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बिहारी-सतसई |
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२६४ |
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(अतः बगले को छोड़ हंस की संगति करो-परिचित अपरिचित का खयाल |
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छोड़ दो।) |
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'''अन्वय'''––भरे हंस या नगर आपु बिचारि जैयौ, जिन कागनि सौं प्रीति करि कोकिल बिड़ारि दई। |
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बिड़ारि=खदेड़ देना, भगा देना। |
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अन्वय-भरे हंस या नगर श्रापु |
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बिचारि जैयौ, जिन कागनि सौं प्रीति |
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करि कोकिल बिड़ारि दई । |
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बिड़ारिखदेड़ देना, भगा देना । |
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अरे हंस ! इस नगर में तू सोच-विचारकर जाना, (क्योंकि इस गाँव |
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दिया था । |
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डारनु |
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(बड़ों की) बड़ी भी भूल देखकर बड़ों से कौन कह सकता है? विधाता ने गुलाब की इन (कँटीली) डालियों में वे (सुन्दर) फूल दिये हैं (फिर भी उनसे कौन कहने जाता है कि यह आपकी भूल है!) |
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वे |
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(बड़ों की ) बड़ी भी भूल देखकर बड़ों से कौन कह सकता है ? विधाता |
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ने |
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गुलाब |
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की इन ( कँटीली ) डालियों में वे (सुन्दर ) फूल दिये हैं (फिर भी |
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उनसे कौन कहने जाता है कि यह आपकी भूल है !) |
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फूल्यौ अनफूल्यो भयो। |
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गवई गाँव = ठेठ देहात। |
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फूल दीने। |