"पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५६३": अवतरणों में अंतर
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रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) |
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बितावेंगे पर |
बितावेंगे पर दैव से वह भी न सहा गया। हाय ! कोई बचानेवाला नहीं। |
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बचानेवाला नहीं। |
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<Poem>कोऊ नहिं पकरत मेरो हाथ। |
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बीस कोटि सुत होत फिरत मैं हा हा होय |
बीस कोटि सुत होत फिरत मैं हा हा होय अनाथ॥ |
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जाकी सरन गहत सोइ मारत सुनत न कोउ दुखगाथ। |
जाकी सरन गहत सोइ मारत सुनत न कोउ दुखगाथ। |
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दीन बन्यौ इत सों उत डोलत टकरावत निज |
दीन बन्यौ इत सों उत डोलत टकरावत निज माथ॥ |
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दिन-दिन बिपति बढ़त सुख छीजत देत कोऊ नहिं साथ। |
दिन-दिन बिपति बढ़त सुख छीजत देत कोऊ नहिं साथ। |
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सब विधि दुख सागर मैं डूबत धाइ उबारौ |
सब विधि दुख सागर मैं डूबत धाइ उबारौ नाथ॥</poem> |
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{{c|(नेपथ्य में गभीर और कठोर स्वर से)}} |
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अब भी तुझको अपने नाथ का भरोसा है ! खड़ा |
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तो रह । अभी मैंने तेरी आशा की जड़ न खोद डाली |
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अब भी तुझको अपने नाथ का भरोसा है ! खड़ा तो रह। अभी मैंने तेरी आशा की जड़ न खोद डाली तो मेरा नाम नहीं। |
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तो मेरा नाम नहीं। |
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भारत-(डरता और |
<Br>भारत--(डरता और काँपता हुआ रोकर) अरे यह विकराल-वदन कौन मुँह बाए मेरी ओर दौड़ता चला आता है? |
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हाय-हाय इससे कैसे बचेंगे? अरे यह तो मेरा एक ही कौर कर जायगा। हाय ! परमेश्वर वैकुंठ में और राज-राजेश्वरी सात समुद्र पार, अब मेरी कौन दशा होगी? हाय अब मेरे प्राण कौन बचावेगा? अब कोई उपाय नहीं। अब मरा, अब मरा। (मूर्छा खाकर गिरता है) |
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वदन कौन मुँह बाए मेरी ओर दौड़ता चला आता है ? |
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हाय-हाय इससे कैसे बचेंगे ? अरे यह तो मेरा एक ही |
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कौर कर जायगा । हाय ! परमेश्वर वैकुंठ में और राज- |
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राजेश्वरी सात समुद्र पार, अब मेरी कौन दशा होगी? |
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हाय अब मेरे प्राण कौन बचावेगा ? अब कोई उपाय |
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नहीं। अब मरा, अब मरा । (मूर्छा खाकर गिरता है) |