"पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/४१": अवतरणों में अंतर

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है। पूर्वोक्त खरोष्ठी लिपि, फारसी अक्षरोंकी तरह, दाई तरफसे बाई तरफको लिखी जाती थी।
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इनके समयके अङ्कोंमे यह विलक्षणता है कि उनमें इकाई, दहाई आदिका हिसाब नहीं है। जिस प्रकार से तक एक एक अङ्कका बोधक अलग अलग चिह्न है, उसी प्रकार १० से १०० तकका बोधक भी अलग अलग एक ही एक चिन्ह है । तया सौके अङ्कमें ही एक दो आदिका चिह्न और लगादेनेसे २००, ३०० आदिके चोधक अडू हो जाते हैं।

उदाहरणार्थ, यदि आपको १५५ लिखना हो तो पहले साँका अङ्ग लिसा जायगा, उसके बाद पत्रासका और अन्तमें पाँचका र यथा--- १०.५०+१५५
झन्नपच !
आगे क्षत्रपोंके समयके ब्राह्मी अक्षरों और अडॉकी पहचान के लिए उनके नक्शे दिये जाते है, उनमें प्रत्येक अक्षर और अन्के सामने आधुनिक नागरी अक्षर लिखा है। आशा है, इससे सस्कृत और हिन्दीके विज्ञान भी जस समयके लेखों, ताम्रपत्रों और सिकोको पढ़ने में समर्थ होंगे।
हैं । पूर्वोक्त खरो क्लिप, फुरिस अक्षरों की तरह, वाई तरफते ३. नफ़क लिंदी जाती थी।
इसके आगे खरोष्ठी' अक्षरॉका मी मकशा लगा दिया गया है, जिससे उन अक्षरोंके मढने में भी सहायता मिलेगी।
इनके समयकै अङ्क में यह विलक्षणता हैं कि उनमें ईकाई, दहाई आदिका हिंसा नहीं है। जिस प्रकार से तक एक एक अङ्कका बोधक अलग अलग चिह्न है, उसी प्रकार १० से १०० तकका बोधक भी अलग अलग एक ही एक चिह्न है। तया सौके अङ्कमें ही एक दो आद्का चिह्न और लेगानेसे २००, ३०० आदिकें चीधक अङ्क हो जाते हैं।
लेग । अबतक इनके केवल १२ लेख मिले है। ये निम्नलिखित पुरुषोंके हैं
उदाहरणार्थ, यदि आपको १५५ लिंखना हो तो पहले सोका अङ्क लिसा जायगा, उसके बाढ़ पचासका और अन्तमें पाँचका या---- १००+१५५
उपवदात-(अपभदत्त )-पह नहपानका जामाता था। इसके ४ लेख मिले हैं इनमेंसे दोमें तो संरह है ही नहीं और तीसरेम टूट गया है। केवल चैत्र शुक्ल पूर्णिमा पढ़ा जाता है। तथा चौथै लामें शक-संवत् ४१, ४२ और ४५ ठिसे है । परन्तु यह लेस श०सं० ४२ के बैशाखमासका है। (OTHVITIES
अपने क्षत्रपोंके समयकै ब्राह्मी अक्षरों और अङ्ककी पहचान लिए इनके दिये जाते हैं, उनमें प्रत्येक अक्षर और अङ्कके सामने आधुनिक नागरी अक्षर लिखा है। आशा है, इससे सस्कृत हिन्दी विद्वान भी जस समयके लेखों, ताश्नपत्रों और सिंको पढ़ने में समर्थ होंगे।
Ey Tad, Val VIII, p. 78, ( Ep. THA, TO THI, PE, Ep. Ind, Vol. VIII,P &s,
इसके आगे खरो!' अक्षराँझा मी नकृशा लगा दिया गया है, निससे उन अक्षरोके मढने में भी सहायता मिले।
लेन । अबतक इनके केवल १२ लेख मिले हैं। ये निम्नलिखित पुपके हैं
उपवदात- अपभदत्त )-यह नहपाना जमितिा था। इसके ४ लेख मिले हैं। इनमें से दोमें' तो संत है ही नहीं और तीसरेमें गया है । केवझ चैत्र शुक्ल पूर्णिमा पट्टा जाता है । तथा चोथे लेपमें शकसंवत् ४१, ४२ और ४५ दिने है। परन्तु यह लैस ऋ० से ५२ के वैशाखमासका है। (१}{ Ey Tad, Val VIII, p. 78,
; . , , (२) Ep. Ind, Yej FIT, P 85,१३} Ep. frd , Yel. YTI, ६७,