अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/क्रिप्स के प्रस्ताव
क्रिप्स के प्रस्ताव--ब्रिटीश पार्लमेंट में, ११ मार्च १९४२ को, प्रधान मंत्री मि० चर्चिल ने, भारत की समस्या के विषय में, यह घोषणा की कि, युद्ध-मंत्रि-मंडल ने भारत की वैधानिक-समस्या के हल करने के लिए एक योजना तैयार की है, जो अन्तिम और पूर्ण हैं। परन्तु अभी उसे प्रकाशित नहीं किया जायगा। हाउस आफ् कामन्स के नेता तथा युद्ध-मंत्रि-मण्डल के नवीन सदस्य सर स्टैफर्ड क्रिप्स शीघ्र ही भारत जायॅगे और, भारतीय नेतोओं के समक्ष योजना को प्रस्तुत कर, उनकी सम्मति प्राप्त करेंगे। जब भारतीय लोकमत के नेता उसे स्वीकार कर लेंगे, तब पार्लमेंट उस योजना को अपनी ओर से, घोषण के रूप में, प्रकाशित करेगी।
इस निशचय के अनुसार सर स्टैफर्ड क्रिप्स, अपने स्टाफ के साथ, हवाई जहाज द्वारा, ता० २२ मार्च १९४२ को, भारत में आ गये। ता० २३ मार्च १९४२ से उन्होंने वायसराय, उनकी कौंसिल के सदस्यों, भारतीय राजनीतिक दलो के नेताओं तथा राजनीतिज्ञों से मिलना--भेंट करना आरम्भ कर दिया। कांग्रेस की ओर से राष्ट्रपति मौलाना आज़ाद, हिन्दु-महासभा की ओर से वीर सावरकर, मुस्लिम लीग की ओर से श्री मुहम्मदअली जिन्ना तथा अन्य अनेक पक्षों के नेता क्रिप्स महोदय से मिले।
३० मार्च १९४२ को सर स्टैफर्ड क्रिप्स ने युद्ध-मंत्रि-मणडल के प्रस्ताव प्रकाशित कर दिये। प्रस्ताव इस प्रकार हैं :( १ ) युद्ध की समाप्ति पर भारत मे अग्र-लिखित ढग से एक निर्वाचित संस्था स्थापित की जायगी, जिसका कार्य भारत के लिए नये शासन-विधान का निर्माण करना होगा।
( २ ) विधान निर्माण करनेवाली परिषद् मे देशी रियासतों के प्रतिनिधित्व की भी निम्नलिखित ढंग से व्यवस्था की जायगी।
( ३ ) सम्राट् की सरकार यह स्वीकार करती है कि वह इस प्रकार बनाए गए विधान को स्वीकार कर लेगी तथा उसे लागू करने का प्रबंध करेगी। परन्तु नीचे लिखी शर्तों की पूर्ति आवश्यक होगीः---
( क ) ब्रिटिश भारत के किसी भी प्रान्त को, जो नये विधान को स्वीकार करने के लिए तैयार न होगा, अपनी वर्तमान वैधानिक स्थिति को क़ायम रखने का अधिकार होगा। यदि भविष्य में वह शामिल होना चाहेगा तो इसके लिए भी विधान में उल्लेख किया जायगा।
यदि भारतीय संघ (इडियन यूनियन) में शामिल न होनेवाले प्रान्त यह चाहेगे, तो ब्रिटिश सरकार उन्हें नया शासन-विधान बनाने की सुविधा देगी और उनकी स्थिति भी वैसी ही होगी जैसी कि भारतीय सघ की।
( ख ) जो संधि ब्रिटिश सरकार तथा विधान निर्माण करनेवाली परिषद् के बीच होगी, उस पर हस्ताक्षर किये जायॅगे। इस संधि-पत्र में वे सब बाते रहेगी जो ब्रिटिश सरकार से भारतीयो को पूर्ण उत्तरदायित्व हस्तान्तरित करने पर पैदा होगी। इसमे जातीय (racial) तथा धार्मिक (religious) अल्पमतो की रक्षा के लिए विधान होगा। परन्तु इस संधि द्वारा भारतीय संघ की उस सत्ता पर कोई प्रतिबन्ध न लगाया जायगा जिससे वह भविष्य में ब्रिटिश राज्य-समूह (ब्रिटिश कामनवैल्थ) के दूसरे राज्यों के साथ, संबंधों के विषय मे, निर्णय करेगी।
चाहे देशी राज्य विधान को स्वीकार करना पसन्द करे अथवा न करे, नई परिस्थिति में सधियो की व्यवस्था में परिवर्तन करने पड़ेंगे।
( ४ ) विधान निर्माण करनेवाली परिषद् का संगठन इस प्रकार होगा, जबतक कि भारतीय लोकमत के नेता मिलकर, युद्ध समाप्ति से पूर्व, कोई दूसरा उपाय निश्चित न करले।