"पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/५३": अवतरणों में अंतर

JhsBot (वार्ता | योगदान)
छो bot: Removing unnecessary category
No edit summary
पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा):पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा):
पंक्ति १: पंक्ति १:
नहपान के समयके लेख शक संवत् ४१ से ४६ (ई० स०११९ से - १२५ वि० सं० १७६ से १८१) तक ही मिले हैं। अतः इसने कितने वर्ष राज्य किया था इस बात का निश्चय करना कठिन है। परन्तु अनुमानसे पता चलता है कि शक्-संवत् ४६ के बाद इसका राज्य थोड़े समयतक ही रहा होगा । क्योंकि इस समयके करीब ही आधि-- बंशी राजा गौतमी-पुन शातकर्णिने इसको हरा कर इसके राज्यपर अधिकार कर लिया था और इसके सिक्कोंपर अपनी मुहरें लगवा दी थीं।
________________
नहपानके सिक्कों पर बाह्मी लिपिमें “राज्ञो छहरातस नहपानसग और खरोष्ठी लिपिमें “रनो छहरतस नहपनस" लिखा होता है । परन्तु गौतमीपुत्र श्रीशातकर्णिकी मुहरदाले सिकॉपर पूर्वोन लेखोंके सिवा ब्राह्मीमें रामो गोतमिपुतस सिरि सातकगिस" विशेष लिखा रहता है। 'नहपानके चाँदी और तनिके सिक्के मिलते हैं। इन पर क्षत्रप और महाक्षत्रपकी उपाधियाँ नहीं होती, परन्तु इसके समयके लेखोंमें इसके नामके आगे उक्त उपाधियाँ भी मिलती है।

इसकाजामाता यमदच (उपवशत) इसका सेनापति था। कपमदत्तके पूर्व तितित लेखोंसे पाया जाता है कि इस ( ऋषभइत्त) ने मालपादालसि क्षत्रिय उत्तमभद्रकी रक्षा की थी। पुष्कर पर जाकर एक गाँव
क्षेत्रप-वंश ।।
और तीन हजार गायें दान की थीं। मभासक्षेत्र (सोमनाथ-काठियाबार) में आठ ब्राह्मण-कन्याओंका विवाह करवाया था। इसी प्रकार
नहपानकै समय लेड शङ्क-संवत् ११ से १६ ( ई० स० ११९ से - | १२५=वि० सं० १७६ से १८१) तक ही मिले हैं । अतः इसने कितने वर्ष राज्य किया था इस बात का निश्चय करना कठिन है। परन्तु अनुमानसे पता चलता है कि शक्-संवत् १६ के बाद इसका राज्य थोड़े समयत ही रहा होगा । बयॉर्क इस समयके करीब ही अन्ध-- वंशी राजा गौतम-पुत्र शातकविने सिको हरा कर इसके राज्यपर अघुिर्कार कर लिया था और इसके मिॉपर अपनी मुहरें लगा दी थीं।
और भी कितने ही गाँव तथा सोने चाँदीके सिक्के बाह्मणों और बौद्ध भिक्षुकों को दिये थे, सरायें और घाट बनवाये थे, कुएँ खुदवाये थे, और सर्वसाधारणको नदी पार करने के लिए छोटी छोटी नौकायें नियत
नहपान सिक्कों पर ब्राह्मी लिपिमें राज्ञ छहरातस नहपानस । | और बोडी लिपिमें “ज्ञों हरतस नहषनस" लिखा होता है । परन्तु |तमीपुत्र शातकर्णिकी मुहरवाले सि पर पून लेखोंके सिवा ब्राझीमें *राचे गोतमपुतस सिर सातारा विशेष लिखा रहता है। 'नहपानकै चाँदी और तबके सिक्के मिलते हैं। इन पर क्षत्रप और महाक्षतपको उपाधियाँ नहीं होती, परन्तु इसके समयके लेखोंमें इसके नागके आगे उक्त उपाधियाँ भी मिलती है।
इस काजमाता पमदच (उपवर }इसका सेनापति था। कापमदत्तफे पुर्यद्विवत लेने पाया जाता है कि इस ( ऋषभइत्त ) ने गायाबालास रचिय उत्तमभद्र्की रक्षा की थी । पुष्कर पर जाकर एक गाँव
और तीन हजार गायें दान की थी। प्रभासक्षेत्र ( सोमनाथ-काठियाबाड) में आठ ब्राह्मण-कन्याओं का विवाह करवाया था। इसी प्रकार
और भी कितने ही गाँव तथा सोने चाँदके सिक्के ब्राह्मणों और वह मिकों को दिये थे, सराये और घाट बनाये थे, कुए सुदवाये थे, और सर्वसाधारणको पार करने के लिए छोटी छोटी नायें नियत