"पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/२८५": अवतरणों में अंतर
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'''अन्वय'''––पाँखै पटु काँकरै भखु सपर परंई संग, परेवा पहुमि मैं तुँहीं एकै सुखी विहंग। |
'''अन्वय'''––पाँखै पटु काँकरै भखु सपर परंई संग, परेवा पहुमि मैं तुँहीं एकै सुखी विहंग। |
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पटु= |
पटु=वस्त्र। भखु=भक्ष्य, भोजन। परेई––'परेवा' का स्त्रीलिंग 'परेई'। विहंग=पक्षी। सपर=पंखयुक्त, परिवार के साथ। |
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पंख ही तुम्हारा वस्त्र है, (सर्वत्र-सुलभ) कंकड़ ही तुम्हारा भोजन है, और पंख वा परिवार (बाल-बच्चों) के साथ (अपनी प्राणेश्वरी) परेई का संग है––कभी वियोग नहीं होता। सो, हे परेवा, संसार में तुम्हीं एक सुखी पक्षी हो––तुम्हें यथार्थ में सुखी कह सकते हैं। |
पंख ही तुम्हारा वस्त्र है, (सर्वत्र-सुलभ) कंकड़ ही तुम्हारा भोजन है, और पंख वा परिवार (बाल-बच्चों) के साथ (अपनी प्राणेश्वरी) परेई का संग है––कभी वियोग नहीं होता। सो, हे परेवा, संसार में तुम्हीं एक सुखी पक्षी हो––तुम्हें यथार्थ में सुखी कह सकते हैं। |