अयोध्या का इतिहास/उपसंहार/(ट) चन्द्र-वंश-कान्य कुब्ज राज

प्रयाग: हिंदुस्तानी एकेडमी, पृष्ठ २२८ से – २३१ तक

 

 

उपसंहार (ट)
चन्द्रवंश
कान्यकुब्ज वंश

१ मनु
२ इला
३ पुरूरवस्
४ आमावसु
५ भीम
६ कंचनप्रभ
७ सुहोत्र
८ जहनु[]
९ सुमन्त (सुजहनु)
१० अजक
११ बालाकाश्व
१२ कुश
१३ कुशाश्व
१४ कुशिक
१५ गाधि
१६ विश्वामित्र (इनका क्षत्रिय नाम विश्वरथ था)
१७ अष्टक

१२—राजा कुश बड़े धर्मज्ञ और तपस्वी थे। उनका विवाह विदर्भ कुल की एक राजकुमारी के साथ हुआ था जिससे चार बेटे हुये, कुशाम्ब, कुशनाभ, अमूर्तरजस और वसु। कुश ने अपने बेटों से कहा कि जाओ धर्म से प्रजापालन करो। इस पर कुशाम्ब ने कौशा म्बी[] नगरी ब साई। कुशनाभ महोदययूर[] में जाकर रहे श्रमूर्तरजस धर्मारण्य[] में जा कर बसे और वसु गिरिब्रज[] का राजा हुआ। यह गिरिब्रज मागधी नदी के तट पर था और इसके चारों ओर पाँच पहाड़ियाँ थीं। कुशनाम के धृताची अप्सरा से सौ बेटियाँ हुई। जब लड़कियाँ सयानी हुई तो गहने कपड़े पहने बारा में नाचती गाती फिरती थीं। उनका विवाह कुशनाभ ने चूली मुनि के पुत्र ब्रह्मदत्त के साथ कर दिया। ब्रह्मदत्त कंपिलापुरी[] का राजा था।

१६—विश्वामित्र-इनका चरित्र अपूर्व है। वाल्मीकीय रामायण में इनके विषय में जो कुछ लिखा है वह संक्षेप से यों है।

विश्वामित्र ने बहुत दिनों तक राज किया। एक बार बड़ी सेना लेकर यात्रा करते हुये वसिष्ठ के आश्रम को गये। वसिष्ठ ने उनका स्वागत किया और कुशल क्षेम पूछा। विश्वामित्र ने कहा सब कुशल है और कुछ दिन वहाँ रहे। एक दिन वसिष्ठ जी हंसकर बोले हम आपकी पहुनाई करना चाहते हैं, आप स्वीकार कीजिये। विश्वामित्र ने उत्तर दिया कि आप की मीठी बातों ही से पहुनाई हो चुकी। अब हमको आज्ञा दीजिये हम जायँ। परन्तु वसिष्ठ जी ने आग्रह किया और विश्वामित्र ठहर गये। तब वसिष्ठ ने अपनी होम धेनु को बुलाया और कहा, "हम इस राजा की पहुनाई करना चाहते हैं, तुम खाने पीने की अच्छी से अच्छी सामग्री से सेना समेत राजा को भोजन कराओ।" धेनु ने बात की बात में अच्छे से अच्छे भोजन पान सब इकट्ठा कर दिये। जब विश्वामित्र अपने मंत्री आदि के साथ खा पी कर तृप्त हो गये तो कहने लगे कि आप हमसे लाख गायें ले लीजिये और अपनी होमधेनु हमें दे डालिये। वसिष्ठ बोले हम करोड़ गायों के बदले अपनी धेनु न देंगे। इसीसे हमारे सारे काम चलते हैं। इस पर विश्वामित्र ने कहा हज़ार हाथी ले लीजिये, जितना चाहिये रत्न और सोना लीजिये, परन्तु वसिष्ठ ने न माना, और कहा, यही हमारा सर्वस्व है, यही हमारा जीवन प्राण है, हम इसे न देंगे। इस पर विश्वामित्र ने बरजोरी से गाय को पकड़ना चाहा परन्तु तत्‌क्षण बड़े बड़े योधा निकल आये और विश्वामित्र की सेना को मार भगाया। पीछे बहुत दिनों तक लड़ाई होती रही परन्तु वसिष्ठ के ब्रह्मवल ने विश्वामित्र के क्षत्रियबल को परास्त कर दिया। तब विश्वामित्र ने यह संकल्प किया कि ब्राह्मण बनना चाहिये और कठिन तपस्या करने चले गये। यहीं उनके पास त्रिशंकु पहुँचा जिसकी कथा ऊपर लिखी जा चुकी है। वाल्मीकीय रामायण में लिखा है कि त्रिशंकु को स्वर्ग पहुँचाकर विश्वामित्रजी पुष्कर चले गये। यहां उनको मेनका मिली जिसके फंद में पड़कर विश्वामित्र के शकुन्तला नाम की लड़की पैदा हुई जिसकी कथा संसार में प्रसिद्ध है। यहां से विश्वामित्र कौशिकी नदी के तट पर जाकर तपस्या करने लगे। यहां उनकी तपस्या बिगाड़ने को रम्भा नाम की अप्सरा पहुँची। विश्वामित्र जी ने जो एक बार मेनका के फन्द में पड़कर फल पा चुके थे उसको शाप दिया कि तू पत्थर हो जा। यहीं बहुत कड़ी तपस्या करने से उनको ब्रह्मर्षि का पद मिला और वसिष्ठ जी ने भी उन्हें ब्राह्मण स्वीकार कर लिया। विश्वामित्र के कई बेटे थे मधुच्छन्दस्, कट, ऋषभ, रेणु, अष्टक और गालव। विश्वामित्र के ब्रह्मर्षि बनने पर अष्टक कान्यकुब्ज का राजा हुआ। विश्वामित्र ने शुनःशेप को अपना पुत्र मान लिया क्योंकि शुनःशेप बिक चुका था और उसका अपने पैत्रिक कुल से कोई संबंध न था। विश्वामित्र ने शुनःशेप को देवरात की पदवी देकर अपने पुत्रों में जेठा बनाया।

इतिहास की जांच से प्रकट होता है कि विश्वामित्र ब्राह्मण कुल का नाम था और उसी वंश के अनेक ब्रह्मर्षि भिन्न भिन्न अवसरों पर वसिष्ठों से लड़ते रहे।

विश्वामित्र की बहिन सत्यवती कौशकी भार्गव ऋचीक को ब्याही थी, जिसका लड़का जमदग्नि था। यह विवाह बड़े झगड़े से हुआ था। ऋचीक ने गाधिराज से कन्या मांगी। गाधिराज न चाहते थे कि सत्यवती उनके साथ ब्याही जाय और उनसे एक हज़ार श्यामकर्ण घोड़े मांगे। ऋचीक ने वरुणदेव से एक हज़ार घोड़े मांग कर राजा को दे दिये। यह कौशिकी पीछे नदीरूप में प्रकट हुई। जमदग्नि की स्त्री रेणुका इच्वाकुवंशी राजा रेणु की बेटी कही जाती है। परन्तु इस नाम का कोई राजा अयोध्या राजवंश में नहीं है।

  1. जहनु ने अपने यज्ञस्थान को गङ्गाजल में डूबता देखकर समाधिस्थल से सारा गङ्गाजल पान कर लिया। उस समय देवर्षियों ने उन्हें प्रसन्न करके गङ्गा को पुत्रीरूप से स्वीकार कराया तब जहनु ने उनको छोड़ दिया।
  2. कौशाम्बी यमुना के उत्तर तट पर चन्द्रवंशी राजाओं की प्रसिद्ध राजधानी थी। जब हस्तिनापूर गङ्गा की बाढ़ से कट गया तो राजा निचतु राजधानी कौशाम्बी उठा लाया।
  3. महोदयपुर कान्यकुब्ज का पुराना नाम है।
  4. कुछ लोग अनुमान करते हैं कि बलिया और गाजीपूर का कुछ अंश धर्मारण्य कहलाता था।
  5. गिरिबज-राजगृह का पुराना नाम है। यह नगर पाँच पहाड़ियों के बीच में बसा था, जिनके नाम समय समय पर बदला किये हैं। यह नगर फल्गु के तट पर बसा हुमा था।
  6. कंपिला-आज-कल का कंपिल नाम नगर एटा जिले में है।