अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/कांग्रेस-समाजवादी-दल

[ ७८ ] कांग्रेस-समाजवादी-दल---मई १९३३ में पटना में हुई अखिल-भारतीय कांग्रेस कमिटी के अधिवेशन मे सत्याग्रह आन्दोलन के स्थगित करने का प्रस्ताव स्वीकार किया गया। इसी अवसर पर सर्वप्रथम कांग्रेस समाजवादी सम्मेलन भी, काशी विद्यापीठ के आचार्य श्री नरेन्द्रदेव की अध्यक्षता मे, हुआ। श्री जयप्रकाश नारायण संगठन-मंत्री नियुक्त किये गये। ७-८ वर्षों मे इस आन्दोलन ने राष्ट्रीय आन्दोलन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला है। आज यह दल कांग्रेस के अन्तर्गत अन्य दलो से अधिक सुसंगठित है। कांग्रेस
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कार्य के अतिरिक्त यह दल किसानो-मज़दूरों के संगठन का कार्य स्वतंत्र रूप से भी करता रहा है और किसान सभा तथा मज़दूर सभा मे, दूसरे दलो की अपेक्षा, इसके सदस्य सबसे अधिक संख्या में है। इसका अखिल-भारतीय संगठन है जो अखिल-भारतीय कांग्रेस-समाजवादी दल के नाम से प्रसिद्ध है। प्रत्येक प्रान्त मे इसकी शाखाएँ है। ज़िलो और नगरो में भी इसका संगठन है। इसका लक्ष्य भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना और भारत मे समाजवादी शासन-प्रणाली की स्थापना करना है। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है--

(१) समस्त सत्ता जनता के हाथ मे रहे।

(२) देश के आर्थिक-जीवन का नियत्रण एव विकास राज्य द्वारा हो।

(३) सबसे पहले बड़े उद्योगो का समाजीकरण किया जाय, जिससे उत्पत्ति, वितरण तथा विनिमय के समस्त साधनो पर समाज का स्वाम्य स्थापित होसके।

(४) विदेशी व्यापार पर राज्य का एकाधिकार हो।

(५) राजाओं, नवाबो तथा ज़मीदारो को, बिना किसी प्रकार की क्षति-पूर्ति दिये, ज़मीदारी प्रथा का अन्त।

(६) किसानो तथा मज़दूरो के क़र्जे़ की माफ़ी।

(७ ) व्यावसायिक आधार पर वयस्क मताधिकार।

जब सन् १९३६ मे कांग्रेस ने यह निश्चय किया कि कांग्रेस को प्रान्तीय चुनाव में भाग लेना चाहिए, तब पहले तो समाजवादियो ने कौसिल-प्रवेश का विरोध किया, परन्तु बाद मे, साम्राज्यवाद के विरोध के लिए, उन्होने भी कौसिल-प्रवेश का निश्चय किया। काफी संख्या में समाजवादी प्रान्तीय धारासभाओ मे चुने गये। जब सन् १९३७ मे, देहली मे, मार्च मे, काग्रेस की अखिल-भारतीय कमिटी का अधिवेशन हुआ तो इन्होने मंत्रि-पद-ग्रहण का विरोध किया। परन्तु पद-ग्रहण का प्रस्ताव गान्धीजी के प्रभाव से पास हो गया। जब कांग्रेस मंत्रि-मण्डल बनाये गये, तब समाजवादी सदस्यों ने मंत्रि-पद ग्रहण करना अस्वीकार कर दिया। कांग्रेस-शासन-नीति की समाजवादियो ने कड़ी आलोचना की। कांग्रेस-सरकारों ने किसान और मज़दूरो के आन्दो-
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लन को बिलकुल प्रोत्साहन नही दिया अपितु उसे दबाने का प्रयत्न किया, और इन कार्यों मे पुलिस की भी सहायता ली। समाजवादी नेताओं ने इन कार्यों की निन्दा की। काग्रेस-शासन-काल में समाजवादी-आन्दोलन बहुत व्यापक और प्रभावशाली होगया। काग्रेस समाजवादी वर्तमान युद्ध को साम्राज्यवादी समझते हैं और उसमे सहायता देने के कट्टर विरोधी हैं। वे चाहते है कि युद्ध के विरोध में भारतव्यापी जनान्दोलन छेड़ा जाय। महात्मा गान्धी के व्यक्तिगत युद्ध-विरोधी सत्याग्रह से वे सहमत नहीं रहे। काग्रेस समाजवादी-दल के प्रमुख नेता हे--सर्वश्री

आचार्य नरेन्द्रदेव, जयप्रकाश नारायण, यूसुफ मेहरअली, अच्युत पटवर्धन, श्रीमती कमलादेवी।