नाल ठोकाई तिनके सुम्मन रेशम तंग दीन कसवाय॥
को गति बरणै तिन घोड़न कै हमरे बूत कही ना जाय ६
हथी महावत हाथी लैकै तिनका दीन तुरत बैठाय॥
चुम्बक पत्थर का हौदा धरि जिनमें सेल बरौंचा खाय ७
साजि साँड़िया सब जल्दी सों छकरन लीन बरूद भराय॥
बड़ि बड़ि तोपैं अष्टधातु की गोला एक मनाको खाएँ ८
बैल नहाये तिन तोपन में औ डाँड़े को दीन हँकाय॥
जागा राजा कनउज वाला मनमाँ श्रीगणेशको ध्याय ९
उठिकै महलन सों जल्दी सों औ दरबार पहूंचा आय॥
हमाँ जमाँ औ रायलंगरी इनका लीन्ह्यों तुरतबुलाय १०
सुद्धृत ठाकुर रतीभान औ दोऊ आय गये दरबार॥
माथ नवायो महराजा को दोऊ बड़े शूर सरदार ११
हाथ जोरिकै मंत्री बोल्यो राजन मानो बचन हमार॥
हाथी घोड़ा सजे सिपाही छकड़ा नहे ठढ़ तय्यार १२
धावन पठयो पृथीराज ने सो दरवार पहूंचा आय॥
हाथ जोरिकै धावन बोल्यो ओ महराज कनौजीराय १३
मोहिं पठायो पृथुइराज ने औ यह कह्यो बात समुझाय॥
होला दैदें संयोगिनि का तो हम लौटि धामको जायँ १४
नाहितो बचिहैं ना कनउजमाँ जो विधि आपु बचावैं आय॥

हवै भलाई डोला दीन्हें नहिं शिर कालरहा मन्नाय १५
सुनिकै बातैं ये धावन की बोला तुरत कनौजीराय॥
खबरि सुनावो तुम पिरथी को डाँड़ने कूच देयँ करवाय १६
जितनी राँड़ैं लइआये हैं सो बिन घाव एक ना जायँ॥
खेदिकै मारों मैं दिल्ली लों नेका टका लेउँ निकराय १७
दहीके धोखे कहुँ भूलैंना जो वै जायँ कपास चबाय॥
शूर सिपाही हैं कनउज के जिनका दीखे काल डेराय १८
सुनिकै बातैं महराजा की धावन चला शीशको नाय॥
खबरि सुनाई सब जयचँद की सुनि जरिमरा पिथौराराय १९
हुकुम लगायदयो क्षत्रिन को क्षत्री कमरबन्ध तय्यार॥
लड़ने मरने के सब लायक एकते एक शूर सरदार २०
मारू बाजा बाजन लागे घूमनलागे लाल निशान॥
भयो सबार तुरत हाथीपर ठाकुर समरधनी चौहान २१
तीर कमान लयो हाथेमाँ कम्मर बँधी ढाल तलवार॥
को गति बरणै तब पिस्थी कै नाहर दिल्ली का सरदार २२
घूमन लाग्यो सब मुर्चन माँ तोपन गोला दीन भराय॥
त्यही समइया त्यहि औसरमाँ यहु रणवाघु कनौजीराय २३
हुकुम लगायो रजपूतन को जल्दी कूच देव करवाय॥
आपौ चढ़िकै फिरि हाथीपर मनमाँ श्रीगणेशकोध्याय २४
चलिभो लश्कर सब कनउजते औ मुर्चा में पहूँचे आय॥
बम्ब के गोला छूटन लागे हाहाकार शब्द गा छाय २५
को गति बरणै तब तोपनकै धुवना रहा सरग मड़राय॥
गोला लागैं जिन हाथिन के मानों गिरैं धौरहर आय २६
गोला लागैं जिन ऊंटन के ते मुँहभरा गिरैं अललाय॥

जौने बैलके गोला लागै मानों मगर कुल्याँचै खाय २७
जौने बछेड़ा के गोला लागै आधे सरग लिहे मड़राय॥
गोला लागै ज्यहि क्षत्री के साथै उड़ाचील्ह असजाय २८
बड़ी दुर्दशा भै तोपन में हाहाकारी शब्द सुनाय॥
दोनों दल आगे को बढ़िगे तोपन मारु बन्द ह्वै जाय २९
गोला ओला सम बरसत मे सन सन सन्नकार गा छाय॥
चलैं बँदूखै बादलपुरकी जो नब्बेकी एक बिकाय ३०
मघा नखत सम गोली बरसैं डोलिन घहिया जायँ उठाय॥
को गति बरणै बन्दूखन की हमरे बूत कही ना जाय ३१
दूनों दल आगेको बढ़िगे संगम भये शूर सरदार॥
सूँदि लपेटा हाथी भिडिगे अंकुशभिड़े महौतनक्यार ३२
हौदा हौदा यकमिल ह्वैगे क्षत्रिन खैंचि लीन तलवार॥
भाला वरछिन सों क्कउ मारैं कोऊ लेयँ ढालकी वार ३३
सूँढ़ि लपेटे जंजीरन को जंजीरन को हाथी रणमा रहे घुमाय॥
लागि जँजीरै जिनके जावैं तिनके अंग भंग ह्वैजायँ ३४
मस्तक मस्तक गजके मारैं अद्भुत समर कहा ना जाय॥
भाला छूटे असवारन के खन खन ठन्न ठन्न गा छाय ३५
चम चम चमकैं तलवारी तहँ मर मर रगड़ ढालकी होय॥
घम् घम् घम् घम् बजैं नगारा बोलैं मारु मारु सब कोय ३६
खट खट खट खट तेगा बोलैं बोलैं छपा छप्प तलवार॥
झल् झल् झल् झल् छूरीझलकैं तिनसों होयतहाँ उजियार ३७
ज्यहिकी वारन जो चढ़ि जावै सो हनिदेय ताहि तलवार॥
अपन परावा कछु सूझैना दोनों हाथ होय तहँ मार ३८


सवैया॥

तीर छुटें पृथुराज कमान सों ते बहु शूरन के शिरकाटें।
भूमिअकाशनदेखिपरै शिरोऔभुजसों सवही दिशिपाटें॥
मत्त गयन्द गिरैं हहराय बजायकै ताल सबै नर डाटैं।
शूरनकी ललकार सुने ललिते सबकायरके हियफाटैं ३९


भये सनाका कायर मनमाँ शूरन रहा मोद अतिछा
बड़ी लड़ाई भैं कनउज माँ कोउ रजपूत न रोंकै पाये
रकतकिनदियातहँवहिनिकरी जूझे बड़े बड़े सरदार
हाथी गिरिगे आस पास माँ सोहैं मानो नदी कगा
छूरी मछली सम सोहत भइँ ढालैं कछुवा सम उतर
भुजा औ जॉधैं रणशूरन की गोहै सरिस वही तहँ जा
बहै सिवारा जस नदिया माँ तैसे तहाँ वार उतरा
बहैं लहासैं जो शूरन की तिनमाचढ़े गिद्धखगजाये
जैसे डोंगिया माँ चढ़िकै नर खेलैं नदी नेवारा ज
तैसे लहासैं रण शूरनकी तिनपरचील्ह कागउतरा
तीन दिनौना याबिधि गुजरे तहँपर खूब चली तल
ना ई हारे दिल्ली वाले ना उइ कनउज के सरद
आगे बढ़िकै पृथुइराज ने गरूई हांक दीन लल
बात हमारी तुम सुनिलेबो राजा कनउज के सरद
डोला भँगावो संयोगिनि को सो रण खेनन देउ ध
जीति विधाता जाको देई सो डोलाको ल्यई उठा
बाम्हन केरी बहुबस्ती है ओ महराज कनौजी
होई लड़ाई पुर भीतर में परजै दुःखमिली अधिक

दुखी जो बाम्हन ह्याँपर होइहैं तौ सब क्षत्री धर्म नशाय॥
सुनिकै बातैं पृथुइराज की भा मन खुशी चँदेलाराय ४९
डोला मँगायो संयोगिनि को सो रण खेतन दीन घराय॥
देखिकै डोला संयोगिनि को बोला तुरत पिथौराराय ५०
लड़ो सिपाही दिल्लीवाले डोला तुस्त लेउ उठवाय॥
जीतिकै चलिहौ जोकनउजते चौगुन तलब देब घरजाय ५१
दै दै पानी रजपूतन को पिरथी सब को दीन जुझाय॥
फिरि मुकुन्द औ रतीभानको मुर्चा परो बरोबरि आय ५२
दोऊ बराबरि के क्षत्री हैं दोऊ समरधनी बलवान॥
खैंचि सिरोही ली मुकुन्द ने करिकै रामचन्द्र को ध्यान ५३
हनिकै मारा रतीभान को ठाकुर लीन्ह्यों वार बचाय॥
औ ललकारा फिरि मुकुन्दको अब तुम खबरदार ह्वैजाय ५४
बार हमारी सों बचिहौना तुमका लावा काल बुलाय॥
यह कहि मारा तलवारी को सो फिरिपरी ढालपरजाय ५५
बचिगा ठाकुर दिल्ली वाला ज्यहिका राखिलीन भगवान॥
सो फिरि बोला रतीभान सों करिकै मनै बड़ा अभिमान ५६
किह्यो लड़ाई है लरिकन सों कबहुँन परा ज्वानते काम॥
सँभरिकै बैठो अब घोड़ा पर तुमको पठैदेउँ यमधाम ५७
खैंचिकै मारा रतीभान को सोऊ लीन ढाल की वार॥
मुठिया रहिगै कर मुकुन्द के रणमा टूटि गिरी तलवार ५८
गद्दी कटिगै मखमल वाली औ फटिमई गैंड़की ढाल॥
रिसहा ह्वैगा रतीभान तहँ दोऊ नैन भये तब लाल ५६
ऐंचि सिरोही को कम्मर सों मारा रतीभान बलबान॥
गिरा तड़ाका शिर धरती माँ मरिगा तुरत मुकुन्दाज्वान ६०

मरा मुकुन्दा रण खेतनमें सुद्धृत ठाकुर चला रिसाय॥
तब ललकारा त्यहि हिरसिंहने ठाकुर खबरदार ह्वैजाय ६१
जयो नगीचे ना डोलाके नहिं शिर धरती देउँ गिराय॥
सुनिकै बातैं ये हिरसिंह की सुद्धृत भाला लीन उठाय ६२
ताकिकै मारा सो हिरसिंह के ठाकुर लैगा बार बचाय॥
खाली वार परी सुद्धृत की तबमनगयो सनाकाखाय ६३
ऐंचि सिरोही फिरि कम्मर सों मारा हरीसिंह को जाय॥
बचिगा ठाकुर फिरि दिल्लीका औमनकोपकीनअधिकाय ६४
खैंचिकैमारा तलवारी को सुद्धृत गिरा धरणि भहराय॥
मरिगा अकुर जब कनउज का आयो हमाँ जगाँ तब धाय ६५
हमाँ जमाँ के तर मुर्चा में गोविंद नृपति पहूँचा आय॥
औ ललकारा फिर शूरन को तुरतै डोला लेउ उठाय ६६
डोला उठायो रण शूरन ने औ दिल्ली को चले दबाय॥
हमाँ जमॉ तब निज शून ते बोले दोऊ भुजा उठाय ६७
जान न पावैं दिल्ली वाले मारो इनका खेत खेलाय॥
सुनिकै बातैं हमाँ जमाँ की क्रोधित चले सिपाहीधाय ६८
चलीं जुनब्बी औ गुजराती ऊना चलै बिलाइति क्यार॥
भाला बरछिन की मारुइ भइँ कोताखानी चलैं कटार ६९
कटि कटि क्षत्री गिरे खेत माँ हाथिन लागे ऊंब पहार॥
पैदल पैदल सों मारुइ भइँ ओं असबार साथ असबार ७०
विकट लड़ाई क्षत्रिन कीन्ह्यो देवता कांपि उठे असमान॥
शूर सिपाही ईजति वाले तिनतजिदीनआसराप्रान ७१
मान न रहिगे कोउ क्षत्री के सब के टूटि गये अभिमान॥
पृथुइराज औ जयचँद राजा दोऊ दीन लड़ाई ठान ७२

हमाँ जमाँ औ गोबिंद राजा दोऊ समरधनी बलवान॥
फिरि फिरि मारैं औ ललकारैं दोऊ एक बैस के ज्वान ७३
गदा बनेठी केर खिलारी करि पैंतड़ा लड़ैं मैदान॥
बारु बराबरि प्राणन जानैं एकते एक बढ़े अभिमान ७४
हमाँ जमाँ जब भाला मारैं गोबिंद राजा लेयँ बचाय॥
मारैं गोबिंद तलवारी सों सोऊ लेयँ ढाल पर आय ७५
बड़ी लड़ाई में गोबिंद कै हमरे बूत कही ना जाय॥
जो हम गावैं विस्तारित करि तौफिरिएकसाललगिजाय ७६
खैंचि सिरोही हमाँ जमाँ ने मार्यो बीच गला को ताकि॥
तबहीं शिर धरती माँ गिरिगा बोल्यो मारुमारु मुह हांकि ७७
बिन शिर धड़ रणमाँ तब दौरा हाथ में लिये ढाल तलवार॥
ज्यहि दिशिजावै रणमंडलमें त्यहिदिशिजू शूरअपार ७८
व्याकुल क्षत्री चौगिर्दा ते बिन शिर लड़ै वीरबलवान॥
शंका व्यापी रण शूरन के कायर भागे छांडि परान ७९
नील कि झंडी ताहि छुवायो छुवतै गिरा तुरत भहराय॥
तौलौं डोला संयोगिनि का लैगे ग्यरा कोस पर जाय ८०
तब महराजा कनउज वाला बोला सब सों वचन रिसाय॥
नालति ऐसी रजपूती का औधिरकाल जिंदगी भाय ८१
डोला जाई जो दिल्लीमाँ तो यश जाई सबै नशाय॥
मानुष देही फिरि मिलिहै ना तातेख्यालौ लोह अधाय ८२
वीर बखानों दुर्य्योधन को ज्यहियशआपनलीनवाय॥
जो कछु भाखा सो सब राखा औतजिदीन पुत्रधन भाय ८३
धन्य बखानों त्यहि रावण को ज्यहि हरिलीन रामकी नारि॥
सम्मुख जूझी त्यहि रय्यतिसत्र करिकै रामचन्द्र सों रारि ८४

समय समइया की बातैं हैं समया परे न बारम्बार॥
समया परिंगा राजा नलपर खूंटी हरा नौलखाहार ८५
रोज न मुर्चा कनउज ह्वैहै रोज न चढ़ी पिथौरा ज्वान॥
मारो मारो ओ रजपूतौ सुनिकै बात हमारी कान ८६
इतनी सुनिकै सब क्षत्रिन ने अपनो मरण कीनअखत्यार॥
भाला बरछी दोउ दल छूटे औफिरिचलनलागितलवार ८७
धरि धरि धमकैंकड़ाबीन कोउ कोऊ मारैं खैंचि कटार॥
बड़ी लड़ाई क्षत्रिन, कीन्ह्यो नदिया वही रकतकीधारक ८८
जैसे फागुन फगुई खेलैं तैसे लड़ैं वीर चौहान॥
मुहँ नहिं फेरैं समरभूमि ते एकते एक बीर बलवान ८९
तबलों डोला संयोगिनि को पहुँचा तीस कोसपर जाय॥
रिसहा राजा कनउज वाला बहुतक क्षत्री डरा नशाय ९०
तबलों डोला संयोगिनि को आड़यो रतीभान तहँ जाय॥
बहुतक क्षत्री घायल कैकै सो पृथ्वीमाँ दीन स्ववाय ९१
कोगति बरणै रतीभानकै हमरे बूत कही ना जाय॥
फिरि फिरि मारै औ ललकारै रणमाँ घोड़ा रहा नचाय ९२
रतीमान के तब मुर्चा में कोउ रजपूत न रोंकै पायँ॥
सम्मुख आवै जो लड़ने को ताको मारै खेत खेलाय ९३
देखि लड़ाई रतीभान की हिरसिंह ठाकुर उठा रिसाय॥
औ ललकारा रतीभान को ठाकुर खबरदार ह्वैजाय ९४
तबलों डोला संयोगिनि को दिल्ली शहर पहूँचा जाय॥
पाछे मारै औ ललकारै यहु महराज कनौजीराय ९५
तीर अनेकन पिरथी मारे लाखन डारे शूर नशाय॥
बड़ा लड़ैया यहुतीरन में ज्यहिका कही पिथौराराय ९६

दिल्ली केरे तब फाटक पर भारी भीर भई तहँ आय॥
रतीभान औ कान्ह कुवँर तहँ दोऊ रहिगे पैर जमाय ९७
दोऊ मारैं दोउ ललकारैं मानैं कोऊ नहीं तहँ हारि॥
वसरिन वसरिन याबिधि खेलैं जैसे कुवाँ, भरै पनिहारि ९८
बैस बराबरि है दोऊ कै दोऊ बड़े लड़ैया ज्वान॥
पृथुइराज औ जयचँदराजा येऊ करैं घोर घमसान ९९
रायलंगरी हिरसिंह ठाकुर येऊ खूब करैं तलवारि॥
अपने अपने सब मुर्चन में मानैं क्वऊ न नेको हारि १००
मारो मारो भुजा उखारो सब दिशि यहै रहे चिल्लाय॥
भरि भरि खप्पर नचैं योगिनी मज्जनकरैं भूत तहँ आय १०१
स्यार औ कुत्तनकी बनिआई कागन लागी कारि बजार॥
चील्ह गीध ये सउदा लैकै अपने घरका भये तयार १०२
रतीभान औ कान्ह कुवँर तहँ दोऊ बीर करैं मैदान॥
हनि हनि भाला दोऊ मारैं नहिं भयकरैं नेकहू ज्वान १०३
लाखन जूझे दिल्ली वाले लाखन कनउज के सरदार॥
स्तीभानने त्यहि समया माँ हाथमलीन नांगि तलवार १०४

सवैया॥

जूझिगये बहु शूर अपार बही तहँ शोणित की अतिधारा।
गावत चामुँड नाचत योगिनि प्रेत बजावत हैं करतारा॥
जोर बह्यो रतिभानकी खड्ग सो घोर मच्यो तहँ पै हहकारा।
जात चढ़े शवऊपर गृद्ध मनों ललिते जलखेलैं निवारा १०५


को गति बरणै त्यहि समया कै हमरे बूत कही ना जाय॥
फिरि फिरि मारै औ ललकारै यडु महराज कनौजीराय १०६

कान्ह कुँवरहू अतिकोपित भा यहु रजपूत वीर चौहान॥
लीन्हे भाला नागदवनि का क्षत्रिनमारिकीन खरिहान १०७
औ ललकारा रतीभान का ठाकुर खबरदार ह्वैजाय॥
य ह कहि मारा तलवारी का सोपै लैगा बार बचाय १०८
आपौ मारा तलवारी को परिगै कान्ह कुँवर शिरजाय॥
ककरी ऐसी खपरी फाटी पै शिरवांधि तहांरहिजाय १०९
खैंचि सिरोही को कम्मर सों मारा रतीभान को घाय॥
रतीमान फाटक पर गिरिगे गिरिगोकान्हकुँवरभहराय ११०
दोऊ जूझे जब फाटक में डोला अटा महल में जाय॥
उतरिकै डोला सों संयोगिनि बैठी रङ्ग महल में आय १११
चंद कवीश्वर फिरि जल्दी सों पहुँचा जहां चँदेलाराय॥
औ फिरि बोला हाथ जोरिकै ओ महराज कनौजीराय ११२
लाखन जुझे दिल्ली वाले लाखन कनउज के सरदार॥
बड़ी लड़ाई द्वउदल कीन्ह्यो ज्यहिका रहान बारा पार ११३
बचा पिथौरा अब इकलो है ज्यहिका राखिलीन भगवान॥
त्यहि नहिं मारो महराजा तुम मानों सत्य वचन परमान ११४
लौटि कनौजै जो चलि जइहौ कीरति बनी रही संसार॥
हारि तुम्हारी कोउ गाईना राजा कनउज के सरदार ११५
कनउज तेनी औ दिल्ली लों कीन्ह्यो घोर शोर घमसान॥
अस कोउ क्षत्री मैं देखों ना जोफिरिकरैसमरअभिमान ११६
चंद कवीश्वर की बातैं सुनि बोला कनउज का महराज॥
कहा तुम्हारो हम टाख ना मानोसत्यबचनकबिराज ११७
बड़ो भरोसो तुम हमरो करि आयो मिलन हमारे पास॥
कहा तुम्हारो जो मानैंना तौफिरिजावोआपनिराश ११८

करन निराशा नहिं चाहत हैं मानो सत्य बचन कबिराज ॥
तुमहूं जावो निज मन्दिर को हमहूं जात आपनी राज ११९
यह सुनि गमने चन्द कवीश्वर जयचँद कूच दीन करवाय॥
राति दिनौनन के धावा करि पहुँचेकनउजमेंफिरिआय १२०
पृथुइराज निज महलन पहुँचे पद्मिनि मिली तहांपर आय॥
करि गन्धर्व ब्याह ताके सँग औसुखकरनलागिअधिकाय १२१
पूर स्वयम्बर संयोगिनि का गायों सत्य सत्य सब हाल॥
माथ नवावों शिवशङ्करका अम्बुजसरिसनयनत्रयलाल १२२
किहे कोपिनी हैं सर्प्पन की धारे जटाजूट हैं शीश॥
सकल जगत के सो स्वामी हैं किरपाकरैं ललितपर ईश १२३
माथ नवावों पितु अपने को जिन म्वहिं विद्या दीन पढ़ाय॥
आशिर्बाद देंव मुंशीसुत जीवहु प्रागनरायणभाय १२४
रहै समुन्दर में जबलौं जल जबलौं रह चन्द औ सूर॥
मालिक ललिते के तबलौं तुम यशसों रहो सदा भरपूर १२५

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई) मुंशीनबलकिशोरात्मज
बाबू प्रयागनारायणजीकीआज्ञानुसार उन्नामपदेशान्त-
र्गत पँड़रीकलांनिवासि मिश्रबंशोद्भवबुध कृपाशङ्कर
सूनु पणिडतललिताप्रसादकृत पृथुइराजजयचन्द
युद्धवर्णनो नाम तृतीयस्तरङ्गः ॥३॥

संयोगिनिस्वयम्बरसम्पूर्ण॥
इति॥


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