आनन्द मठ
बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, अनुवादक ईश्वरीप्रसाद शर्मा

कलकत्ता: हिंदी पुस्तक एजेंसी, पृष्ठ १३८ से – १४२ तक

 

दसवां परिच्छेद

वे दसों हजार सन्तान वन्देमातरम् गान गाते, भाले ऊपर उठाये हुए बड़ी तेजीके साथ तोपोंके मोहड़ेकी ओर चल पड़े। लगातार गोले बरसनेसे सन्तान-सेना खंडखंड, विदीर्ण, और अत्यन्त विशृङ्खल हो गयी, तोभी लौटी नहीं। उसी समय कप्तान टामसकी आज्ञाके अनुसार सिपाहियोंका एक दल बन्दूकोंपर सङ्गीनें चढ़ाये सन्तानों के दाहिनी ओरसे आकर उनपर टूट पड़ा। दोनों तरफसे हमला हो जानेके कारण सन्तानगण एक बारगी निराश हो गये। क्षण क्षणमें सैकड़ों सन्तान नष्ट होने लगे। तब जीवानन्दने कहा-"भवानन्द! तुम्हारी ही बात ठीक थी। अब बेचारे वैष्णवोंका हार करवाना व्यर्थ है। चलो, हम लोग धीरे-धीरे लौट चलें।"

भवा--"अब कैसे लौट चलोगे? इस समय तो जो पीछे फिरेगा वही जान गवायेगा।"

जीवा०-"सामने और दाहिनी तरफसे हमला हो रहा है। बायीं तरफ कोई नहीं है। चलो, धोरे-धीरे घूमकर बायीं तरफ हो जायँ और उधर-ही-से निकल भागे।"

भवा०-"भागकर कहां जाओगे? उधर नदी है। वर्षाके कारण बहुत उमड़ी हुई है। अगरेजोंके गोलेके डरसे भागकर तो सन्तान-लेना नदी में डूब जायगी।"

जीवा०--"मुझे याद आता है कि उस नदीपर पुल बंधा है।"

भवा०-“यदि उस पुल-परसे यह दस हजार सन्तान-सेना नदी पार करने लगी, तो बड़ी भीड़ हो जायगी। शायद एकही तोपमें सारी सेना सहजमें ही विध्वंस कर दी जायगी।”

जीवा०-"एक काम करो। थोड़ीसी सेना तुम अपने साथ रख लो। इस युद्धमें तुमने जैसी हिम्मत और चतुराई दिखलाई है उससे मुझे मालूम हो गया, कि ऐसा कोई काम नहीं, जो तुम न कर सको। तुम उन्हीं थोड़ेसे सन्तानों के साथ सामनेसे हमला रोको। मैं तुम्हारी सेनाकी आड़में बाकी सन्तानोंको पुल पार करा ले आऊंगा। तुम्हारे साथके सैनिक तो जरूर ही मरेंगे पर मेरे साथवाले अगर बच जायं, तो कोई ताजुब नहीं।"

भवा०-“अच्छा, मैं ऐसा ही करता हूं।"

बस भवानन्दने दो हजार सन्तानोंके साथ एक बार फिर 'वन्देमातरम्' की गगनभेदी ध्वनि करते हुए बड़े उत्साहके साथ अङ्गरेजोंके तोपखानेपर हमला किया। घोर युद्ध छिड़ गया; पर तोपोंके सामने वह छोटीसी सन्तान-सेना कबतक ठहरती? जैसे किसान पके हुए धानके पौधोंको काट-काटकर बिछाता चला जाता है वैसे ही अंग्रेजों की गोलन्दाज सेना उन्हें मारमारकर गिराती चली गयी।

इसी बीच जीवानन्द बाकी सन्तान सैन्यका मुंह थोड़ा फेरकर बायीं ओरके जंगलकी ओर धीरे-धीरे चले। कप्तान टामसके एक सहकारी लेफ्ट एट वाटसनने दूरसे ही देखा, कि सन्तानोंका एक दल धीरे-धीरे भागा जा रहा है। यह देख, वे कुछ फौजी और कुछमामूली सिपाहियों के साथ जीवानन्दके पीछे दौड़े।

कप्तान टामसने भी यह देख लिया। यह देखकर कि सन्तानोंका प्रधान भाग भागा जा रहा है, उन्होंने कप्तान 'हे' नामक अपने एक सहकारीसे कहा मैं जबतक दो-चार सौ सिपाहियोंको लेकर इन सामनेके छिन्नभिन्न विद्रोहियोंको नष्ट करने में लगा हूं तबतक तुम तोपों और बाकी सिपाहियोंको साथ लेकर उन भागनेवालोंका पीछा करो। बायीं ओरसे लेफ्टएट वाटसन जाही रहा है, दाहिनी ओरसे तुम भी जा पहुंचो। देखो, आगे बढ़कर तुम्हें पुलका मुँह बन्द कर देना होगा जिससे वे लोग तीन ओरसे घिर जायें और जालमें फंसी हुई चिड़ियोंकी तरह मारे जा सकें। वे सब बड़े तेज चलनेवाले देशी सिपाही हैं, भागने में बड़े होशियार होते हैं, इसलिये तुम उन्हें सहज ही न पकड़ सकोगे। घूमघुमाव रास्तेसे घुड़सवारोंको पुलके मुहानेपर ले जाकर खड़ा कर दो, बस, फ़तह हो जायगो।" कप्तान 'हे' ने ऐसा ही किया।

“अति दर्पे हता लङ्का।" कप्तान टामसने सन्तानोंको अत्यन्त तुच्छ समझ कर केवल दो सौ पैदल सिपाही भवानन्दसे लड़नेके लिये रखे और बाकी सबको 'हे' के साथ रवाना कर दिया। चतुर भवानन्दने देखा कि अंग्रेजोंकी तोपें हट गयीं और प्रायः सब सैनिक भी चले गये, अब जो थोड़े-बहुत रह गये हैं उन्हें हम सहज ही मार डालेंगे। बस, उन्होंने अपने बचे-खुचे सिपाहियोंको पुकारकर कहा, “देखो ये जो थोड़ेसे दुश्मनके सिपाही बचे हैं, उन्हें मारकर ढेर कर दो, तो मैं जीवानन्दकी सहायताको चल पड़। बोलो, एक बार प्रेमसे बोलो-"जय जगदीश, हरे!” यह सुनते ही वह थोड़ीती सन्तान-सेना, 'जय जगदीश' का शोर मचाती दुई कप्तान टामसके ऊपर भूखे बाघकी तरह टूट पड़ी; उस आक्रमणकी उग्रता वे थोड़ेसे सिपाही और तिलङ्गे न सह सके, सबके सब नष्ट हो गये। भवानन्दने स्वयं आगे बढ़कर कप्तान टामस के सिरके बाल पकड़ लिये। कप्तान अन्ततक प्राणपणले लड़ता रहा। भवानन्दने कहा-“कप्तान साहब! मैं तुम्हें नहीं मारूंगा, क्योंकि अंगरेजोंसे हमारी कोई शत्रुता नहीं है। तुम भला इन मुसलमानों की सहायता करनेके लिये क्यों आये हो? जाओ, मैं तुम्हें प्राणदान देता हूं, पर इस समय तो तुम हमारे बन्दी होकर रहोगे। भगवान् अङ्गरेजोंका भला करें, हमलोग तुम्हारे दोस्त ही हैं, दुश्मन नहीं।"

यह सुन कप्तान टामसने भवानन्दको मारनेके लिये अपनी खुली साङ्गीन उठानी चाही, पर भवानन्दने उसे ऐसा शेरकी तरह अपने पंजे में पकड़ रखा था कि वह सिर भी न हिला सका। भवानन्दने अपने साथियोंसे कहा- इसे बाँध लो।" बस, दो-तीन सन्तानोंने आगे बढ़कर कप्तान टामसको बाँध डाला। भवानन्दने कहा-“इसे एक घोड़ेपर लाद लो और इसको साथ लिये हुए जीवानन्दकी सहायताके लिये चलो।"

तब उन अल्पसंख्यक सन्तानोंने कप्तान टामसको एक घोड़ेकी पीठपर लाद लिया और “वन्देमातरम्' गीत गाते हुए वाटसनकी खोजमें चल पड़े।

उधर जीवानन्दकी सेनाके दिल टूट रहे थे और वह भागने का मार्ग ढूँढ़ रही थी। जीवानन्द और धीरानन्दने उन्हें समझा-बुझाकर रोक रखना चाहा, पर सबको भागनेसे न रोक सके कितने ही भागकर आमके बगीचोंमें जा छिपे। बाकी लोगोंको जीवानन्द और धोरानन्द पुलकी ओर ले गये। पर वहां पहुंचते ही हे और वाटसनने उन्हें दो तरफसे घेर लिया। अब जान कहां बचती है!