अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/कोमागाता मारू

अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश
रामनारायण यादवेंदु

पृष्ठ ९१ से – ९२ तक

 

कोमागाता मारू--यह एक जापानी जहाज़ का नाम है। इसके साथ एक बड़ा मनोरंजक, किन्तु वीरतापूर्ण, इतिहास जुडा हुआ है। गत विश्व-युद्ध (१९१४) से पूर्व कनाडा की प्रिवी कौसिल ने अपने एक आज्ञा-पत्र में यह घोषणा की कि भारतीयो को कनाडा में प्रवास के लिए प्रविष्ट न होने दिया जायगा। जो कनाडा मे बस गये है, वे ही प्रवेश पा सकेंगे। उन दिनो कनाडा के लिए भारत से सीधा कोई जहाज़ नही जाता था। जो भारतीय कनाडा मे अधिवासी बन गये थे उन्हे भी क़ानूनी बाधायें लगाकर तथा अन्य बुरी तरह परेशान किया जाता था। वे भारत से अपने स्त्री-बच्चो को कनाडा मे नही लेजा सकते थे।

उक्त आज्ञा-पत्र के विरोध मे सन् १९१४ मे बाबा गुरूदत्तसिंह नामक एक साहसी सिख ने कोमागातामारू नामक एक जहाज़ कनाडा के लिए किराये पर लिया। यह माल ले जानेवाला जहाज़ था। इसमे ६०० सिख
सवार हुए। यह जहाज़ हाग्काग् या तोकियो पर ठहरे बिना सीधा कनाडा चला गया। यह जहाज़ तीन-चार मास तक कनाडा के बन्दरगाह पर खड़ा रहा, परन्तु सिखो को कनाडा में प्रविष्ट न होने दिया गया। कनाडा की सेना के सैनिकों तथा इस जहाज़ के यात्रियों में खूब संघर्ष रहा। यात्रियों को अनेक यातनाएँ भोगनी पडीं। खाने की सामग्री भी समाप्त होगई। अन्त में भारत मंत्री के हस्तक्षेप से जहाज को वापस भारत लौटना पड़ा।

भारत लौटकर बजबज में जहाज ने लगर डाला। सिखो को यह आज्ञा दी गई कि वे रेलगाड़ी में बैठकर सीधे पंजाब चले जायें। परन्तु सिख रेल में सवार होने से पहले सरकार के पास एक दख़ास्त भेजना चाहते थे। सरकार ने ज़बरदस्ती उन्हे पंजाब भिजवाया। गोली भी चली। बाबा गुरुदत्तसिंह जहाज़ में से गायब होगये। क़रीब ७ बर्ष तक वेष बदलकर वह छिपे रहे। इस समय में ख़ुफिया पुलिस बराबर उनकी तलाश में रही। नवम्बर १९२१ में बाबा गुरुदत्तसिंह महात्मा गान्धी से मिले। गान्धीजी ने उन्हे यह सलाह दी कि वह गिरफ़्तार होजायॅ। बाबाजी गिरफ़्तार होगये और उन्हे क़ैद की सज़ा दी गई। २८ फरवरी १९२२ को वह लाहोर जेल से मुक्त कर दिये गये। कलकत्ता में उन्होने भारत मन्त्री के विरुद्व कई लाख रुपये हर्जाने का दावा किया, परन्तु वह ख़ारिज होगया।