आल्हखण्ड/११ लाखनि का विवाह

आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ ३६७ से – ३९० तक

 

अथ पाल्हखण्ड ॥ लाखनिका विवाह अथवा बूंदी की लड़ाई । सवैया॥ फूलन काखें हमदन के दशस्यन्दन के सुत को यश गावें। तना सुनिकै ऊ रघुनन्दन बन्दन के अतिही सुखपावें ।। श्रा आयो घास सदा प्रभुकी करणी बरणी नहिं जावें। क्षेम संदला नप करियो ललिते पदपङ्कज नित्त मनाये। सुमिरन । फूलमती कनउज की देवी जिनयशप्रकटआजयहिडाला। करें मनोरथ पूरण सबके घ्यावें ज्वान वृद्ध चहुबाल ? हैं महरानी सब सुखदानी रक्षाकरें विकट कलिकाल ॥ र अवलम्बा तिनअम्बाका लाखनि ब्याह वखानों झल २ सहाई अब माई तुम जाते चलानाउँ भवपार ॥ . बूडै भवसागर में माता तुम्ही निवाहन झर ३ बरलगायो जस ऊदन का तैसे पारकरो तैसे पारकरो यरिवार ।। माता भ्राता अरु ताता ये स्वास्थ मित्र सबै संसार आल्ह खण्ड।३६८ साँची गाता अरु त्राता तुम धाता सृष्टि माँझ यहिकाल ॥ ललिले ऐसे नर दुर्बल को माता जानु आफ्नो बाल ५ छूटि सुमिरनी गै देवीकै लाखनिब्याहसुनोयहिकाल ॥ गंगाधर बूंदी का राजा ता घर व्याह होयगो हाल ६ अथ कथाप्रसंग ॥ कुसुम बेटी गंगाधरकी राजा बूंदी का सरदार॥ खेलत देखा सो बेटी का यौवन जानिपरा त्यहिवार १ लाग विधारन मन अपने मा बेटी ब्याहन के अनुसार।। नव अरु आठ दशै वर्पनमा ज्योतिपशास्त्रदीनअधिकार २ फिरि तौ गिनती ना कन्याकी यह मन कीन्ह्यो खूब विचार॥ म्वती जवाहिर दो बेटाथे तिनका बोलिलीन त्यहिवार ३ हाल बतावा मन अपने का राजा वार घरवर नीको जहँ तुम देखो त्यहिघर टीव एक मोहोवे तुम जायो ना तहॅपर रह जाति बनाफर की हीनी है हल्ला देश इतना कहिके महराजा ने सवियाँ सामा दीन मँगाय॥ चला जवाहिर तब बूंदी ते राजे वार वार शिरनाय ६ तीनिलाख को टीका लैकै दिल्लीशहर पहूँचा जाय। हाल जानिकै पृथीराज ने टीका तुरत दीन लौटाय ७ चौरीगढ़ में वीरशाह घर पहुंचा फेरि जवाहिरजाय ॥ सोऊ जादूकी शंका ते टीका तुरत दीन लौटाय : तहतेचलिके फिरिविसहिनगा जहॅपर बसें विसेनेग्य ।। लागि कचहरी गजराजा की शोभा कही बूत ना जाय सोने सिंहासनपर सोइत राजा विसहिन का सरदार।। माय॥

काय,५

दीन जबाहिर तहँ चिट्ठीको राजा पढ़नलाग त्यहिबार १०
पढ़िकै चिट्ठी गंगाधरकै टीका तुरत दीन लौटाय॥
तबै जवाहिर मन खिसियाने पहुँचे फेरि कनौजै जाय ११
लागि कचहरी तहँ जयचँदकै भारी लाग राज दरबार॥
आल्हा ऊदन तहँ बैठे हैं बैठे बड़े बड़े सरदार १२
दीन जवाहिर तहँ चिट्ठीको जयचँदआँकुआँकुपढ़िलीन॥
पढ़िकै चिट्ठी वापस दीन्ह्यो हाँहूँ कछू नहीं नृप कीन १३
तबै जवाहिर यह बोलत भा दोऊ हाथजोरि शिरनाय॥
लाखनि क्वाँरे हैं तुम्हरे घर यह हमआयनपतालगाय १४
आयसु पावैं महराजा को तौ हम टीका देयँ चढ़ाय॥
इतना सुनिकै जयचँद बोले तुमते साँचदेयँ बतलाय १५
ब्याह न करिखे हम तुम्हरे घर हाँपर जादू को अधिकाय॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय १६
टीका आयो घर तुम्हरे है राजन लीजै आप चढ़ाय॥
कौन दुसरिहा नृप तुम्हरो है ज्यहिभयकरौ कनौजीराय १७
औरो बोले त्यहि समया मा साँची कहौ बनाफरराय॥
सम्मत सब का जयचँद लैकै तब पण्डितते कहा सुनाय १८
देखो साइति यहि समया मा टीका लीनजाय चढ़वाय॥
सुनिकै बातैं महराजा की पंडित साइति दीन बताय १९
पाख अँध्यरिया तिथि तेरसिऔ फागुन मास सुनो महराज॥
भौंरिन केरी शुभ साइति है ह्वैहैं सुफल आपके काज २०
पै यहि बिरिया शुभ साइति में टीका आप लेउ चढ़वाय॥
इतना सुनिकै महराजा ने महलन खबरिदीन पठवाय २१
खबरि पायकै महरानी ने चौका तुरत लीन लिपवाय॥

२४

चौक पुराई गजमोतिन सों चन्दन पीढ़ा दीन डराय २२
तापर बैठे लखराना जब गावन लगीं सुहागिल आय॥
बेटा जवाहिर गंगाधर का तहँ पर टीका दीन चढ़ाय २३
बीरा दीन्यो जब लाखनि को सम्मुख व छींक भई तब आय॥
रानी तिलका त्यहि समया में बोली राजै बचन सुनाय २४
व्याह न करिबे हम बूँदी मा टीका आप देयँ लौटाय॥
परम पियारे लखराना के वीरा लेत छींकभै आय २५
इतना सुनिकै ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
जो कछु होवै इनके जीका हमरो लीन्ह्यो मूड़कटाय २६
टीका फेर्यो महरानी ना जान्यो शकुन छींककामाय॥
भयो सखरमा यहि मानुष का पौवन नाक गिरबतजाय २७
यहिकी छींकनका अशकुन ना माता भरम देउ बिसराय॥
राजा बोले पिरि रानी ते साँची कहै बनाफरराय २८
जो अस हालत सबहोती ना टीका तुरत देत लौटाय॥
इतना सुनिकै तिलका रानी अपनो भरमदीन बिसराय २९
फेरि जवाहिर सब नेगिन को सुवरण कड़ा दीन पहिराय॥
जितनी सामारह टीका की सो आँगनमा दीन धराय ३०
राजाजयचॅद उन नेगिन का सुवरण कड़ा दीन पहिराय॥
साल दुसाला मोहनमाला इनहुन दीन तहाँपर आय ३१
बड़ी खुशानी दुहुँ तरफाके नेगिन मनै भई अधिकाय॥
बिदामांगिकै चला जवाहिर बूॅदी शहर पहूँचा जाय ३२
हाल बतायो महराजा का जाविधि टीका अयो चढ़ाय॥
भई खुशाली गंगाधर के फूले अंग न सके समाय ३३
नामी राजा कनउज वाले वेटा कीनकाज खबजाय॥

भई तयारी ह्याँ ब्याहे की फागुन मास पहूँचा आय ३४
न्यवत पठावा सब राजन को राजा कनउज के सरदार॥
पावत चिट्ठी के राजा सब कनजआयगये त्यहिबार ३५
तेल औ मायन नहखुरआदिक ब्याहन कुँवाँक्यार ब्यवहार॥
नेग चार सब पूरन ह्वैगे लागे सजन शूर सरदार ३६
झीलमबखतर पहिरि सिपाहिन हाथम लई ढाल तलवार॥
सुमिरि भवानीसुत गेणश को राजा जयचँद भये तयार ३७
आल्हा बैठे पचशब्दापर ऊदन बेंदुल पर असवार॥
गंगापाँवर कुड़हरि वाला मामा लाखनि का सरदार ३८
सूरज राजा परहुल वाला सोऊ बेगि भयो तय्यार॥
सिर्गा घोड़े की पीठी पर सय्यद बनरस का सरदार ३९
पूजि गोबर्द्धनि संदोहिनि अरु लाम्खुनि फूलमती त्यहिबार॥
सुमिरि भवानीसुत गणेश को पलकी उपर भये असवार ४०
बाजे डङ्का अहतङ्का के बारालाख फौज तैयार॥
भागे हलका भा हाथिन का पाछे चलन लागि असवार ४१
चले सिपाही त्यहि पीछेसों रब्बाचले पवन की चाल॥
मारु मारूकै मौहरि बाजी बाजी हाव हाव करनाल ४२
गर्द उड़ानी अति मारग में लोपे अन्धकार सों भान॥
हाथी चिघरैं घोड़ा हींसै घूमत जावैं लाल निशान ४३
भयो कलाहल अति मारग में जंगल जीव गये थर्राय॥
बनइस दिन के फिरि अर्सा में बूँदी पास गये नगच्याय ४४
चार कोस जब बूँदी रहिगे जयचँद तम्बू दीन गड़ाय॥
गड़िगे तम्बू सब राजन के सब रँग ध्वजा रहे फहराय ४५
भपने अपने सब तम्बुन में राजा नृत्य रहे करवाय॥

गमकैं तबला सब तम्बुन में सावन यथा मेघ घहरायँ ४६
ओढ़े सारी काशमीर की धारी शिरन सोइनी भाय॥
बनी मोहनी अति मूरति है सूरति बरणि नहीं कछुजाय ४७
ऊदन बोले तब रूपन ते ऐपनवारी दे पहुँचाय॥
रूपनवारी तब बोलत भा दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ४८
ऐपनवारी बारी लैकै आपन मूड़ कटावै जाय॥
आये बारी बहु कनउज के ऐपनवारी देउ पठाय ४९
बातैं सुनिकै ये रूपन की बोला फेरि बनाफरराय॥
बाना राखै रजपूती का बारी कौन बतावै भाय ५०
इतना सुनिकै रूपन बोले बेंदुल घोड़ देउ मँगवाय॥
सुनिकै बातैं उदयसिंह ने बेंदुल बाग दीन पकराय ५१
ऐपनवारी वारी लैकै बेंदुल उपर भयो असवार॥
सवापहर के फिरि अर्सा मा पहुँचाजाय नृपति के द्वार ५२

सवैया॥


देखिकै रूपनि को दरवानि कहा इमि बानि सो बेगि सुनाई।
कौनसो देश बसौ क्यहिग्राम औ कौनसोकाज गये तुम आई॥
जायकहौं नृपसों चलिकै भलिकै निजहाल जो देउ बताई।
बानि सुन्यो ललिते जब रूपनि बोलि उठ्यो तब मोदबढ़ाई ५३


ऐपनवारी बारी लावा राजै खबरि सुनावो जाय॥
हमैं पठावा आल्हा ऊदन ब्याहनअये कनौजीराय ५४
इतना सुनिकै द्वारपाल चलि राजै खवरि दीन बतलाय॥
सुनिके बात द्वारपाल की राजा गये दुवारे आय ५५
द्वारे आगे जब गंगाधर रूपन बोला शीश नवाय॥

ब्याहन आये लखरानाको अगुवाकार बनाफरराय ५६
आल्हा ऊदन के बारीहन रूपन जानो नाम हमार॥
ऐपनवारी लै आयन है पैंपभदिँवें नेग आपके द्वार ५७
कीरति गावत रूपनवारी जावें आल्हाके दरबार॥
इतना सुनिकै राजा बोले चहिये नेग काह तब द्वार ५८
रूपन बोले महराजाते चाहैं यही आपके द्वार॥
दुइघंटाभरि चो सिरोही द्वारे वह रक्तकी धार ५९
कीरति गावत रूपन जावे होवैँ जगमें नाम तुम्हार॥
वारी आवा बघऊदन का द्वारे कठिन कीन तलवार ६०
इतना सुनिकै गंगाधर ने फाटक बन्द लीन करवाय॥
जाय न पावै रूपन बारी आरी होय लोहके घाय ६१
इतना सुनिकै रजपूतन ने अपनी खैंचिलीन तलवार॥
रूपन बारी बेंदुल परते गरूई हाँक दीन ललकार ६२
प्राणपियारे ज्यहि होवैं ना सोई लड़ै आय सरदार॥
धावा कीन्ह्यो रजपूतनने बेंदुल भली मचाई रार ६३
टापन मारै रजपूतन का काहू दाँतन लेय चबाय॥
जब मनपावै सो रूपनका तड़पत उड़ा दूरलगजाय ६४
कागति बरणौं तहँ रूपनकै दुनों हाथ करै तलवार॥
बड़े लड़या बूँदीवाले तेऊ हनैं आपनी वार ६५
रूपन दुइ दश पन्द्रह वीसक तीसक गिरिगे समरभूमि मैदान॥
देखि तमाशा गंगाधर जी दारे बहुत भये हैरान ६६
क्रोधित हैके महराजा ने भाप खैंचिलीन तलवार॥
एँड़ लगायो तब रूपन ने घोड़ा चला गयो वापार ६७
मारु मारु औ हल्ला करिकै पाछे चले बहुत सरदार॥

उड़ा वेंदुला त्यहि समया मा तम्बुनपास गयो असवार ६८
क्षत्री लौटे बूँदी वाले बैठे आय राज दरवार॥
रूपन बारी को देखत खन बोला उदयसिंह सरदार ६९
कैसी गुजरी कहु बूँदी में रूपन रङ्ग विरङ्गा ज्वान॥
इतना सुनिकै रूपन बोले भइया भलो कीन मैदान ७०
नामी ठाकुर का बारी है जान्यो सबै राजदरवार॥
दुइ घण्टा भरि चली सिरोही द्वारे वही रक्तकी धार ७१
मातु शारदा तुम्हरी बशिमा लाला देशराज के लाल॥
सरवर तुम्हरी का दुनिया मा दूसर नहीं आज नरपाल ७२
सुनो हकीकति अब बूँदी कै भारी लोग राजदरवार॥
रूपन बारी की चरचा का खरचाहोनलाग त्यहिवार ७३
म्वती जवाहिर दोउ पुत्रन को राजा पास लीन बैठाय॥
कही हकीकति सब ऊदन की पुत्रन बार बार समुझाय ७४
जाति बनाफर की हीनी है अगुवाकार भये सो आय॥
कैसे ब्याहव हम बेटीका हँसि हैं जातिपांतिकेभाय ७५
लड़िकै जितिवे नहिं ऊदनते यहहू साँच दीन बतलाय॥
धोखा दैकै लखराना का अब हम कैदलयँ करवाय ७६
तौ तौ इज्जत हमरी रहिहै नहिं सब जैहैं काम नशाय॥
तुम अब जावो त्यहि तम्बूमा जहँ पर बैठ कनोजीराय ७७
समय आयगा अब भौंरिनका इकलो लड़का देउ पठाय॥
देश हमारे यह रीती है कहियो बारबार समुझाय ७८
इतना सुनिकै चला जवाहिर चारो नेगी संग लिवाय॥
जहाँ कनौजी का तम्बूथा पहुँचा तहाँ जवाहिरआय ७९
कही हकीकति सब राजा सों दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥

देश हमारे की रीती यह इकलो लड़िका देउ पठाय ८०
नाई बारी दूनों नेगी इनको लेवैं संग लिवाय॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ८१
ग्यारह नेगी औ सहिबाला इतने पठै देउ महराज॥
इतना सुनिकै राजा बोले भावै करो तौन तुमकाज ८२
जो मन भावै सो करु ऊदन तुमको दीन पूर अधिकार॥
बनि सहिबाला तब ऊदन गे नेगी बने और सरदार ८३
बैठि पालकी में लखराना अपनी लिये ढालतलवार॥
संग जवाहिर के चलि दीन्हे नेगीबने शूर सरदार ८४
आसा लीन्हे कोउ हाथेमा मुरछल कोऊ डुलावतजाय॥
झण्डी लीन्हे कोऊ नेगी कोऊ रहे मशाल दिखाय ८५
बूँदी केरे नर नारी सब भारी भीर कीन अधिकाय॥
रूप देखिकै लखराना का मनमें कामदेव शर्माय ८६
धरी पालकी गै फाटक पर बैठे सबै शूर सरदार॥
यक यक भाला दुइ दुइ बरछी कम्मर परी एकतलवार ८७
बाहर आये तब गंगाधर औ लाखनिते कह्यो सुनाय॥
जल्दी चलिये तुम भीतर को भौंरीसमयगयो नगच्याय ८८
इतना सुनिकै ऊदन ठाकुर नेगी लीन्हे संग लिवाय॥
भीतर पहुँचा जब मन्दिर के तह नहिंखम्भपरादिखराय ८९
लौटन लाग्यो जब बाहर को आये शूरबीर तब धाय॥
मारु मारु कै हल्ला करिकै ऊदन उपर पहूँचे आय ९०
चली सिरोही तब आँगनमा हाहाकार शब्दगा छाय॥
नेगी बनिकै जे क्षत्री गे तेसब दीन्ह्यो जूझ मचाय ९१
तेरा क्षत्री कनउजवाले बूँदी केर पाँचमै ज्वान॥

मारे मारे तलवारिन के मचिगा घोर शीर घमसानहर ९२
उदन मारैं ज्यहि क्षत्री को सो मुहभरा तुरत गिरिजाय॥
पास न जावै कोउ ऊरन के रणमा बढ़ा बनाफरराय ९३
कागति बरणौं तह लाखनि कै दूनों हाथ करै तलवार॥
मारे मारे तलवारिन के आँगन वही रक्तकी धार ९४
म्वती जवाहिर दूनों भाई आँगन खूबकीन मैदान॥
लड़ै बहादुर भीषमवाला देवा मैनपुरी चौहान ९५
घायल ह्वैकै ग्यारह नेगी आँगन गिरे पछाराखाय॥
लाखनि ऊदन त्यहि समयामा चालिस क्षत्री दीनगिराय ९६
तबै जवाहिर सम्मुख आवा गरूई हाँक देत ललकार॥
काह सिपाहिन का मारो तुम हमरे साथ करौ तलवार ९७
इतना सुनिकै लाखनि ऊदन सम्मुख चले तुरतही धाय॥
आगे पीछे चौगिर्दा ते परिगे गाँस फाँसमें आय ९८
लाखनि ऊदन दोऊ ठाकुर मोती कैदलीन करवाय॥
घैहानेगी जे आँगन में तिनहुन तुरतलीनबँधवाय ९९
लाखनि ऊदन दोउ क्षत्रिनको राजै खंदक दीनडराय॥
यह सुधिपाई जब मालिनिने कुसुमा पास पहूँची जाय १००
हाल बतायो त्यहि बेटी को मालिनि बार बार समुझाय॥
ब्याहन तुमका लाखनि आये राजै खन्दक दीन डराय १०१
देश देश में जब फिरि आये टीका लीन कनौजीराय॥
ऐस मुनासिब नहिं राजाको जोअबदीन्हेनिजूझमचाय १०२
गली गली में यह चरचाहै नीकि न कीन बात महराज॥
रूप उजागर सबगुण आगर खन्दक परे तुम्हारेकाज १०३
इतना सुनिकै कुसुमा बेटी मनमें बारबार पछिताय॥

हमैं न भाई यह आली है तुमते साँच दीनबतलाय १०४
वयस बराबरिकी मालिनि हौ अब गाढ़े माँ होउ सहाय॥
राति अँधेरिया की विरिया है खन्दकमोहिंदेइ दिखराय १०५
मोरे कारण महराजा सुत कैदी भये यहांपर आय॥
उत्तम शय्या केरि स्ववैया खन्दकदीन बाप डरवाय १०६
मोहिं दिखावै त्यहि क्षत्री को जियरा धीरधरा ना जाय॥
इतना सुनिकै मालिनि दौरी पलकीलाई तुरतलिबाय १०७
बेठि पालकी मा दूनो फिरि खन्दक पास गईं नियराय॥
दीन अशर्फी तहँ चकरन का तिनफिरतहाँदीनपहुँचाय १०८
कुसुमा बोली तहँ लाखनि ते स्वामी बार बार बलिजायँ॥
मोहिं अभागिनि के कारणसों तुपपरबिपतिपरीअधिकाय १०९
अब तुम निकरो यहि खन्दकते रस्सा देउँ कन्त लटकाय॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले तुमते साँचदेयँ बतलाय ११०
जो तुम चाहौ लखराना को फौजन खबरि देउ पहुँचाय॥
चहैं सहारा जो नारी को तो सब क्षत्रीधर्म नशाय १११
शंका लावो मन अन्तर ना महलन जाउ तड़ाका धाय॥
खबरि पायकै आल्हा ठाकुर हमरीबिपतिबिदरिहैंआय ११२
कुसुमा बोली फिरि ऊदन ते क्षत्री भोजन देइँ पठाय॥
ऊदन बोले तब कुसुमा ते यहनहिंउचितयहाँपरआय ११३
चोरी चोरा कछु ह्वैहै ना शाहंशाह कनौजीराय॥
भोर भ्वरहरे मुरगा बोलत फौजन खबरिदेउ पठवाय ११४
और न चाहैं कछु तुमते ये साँचे हाल दीन बतलाय॥
इतना सुनिकै कुसुमा बेटी महलनफेरिपहूँची आय ११५
सोचत सोचत राति पारभै प्रातःकाल गयो नगच्याय॥

कहि समुझावातबमालिनिको फौजन तुरतदीन पठवाय ११६
नाइनि बारिनि तेलि तँबोलिनि मालिनिधोबिनि के समुदाय॥
साँची दूती रस ग्रन्थन में भाषा चतुरन खूब बनाय ११७
सोई मालिनि चलि बूँदी ते फौजन अटी तड़ाका धाय॥
पता लगायो तहँ आल्हा को चकरन तम्बूदीन बताय ११८
बेला चमेलिन के हरवा को मालिनि तुरत दीन पहिराय॥
कह्यो सँदेशा तहँ ऊदन का मालिनि बारबार सब गाय ११९
जो सुधि पावैं बूँदी वाले हमरो पेट देयँ फरवाय॥
भुसा भरावैं ते पेटेमा तुमकासॉच दीन बतलाय १२०
इतना सुनिकै आल्हा ठाकुर मुहरैं सात दीन पकराय॥
मालिनि चलिभै तब फौजनते बेटी पास पहूँची आय १२१
खबरिसुनाई सब जयचँद को आल्हा बार बार समुझाय॥
तब महराजा कनउज वाला डंका तुरतदीन बजवाय १२२
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बाँके घोड़न भे असवार॥
झीलमबखतर पहिरि सिपाहिन हाथम लई ढाल तलवार १२३
तोपैं चढ़ि गइँ सब चर्खन मा गोला तुरत दीन छुटवाय॥
चढ़े जवाहिर औ मोती दोउ तोपनआगिदीनलगवाय १२४
तोपैं छूटीं दुहुँ तरफा ते धुवना रहा सरग में छाय॥
बड़ी दुर्दशा भै तोपन मा तबफिरिमारुवन्द ह्वैजाय १२५
गोली ओला सम वर्षत भइँ सननन सन्न सन्न सन्नाय॥
दुनो गोल आगे का बढ़िगे सम्मुख भये समरमें आय १२६
भाला बलछी तलवारिन की लागी होन भड़ाभड़ मार॥
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्तकी धार १२७
ना मुहँ फेरैं बूँदी वाले ना ई कनउज के सरदार॥

शूर सिपाही सम्मुख रहिगे कायरछोंड़िभागिहथियार १२८
कटि कटि मूड़ गिरैं धरणीमा उठि उठि रुण्ड करैं तलवार॥
मूड़न केरे मुड़चौरा भे औरुण्ड़नके लाग पहार १२९
सात कोस के तहँ गिर्द्दा मा कौवा गीध रहे मड़राय॥
घैहा करहैं समरभूमि मा दैया बापू रहे मचाय १३०
हाय रुपैया बैरी ह्वैगे हमरे गई प्राणपर आय॥
सात रुपैया के कारण ते छूटे लोग कुटुम औभाय १३१
तहिले बिरिया भै संध्या कै तब फिरि मारु बन्द ह्वैजाय॥
जीवे लायक जितने घैहा तिनकीलोथिलीनउठवाय १३२
ढईलाख दल कनउज वाला बूँदी डेढ़लाख सरदार॥
इतने जूझे दुहुँ तरफा ते करिकरि मारुतहाँपरयार १३३
आल्हा आये जब तम्बू मा आसनअलगलीनबिछवाय॥
श्वास चढ़ाई फिरि ऊपर का शारदसुमिरिबनाफरराय १३४
बिनती कीन्ही भल शारद की आल्हा बार बार शिरनाय॥
तव अवलम्बा जगदम्बा है दूसर करि है कौन सहाय १३५
बिनती करिकै आल्हा ठाकुर सोये सेज आपनी जाय॥
देबी शारदा मइहरवाली निशिमास्वपनदिखायोआय १३६
मलखे ब्रह्मा को बुलवाओ ह्वैहै जीति बनाफरराय॥
स्वपन देखिकै आल्हा ठाकुर प्रातःकाल उठे हर्षाय १३७
लिखिकै चिट्ठी मलखाने को धावन हाथ दीन पठवाय॥
चढ़ा साँड़िया मा धावन तब सिरसागढ़ै पहूँचाजाय १३८
चिट्ठी दीन्ही मलखाने को धावन बार बार शिरनाय॥
पढ़िकै चिट्ठी मलखेठाकुर औ यहबोले बचनसुनाय १३९
हम समुझावा भल ऊदन का सिरसा बसो बनाफरराय॥

आल्हखण्ड । ३८.

कहा न माना आल्हा ऊदन खन्दकपरे लहुरवाभाय १४० मनते हमरे यह आवति है की वृंदी का जाय बलाय॥ जैसो कीन्हेनि तस फलपायनि दूनोंभाय बनाफरराय १४१ करें तयारी नहिं यूँदी की तवहूं ठीक नहीं ठहराय॥ इतना कहिकै मलखेगकुर फोजनहुकुमदीनकरवाय १४२ करो तयारी सब बूंदी की खन्दक परा लहुरवाभाय ।। इतना कहिके मलखेठाकुर अपने महल पहूँचेजाय १४३ पदिक चिट्ठी गजमोतिनि को मलखे हाल दीन समुझाय ॥ हम ना जैबे अब बूंदी का प्यारी साँच दीन वतलाय१४४ इतना सुनिकै प्यारी बोली दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ॥ आज साँकरा बघऊदन का स्वामीगाढ़े होउ सहाय १४५ बिना सहायक अब दादा को स्वामीदुःख होय अधिकाय ॥ आज साँकरा है दादापर यहुदिनपरीरोजना आय १४६ व्याना सहिवे द्यवरानिन का होई पीर रोज़ अधिकार । धर्म विहीनी हीनी हकै जीनो जन्मजन्मधिक्कार १४७ धर्म न रहे जब देही मा करि है कौन्दकाहि उपकार ॥ धर्म निशाना मर्दाना है अर्जुनसकन्दीनोकसरदार १४८ सारथि कीन्ह्यो नारायण जे घुइ महराज बुद्धीद्वारा करि दिखलावा तसकेकाज११. करौं किहानी जो पूरी मैं । è सुनी किहानी जो विप्रन ते सोई कहाँ' सत्य भर्तार १५० इवे दवाई - दुखदाई यह नींवी हरे अनेकन रोग। ॥ जो कोउ पीवे चंगा होवे याको केस नीक संयोग १५१ धर्म दवाइन के पीने मा स्वामिन सत्य सत्य भारोग ।।

सन्ना बड़ा ॥

ताते जावो तुम बूँदी को होवै पूर हमारो भोग १५२
बातैं सुनिकै गजमोतिनि की मलखे धरा पीठिपर हाथ॥
होय पियारी अस नारी जो तबहीं रहै धर्म की पाथ १५३
बड़ी पियारी निज नारी को मलखे बार बार समुझाय॥
गये दुबारा फिरि माता घर चलिभेचरणकमलशिरनाय १५४
घोड़ी कबुतरीपर चढ़ि बैठे डंका तुरत दीन बजवाय॥
लेकै लश्कर मोहबे आये जहँ पर रहैं चँदेलेराय १५५
आय सिंहासन के लगभग में ठाढ़े भये शीश को नाय॥
आल्हा ऊदन की गाथा को मलखे गये तहाँ परगाय १५६
भयो बुलौवा हम ब्रह्माका आयसु काहमिलै महराज॥
परम दयालू चित तुम्हरो है स्वामीपूँछि करौं मैं काज १५७
गुरु पितु भ्राता अरु त्राता तुम हमरे सदा चँदेलेराय॥
आज्ञापावों महराजा के तौ ऊदनका लवों छुड़ाय १५८
सुनिकै बातैं मलखाने की आयमु दीन रजापरिमाल॥
लैकै ब्रह्माको जावो तुम दूनों वह हमारेबाल १५९
माथनास कै महराजा को मल्हना महल पहूँचे जाय॥
चिट्ठी पढ़िकै तहँ आल्हा की मलखेदीनसकलसमुझाय १६०
बिपदा सुनिकै बघऊदन कै मल्हना रोयदीन त्यहिबार॥
हाथ पकरिकै फिरि ब्रह्माको बोली लेउ पूत तलवार १६१
क्षत्री ह्वैकै समर सकावै जावै तुरत नरक के द्वार॥
परम पियारे सुतजावो तुम हमरो पूरहोय उपकार १६२
इतना सुनिकै ब्रह्मा ठाकुर अपनी लीन ढाल तलवार॥
बिदा मांगिके पितु मातासों दोऊ चलत भये सरदार १६३
सजिगा घोड़ा हरनागर जो तापरू ब्रह्मा भये सवार॥

घोड़ी कबुतरी की पीठीपर मलखे सिरसाका सरदार १६४
बाजे डंका अहतंका के वंका चले शूर त्यहि बार॥
शङ्का फंका करि डंका तहॅ बाजे घोर शोर ललकार १६५
रहा कलङ्का नहिं देही माँ ऐसे कहत चलैं सबयार॥
पंद्रादिनका धावा करिकै बूँदी निकट गये सरदार १६६
झील देखिकै मलखाने ने तम्बू तहाँ दीन गड़वाय॥
लाले पीले नीले काले सवरॅग ध्वजा रहे फहराय १६७
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाको आय॥
तारागण कछु चमकन लागे पक्षी चले बसेरन धाय १६८
परे आलसी खटिया तकि तकि संतन धुनी दीन परचाय॥
भस्म लगायो सब अंगन में ध्यायो चरितपुरातनगाय १६९
शिवा रमा ब्रह्माणी पति के मनमें चरित रहे सुलगाय॥
बड़े यशस्वी पितु अपने के दोऊचरणकमलकोध्याय १७०
करों तरंग यहां सों पूरण दोऊ गणपतिचरण मनाय॥
राम रमा मिलि दर्शन देवैं लेवैं आपन मोहिं बनाय १७१

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशी नवलकिशोरात्मजबाबूप्रयाग
नारायणजीकीआज्ञानुसारउन्नामपदेशान्तर्गत पँडरीकलां निवासि
मिश्रबंशोद्भवबुधकृपाशङ्करसूनु पं॰ ललिताप्रसादकृत मलखान
बड़ाईवर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १ ॥


सवैया॥

सत्यहैं बेद पुराण सबै मति एक असत्य यहै लखिपावा।
मतिही के असत्य असत्य सबै यह सत्यहि २ सत्य बतावा॥
बेद पुराणन भूलनहीं यह झूल असत्य मती ठहरावा ।
ललिते मति सत्यासत्य निवारण बेद पुराणन ने दर्शावा १

सुमिरन॥

बेदन ध्यावों सामबेद को बिप्रन परशुराम महराज॥
क्षत्रिन ध्यावों रामकृष्ण को बैश्यन नन्दभये शिरताज १
शूद्रन ध्यावों मैं निषाद को कीशन पवनतनय बलवान॥
ईशन ध्यावों शिवशङ्कर को शीशनबढ़ा दशानन ज्वान २
ध्याय नदीशनमें बड़वानल पक्षिन बैनतेय महराज॥
ध्याय गिरीशन में हिमपर्वत नारिन जनकसुता शिरताज ३
क्वाँरिन ध्यावैं हम राधाको राखैं सदा हमारी लाज॥
परम पियारी यदुनन्दन की हमरी माननीय शिरताज ४
सबै पुस्तकन में दुर्गा जी अबहूं बिप्रन की रखवार॥
छूटि सुमिरनी गै ह्याँते अब बूँदी हाल सुनो यहिबार ५

अथ कथाप्रसंग॥


देखिकै फौजै मलखाने की बोला तुरत कनौजीराय॥
फौजै आई हैं बूँदी ते आल्हा देख भीर अधिकाय १
चिट्ठी पठई तुम सिरसा को आये नहीं वीर मलखान॥
कैसी करिहौ यहि समया में आल्हा समरभूमि मैदान २
मुनिकै बातैं महराजा की आल्हा बोले शीश नवाय॥
मुर्चा बन्दी अब करवावो चर्खन तोप देउ चढ़वाय ३
तबलग धावन सिरसावाला आल्हा फौज पहूंचा आय॥
शीश नायकै सो आल्हा को मलखे आवन दीन बताय ४
दीन इनामै त्यहि धावन को ब्रह्मा मलखे लीन बुलाय॥
खबरि पायकै सो आल्हा की दूनों गये तहाँ पर आय ५
बड़ी खातिरी जैचँद कीन्ह्यो अपने पास लीन बैठाय॥
खबरि वताई सब बूँदी की जयचँद बार बार पछिताय ६

मलखे बोले तब राजा ते साँची सुनो कनौजीराय॥
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चारो दिशा लेउ ध्यरवाय ७
तुमतो लड़ियो उत्तर दिशिको दक्षिण समर करब हम आय॥
कछुदल पठवो पूरब पश्चिम बूँदी शहर लेउ घिरपाय ८
इतना कहिकै मलखे ब्रह्मा फौजन फेरि पहूंचे आय॥
बाजे डंका कनवजिया के हाहाकार शब्दगा छाय ९
बिनही डंका के मलखाने दक्षिण दिशा पहूंचे जाय॥
म्वती जवाहिर उत्तर दिशिमाँ लैकै फौजगयो फिरिआय १०
तोपैं धरिगइँ फिरि चर्खन में तिनमें वत्तीदईं लगाय॥
छूटे गोला हाहाकारी धुवनारहा सरगमें छाय ११
लागै गोला ज्यहि क्षत्री के मानो गिरह कबूतरखाय॥
गोला लागै ज्यहि घोड़ाके आधे सरगलिहे मड़राय १२
लागै गोला ज्यहि हाथी के चुप्पे देवै भूमि बिठाय॥
जौने ऊंटके गोला लागै सो मुहभरा तुरतगिरिजाय १३
अररर अररर गोला छूटैं जैसे प्रलय मेघ घहराय॥
जौने रथमाँ गोला लागै पहियाधुरीसहितउड़िजाय १४
बड़ी दुर्दशा में तोपन में तब फिरि मारुनन्द ह्वैजाय॥
दुनो गोल आगे का बढिगे मुर्चा परा बरोबरि आय १५
कल्ला भिडिगे असवारन के घोड़न भिड़ी रानमें रान॥
सूंड़ि लपेटा हाथी भिड़िगे लाग्यो होन घोर घमसान १६
कउॅधालपकनिबिजुलीचमकनि रणमॉ चमाचम्म तलवार॥
झल्झल्झल्झल् छूरीझलकैं भारी ढालनकी ठनकार १७
धम् धम् धम् धम् बजैं नगारा मारा मारा परै सुनाय॥
सन् सन् सन् सन् गोली सनकैं तेगा मन मन्न मन्नाय १८

मारु मारु करि मौहरि बाजै बाजै हाव हाव करनाल॥
बड़ी लड़ाई में बूँदीमाँ जूझे बड़े बड़े नरपाल १९
पैदल पैदल के बरणी भै औ असवार साथ असवार॥
कोताखानी चलैं कटारी ऊनाचलै बिलाइति क्यार २०
कटिकटि कल्ला गिरैं खेतमाँ उठि उठि फेरि करैं तलवार॥
ता मुहँ फेरैं कनउज वाले ना ई बूँदी के सरदार २१
ब्रह्मा मलखे दक्षिण दिशिसों पहुँचे बीच शहरमें आय॥
बड़ा कुलाहल भा बूँदी माँ काहू धीर धरा ना जाय २२
लीन्हे फौजै मलखाने फिरि फाटक उपर पहुँचा जाय॥
औ कहि पठवा गंगाधर को सबकी कैद देउ छुटवाय २३
नाहीं बचिहौ ना महलन माँ बूँदी शहर देउँ फुँकवाय॥
सुना सँदेशा महराजा जब मनमाँ बार बार पछिताय २४
पै जब सूझी कछु मनमाँ ना सबकी कैद दीन छुटवाय॥
घायल करहति ऊदन लाखनि मलखे पास पहूँचे आय २५
मिला भेंट करि सब आपस में उत्तर दिशा चले हर्षाय॥
एक तरफ सों जयचँद राजा दुसरी तरफ बनाफरराय २६
म्वती जवाहिर परे बीचमाँ सबके गयी प्राणपर आय॥
बड़ी लड़ाई भैं बूँदी मा अद्भुत समर कहा ना जाय २७
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्तकी धार॥
मुण्डन केरे मुड़चौड़ा भे औ रुण्डन के लगे पहार २८
घोड़मनोहर की पाठी सों देवा गरू देय ललकार॥
चढ़ा कबुतरी पर मलखाने ऊदन बेंदुलपर असवार २९
भयो जवाहिर फिरि सम्मुख माँ लीन्हे तीनिलाख असवार॥
का गति बरणौं मैं मोती कै दूनों हाथ करै तलवार ३०

२५

मीराताल्हन बनरस वाला सिर्गा घोड़े पर असवार॥
अल्ला अल्ला औ बिसमिल्ला करिकै खूब मचाई रार ३१
झुके सिपाही बूँदी वाले दोऊ हाथ करैं तलवार॥
बड़े लड़ैया मुहबेवाले एकते एक शूर सरदार ३२
येऊ मारैं औ ललकारैं हार नहीं तहाँ पर ज्वान॥
छोड़ि आसरा जिंदगानी का क्षत्रिन खून कीन मैदान ३३
दूनों दिशि की तहँ मारुन माँ क्षत्री बूँदी के हैरान॥
तीनि लाख बूँदीके ठाकुर ह्वैगे समर भूमि वैरान ३४
म्वती जवाहिर त्यहिसमया माँ दूनों भाय गये घबड़ाय॥
मलखे ठाकुर त्यहि औसर माँ तिनका कैदलीन करवाय ३५
भागि सिपाही अरभ्वारातब अपने अपने लिहे परान॥
जीति के डंका तब बजवाये नाहर समरधनी मलखान ३६
राजा जयचँद के तम्बू माँ पहुँचे सबै शूर सरदार॥
को गति बरणै त्यहि समयाकै भारी लाग राजदरबार ३७
जितने घायल अपनी दिशिके सबको तुरतलीन उठवाय॥
मलहम पट्टी तिन क्षत्रिन के घायन ऊपर दीन कराय ३८
सुनी हकीकति जब गंगाधर मनमाँ बारबार पछिताय॥
मेलछांडिकै त्यहि औसर माँ और न कछू ठीक ठहराय ३९
लिखिकै चिट्ठीत्यहि समयामाँ जयचँद पास दीनपठवाय॥
कैदी छोंड़ो दोउ पुत्रनको भाँवरि तुरत लेट करवाय ४०
जहँना तम्बू महराजा का धावन तहाॅ पहुँचा आय॥
चिट्ठी दीन्ह्यो महराजाको दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ४१
पढ़िकै चिट्ठी जयचँदराजा तुरतै सबका दीनसुनाय॥
सम्मत सबकै तब याही भै कैदी देउ पुत्र छुड़वाय ४२

म्वती जवाहिर दोउ पुत्रन को राजा तुरत लीन बुलवाय॥
लिखी हकीकति जो गंगाधर तिनको तुरतदीन बतलाय ४३
गंगा कैलेउ तुम तम्बुन माँ तुम्हरी कैद देइँ छुड़वाय॥
सुनिकै बातैं ये जयचँदकी दोऊ गंगा लीन उठाय ४४
तब छुड़वायो जयचँद राजा पहुँचे धाम आपने जाय॥
सम्मत कीन्ह्यो फिरि गंगाधर मड़ये मूड़ लेब कटवाय ४५
अकसर लड़िकाको लै आवो जावो पूत जवाहिरलाल॥
सुनिकै तुरतै सो गमनत भा आयो जहाँ बैठ नरपाल ४६
कहि समुझायो सब राजा को दोऊ चरणन शीश नवाय॥
अकसर लड़िका को पठवावो सबियाँ शंका देउ भुलाय ४७
इतना सुनिकै मलखे बोले राजन हुकुम देउ फरमाय॥
पांच सात मिलि हमअब जैबे भौंरी तुरत देब करवाय ४८
सुनिकै बातैं भलखाने की आयसु दीन कनौजीराय॥
बैठि पालकी में लखराना देबी फूलमती को ध्याय ४९
आल्हा ऊदन मलखे ब्रह्मा देबा बनरस का सरदार॥
गंगा मामा लखराना का सोऊ बांधि लीन हथियार ५०

सवैया॥


ते सरदार सबै चलिकै फिरि भीतर भौन के जाय सिधाये।
सुन्दर आसन डारिवहाँ नृप आदर भाव किये अधिकाये॥
पण्डित आयकै बैठि गयो गठिबन्धन हेतु सुता बुलवाये।
सातसुहागिल आय तहाँ ललिते मन मोदन गीत सुनाये ५१



पहिली भाँवरिके परतै खन क्षत्री आये आध हजार॥
आल्हा ऊदन मलखे ब्रह्मा इनहुन खैंचि लीन तलवार ५२

आधे आँगन भाँवरि होवैं आधे होय भड़ाभड़ मार॥
मारे मारे तलवारिन के आँगन वही रक्त की धार ५३
काटिकै कल्ला दुइ पल्ला करि लल्ला वच्छराज के लाल॥
लड़ैं इकल्ला अति हल्लाकरि अल्ला[] खैर करैं त्यहिकाल ५४
भा खलमल्ला औ हल्ला अति वल्लन क्यार मनो त्यवहार॥
काटि बजुल्ला सोने छल्ला लल्ला उदयसिंह सरदार ५५
हनि हनि मारै श्री ललकारै देवा मैनपुरी चौहान॥
म्वती जवाहिर दूनों भाई लीन्हे तहाँ अनेकन ज्वान ५६
बड़ी लड़ाई करिहारे तहँ पै नहिं विजय परी दिखराय॥
तब पछितान्यो फिरि गंगाधर दीन्ह्यो मारु वन्द करवाय ५७
कन्या दान दीन आनँद सों नेगिन नेग दीन हर्षाय॥
सातो भाँवरि पूरी करिकै पूरा ब्याह दीन करवाय ५८
बिदा न करिखे हम ब्याहे में लीन्ह्यो गवन सालमें आय॥
इतना कहिकै गंगाधर जी दायज खूबदीन अधिकाय ५९
बात मानिकै चन्दले फिरि तहँ ते कूच दीन करवाय॥
बिदा मांगिकै मलखे ब्रह्मा पहुँचे नगर मोहोबे आय ६०
बाजत डंका अहतंका के कनउज गये कनौजी आय॥
अनँद बधैया घर घर बाजीं मंगल गीतरही सब गाय ६१
रानी तिलका त्यहिअवसर में बिप्रन दान दीन अधिकाय॥
द्दवी शारदा के बरदानी दूनों भाय बनाफरराय ६२

सवैया॥


गावत गीत सबै तिनको जिनको कछु ज्ञान बलै अधिकाई।


ते मनमाँझ बिचारकरैं औ धरैं मनमें प्रभुकी प्रभुताई॥
त्यागत झूँठ प्रपञ्च सबै औ जवै मन भासत हैं रघुराई।
नाशत पाप सबै ललिते फलिते जगधर्म कि बेलि सदाई ६३



सोई मन्तर मन अन्तर धरि यन्तर धर्म बनाफरराय॥
बड़ी बड़ाई कनउज पायो कीरति रही आजलों छाय ६४
बिपदा सहिकै यहि दुनियामा त्यागा धर्म नहीं कहुँभाय॥
तासों बेली यह फैली अति सुन्दर धर्म रूप जलपाय ६५
अधरम बेली दुरयोधन की छैलिकै लीन जगतकोछाय॥
तैसे रावण कंसासुरहू बाढ़यो धनै बलै अधिकाय ६६
रीछ बँदरवा ग्वालन बालन दूनन दीन्ह्यो तुरत नशाय॥
तासों चहिये यहि दुनियामाँ नितप्रतिनवतनवत नैजाय ६७
धन बल बाढ़ै त्यहि दुनियामाँ कीरति जाय धरामें छाय॥
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडागड़ा निशाकोआय ६८
तारागण सब चमकन लागे संतन धुनी दीन परचाय॥
परे आलसी खटिया तकितकि घोंघों कण्ठ रहे घर्राय ६९
आशिर्बाद देउँ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायण भाय॥
हुकुम तुम्हारो जो पावत ना ललिते कहतकथाकस गाय७०
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औ सूर॥
मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहौं सदा भरपूर ७१
माथ नवावों पितु अपने को जिनबल माथ भई यह पार॥
जैसे सेयो बालापन में तैसे सदा होउ रखवार ७२
जल थल जन्मों चहु पहाड़ में स्वामी होयँ राम भगवान॥
यह वर पावैं ललिते पण्डित खण्डित होय न हमरी वान ७३

पूर बिवाह भयो लाखनि कों ह्याँते करों तरँगको अन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवैं इच्छा यही भवानी कन्त ७४

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजबाबूप्रयागनारायण
जीकी आज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गत पॅड़रीकलांनिवासि मिश्र
बंशोद्भवबुध कृपाशङ्करसूनु पण्डितललिताप्रसादकृत लाखनि
पाणिग्रहणबर्णनोनामद्वितीयस्तरंगः २॥

 

लाखनिरामाजीका बिवाह सम्पूर्ण॥

इति॥

 

  1. १—(अल्ला) देबी का नाम है।