अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश
रामनारायण यादवेंदु

पृष्ठ ६१ से – ६२ तक

 

ईरान--यह फारिस का आधुनिक नाम है। इसका क्षेत्रफल ६,२८,००० वर्गमील तथा जनसख्या १,५०,००,००० है। ईरान का शासक शाह कहलाता है। इसकी राजधानी तेहरान है। पहले यह बड़ा शक्तिशाली राज्य था। सन् १९०० से इसमे आन्तरिक कलह मचा। सन् १९०६ की राज्यक्रान्ति के बाद इसमे वैधानिक शासन की स्थापना की गई। सन् १९०७ में, रूस-ब्रिटेन-सन्धि के अनुसार, उत्तरी ईरान, रूस तथा दक्षिणी भाग ब्रिटेन के प्रभाव-क्षेत्र में आगये।

विगत विश्वयुद्ध मे ईरान तटस्थ रहा था। सन् १९१७ की रूसी राज्य-क्रान्ति के बाद रूसी सरकार ने ब्रिटेन-रूस-सन्धि (१९०७) का अन्त कर दिया और ईरान मे समस्त रूसी अधिकारो का परित्याग कर दिया। सन् १९१८ में ईरान से अँगरेज़ी सेना भी वापस बुला ली गई। इस समय रिज़ा ख़ॉ नामक एक सैनिक अफसर ने राष्ट्रीय आन्दोलन का संचालन किया। सन् १९२० में वह युद्ध-मंत्री बन गया और सन् १९२२ में प्रधान मंत्री।

जब फारिस का विलासी शाह यूरोप को गया तो, उसकी अनुपस्थिति में,
रिज़ाख़ाँ खुद शाह बन बैठा। शासन की बागडोर अपने हाथ में लेकर उसने देश मे राष्ट्रीयता तथा आधुनिकता को ख़ूब प्रोत्साहन दिया। सन् १९२५ में वह बाक़ाइदा शाह बन गया और रिजाशाह पहलवी कहलाने लगा। उसने देश की आश्चर्यजनक उन्नति की। उद्योगधंधों को बढ़ाया और देश को वास्तव में स्वतंत्र बना दिया। सन् १९२६ में उसने तुर्की से और १९२७ में सोवियट यूनियन तथा अफ़ग़ानिस्तान के साथ मित्रता की संधियाँ की। सन् १९३४ में सादाबाद का समझौता हुआ, जिसके अनुसार तुर्की, फारिस, इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में परस्पर राजनीतिक सहकारिता स्थापित होगई। सन् १९३५ में फारिस की सरकार ने समस्त विदेशी सरकारो से यह निवेदन किया कि वे फारिस को ईरान नाम से संबोधन करे। ईरान में तेल सबसे अधिक पैदा होता है। २० जून १९४१ को नाजी सेना ने सोवियट रूस पर हमला कर दिया। इससे ईरान, इराक़, सीरिया आदि मे ख़तरे की संभावना बढ़ गई। ईरान में इस समय ३००० नाजी गुप्तचर मौजूद थे। इनकी उपस्थिति तथा प्रभाव भारत, मिस्र और ईरान के लिए ख़तरनाक था। इसलिए ब्रिटिश सरकार ने ईरान के शाह से
यह प्रार्थना की कि वह अपने यहाँ से नाजियो को निर्वासित करदे। इसका उत्तर सन्तोषप्रद न मिलने पर, अगस्त १९४१ मे, रूस तथा ब्रिटिश सरकारो ने ईरान में अपनी फौजे, सुरक्षा के लिए, भेज दी और वहाँ से नाजियो को निकाल दिया।

रूसी तथा बरतानवी सेनाओं के ईरान में पहुँचते ही रिज़ा शाह पहलवी अपने पुत्र को राज्य सौंपकर किसी दूसरी जगह चला गया। इस प्रकार नाज़ियो की कूटनीति का एक पासा यहाँ पलट गया।