अद्भुत आलाप/१०—क्या चिड़ियाँ भी सूँघती हैं?

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लेने का फ़ायदा नहीं उठाती। उसकी सहायता से वे अपनी खूराक का पता सूँघकर नहीं लगा सकतीं। अगर किसी जानवर की लाश किसी चीज़ से छिपा दी जाय या किसी चीज़ की आड़ में कर दी जाय, तो गीध, कौए और चील्ह वगैरह मांस-भक्षी चिड़ियाँ उसे नहीं ढूँढ़ सकतीं। सूँघकर वे उसका पता नहीं लगा सकतीं। डॉक्टर ग्यूलेमार्ड ने इस बात को परीक्षा से सिद्ध किया है। बहुत मौकों पर ऐसा हुआ है कि शिकार किए हुए जानवर को वह घर नहीं ले जा सके। भारी होने के सबब से उसे वह अकेले नहीं उठा सके। इस हालत में उन्होंने उस जानवर का पेट फाड़कर उसकी आँतें वग़ेरह फेक दी हैं, और लाश को वहीं, पास के किसी गढ़े में, छिपा दिया है। आदमियों को साथ लेकर लाश उठा ले जाने के लिये जब वह लौटे हैं, तब उन्होंने देखा है कि सैकड़ों मांसखोर चिड़ियाँ आलायश वगैरह के पास बैठी हैं। पर वहाँ जरा दूर पर, गड़े के भीतर छिपाई हुई लाश के पास वे नहीं गई। उसका कुछ भी पता उनको नहीं लगा। यदि उनमें घ्राण-शक्ति होती, तो सूँघकर वे ज़रूर उसे ढूँढ़ निकालतीं।

अलेगजेंडर हिल साहब ने अनाज खानेवाली चिड़ियों की घ्राण-शक्ति को परीक्षा की है, और उसका नतीजा उन्होंने प्रकाशित किया है। उन्होंने अनाज की एक छोटी-सी ढेरी लगाकर उसके भीतर रोटी के टुकड़े रख दिए। इन टुकड़ों को उन्होंने पहले ही से हींग, कपूर, लेवेंडर इत्यादि उग्र गंधवाली
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चीज़ों से खूब लपेट दिया। तब अनाज चुनने के लिये उन्होंने एक भूखे मुर्गे को छोड़ा। उसने चुनते-चुनते रोटी पर चोंच मारी, और उसके भीतर उसने चोंच प्रवेश कर दी। एक सेकंड में उसने चोंच खींच ली, और गरदन ऊपर उठाकर उसे ज़रा हिलाया। बस, फिर वह खाने लगा, और रोटी के टुकड़ों को एक-एक करके खा गया। इस जाँच से अच्छी तरह यह न मालूम हुआ कि मुर्ग को गंध से घृणा है या प्रीति। इस कारण हिल साहब ने एक और जाँच की। इस बार की जाँच पहले से अधिक कड़ी थी।

उन्होंने छलनी की तरह के एक बर्तन को उल्टा करके उसके ऊपर दाना रख दिया। बर्तन के नीचे क्लोरोफार्म (ज्ञान-नाशक दवा, जिसे सुँघाकर डॉक्टर लोग चीड़-फाड़ का काम करते हैं ) में डुबोकर स्पंज का एक टुकड़ा उन्होंने रक्खा। तब दाना चुगने के लिये एक मुर्गी को छोड़ा। जब थोड़ा दाना चुगने से रह गया, तब उस चिड़िया ने बर्तन के ऊपर धीरे-धीरे चोंच मारना शुरू किया। उसने बार-बार अपना सिर ऊपर उठाया, और बाजू फैलाए। इससे यह जाहिर हुआ कि क्लोरोफार्म का कुछ असर उस पर जरूर हुआ। परंतु जब उन्होंने मुर्ग को उसी तरह चुगने के लिये छोड़ा, तब उस हज़रत ने ज़रा भी इस बात का चिह्न नहीं ज़ाहिर किया कि उस पर क्लोरोफार्म का कुछ भी असर हुआ हो। इसके बाद परीक्षक ने 'प्रूज़िक एसिड' को छलनी के नीचे रक्खा। यह बहुत ही तीव्र
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और उग्र-गंधी तेज़ाब है। फिर मुर्ग महाशय चुगने के लिये छोड़े गए। तेजाब की तेजी का खयाल करके हिल साहब वहाँ से हट आए। कुछ देर तक उस वीर मुर्गे ने मामूली तौर पर झट-झट दाना चुगा। किसी तरह की कोई गैर-मामूली बात उसमें नहीं देख पड़ी। पर जरा देर बाद उसे चक्कर आने लगा। एक टाँग को दूसरी पर रखकर वह खड़ा हो गया। बार-बार अपनी चोंच को वह ऊपर उठाने लगा। फिर कुछ देर में वह वहाँ से हट आया, और अपने रहने की जगह चला गया। वहाँ अपना सिर नीचे झुकाकर और पख फैलाकर वह खड़ा रहा। दस मिनट तक वह इस हालत में रहा। इसके बाद वह उस छलनी के पास फिर वापस आया। पर दुबारा दाना चुगने की कोशिश उसने नहीं की। देखने पर मालूम हुआ कि उसकी चोटी खून से भीगी हुई थी।

इन परीक्षाओं से इस बात का अच्छी तरह पता नहीं लगा कि चिड़ियों में घ्राण-शक्ति होती है अथवा नहीं। और, होती है, तो कितनी होती है; किस-किस चिड़िया में होती है; और किसमें कम और किसमें अधिक होती है। इस विषय की जाँच जारी है। आशा है, कुछ दिनों में कोई निश्चित सिद्धांत स्थिर हो जाय।

एप्रिल, १६ ५