आल्हखण्ड/१५ आल्हा का मनावन

आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ ४६३ से – - तक

 

अथाल्हखण्ड॥ ठाकुरआल्हसिंहजीकामनावनवर्णन॥ सवैया॥ जौन चहैं ललिते सुख सम्पति तौन भनँ नित शम्भुभवानी। अक्षत चन्दन पुष्पन बिल्व सों पूजतहैं जे महा कउ ज्ञानी॥ नाति औ पूत परोसिन ज्ञातिन भांतिन भांति लहँ सुखखानी। वाराणसी रजधानी विराजत छाजत शम्भु तहाँ सुखदानी ? सुमिरन॥ ज्ञानी ध्यानी सब जानत हैं जगको.शम्भु करें उपकार॥ विकट निशानी कलि पापनकी यामें गये सबै मन हार १ योग यज्ञकै चर्चा उठिगे अर्चा होय न एकोबार ।। विषय कमाई घर घर होवे दर दर उलटिगये व्यवहार २ सन्ध्या तर्पण की चर्चा ना पर्चा ठुमरिन के अधिकार खर्चा होवे सँग वेश्यन के नारी पती देय धिक्कार ३

ऐसे पापी यहिकलियुग मा स्वामी शम्भु करें उपकार

जो तन त्यागै श्री काशी मा सो नर चला जाय भवपार ४
है रजधानी गिरिजापति कै जाहिर तीनि लोक यहिबार॥
अल्हा मनावन को अबजाई भैने जौनु चँदेले क्यार ५

अथ कथाप्रसंग॥


लिल्ली घोड़ी का चढ़वैया माहिल उरई का परिहार॥
काम औ धंधा कछु ज्यहिके ना केवल चुगुलिन का बयपार १
सोयकै जागा सो उरई मा घोड़ी तुरत लीन कसवाय॥
चढ़िकै घोड़ी माहिलठाकुर दिल्ली शहर पहूँचा जाय २
बड़ी खातिरी पिरथी कीन्ह्यो अपने पास लीन बैठाय॥
समय पायकै माहिल बोले मानो कही पिथौराराय ३
आल्हा ऊदन है कनउज मा मोहबा आपु लेउ लुटवाय॥
ऐसो अवसर फिरि मिलिहै ना मानो कही पिथौराराय ४
इतना सुनिकै पृथीराज ने डंका तुरत दीन बजवाय॥
चन्दन गोपी ताहर सजिगे मनमा श्रीगणेश पद ध्याय ५
लैकै फौजै सातलाखलों पिरथी कूच दीन करवाय॥
कीरतिसागर मदनतालपर पहुँचा फेरि पिथौरा आय ६
तम्बू गड़िगे चौगिर्दा सों सब रँग ध्वजारहे फहराय॥
पिरथी बोले फिरि माहिलते राजै खबरि सुनावो जाय ७
हाल हमारो सब जानत हौ तुमते कहौं काह समुझाय॥
इतनासुनिकै माहिल चलिमे पहुँचे जहाँ चॅदेलेराय ८
हाल बतायो परिमालिक ते माहिल झूंठ साँच समुझाय॥
सुनिकै बातैं माहिल मुखते राजा गये सनाकाखाय ९
अवापसीना परिमालिक के शिर सों छत्र गिरभमहराय॥
खबरि पायकै मल्हना रानी माहिलमद्दल लीनबुलवाय १०

मल्हनाबोली फिरिमाहिल ते काहे चढ़े पिथौराराय॥
इतना सुनिकै माहिल बोले बहिनी साँच देयँ बतलाय ११
उड़न बछेड़ा पाँचो चाहैं पारस चहैं पिथौराराय॥
डोला चाहैं चन्द्रावलि का ताहर साथ बियाही जाय १२
बैठक चाहैं खजुहागढ़ की चाहैं राज ग्वालियर क्यार॥
इतना लीन्हे विन जैहैं ना राजा दिल्ली के सरदार १३
सुनिकै बातैं ये माहिल की मल्हना गई सनाकाखाय॥
धीरज धरिकै फिरि बोलति भै पिरथी देउ जाय समुझाय १४
बारह दिनकी मुहलति देवैं त्यरहें डाँड़ लेयँ भरवाय॥
जवै बनाफर उदयसिंह थे तब नहिं अये पिथौराराय १५
देखि अनाथन ह्याँ तिरियनको लूटन अये अधर्मीराय॥
धर्म्मी होवैं तो मोहलति अब बारह दिन की देयँ कराय १६
त्यरहें पावैं जो पिरथी ना मुहबा शहर लेयँ लुटवाय॥
हथी पछारा था द्वारे पर जायकै जवै लहुरवाभाय १७
मलखे ठाकुर जब सिरसा थे तब नहिं अये पिथौराराय॥
इतना कहिकै मल्हना रानी नीचे बैठी शीश झुकाय १८
बोलि न आवा जब मल्हनाते माहिल बोले बचन बनाय॥
बारह दिन लौं बुलै पिथौरा पहिले मूड़ देउँ कटवाय १९
त्यरहें दिन जो लुटै पिथौरा तौ माहिल कै जनै बलाय॥
बैर बिसाहा मलखे ऊदन ताते चढ़ै पिथौरा धाय २०
इतना कहिकै माहिल चलिभे तम्बुन फेरि पहूँचे आय॥
जो कछु भाषा मल्हनारानी माहिल यथातथ्य गा गाय २१
कछु नहिं ब्बाला दिल्लीवाला मल्हना गाथ सुनो यहि बार॥
मल्हना सोचै मन अन्तर मा अवधौं कवन बचावनहार २२

बिना बेंदुला के चढ़वैया नैया कौन लगैहै पार॥
दैया मैया सुखदैया जग मैया शारद चरण तुम्हार २३
यह बिचारत मल्हना रानी तुरतै बोलि लीन प्रतिहार॥
तुरत बुलावा जगनायक का भैने जौनु चँदेले क्यार २४
खवरि पायकै जगनायकजी तुरतै गये तड़ाका आय॥
आवत दीख्यो जगनायक को मल्हना उठी तड़ाकाधाय २५
पकरि कै वाहू जगनायक की अपने पास लीन बैठाय॥
जगनिक बोले महरानी ते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय २६
कौन साँकरा है माई पर हमते हाल देउ बतलाय॥
तुरतै करिकै त्यहि कारज को पाछे शीश नवावों आय २७
इसना सुनिकै मल्हना बोली ईजति राखि लेउ यहिबार॥
जल्दी जावो तुम कनउजको लावो उदयसिंह सरदार २८
सात लाखलों फौजै लैकै सागर परा आय चौहान॥
बारह दिनकी मुहलति दीन्ही त्यरहें लूटी नगर निदान २९
कहि समुझायो तुम आल्हाते की विपदामा होउ सहाय॥
घाटि न समझा हम ब्रह्मा ते संकट परा आज दिनआय ३०
इतना कहिकै रानी मल्हना कागज कलम दवाइतिलीन॥
शिरी सर्बऊ ते भूपित करि पूरण पत्र समापतकीन ३१
सो दै दीन्ह्यो जगनायक को औरो कह्यों बहुत समुझाय॥
जगनिक बोले तब मल्हनाते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ३२
कैसे जावैं हम कनउज को औ मुह कौन दिखावैं माय॥
सवन चिरैया ना घर छोंड़ै ना वनिजरा बनिजकोजाय ३३
तबै निकरिगे आल्हा ठाकुर तिनते बात न पूछाकोय॥
बिपति बिदारण जगतारणकी मर्जी यही आज दिन होय ३४

नहीं तो होते मलखे ठाकुर कैसे चढ़त पिथौरा आय॥
जियत न जैवे हम कनउजको कौवा मरे हाड़ लै जाय ३५
इतना सुनिकै मल्हना बोली दोऊ नैनन नीर बहाय॥
राखो ईजति यहि समया मा जल्दी जाउ कनौजे धाय ३६
शोच विचारन की विरिया ना भैने बारबार बलिजायँ॥
इतना सुनिकै जगनिक बोले माई साँच देयँ बतलाय ३७
घोड़ा मँगावो हरनागर को अवहीं जाउँ तड़ाकाधाय॥
इतना सुनिकै रानी मल्हना ब्रह्मै खबरि दीन पठवाय ३८
माहिल ब्रह्मा जहँ बैठे थे चेरी तहाँ पहूँची जाय॥
कह्यो सँदेशा सो मल्हना को दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ३९
सुनि संदेशा रनि मल्हनाका बोला उरई का सरदार॥
घोड़ न देवो जगनायक कों ब्रह्मा मानु कही यहिबार ४०
आल्हा रूठे हैं मोहबे ते कनउज बसे बनाफरराय॥
घोड़ तुम्हारो फिरि देहैं ना तुमते साँच दीन बतलाय ४१
कहा न माना कछु माहिलका ब्रह्मा घोड़ दीन कसवाय॥
बड़ी खुशाली सों जगनायक सबको यथा योग शिरनाय ४२
मनियादेवनको सुमिरन करि घोड़ा उपर भयो असवार॥
जहाँ पिथौरा दिल्ली वाला पहुँचा उरई का सरदार ४३
खबरि सुनाई जगनायक की माहिल बारबार समुझाय॥
लेउ बछेड़ा अब हरनागर मानो कहीं पिथौराराय ४४
इतना सुनिकै पृथीराज ने चौंड़ा बकशी लीन बुलाय॥
कहि समुझावा सब चौंड़ा ते यहु महराज पिथौराराय ४५
हुकुम पायकै महराजा को चौड़ा कूच दीन करवाय॥
नदी बेतवा के ऊपरमा जगनिकगयोतड़ाकाआय ४६

दीख्यो जगनिक को चौंड़ाने गई हाँक दीन ललकार॥
देउ बछेड़ा हरनागर को पाछे जाउ नदी के पार ४७
इतना सुनिकै जगनायक जी चौंड़ै बोले बचन सुनाय॥
लौटिकै अइहैं जब कनउज ते घोड़ा तुरत दिहैं पठवाय ४८
ऐसे घोड़ा हम देहैं ना ना मानो कही चौंड़ियाराय॥
इतना सुनिकै चौंड़ा वकशी आपन हाथी दीन बढ़ाय ४९
एँड़ लगायो जगनायक जी हौदा उपर पहूँचे जाय॥
लीन्ह्यो कलँगी शिर चौंड़ाकी चौंड़ा बहुत गयो शरमाय ५०
लैकै कलँगी जगनायक जी नही निकरि गये वा पार॥
चौंड़ा बकशी फिरि बोलत ना मानो घोड़े के असवार ५१
तुम अस योधा हैं मोहबे मा कस ना राज्यकरैं परहिवास॥
कलँगी हमरी अब दै देवो जावो आप कनौजै हाल ५२
इतना सुनिकै जगनायक जी बोले सुनो चौंड़ियाराय॥
कलँगी तुम्हरी हम ऊदन को कनउजशहरदिखाउबजाय ५३
इतना कहिकै जगनायक जी अपनो घोड़ा दीन बढ़ाय॥
तीनि दिनौना को धावाकरि कुड़हरितुरतगयोनगच्याय ५४
जेठ महीना ठीक दुपहरी शिरपर घामगयो बहुआय॥
बरगद दीख्यो इक जगनायक डारन रही सघनता छाय ५५
तहँहीं बाँध्यो हरनागर को आपो सोयो जीन बिछाय॥
दीख किसानन तहँ घोड़ा का औ असवार निहारा आय ५६
सोबत दीख्यो जगनायक को घोड़ा देखि गये हर्षाय॥
करैं बतकही तहॅ आपस मा ऐसो घोड़ दीख नहिं भाय ५७
करत बतकही सब आपस में अपने धाम पहूँचे आय॥
बात फैलिगै यह कुड़हरिसा गंगा कान परी तब जाय ५८

उठा तड़ाका सो महलनते बरगद तरे पहूँचा आय॥
सोवत दीख्यो जगनायक को घोड़ा कोड़ा लीन चुराय ५९
घोड़ बँधायो निज महलन मा औ यह हुकुमदीन फरमाय॥
चर्चा करि है जो घोड़ा की ताको मूड़ देउँ गिरवाय ६०
इतना कहिकै गंगा ठाकुर महलन करन लाग विश्राम॥
सोयकै जागे जब जगनायक लागे लेन रामको नाम ६१
घोड़ न दीख्यो हरनागर को तब देहीं ते गयो परान॥
देखन लाग्यो चौगिर्दा ते औ मनकरनलाग अनुमान ६२
चौंड़ा आयो का पाछे ते हमरो घोड़ चुरायो आय॥
घोड़ा कोड़ा कछु देखै ना मनमा गयो सनाकाखाय ६३
चिह्न देखिकै तहँ टापन के कुड़हरि शहर पहूँचा आय॥
जहाँ अर्थाई पनिहारिन की जगनिक तहाँ पहुँचाजाय ६४
करैं बतकही ते आपस मा घोड़ा दीख नहीं असमाय॥
जैसो लायो नरनायक है मानो उड़न बछेड़ा आय ६५
सुनिकै चर्चा तहँ घोड़ा की जगनिकखुशीभयोअधिकाय॥
जहाँ कचहरी गंगाधर की जगनिक तहाँ पहूँचाजाय ६६
बड़ी खातिरी करि गंगाधर अपने पास लीन बैठाय॥
जगनिक बोले गंगाधर ते घोड़ा कोड़ा देउ मँगाय ६७
चढ़ा पिथौरा है मोहबापर लीन्हे सात लाख चौहान॥
जायँ मनावन हम आल्हाको हमरे बचन करो परमान ६८
जो सुनि पैहैं आल्हा ऊदन तुम्हरो नगरलेयँ लुटवाय॥
त्यहिते तुमका समुझाइत है घोड़ा कोड़ा देउ मँगाय ६९
तब महराजा कुड़हरिवाला बोला काहगयो बौराय॥
चोर न ठाकुर क्वउ कुड़हरि मा घोड़ा कोड़ा लेय चुराय ७०

आल्हखण्ड । ४७० हमरे घोड़न की कमतीना चाहो जौनलेउ कसवाय ॥ तुम्हरो घोड़ा हम जानैं ना ओ जगनायक बात वनाय ७१ सुनिक बातें गंगाधर की मैने ब्बला चंदेलेक्यार । घोड़ा कोड़ा जो पैहैं ना तो मरिजायँ पेटको मार ७२ ईजति रहै ना मोहवे की तुमते साँच दीन बतलाय ।। होउ हितैपी परिमालिक के घोड़ा कोड़ा देउ मँगाय ७३ सुनिकै बात जगनायक की धीरज बहुत दीनसमुझाय ॥ खुबार पायकै महरानी ने राजे पास लीन बुलवाय ७४ कहि समुझावा महराजा ते विपदा परी मोहोवे आय ।। तुम्हे मुनासिब यह नाहीं है घोड़ा कोड़ा लेउ चुराय ७५ देउ तडाका घोड़ा कोड़ा राजन यहै बड़ाई आय ॥ सुनिकै बातें महरानी की. तुरतै गयो सायर धाय ७६. डाटन लाग्यो तहँ चकरन को घोड़ा पता कनौजे य।। पाय इशारा महराजा का चाकर उठे लेके घोड़ा हरनागर को राजा पासहरतिवाउ आय॥ दीस्यो सूरति हरनागर के जगना चढ़ा तड़ाकाधाय ७८ जैसे हमका घोड़ा दीन्ह्यो तेसे कोड़ा देउ मॅगाय ॥ सवालाख को ओ कोड़ा है जो बनववा धुंदेलाराय ७६ लोभ न लावो मन अपने मा कोड़ा तुरत देउ मॅगवाय॥ नहीं तो लौटों जब कन उजते कुड़हरिशहर लेउँ लुटवाय ८० कोड़ा दीन्ह्यो ना गंगाधर जगना कूच दीन करवाय ॥ है दिलोना के अन्तर मा कनउज शहर पहूँचे आय ८१ लगी दुकानें हलवाइन की सबविधिसजाशहरअधिकाय।। ५ दुकानन मा पूछत भा कह पै वस वनाफरराय ८२

मो चौंड़ियारा,

कहाँ बनाफर आल्हाठाकुर हमका पता देउ बतलाय॥
सुनिकै बातैं जगनायककी बोला एक मसखरा भाय ८३
आल्हा ऊदन मोहबे वाले मरिगे समर भूमि मैदान ।।
काह बतावैं परदेशी से तिनकीकुशलनहींहैज्वान ८४
आल्हा तेली इक कनउज मा दूसर नगर आल्ह कुतवांल ॥
सुनी मसखरा की बातैं जब जगनिकह्वैगाहाल बिहाल८५
तबलौं ढाढ़ी इक बोलत भा ठाकुर घोड़े के असवार ॥
आल्हा ऊदन मोहबेवाले नीके द्वऊ भाय सरदार ८६
अवहीं आवत हम ड्योढ़ीते ठाकुर घोड़े के असवार ।।
खेड़ा धौरहर वहु ऊदन का झलकैकलश सूबरणक्यार८७
सुनिकै बातैं त्यहि ढाढ़ी की जगनिक दीन दुकान लुटाय ।।
हाट बाट में हल्ला ह्वैगा पहुँचे राजसभा वहु जाय ८८
सुनिकै बातें हलवाइन की लाखनि राना लीन बुलाय॥
पकरिकै लावो त्यहि ठाकुर को हमरी नजरि गुजारोआय ८९
इतना सुनिकै लाखनि राना भूरी उपर भये असवार ॥
मीरासय्यद को सँग लैकै आये बेगि हाट त्यहिबार ९०
सय्यद दीख्यो जगनायक को तब लाखनिते कह्यो हवाल ॥
यहु है भैनो महराजा को ज्यहिकानाम रजापरिमाल ९१
इतना सुनिकै लाखनिराना अपनो हाथी लीन घुमाय ।।
मीरासय्यद जगनायक ते भेंटे तुरत तहाँ पर आय ९२
जहाँ धौरहर बघऊदन का दोऊ तहाँ गये असवार ॥
द्वारे ठाढ़े उदयसिंह थे भेंटे तुरत आय सरदार ९३
हाथ पकारिकै जगनायक को महलन तुरत पहूँचे जाय ॥
आल्हा दीख्यो जगनायक को अपने पास लीन बैठाय ९१

लिखी हकीकति जो मल्हनाने सो जगनायक दीन गहाय ।।
पढ़िकै चिट्ठी महरानी के आल्हाचुप्पसाधि रहिजाय ९५
ऊदन बोले जगनायक ते भोजन हेतु चलौ सरदार ॥
आल्हा जावै जो मोहवे को तो हम बैठि करैं ज्यँवनार ९६
बारह दिनके अब अरसा मा लूटी नगर पिथौराराय ॥
ईजति रैहै नहिं मल्हना की जो नहिं चलें वनाफरराय ९७
डोला लेहैं ‌‌चंद्रावलि का पारस पत्थर लिहैं छिड़ाय ।।
नहीं बनाफर सिरसा वाला जो गाढ़े मा होय सहाय ९८
नाहीं सुनिकै मलखाने की आल्हा छाँड़ि दीन डिंडकार ।।
ऊदन इन्दल देबा सय्यद रोवन लागि सबै सरदार ९९
बात फैलिगै यह महलन मा की मरिगये बीर मलखान ।।
को गति बरणै त्यहि समयाकै महलनछायोघोरमशान १००
द्यावलि सुनवाँ फुलवा रानी शिरधुनि बार बार पछितायँ ।।
हाय ! बनाफर सिरसा वाले कैसे मरे समर में जाय १०१

सवैया॥


हाय ! गयी सवमन्दिर छाय सुहाय नहीं ललिने सुख शय्या ।
वीर मरे मलखान कुमार गई रणसों सब की मनसय्या ।।
हाय ! दयी बलवान सदा दुख औसुखको करि कर्म द्यवय्या।
बीरबली मलखान समान जहाननहीं अस सोदर भय्या १०२



अस कहि रोवै आल्हा ठाकुर दोऊ नैनन नीर वहाय ।।
बहु समुझायो जगनायक ने धीरज धरयो वनाफरराय १०३
अब नहिं जावैं हम मोहवे को तुमते सॉच देयँ बतलाय ।।
खवरि जो पावत मलखाने की दिल्ली शहर लेत लुटवाय१०४

मलखे मरिगे जब सिरसा मा तबहुँ न लड़े चंँदेलराय ॥
मोहिं निकारयो उन भादों मा दारुण बाणी बज्र चलाय १०५
इतना कहिकै जगनायक सों आल्हा ठाकुर रह्यो चुपाय ।।
ऊदन बोले जगनायक ते भोजनकरोशोक विसराय१०६
तब जगनायक फिरि बोलत मे मानो कही वनाफरराय ।।
संग न जावो जो मोहबे को हमरो शीश लेउ कटवाय १०७
बातैं सुनिकै जगनायक की द्यावलि कहा बचन समुझाय॥
विपदा तुम्हरी के संगी हैं समरथ बड़े बनाफरराय १०८
इतना सुनिकै आल्हा बोले माता काह गई बौराय ।।
तीनि तलाके राजै दीन्हीं सो छाती माँ गई समाय १०६
विपदा भोगी हम मारग में सावन विकट बादरी घाम ।।
पियें ल्यवारिन इन्दल पानी जो सुख चैन करैं विश्राम ११०
इतना सुनिकै ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ।।
करो तयारी अब मोहवे की पाछिल बात सबै विसराय १११
इतना सुनिकै आल्हा- जरिगे नैनन गई लालरी छाय।।
तब समुझायो देवा ठाकुर चहिये चलन महोबे भाय ११२
मनै आयगै यह आल्हाके तुरतै हुकुम दीन फरमाय ।।
भोजन करिये जगनायक जी चलिबेअबशिमाहोबेभाय ११३
भोजन कीन्ह्यो जगनायकजी संग मा उदयसिंह सरदार ।।
जहाँ कचहरी चन्देलेकी आल्हा गये राज दरबार ११४
कही हकीकति महराजा ते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ॥
आज्ञा पावें महराजा की देखें नगर मोहोबा जाय ११५
चढ़ा पियौरा दिल्लीवाला लीन्हे सातलाख चौहान ॥
जो नहिं जावैं हम मोहवे को तौ वह लूटै नगर निदान ११६

तेहिते आज्ञा हम को देवो ओ महराज कनौजीराय ॥
इतना सुनिकै जयचँद जरिगे बोले सुनो बनाफरराय ११७
रय्यति लूटी तुम गाँजर की मोहवे द्रव्य दीन पहुँचाय ।।
दै समझौता सव गाँजर का पाछे जाउ बनाफरराय ११८
घोड़ा लूटे तुम बूँदी के सो-सब कहाँ दीन पठवाय ।।
गेहूं खाये तुम गाँजर के ताते गई म्वटाई आय ११९
इतना कहिकै जयचँद राजा पहरा चौकी दीन कराय॥
कैद जानिकै आल्हा ठाकुर रूपनवारी लीन बुलाय १२०
खबरि सुनावो तुम ऊदन का आल्हा परे कैदमा जाय ॥
दे समझौता तुम गाँजर का भाई अपन छुटाओ आय १२१
इतना सुनिक रूपन चलि भा रिजिगिरि अटातड़ाकाधाय॥
खबरि सुनाई वघऊदन का सुनते जरा लहुरवाभाय १२२
द्यावलि बोली जगनायक ते तुमहूं चलेजाउ यहि बार।
कपड़ा मैले सब हमरे हैं कैसे जायँ राजदरबार १२३
इतना सुनिके ऊदन ठाकुर तुरतै इन्दल लीन बुलाय ।
कपड़ा दीन्ह्यो जगनायक को तुरतै बेंदुल लीन सजाय १२४
उड़न बछेड़ा हरनागर पर जगना तुरत भयो असवार ।।
घोड़ बेंदुला के ऊपर मा ठाकुर उदयसिंह सरदार १२५
जयचंद राजा की ड्योढ़ी मा दोऊ अटे तड़ाका आय !!
मस्ता हाथी जयचँद राजा फाटक उपर दीन ढिलवाय१२६
मारिकै भाला जगनायक ने हाथी दीन्यो तुरत भगाय ।।
जहाँ कचहरी महराजा की दोऊ अटे तडाकाधाय १२७
सात तवा तहँ ईसपात के जयचँद राजा दीन घराय ॥
भाला गाढ़ै ई लोहे पर औवलमोहिंदेयदिखलाय १२८

कैसो भैने चन्देले का गड़बड़ कीन हाट माँ आय ॥
इतना सुनिकै जगनायक ने मनमासुमिरि दूरगामाय १२९
भाला मारा ईसपात मा सातो तवा निकरिगे पार ॥
स्याबसि स्याबसि क्षत्री बोले हरषे उदयसिंह सरदार १३०
सिंह कि बैठक जगना बैठ्यो राजा बहुत गयो शरमाय ।।
ऊदन बोले महराजा ते दोऊ हाथजोरि शिरनाय १३१
आजु साँकरा परिमालिक पर औ चढ़ि अवा पिथौराराय।।
आयसु पावैं महराजा की जावें नगरमोहोबा धाय १३२
गेरी माता सम मल्हना है तापर परी आपदा आय ।।
बीजक समझो तुम गाँजर का दादा कैद देउ छुड़वाय १३३
घोड़ पपीहा जखमी ह्वैगा जूझे स्वानमती के भाय ।।
जोगा भोगा की बदली मा सबियाँकनउजजायबिकाय१३४
घोड़ पपीहा की यउजी मा भूरी हथिनी देउ मँगाय ।।
जोगा भोगा के बदले मा लाखनि संग देउ पठवाय १३५
बारह बरसन का अरसा भा पैसा मिला न गाँजर क्यार ।।
तीनि महीना औ त्यारह दिन गाँजर खूब कीन तलवार १३६
लैकै पैसा सब गाँजर का औ भरिदीन खजाना आय ।।
लाखनि राना को सँग देवो तब छातीका डाह बुताय १३७
कीन्हीं किरिया लखराना है मोहवे चलब तुम्हारे साय ।।
आज्ञा देवो लखराना को साँची सुनो भूमिके नाथ १३८
बातै सुनिक बघऊदन की जयचँद बहुत गयो घबड़ाय ।।
बोलि न आवा महराजा ते मुहँकापानगयोकुम्हिलाय१३९
थर थर काँपन देही लागी शिरते छत्र गिरा भहराय ।।
करतब अपनीपर शोचत भा यह महराजकनौजीराय १४०

कीन बहाना फिरि ऊदन ते बोला कनउज का महिपाल ।
कीन हँसौवा हम आल्हा ते लाला देशराज के लाल १४१
जितनी फौजै हैं कनउज मा सो लैलेउ बनाफरराय ।।
रुपिया पैसा जो कछु चाहौ तुम्हरोमालखजानाआय १४२
लाखनि रानाको तिलका सों माँगो जाय बनाफरराय ।।
हमरी ठकुरी नहिं लाखनि पर तुम ते साँचदीन बतलाय१४३
कैद करैया को आल्हा को नीके जाउ लहुरवाभाय ।।
सुनि जगनायक ऊदन आल्हा तीनों चले शीशकोनाय१४४
ऊदन पहुँचे ढिग लाखनि के औसब हाल कहा समुझाय ।।
चढ़ा पिथौरा दिल्लीवाला गाँसानगरमोहोबाआय १४५
विदा मांगिकै अब माता सों चलिये बेगि कनौजीराय ॥
इतना सुनिकै लाखनि चलिमे सँगमालिहेल हुरवाभाय १४६
रानी तिलका के महलन मा दोऊ अटे तड़ाका धाय॥
सोने चौकी दोऊ वैठे माताचरणनशीशनवाय १४७
कही हकीकति सब तिलका ते यहु रणवाघु लहुरवाभाय ।।
आयसु पावैं लखराना जो देखैं नगर मोहोबा जाय १४८
सुनिक बातें उदयसिंह की तिलका गई सनाकाखाय ।।
बारह रानिन मा इकलौता साँची सुनो बनाफरराय १४६
सो चलिजैहैं जो मोहवे का हमरी जियत मौत ह्वै जाय ॥
इतना कहिक रानी तिलका तुरतै वाँदी लीन बुलाय १५०
कहि समुझावा त्यहि वॉदीका पदमै खबरि जनावो जाय ।।
करिशृगांर महल अपने मा राखे वह तहाँ बिलमाय १५१
इतना सुनिके बाँदी दौरी रानी खबरि जनाई जाय ॥
सुनिकै बातें त्यहि वाँदी की लीन्ह्योगंगनीरमँगवाय १५२

हनवन कीन्ह्यो गंगाजलसों रेशम सारी लीन मँगाय।।
ओढ़ी सारी काशमीर की चोलीबन्दकसे अधिकाय १५३ .
पैर महाउर को लगवायो नैनन सुरमा लीन लगाय।
कड़ाके ऊपर छड़ा विराजैं त्यहिपर पायजेब हहराय १५४
पहिरि करगता करिहाँयेंमा नइ नइ चुरियाँ लीन मँगाय ॥
ग्वरिग्वरिबहियाँ हरिहरिचुरियाँ शोभा कही बून ना जाय १५५
अगे अगेला पिछे पछेला तिन विच ककना करैं बहार।।
जोसन पट्टी बांधि बजुल्ला टाडै़ भुजन केर शृंगार १५६.
को गति बरणै तहँ हमेल कै चमकै हार मोतियनक्यार ।।
नथुनी लटकन पहिरिनासिका कानन करनफूलकोधार १५७
गुज्झी पहिरी दोउ कानन में टीका मस्तक करै वहार॥
बँदिया शिर पर सोनेवाली पैरन विछियाकी झनकार १५८
अनवट पहिरे द्वउ अँगुठन में हाथन लीन आरसीधार॥
मुंदरी छल्ला सब अँगुरिनमा रानी खूबकीन श्रृंगार १५९
विदा माँगिकै महतारी ते ह्याँ चलि दिये कनौजीराय ।।
द्वार राखिकै उदयसिंह का रानी महलगये फिरिआय १६०
रानी कुसुमा आवत दीख्यो तुरतै उठी तड़ाकाधाय॥
पकरिकै बाहू द्वउ प्रीतमकी पलँगा उपर लीन बैठाय १६१
पंसासारी को मँगवावा सखियाँ लाई तुरत उठाय।।
बड़ी खातिरी करि पदमाकै खेतुन लाग कनौजीराय १६२
कुसुमा बोली तब लाखनि ते स्वामी हाल देउ बतलाय ॥
किह्यो तयारी तुम कहँना की काहेगयो अचाकाआय १६३
सुनिकै बातैं ये पदमा की बोला तुरत कनौजीराय ।।
किरिया कीन्ही हम ऊदन ते ओछातीलगगंगमँझाय १६५

जबै मोहोवे को तुम चलिहौ चलिवे साथ बनाफरराय॥
आजु साँकरा परिमालिक पर औचढ़िअवा पिथौराराय१६५
संगै जैबे हम ऊदन के करिबे जूझ तहाँपर जाय ।।
जो मरिजैबे समरभूमि मा तो यशरही लोकमाछाय १६६
जो बचि अइवे हम मोहवे ते रानी संग करब फिरि आय।।
सुनिकै बातैं लखराना की पदमिनिगिरीपछाराखाय१६७
होश उड़ाने महरानी के पीले अंग भये अधिकाय॥
थर थर देही काँपन लागी रोवाँ सकल उठे तन्नाय १६८
यह गति दीख्यो महरानी कै तब गहिलीन कनौजीराय ।।
चूम्यो चाट्यो वदन लगायो धीरज फेरिदीनअधिकाय १६९
रानी पदमिनि पलँगा बैठी नैनन आँसू रही बहाय ॥
बोले लाखनि तव पदमिनि ते रानी काह गयी बौरा १७०
बिटिया आहिउ का बनिया की जो रण सुनिकै गयी डराय।।
भरम न राखें क्षत्रानी मन रानी साँचदीन बतलाय १७१
सुनि सुनि बातें लखराना की रानी गयी सनाकाखाय।।
मनमा शोचै मनै विचारै मनमन बारबार पछिताय १७२
धीरज धरिकै पदमिनि बोली प्रीतम साँच देयँ बतलाय ।।
कहे टुकाचिन के लाग्यो ना नहिं सब जैहैं कामनशाय१७३
कहाँ कनौजी तुम महराजा चाकर कहाँ बनाफरराय ।
नौकर स्वामी की समता ना विद्या काह दयी बिसराय१७४
बनते कन्या धरि आई ती त्यहिके अहीं बनाफरराय ।।
अहीं टुकरहा परिमालिक के तुम्हरीकीनगुलामीआय १७५
साथ गुलामन औ राजा का कहँ तुम पढ़ा कनौजीराय ।।
किरिया कीन्ही जो ऊदन ते स्वामी ताहि देउ विसराय१७६

सवैया॥

स्वस्थिर चित विचार करौ यह नाथ सबै विधि बात अनैसी।
रूप औ यौचन छाँडितिया सोपिया क्यहिभांतिकही तुमऐसी।।
धीरजवन्त कुलीनन की गति नाथ विचारि कहो तुम कैसी।
बात सुहात नहीं ललिते अनरीतिकि प्रीतिकरी तुम जैसी १७७




सुनिकै बातेैं ये पदमिनि की बोला फेरि कनौजीराय ॥
कउने गँवारे की बिटियाहै हमते टेढ़ि मेढ़ि बतलाय १७८
ऐसी बातैं अब बोलेना दशनन चापि जीभको लेय ।।
जो नहिं जावैं सँग ऊदन के तौसबजगतअयशकोदेय १७९
कहा न मानैं हम काहू को निश्चय जानु मोर प्रस्थान ।
इतना सुनिकै कुसुमा बोली स्वामी करो बचन परमान १८०
राति वसेरा करि महलन मा भुरही कूच दिह्यो करवाय ।।
खरे संगकी सखी सहिलरी दुइदुइ बालकरहीं खिलाय १८१
दुनियादारी कछु जानी ना कबहुँ न धरा सेज पै पायँ ।
कैसे काटव हम यौवन का प्रीतम साँचदेउ बतलाय १०२
तुम्हें मोहेवे का जाना रह नाहक लाये गवन हमार ।।
मई बाप का फिरि गरिआवै दैकै बार बार धिक्कार १८३
सुनि सुनि बातें ये पदमिनिकी बोला फेरि कनौजीराय ॥
लौटि मोहोवे ते आवब जब रानी संग करव तव आय १८४
द्वार बनाफर उदयसिंह हैं रानी मोह देउ विसराय ।।
संकट टारे बिन मल्हना के हमकोभोगरोगदिखलाय १८५
साथ बनाकर के हम जैहैं अइहैं जीति पिथौराराय॥
कीरनि गैहैं सब दुनिया मा रानी संग करव तन आय १८६

इतना कहिकै लाखनि चलिभे रानी पकरिलीन बैठाय ।।
करी बदरिया तुमका ध्यावै कउँधाबीरनकीवलिजायँ १८७
झिमिकिकैवरसोम्बरेमहलनमा कन्ता एक रैनि रहिजायँ ।।
इतना सुनिकै लाखनि बोले रानी साँच देयँ बतलाय १८८
पाथर बरसैं आसमान ते ताबहुँ न रहैं कनौजीराय ।।
लौटि मोहोवे ते आवत जब रानी संग करब तब आय १८९
तेज न रैहै जो देहीमा को मुहँ धरी पिथौराक्यार ।।
मुची परि है बादशाह ते लड़िहैं बड़े बड़े सरदार १९०
लौटि मोहोवे ते आवब जब रानी कहा न टारब त्वार ।
अब हम जावत हैं जल्दी सों द्वारे उदयसिंह सरदार १९१
सुनिकै वातै ये लाखनि की रानी फेरि लीन बैठाय॥
कैसे रहिवे हम कनउज में स्वामी देउ मोहिं बतलाय१९२
पगिया अरझी तब मोहवे मा यहु मरिजाय बनाफरराय ॥
हाय ! पियारे ज्यहि प्रीतम को ज्वानीसमयदीनअलगाय १९३
भुखी भवानी आल्है भक्षो इन्दल सहित लहुरवाभाय ।
भरी जवानी ज्यहि प्रीतमको हमते अलगदीनकरवाय १९४
काहे जनमी द्यावलि इनका ई दहिजार बड़े बरियार ।।
सुनवाँ फुलवा चित्तररेखा तीनों होउ विना भरतार १९५
करो वियारी तुम महलन मा पलँगा उपर करो विश्राम ॥
मोरि जवानी स्वास्थ करिकै तब तुम जाउ मोहोवेग्राम १९६
सुनिकै बातै ये पदमिनि की बोला फेरि कनौजीराय ॥
खड़ा बनाफर है द्वारे मा रानी काह गई वौराय १९७
अब तुम ध्यावो फूलमती का तेई फेरि मिलैहैं आय ॥
धर्म पतित्रत का छाँड्यो ना याही कहें तोहिं समुझाय १९८

गारी देवो नहिं ऊदन का प्यारी मित्र हमारो जान ।।
करैं बियारी नहिं महलन में प्यारी सत्य प्रतिज्ञा मान १९९
सुनिकै बातें लखराना की पदमा ठीक लीन ठहराय ।।
प्रीतम हमरे अब मनिहैं ना जैहैंअवशि मोहोबा धाय २००
यहै सोचिकै मन अपने मा रानी बोली फेरि सुनाय ॥
डोला हमरा सँगमा लैकै‌ राजन कूच देव करवाय २०१
मोरि लालसा यह ड्वालतिहै बालम मोहवा देउ दिखाय ॥
बनोवास को रघुनन्दन गे सीता लैगे साथ लिवाय २०२
सुर औ असुरन के संगर मा दशरथ साथ केकयी माय॥
लै सतिभामा कृष्णचन्द्र सँग भौमासुरै पछारा जाय २०३
जिन मर्यादा यह बाँधी है तेई नारि संग मा लीन ॥
बड़े प्रतापी कृष्णचन्द्र जी सोऊ पन्थ सत्य यह कीन २०४
आगे चलिगे जो क्षत्री हैं तिनमग चलनचही महराज ॥
संग में लेकै बालम चलिये करिये सत्यधर्मको काज २०५
इतना कहिकै रानी पदमा आँखिनभरे आँसु अधिकाय॥
तब लखराना लै रुमाल को आँसू पोंछि कहा समुझाय२०६
धीरज राखो चार मास लौ पँचये मिलब तुम्हैं हम आय ।।
सत्य सनेहू ज्यहि ज्यहिपर है सोत्यहिमिलैतडा़काधाय२०७
यामें संशय कछु नाहीं है ब्राह्मण रोज कहैं यह गाय ॥
शास्त्र पुराणन की बानी यह रानी तुम्हैं दीन बतलाय २०८
धर्म पतिव्रत ज्यहि नारी के प्यारी प्रीतम के अधिकाय ॥
कहा न टारै सो प्रीतम का चहु जस पर आपदाआय२०६
जो विलपावो अब महलन मा तौ सब कीरति जाय नशाय।।
इसे बनाफर म्बहिं मारग मा मेहरा बड़े कनौजीराय २१०

शोहरा फैली यह दुनिया मा हँसिहैं जाति बिरादर भाय ।।
मेहरा लड़िका रतीभान का सँगमालिहे जनानाजाय २११
जैसो समया अब नाहीं है जैसे समय भये रघुराय ।।
बड़े प्रतापी कृष्णचन्द्रजी द्वापरजन्मलीनतिनआय २१२
कलियुग बाबा की रजधानी रानी कहा गई बौराय ।।
दया धर्म दुनिया ते उठिगे दर दर सत्य पछारा जाय२१३
घर घर कुलटा हैं कलियुग में नर नर पाप भरा अधिकाय ।।
जर जर जरना है दुनिया मा हर हर हरी हरी विसराय २१४
आखिर मरना है दुनिया मा लरना धर्म हमारा आय॥
इतना कहिके चला कनौजी रानी फेरि लीन बैठाय २१५
दिया बुझायो तुम परहुलका इतना किह्यो राहमें जाय ॥
पाँव पिछारी का डारयो ना चहुतनधजीधजीउडिजाय २१६
कीरति प्यारी नर नारिन के निन्दा सुने मौत ह्वै जाय ॥
तहिले ठाकुर बघऊदन जी लाखनिलाखनिरहेबुलाय२१७
हाँक पाय कै बघऊदन के तुरतै चला कनौजीराय ॥
द्वारे मिलिकै बघऊदन को जयचँदसभागयोफिरिधाय२१८
मस्तक धरिकै द्वउ चरणनमा लाखनि ठाढ़भयो शिरनाय ।।
तब शिर सूंध्यो जयचँदराजा आयसु फेरिदीन हर्पाय २१९
आल्हा ऊदन को बुलवायो लाखनि बाँह दीन पकराय ।।
तुम्हें कनौजी का सौंपत हैं दोऊ सुनो बनाफरराय २२०
सुनिके बातें महराजा की दोऊ भाय बनाफरराय ।
बोलन लागे महाजा ते राजन साँचदेयॅ बतलाय २२१
जहाँ पसीना लखराना का तह गिरि जैहैं मूड़ हमार ॥
शामें संशय कछु नाहीं है मानो सत्य भूमिभरतार २२२

इतना कहिकै आल्हा ऊदन लाखनि साथ चले शिरनाय॥
बाजे डंका अहतंका के हाहाकार शब्द गे छाय २२३
चारों राजा गाँजर वाले बारहु कुँवर बनौधा केर ।
लला तमोली धनुवाँ तेली इनते कहा चँदेले टेर २२४
लाखनि तुमका हम सौंपत हैं रक्षा किह्यो सबै सरदार ॥
वंश लकड़िया यह इकली है इतनालीन्ह्यो खूब विचार २२५
इतना कहिके जयचँद राजा पंडित लीन्ह्यो तुरत बुलाय॥
प्रथम पुजायो श्रीगणेश को पाछेतिलकदिह्योकरवाय२२६
गजाननहिं अरु लम्बोदर को तीसर गणाध्यक्ष को ध्याय ।।
सुमिरि भवानीसुत गणेशको लेशकलेश दीनविसराय २२७
रानी तिलका पूजन कीन्ह्यो भूरी हथिनी तुरत मँगाय ।।
थाती सौंप्यो लखराना को हथिनीसम्मुख बैन सुनाय२२८
फिरि कर पकरयो लखरानाका ऊदन हाथ दीन पकराय ।।
मोहिं अभागिनि के बालककी रक्षा किह्यो बनाफरराय २२९
सुनिकै वातै महरानी की दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ॥
जहाँ पसीना लखराना का तहँ हम मूड़ देयँ कटवाय २३०
घाटि न जानै हम भाई ते माता साँच देयँ बतलाय ॥
फिकिरिन राख्यो लखरानाकी इनको बार न बाँको जाय २३१
इतना कहिके महरानी ते ऊदन फेरि कहा ललकार।
करो तयारी अब मोहबे की सबियाँ शूरवीर सरदार २३२
हुकुम पायकै बघऊदन का सबहिन बाँधिलीन हथियार ॥
हथी चढैया हाथिन चढ़िगे बाँके घोड़न भे असवार २३३
पायँ लागिकै दोउ तिलका के भूरी चढ़ा कनौजीराय ॥
बजे नगारा त्यहि समया मा हाहाकार शब्द सा छाय २३४

मारु मार के मौहरि बाजी बाजी हाव हाव करनाल ।
खर खर खर खर के रथ दौरे रव्वा चले पवनकी चाल २३५
आगे हलका मे हाथिन के पाछे चलन लाग असवार ।।
बीच म डोला महरानिन के ह्वैगे अगलबगल सरदार २३६
भूरी हथिनी पर लाखनि हैं ऊदन बेंदुलपर असवार ।।
आल्हा बैठे पचशब्दा पर इन्दल सहित भये तय्यार २३७
कीनि सवारी हरनागर पर भैंने जौनु चँदेले क्यार ।
घोड़ मनोहरपर देवा है सय्यद सिर्गापर असवार २३८
लला तमोली धनुवाँ तेली येऊ लिये ढाल तलवार ॥
पैदल सेना अनगन्ती सब गर्जतचलीसमरत्यहिवार २३९
चारिकोस जब परहुल रहिगा लाखनि डेरा दीन डराय ॥
लाखनि बोले तहँ आल्हा ते साँची सुनो बनाफरराय २४०
दियना अंटापर परहुल मा सो त्यहि आप देउ उतराय ।।
वचन मानिकै हम पदमिन के वादा कीन तंहांपर भाय २४१
दियना शालत है जियरे मा मानो कही बनाफरराय ।।
सुनिकै बातैं कनवजिया की आल्हाधावनलीनवुलाय२४२
लिखिकै चिट्ठी दै धावन को परहुल तुरत दीन पठवाय ।।
जहाँ कचहरी है सिंहा कै धावन तहाँ पहूँचा जाय २४३
चिट्ठी दैकै महाजा का बाकी हाल कहा शिरनाय ।।
पढ़िकै चिट्ठी सिंहा जरिगा डंका तुरतदीन बजवाय २४४
धावन चलिभा तब परहुल ते लश्कर फेरि पहूँचा आय ।।
कही हकीकति सब आल्हा ते तब जरिगये कनौजीराय२१५
हुकुम लगायो अपने दलमा डंका तुरत दीन बजवाय ।।
सजिकै सेना दुहुँतरफा ते पहुँचीं समरभूमिमें आय २४६

लाखनि राना इत हाथी पर वैसी परहुल का सरदार ॥
भाला छूटे असवारन के पैदलचलनलागितलवार२४७
झुके सिपाही दुहुँ तरफा के लागे करन भडाभड़ मार ॥
मुंडन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डनके लगे पहार २४८
बड़ी लड़ाई भैं परहुल में लाखनि राना के मैदान ।
लड़ें सिपाही दुहुँ तरफा के कटि २ गिरैंसुघरुवाज्वान२४९
उठि उठि ठाकुर लरैं खेत में कहुँ कहुँ रुण्ड करैं तलवार ।।
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्तकी धार २५०
जैसे भेड़िन भेड़हा पैठे जैसे अहिर विडारै गाय ॥
तैसे मारैं ऊदन‌ ठाकुर सिंहाफौजगई विललाय २५१
भागीं फौजै जब परहुल की लाखनि हाथी दीन बढ़ाय ॥
लाखनिराना के मुर्चा मा सिंहा आपु पहूँचा आय २५२
सूँढ़ि लपेटा हाथी भिडि़गे दोऊ लड़न लागि सरदार ।।
सिंहा मारयो तलवारी को लाखनिलीन ढालपरवार २५३
भाला मारयो लखराना ने नीचे गिरा महाउत आय।
बलछी मारा सिंहा ठाकुर लाखनि लैगे वारवचाय २५४
बाली वार परी सिंहा की लाखनि तुरत लीन बँधवाय ।।
जायकै पहुँचे फिरि परहुल मा तुरतै दिया दीन गिरवाय २५५
लैकै फौजे सिंहा ठाकुर संगै कूच दीन करवाय ।।
कोस अढ़ाई कुड़हरि रहिगा डेरा तहाँ दीन डरवाय २५६
भेैने बोल्यो परिमालिक का मानो कही बनाफरराय ॥
गंगा ठाकुर कुड़हरि वाला कोड़ा घोड़ा लीन चुराय २५७
सवा लाख का सो कोड़ा है जो बनववा रजापरिमाल ।।
महामुशकिलिन घोड़ा दीन्ह्यो कोड़ानहींदीनत्यहिकाल२५८

कीन प्रतिज्ञा हम कुड़हरिमा लौटति नगर ल्याव लुटवाय ।।
साँची करिये यहि समया मा मानो कही बनाफरराय २५४
इतना सुनिकै ऊदन जरिगे तुरतै हुकुम दीन फरमाय ॥
लागैं तोपैं अब कुड़हरि मा सवियाँगर्द देउमिलवाय २६०
इतना सुनिकै लाखनि बोले मानो कही बनाफरराय ॥
गंगाधर कुड़हरि का राजा मामा सगो हमारो आय २६१
लिखिकै चिट्ठी दै धावन को उनको खबरि देउ करवाय ॥
भैने तुम्हरे लाखनि आये कोड़ा आपु देउ पठवाय २६२
सुनिकै बातें लखराना की चिट्ठी लिखा वनाफरराय ।।
तुरतै धावन को बुलवायो औ कुड़हरिको दीनपठाय२६३
लैकै चिट्ठी धावन चलिभा औं दरवार पहूँचाजाय ।
चिट्ठी दीन्ह्यो गंगाधर को धावनहाथजोरिशिरनाय २६४
कही हकीकति सब गंगा ते जो कछु कह्यो वनाफरराय ।।
सुनि संदेशा पढ़ि चिट्ठी को ठाकुरक्रोधकीनअधिकाय२६५
तुरत नगड़ची को बुलवायो डंका दीन तहाँ बजवाय ॥
कह्यो संदेशा फिरि धावन ते आल्है खबरि जनावोजाय२६६
राजा आवत समरभूमि में कोड़ा लेउ तहाँ पर आय ॥
इतना सुनिकै धावन चलिभा आल्है खबरि वताईजाय २६७
बाजे डंका ह्याँ कुड़हरि मा क्षत्री होन लागि तय्यार ॥
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बॉके घोड़न मे असवार २६८
झीलम बखतरपहिरि सिपाहिन हाथ म लई ढाल तलवार ।।
रणकी मौहरि वाजन लागी रणकाहोनलागव्यवहार२६६
चढ़िकै हथिनी गंगा ठाकुर तुरतै कूच दीन करवाय ।।
चारि घरी का अरसा गुजरा पहुँचे समरभूमिमाआय २७०

जहँना हाथी गंगाधर का तहँ पर गये कनौजीराय ।।
कहि समुझावा भल मामा का कोड़ा अवै देउ मँगवाय २७१
नहीं बनाफर उदयसिंह जी कुड़हरि गर्द देयँ करवाय ॥
कौन दुसरिहा है आल्हा का सरवर करै समरमें आय २७२
त्यहिते तुमका समुझाइत है मामा कूच देउ करवाय ।।
इतना सुनिकै गंगा जरिगे बोले सुनो कनौजीराय २७३
काह हकीकति है आल्हा कै हमते कोड़ा लेयँ मँगाय ।।
एक वनाफर कै गिन्ती ना लाखनचढ़ै बनाफरधाय २७४
हमते कोड़ा को पैहैं ना भैने साँच दीन बतलाय ।।
इतना सुनिकै चले कनौजी तम्बुन फेरि पहुँचे आय २७५
बत्ती दैकै दुहुँ तरफा ते तोपन दीन्हीं रारि मचाय ।।
अररर अररर गोला छूटे हाहाकारशब्दगा छाय २७६
गोला लागै ज्यहि हाथी के मानो गिरा धौरहर आय ।।
जउने ऊंट के गोला लागै तुरतै कूल जुदा ह्वैजायँ २७७
गोला लागै ज्यहि क्षत्री के साथै उड़ा चील्ह अस जाय ।।
जउने स्थमा गोला लागै ताके टूक टूक लैजायँ २७८
गोला लागै ज्यहि घोड़े के मानो मगर कुल्याचे खायँ ।।
अँधाधुंध भा दूनों दलमा धुवनारहा सरगमें छाय २७६
चुकी वरूदैं जब तोपन की तब फिरि मारु बन्द ह्वैजाय ।।
दूनों दल आगे को बढ़िगे रहिगा एकखेतरणआय २८०
कहुँकहुँ भाला कहुँकहुँ बलछी कहुँ कहुँ कड़ाबीनकी मार ॥
गोली ओला सम कहुँ बरषैं कोताखानी चलै कटार २८१
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्तकी धार ।।
मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औरुण्डनके लगे पहार२८२

ना मुँह फेरै कुड़हरि वाले ना ई मोहवे के सरदार ॥
कउँधालपकनिबिजुलीचमकनि रणमा चलै खूब तलवार २८३
भागि सिपाही कुड़हरि वाले अपने डारि डारि हथियार ।।
गंगा ठाकुर के मुर्चा मा आवा उदयसिंह सरदार २८४
एँड़ लगावा तब बेंदुल के हाथी उपर पहूँचा जाय ॥
भाला मारा बघऊदन ने गंगा लैगा वार वचाय २८५
तबलों आये आल्हा ठाकुर हाथी भिड़ा बरोबरि आय ।।
दैकै साँकरि पचशब्दा को तुरतै कैदलीन करवाय १८६
लैकै फौजै ऊदन ठाकुर कुड़हरिशहर लीन लुटवाय ।।
काछी कुरमी तेली भागे कोरीभागि थानविसराय२८७
दर्जी भुर्जी सव भागे तहँ भागे बड़े बड़े महराज ॥
कौन बखानै त्यहि समयाकै रहिगैनहींक्यहूकछुलाज २८८
साँच बातकरि जगनायक कै दीन्ह्यो लूट बन्दकरवाय ।।
लैकै कोड़ा बौना चलिभा आल्हानजरिगुजाराजाय२८६
कोड़ा दीन्ह्यो जगनायक को आल्हा तुर्त तहाँ बुलवाय ।।
कैद छुड़ाय दई गंगा की आदरकियो कनौजीराय २६०
लैकै फौजे गंगा ठाकुर साथै कूच दीन करवाय ॥
चलिभालश्कर कनवजियाका यमुना उपर पहूँचा जाय २६१
मज्जन करि के श्रीयमुनाजल पाछे शम्भुचरण धरि ध्यान ।
संध्या तर्पण विधिवत करिकै दीन्ह्योद्विजनतहाँपरदान २६२
कूच करायो श्रीयमुना ते कलपी पास पहूँचे जाय।
लैकै फौजै लाखनिराना कलपीशहरलीनलुटवाय २६३
ऊदन बोले तब लाखनि ते यहु का कीन कनौजीराय ।।
बदले कुड़हरिके लुटवावा मानो साँच बनाफरराय २६१

बातै सुनिकै लखराना की देबा कहा तुरत शिरनाय ।।
साँचे धर्मन के राँचेहैं यांचे मिले कनौजीराय २९५
कर्म कुलीनन के कीन्हे हैं साँचे मित्र बनाफरराय ॥
बातै सुनिक ये देबा की बोले तुरत उदयसिंहराय २९६
स्याबसि स्याबसि लाखनिराना कीन्ह्यो धर्म युद्धसों रार ।।
काहे न होवै यश क्षत्रिन को ऐसे युद्ध बीर बरियार २९७
इतना कहिकै उदयसिंह ने तुरतै कूच दीन करवाय ॥
नदी बेतवा के ऊपर मा छोरी कमर बनाफरराय २९८
डेरा गड़िगे तहँ क्षत्रिन के तम्बू गड़ा बनाफर क्यार ॥
जहँ महराजा लाखनि बैठे भारी लाग तहाँ दरबार २९९
आल्हा ठाकुर के तम्बू मा भैने गयो चँदेले क्यार ।।
कलम दवाइति कागज लैकै आल्हा पत्र कीन तैयार ३००
चिट्ठी दीन्ही आल्हा ठाकुर बोले उदयसिंह सरदार ।।
खबरि जनावो तुम मल्हनाको आये कनउज राजकुमार ३०१
हमरी दादाकी दिशि ह्वैकै रानिन कीन्ह्यो दण्ड प्रणाम ॥
काह हकीकति है पिरथी कै सुखसोंकरो महल विश्राम ३०२
जितनी बिल्ली हैं दिल्ली की किल्ली पकरि नचावों माय ॥
तौ तौ साँचे हम ऊदन हैं यहतुमकह्योसँदेशाजाय ३०३
सुनि संदेशा बघऊदन का हरनागरै लीन कसवाय ।।
चढ़ा तड़ाका हरनागर पर जगनिकयथातथ्यशिरनाय ३०४
नदी बेतवाको उतरत भा पहुँचत भयो मोहोबेद्वार ॥
फाटक खोल्यो दरवानी ने पहुँचे राजभवन सरदार ३०५
रानी मल्हना के महलन मा माहिल आयगयो त्यहिवार ।।
तबलों पहुँचे जगनायक जी बोला उरई का सरदार ३०६

कवलों अइहै आल्हा ठाकुर नीके हवै बनाफरराय ।।
इतना सुनिकै जगनायक जी तुरतै बोले वचन बनाय ३०७
हिंया न अइहै आल्हा ठाकुर अब चहु कऊ मनावनजाय । ।।
उनके खातिर कनवजिया घर नीके द्वऊ बनाफरराय ३०८
पारस लैकै तुम कुठरी ते पिरथी पास देउ पहुँचाय ।।
लैकै कुंजी जगनायक जी कुठरीखोलिदीनबतलाय ३०९
उठे झड़ाका माहिल ठाकुर कुठरी अटे तडाकाधाय ।।
साँकरिमारी जगनायक जी ताला तुरत दीन डरवाय ३१०
बन्द कुठरिया माहिल ठाकुर मल्हना गई सनाकाखाय ॥
चिट्ठी दीन्ह्यो फिरिजगनायक औसबहालकह्योसमुझाय ३११
पढ़िक चिट्ठी मल्हना रानी औ जगनायक संग लिवाय॥
जहाँ कचहरी परिमालिक की चिट्ठी तहाँ दिखाई जाय ३१२

छन्द ॥


पढ़ि पत्रतहाँ। लहिमोद महाँ॥ परिमाल जहाँ। तजिशोकतहाँ।।
भवनमें आय । महासुख पाय ॥ लखिकैदतहाँ । उरई को जहाँ।
महरानि गई। तजि बन्धु दई । अतिवेगचला। उरईको लला॥
पृथिराजजहाँ। स्वउआयतहाँ ॥सबहालकहा। विपदाजोलहा३१३



सुनि कै बातैं सब माहिल की यहु महराज पिथौराराय ॥
घाट वयालिस तेरहघाटी सवियाँतुरतदीन रुकवाय३१४
पहरा घूमैं कहुँ पैदल का कहुँ कहुँ फिर घोड़असवार ।
भनँद वधैया मोहबे बाजै घर घर होय मंगलाचार ३१५
फाटक बन्दी है मोहबे मा घरका अवै न बाहर जाय ॥
आल्हा ऊदन की कीरति तहँ घर घर रहे नारि नर गाय ३१६
आल्हा मनौआ पूरण करिकै भ्यावों रामचन्द्र महराज॥

जलथलजनमों जहँ दुनियामा होवों तहाँ भक्त शिरताज३१७
पिता मातु के में चरणन का ध्यावों बार बार शिरनाय॥
जिन बल गाथा यह पूरण भै भुजवलनहीं भरोसाभाय ३१८
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाको आय॥
तारागण सब चमकन लागे संतन धुनी दीन परचाय ३१९
आशिर्बाद देउँ मुन्शीसुत जीवो प्रागनरायण भाय ॥
हुकुम तुम्हारो जो पावत ना ललितेकहतगाथकसगाय३२०
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औ सूर ।।
मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहौ सदा भरपूर ३२१
सुमिरि भवानी शिवशङ्कर को ह्याँते करों तरँग को अन्त ॥
राम रमा मिलि दर्शन देवों इच्छा यही मोरि भगवन्त ३२२

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई ) मुंशीनवलकिशोरात्मजबाबू

प्रयागनारायणजीकीआज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅडरीकलां

निवासिमिश्रवंशोद्भव बुधकृपाशङ्करसूनुपण्डितललिताप्रसाद

कृत आल्हामनावनवर्णनोनामप्रथमस्तरंगः ॥१॥

ठाकुरआल्हसिंहजीकामनावन सम्पूर्ण ॥

इति ॥