अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ाँ

अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश
रामनारायण यादवेंदु

पृष्ठ ९५ से – ९६ तक

 

खान अब्दुल गफ्फार खाॅ--जन्म सन् १८९०। ख़ुदाई ख़िदमतगार संगठन के नेता तथा संचालक। रौलट-ऐक्ट के विरोध मे, १९१९ में, आन्दोलन किया। असहयोग-आन्दोलन में ३ साल की सख्त सज़ा दी गई। सन् १९२९ में अफ़ग़ान जिरगो का संगठन किया। सन् १९३२ से १९३४ तक हज़ारीबाग़ जेल ( बिहार ) मे राजबन्दी रहे। सन् १९३४ में, अपने भाई डा० ख़ान साहब सहित, पंजाब से निर्वासित कर दिये गये। तब वर्धा के निकट सेवाग्राम आश्रम में गान्धीजी के पास रहे। सन् १९३५ में, बम्बई कांग्रेस अधिवेशन के संबंध में भाषण देने पर, दो साल की सख्त सज़ा दी गई। ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ॉ महात्मा गान्धी के अहिंसावाद के कट्टर समर्थक हैं । महात्माजी के बाद ख़ॉ साहब ही हैं, जो अहिंसा के अनन्य पुजारी हैं। उनके १,००,००० से भी अधिक अनुयायी हैं जो खुदाई ख़िदमतगार के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह वास्तव में एक महान् आश्चर्य ही है कि इन वीर पठानो ने हिंसा का त्याग कर अहिंसा का व्रत लिया है और सत्याग्रह आन्दोलन ( १९३०-३२ ) में इनकी कठिन परीक्षा भी हो चुकी है। सन् १९३० ई० में गढ़वाली सैनिको का निहत्थी जनता पर गोली चलाने से इनकार, फिर पेशावर गोली-काण्ड और पठानो का बलिदान, कांग्रेस द्वारा गोली-काण्ड की जॉच और उसकी

रिपोर्ट की ज़ब्ती आदि सभी घटनाये इस प्रसङ्ग से सम्बन्धित हैं।
आप सच्चे मुसलमान हैं--सहिष्णु,

उदार, सहृदय। आचारिक मर्यादा-पालन को ही आप धर्म नहीं मानते, बल्कि दैनिक जीवन में पवित्र आचरण को धार्मिक-कसौटी मानते हैं। ९ अगस्त १९४२ से, ‘भारत छोडो' प्रस्ताव के बाद देश में जो उपद्रव हुए हैं, आपके सीमा-प्रान्त मे शान्ति रही और बावजूद देशव्यापी दमन के कांग्रेस इस प्रान्त में गैर-क़ानूनी क़रार नही दी गई, अगरचे स्कूलों आदि पर धरने के कारण गिरफ्तारियाँ हुई।