अयोध्या का इतिहास/उपसंहार/(झ) चन्द्र-वंश-यदु (मगध राज वंश
उपसंहार (झ)
चन्द्रवंश
यदुवंश (मगधराज वंश)
बसु (चैद्योपरिचर-गिरिका) | |||||||||||||||||
महारथ–जिसने वृह्द्रथ के नाम से मगध राज स्थापित किया। | |||||||||||||||||
कुशाग्र | |||||||||||||||||
वृषभ (ऋषभ) | |||||||||||||||||
पुण्यवत् | |||||||||||||||||
पुण्य | |||||||||||||||||
सत्यधृति (सत्यहित) | |||||||||||||||||
धनुष | |||||||||||||||||
सर्ब | |||||||||||||||||
संभव | |||||||||||||||||
वृह्द्रथ २ | |||||||||||||||||
जरासन्ध | |||||||||||||||||
सहदेव (महाभारत में मारा गया) | |||||||||||||||||
सोमवित् | |||||||||||||||||
श्रुतश्रवस् | |||||||||||||||||
इनमें जरासन्ध बड़ा प्रतापी राजा था। इसके प्रताप का वर्णन महाभारत सभापर्व अध्याय १४ में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से किया है। इसी के डर के मारे (पूर्व) कोशल के राजा दक्षिण भाग गये थे, और उन्होंने कदाचित् वहाँ दक्षिण कोशल राज स्थापित किया। इसकी दो बेटियाँ कंस को ब्याही थी। कंसवध के पीछे जरासंध कृष्ण का कट्टर बैरी हो गया और उसी के डर से श्रीकृष्ण यदुवंशियों को लेकर द्वारका (कुशस्थली) भाग गये थे। जरासंध के मारे जाने पर उसका राज छिन्न-भिन्न हो गया। सहदेव को मगध के पश्चिम का अंश मिला। उसी के साथ साथ मगध के दो और राजाओं के नाम हैं दंडधार और दंड, जो गिरिब्रज में राज करते थे। सहदेव के भाई नयसेन के पास भी कुछ राज था।