अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश
रामनारायण यादवेंदु

पृष्ठ १२६ से – १२८ तक

 

जर्मनी--यूरोप का एक शक्तिशाली राज्य, क्षेत्रफल २,१०,००० वर्ग-मील, जन-सख्या ७,८०,००,००० है। इसमें आस्ट्रिया और सूडेटनलैण्ड की जन-संख्या शामिल है, परन्तु बोहेमिया, मोराविया तथा अधिकृत पोलैण्ड की जन-सख्या शामिल नहीं है। सन् १९१८ की पराजय के बाद जर्मनी में प्रजातत्र की स्थापना हुई। इससे पूर्व एकच्छत्र शासन-प्रणाली प्रचलित थी। सन् १९३० मे जर्मनी में प्रजातत्र का हास आरम्भ हुआ और नात्सी दल का बल बढने लगा। १९३३ के जुलाई मास में हिटलर का दौर-दौरा हो गया। इस समय जर्मनी में कोई लिखित शासन-विधान नहीं है। यद्यपि प्रजातंत्रवादी शासन-विधान का विधिवत् अन्त नहीं किया गया है, परन्तु जर्मनी में हिटलर ने एक अलिखित विधान की निम्न प्रकार से रचना की है।

शासन की समस्त सत्ता नात्सी-दल के नेता (Fuhrer) हिटलर में केन्द्रित है। उसकी इच्छा ही कानून है। वह समस्त मत्रियों तथा उपनेताओं की नियुक्ति करता है। यह मत्री तथा उपनेता सार्वजनिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा समाज के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के लिए नेताओं की नियुक्ति करते हैं। यह नेतृत्व का सिद्वान्त कहलाता है। चुनाव तथा प्रजातत्र से नात्सी और हिटलर घृणा करते हैं। हिटलर को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत करने का अधिकार है। जर्मन पार्लमेट (राइखताग-Reichstag) मे ८५५ सदस्य हैं। सब नात्सी है। यह राइखताग अपना अधिवेशन सिर्फ हिटलर का भाषण सुनने के लिये बुलाती है। किसी भी सदस्य को भाषण करने का अधिकार नही है। राइख को कानून बनाने का भी अधिकार नही है। क़ानून सरकार द्वारा बनाये जाते है जो अपने नेता हिटलर के प्रति जिम्मेदार है। कोई बजट न-पार्लमेट के सामने प्रस्तुत किया जाता, न जनता की सूचना के लिये प्रकाशित ही किया जाता है। सरकार मनमाने ढंग से कर लगाती तथा उन्हे वसूल करती है। नागरिको को सरकारी किसी भी कार्य में कोई हस्तक्षेप करने का अधिकार नही है। राष्ट्रीय समाजवादी अर्थात् नात्सी दल ही

अकेली संस्था है जो सरकार द्वारा स्वीकृत तथा क़ानूनी है। नात्सी दल का संगठन भी सरकार की तरह है। एक प्रकार से यह दल भी स्थानान्तर सरकार ही है। नात्सी विचारधारा के विरुद्ध कोई बात कहना अपराध है। जर्मनी मे कोई भी नागरिक-स्वाधीनता नागरिको को प्राप्त नहीं है। न अपने विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता है, न भाषण करने या सभा में जाने की। व्यक्तिगत स्वाधीनता तो और भी ख़तरे में है। आतकवाद के कारण नागरिको को हर समय भय का शिकार बने रहना पड़ता है। यहूदियों के ख़िलाफ क़ानून प्रचलित हैं। ईसाई-धर्म (चर्च) की वर्तमान संस्था के अधीन और उसके अन्धानुयायी नात्सी नहीं रहना चाहते। प्रोटेस्टेन्टवाद को वह अपने राष्ट्रीय-समाजवादी संगठन के अधीन रखना चाहते है। इसी कारण उन्हे गिरजाघरो के प्रति श्रद्धा नहीं है। मज़दूर सघो की मनाई है तथा सब मज़दूरो को 'नात्सी मज़दूर मोर्चे' में शामिल होना ज़रूरी है।

सामान्यतया एक-चौथाई औद्योगिक पैदावार जर्मनी बाहर दूसरे देशो को भेजता था। सन् १९२९ में १३ अरब मार्क (जर्मन सिक्का) का माल विदेशो को गया। सन् १९३३ में केवल ४ अरब मार्क का माल बाहर गया और सन् १९३८ में ५ अरब २ करोड़ मार्क का माल जर्मनी ने विदेशो को भेजा तथा ५ अरब ५ करोड़ मार्क का माल विदेशो से मॅगाया। जर्मनी सिर्फ कच्चा माल तथा खाद्य पदार्थ बाहर-से मॅगाता था। कई साल से जर्मनी में अन्न और कच्चे माल का टोटा रहा है। कोयला जर्मनी मे पर्याप्त है। कुछ लोहा उसे बाहर से मॅगाना पड़ता है। युद्ध छेड़ देने से जर्मनी के वैदेशिक-व्यापार में लगभग ७० फीसदी की कमी होगई है। जर्मनी का राष्ट्रीय ऋण सन् १९३३ में १२ अरब मार्क और युद्ध शुरू होने के पहले ६० अरब मार्क था। जर्मनी में कच्चे माल का अभाव है। केवल कोयला ही वहाँ पैदा होता है। अन्न भी कम पैदा होता है। नात्सी-जर्मनी का उद्देश, यूरोपियन लेखको के अनुसार, साम्राज्यवाद और यूरोप तथा संसार पर आधिपत्य स्थापित करना प्रतीत होता है। विगत विश्वयुद्ध की पराजय से जर्मन-जाति की मनोवस्था पर बहुत प्रतिक्रिया हुई है। उनका कहना है कि पिछले महायुद्ध में केवल समाजवादी क्रियाकलाप और नेतृत्व

के अभाव के कारण जर्मनी की पराजय हुई। इसकी पुनरावृत्ति न हो, इसलिए समस्त सबल विरोधियो को हटाकर नात्सी जर्मन अपनी जाति को लौह अनुशासन मे सङ्गठित करके वर्तमान युद्ध द्वारा संसार मे 'नवविधान' (World New Order) की रचना करना चाहते हैं।

१९३५ में जर्मनी में सार्वजनिक सैनिक-शिक्षा पुनः जारी की गई। इन दिनो अनुमानतः पचास लाख सेना वहाँ है। यह सेना मुकम्मल तौर पर यान्त्रिक शस्त्रास्त्र से ल्हैस है, जिसमे कितने ही वख्तरपोश डिवीजन हैं। १५ से ३० हजार तक वायुयान नात्सी-सेना में अनुमान किये जाते हैं। नात्सी युद्ध-कला यन्त्रोपयोग की महत्ता और पंचम पक्ति के प्रयोग पर आधारित है।

जर्मन नौ-सेना मे २ युद्ध-पोत, ३ छोटे युद्ध-पोत, ६ क्रूज़र, ३१ ध्वसक, ६५ यू-बोट युद्धारम्भ के समय थे। इनके अतिरिक्त कई युद्ध-पोत आदि बन रहे थे। जून १९४१ तक उसकी जलीय हानि की गणना की जाय तो वह इससे बहुत अधिक होती है। लेकिन शायद जर्मनी अपनी इस कमी की पूर्ति जहाँ-की-तहाँ करता जा रहा है। जर्मनी ने ता० १ सितम्बर १९३९ को पोलैण्ड पर आक्रमण कर महायुद्ध छेड़ दिया। उसने पोलैण्ड, नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क, बेलजियम, हालैण्ड, फ्रान्स, चैकोस्लोवाकिया, रूमानिया, यूनान, कीट आदि देशो को अधिकृत कर लिया है।