अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/अटलांटिक योजना

अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश
रामनारायण यादवेंदु

पृष्ठ १५ से – १६ तक

 

अटलांटिक योजना—अगस्त १९४१ मे ब्रिटिश प्रधान मंत्री श्री चर्चिल संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति रूज़वेल्ट से नवीन युद्धपोत ‘प्रिंस आफ वेल्स' मे अटलांटिक महासागर में एक स्थान पर मिले। इसी स्थान पर इन्होने एक घोषणा-पत्र तैयार किया, जो 'अटलाटिक चार्टर' के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी योजनाये इस प्रकार हैं:—

( १ ) हमारे देश न किसी देश पर विजय चाहते है और न किसी राज्य के प्रदेश पर अधिकार जमाना।

( २ ) हम कोई ऐसे प्रादेशिक परिवर्तन नही चाहते जो उन देशों की जनता की स्वतन्त्र आकाक्षा के अनुकूल न हो।

( ३ ) हम समस्त राष्ट्रों के, अपनी सरकार की प्रणाली को पसन्द करने के, अधिकार का आदर करते हैं, और हम यह देखने के लिए लालायित हैं कि उन्हे पुनः प्रभुत्व के अधिकार तथा स्वशासन प्राप्त हो जिनसे कि वे बलपूर्वक वंचित किए गए है।

( ४ ) हम अपनी वर्तमान ज़िम्मेदारियों का समुचित ध्यान रखते हुए इस बात का प्रयत्न करेगे कि छोटे-बड़े, विजित तथा विजेता सभी राज्योंं को समानता की शर्तों पर व्यापार करने तथा संसार के कच्चे माल को प्राप्त करने का अधिकार हो जिनकी, आर्थिक सम्पन्नता के लिए, उन्हे ज़रूरत है।

( ५ ) हम समस्त राष्ट्रों में, आर्थिक क्षेत्र मे श्रमिको की दशा में सुधार, आर्थिक उन्नति तथा सामाजिक सुरक्षा के उद्देश्य से पूर्ण सामञ्जस्य तथा सहयोग पैदा करना चाहते हैं।

( ६ ) नाजी अत्याचार के अन्तिम सर्वनाश के बाद हम ऐसी शान्ति की स्थापना की आशा करते हैं जिसमें समस्त राष्ट्रों को अपनी सीमाओं के अन्तर्गत सुरक्षित रूप से रहने के साधन प्राप्त हो और जिससे ऐसा आश्वासन मिले कि समस्त देशों में समस्त व्यक्ति अपना जीवन निर्भय होकर स्वच्छन्दता से बिता सके।

( ७ ) ऐसी शान्ति में समस्त व्यक्तियों को समुद्रों तथा महासागरों पर बिना किसी बाधा के यातायात का अधिकार होगा।

( ८ ) हमारा यह विश्वास है कि संसार के समग्र राष्ट्रों को सामारिक तथा आध्यात्मिक कारणों से बल-प्रयोग (Use of force) का परित्याग करना पड़ेगा, क्योंकि भविष्य में शान्ति की रक्षा न हो सकेगी यदि राष्ट्र, आजकल के समान ही, थल-सेना, जल-सेना तथा आकाश-सेना और शस्त्रीकरण को अपने अधिकार में रखे रहेगें, जिनके कारण आक्रमण की संभावना बनी रहेगी। हमारा यह विश्वास है कि जब तक सामान्य सुरक्षा के लिए किसी व्यापक तथा स्थायी प्रणाली की प्रतिष्ठा न हो, तब तक ऐसे राष्ट्रों के लिए निरस्त्रीकरण परम आवश्यक है। हम ऐसे समस्त व्यावहारिक उपायों को प्रोत्साहन देंगे तथा सहायता प्रदान करेगे, जिनसे शान्तिप्रेमी जनता के लिए शस्त्रीकरण का दबा देनेवाला बोझ हल्का हो जाय।

मेजर एटली ने ब्रिटिश पार्लमेंट में सरकार की ओर से यह घोषित किया कि अटलांटिक घोषणा समस्त संसार के राष्ट्रों के लिए लागू होगी, जिनमें भारत तथा ब्रिटिश साम्राज्य भी शामिल हैं। परन्तु सितम्बर १९४१ मे चर्चिल ने अपने भाषण में यह स्पष्ट कर दिया कि, जहाँ तक भारत का सम्बन्ध है, यह घोषणा उसके लिए लागू नहीं होगी, भारत के वाइसराय ने ८ अगस्त १९४० को जिस औपनिवेशिक स्वराज्य की घोषणा की है, वही भारत के लिए उपयुक्त है।

इस नीति का भारतीय लोकमत ने घोर विरोध किया और अपना गहरा असन्तोष प्रकट किया।