"पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/५०": अवतरणों में अंतर

छो १ अवतरण आयात किया गया
No edit summary
 
पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा):पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा):
पंक्ति १: पंक्ति १:
है। इससे सिद्ध होता है कि ३५ कार्याषणोंमें एक सुदर्ग ( उस वकके कुशन-राजाभोंका सनिका सिक्षा) आता या । यदि कापियाका तोल २६ मेन (१४ रत्ती के करीय) और सुवर्णका तोल १२४ मेन (६ मा २रतीक कुरीच) माने तो प्रतीत होता है कि उस समय चाँदीसे सुवर्णकी कीमत करीब १० गुनी अधिक थी।
________________
चएनसे लेकर इस वंशके सिक्कोंकी एक तरफ टोपी पहने हुए राजाका' मस्तक बना होता है। इन सिक्कों परके रानाके मुतकी आकृतियाँका आपस में मिटान करने पर बहुत कम अन्तर पाया जाता है। इससे अनुमान होता है कि उस समय आकृतिके मिलान पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था।

नहपान और चटनके सिकोंमें राजाके मस्सकके इर्द गिर्द पीक अक्षरॉमें मी लेख लिहा होता है। परन्तु चटनके पुत्र रुदामा प्रथमके समयसे ये ग्रीक अक्षा केवल शोमाके लिए ही लिसे जाने लगे थे। जीवदानासे क्षत्रपोंड़ सिमों पर मस्तकके पीछे वाली लिपिमें वर्ष भी लिखे मिलते हैं । ये वर्ष शाक-संवतुके हैं।
मारतके भान राजवंश
इन सिक्कोंकी दुसरी तरफ चैत्य ( बौधस्तूप) होता है, जिसके नीचे एक सर्पाकार रेखा होती है । चैत्यकी एक तरफ चन्द्रमा और दूसरी तरफ तारे ( या सूर्य ) बने होते हैं। देखा जाय तो असलमें यह चैत्य मेक-पर्वतका शिश, निषके नीचे गहा और दाएँ या सूर्य और चन्दमा बने होते हैं। पूर्वोत चैत्यके गिर्द वृत्ताकार माझी लिपिका लेख होता है। इसमें राजा और उसके पिताका नाम नया उपाधियाँ लिसी रहती हैं। लेखके बाहरकी तरफ बिन्दुओंका' दृत्त बना होता है।
है। इससे सिद्ध होता है किं ३५ कश्यपणों में एक सुई। उस वक्त कुशन-राजाभका सौनका सिञ्चा) आता या । यदि कापपियाका तो ६६ मेन (१४ रची कृच} उौर मुक्का तोल १२५ मेन (६ मा ३ रनके करीच } मानें तो प्रतीत होता है कि इस मया सुखकी कीमत करीब १० मुनी अधिकृ यी । | चयनसे लेकर इस यंश सिंढी एक तरफ टोपी पहने हुए राजाका मस्तक बना होता है। इन सिङ्गों पर नाके मुकी थाङ्कातर्मका आपस में मिटान करने पर यहुत कम अन्तर पाया जाता है। इससे अनुमान होता है कि उस समय आकृतिके मिलान पर विशेष रुपान नहीं दिया जाता था।
नपान और चटनके सिकॉमें राजाके मस्तके इर्द गिर्द के अक्षमें मी लेख लिखा होता है। परन्तु चटनके पुत्र रुद्दामा प्रथम समयसे में यक अक्षर केवल शमा ॐिए हैं जिसे जाने लगे थे। नवदानासे क्षत्रप सिंड्स पर मस्तक के वार्ड्स लिपिमें वर्ष भी दिखे निलते हैं। ये यर्प -कुंवतुके हैं।
इन सिक्की धूसरी तरफ़ चैत्य ( वौद्धस्तूप ) होता है, जिसके नीचे एॐ सर्पाकार वा होता हैं। चैत्यको एक तरह चन्नमा और दूसरी तरफ तारे ( या सूख्य ) बने होते हैं। देवा नाय तो असल में यह चैत्य मे-पर्वतका चि है, जिसके नीचे गङ्गा और दाएँ या सूर्य और चन्द्रमा बने होते हैं। पूर्वोक चैत्यके गिर्द शृत्तार याह्नी लिविका लेख होता है। इसमें राजा और उसके पिताय नम नया उपाधियाँ इलेही रहती हैं। लेसके बाहर तरफ़ बिन्दुओं का वृत्त बना होता है।