"पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५६३": अवतरणों में अंतर

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बितावेंगे पर देव से वह भी न सहा गया । हाय ! कोई
बितावेंगे पर दैव से वह भी न सहा गया। हाय ! कोई बचानेवाला नहीं।

बचानेवाला नहीं।
{{c|(गीत)}}
{{c|(गीत)}}

{{poem begin}}<poem>कोऊ नहिं पकरत मेरो हाथ ।
<Poem>कोऊ नहिं पकरत मेरो हाथ।
बीस कोटि सुत होत फिरत मैं हा हा होय अनाथ ॥
बीस कोटि सुत होत फिरत मैं हा हा होय अनाथ॥
जाकी सरन गहत सोइ मारत सुनत न कोउ दुखगाथ।
जाकी सरन गहत सोइ मारत सुनत न कोउ दुखगाथ।
दीन बन्यौ इत सों उत डोलत टकरावत निज माथ ॥
दीन बन्यौ इत सों उत डोलत टकरावत निज माथ॥
दिन-दिन बिपति बढ़त सुख छीजत देत कोऊ नहिं साथ।
दिन-दिन बिपति बढ़त सुख छीजत देत कोऊ नहिं साथ।
सब विधि दुख सागर मैं डूबत धाइ उबारौ नाथ ॥</poem>{{poem end}}
सब विधि दुख सागर मैं डूबत धाइ उबारौ नाथ॥</poem>

{{c|( नेपथ्य में गभीर और कठोर स्वर से)}}
{{c|(नेपथ्य में गभीर और कठोर स्वर से)}}
अब भी तुझको अपने नाथ का भरोसा है ! खड़ा

तो रह । अभी मैंने तेरी आशा की जड़ न खोद डाली
अब भी तुझको अपने नाथ का भरोसा है ! खड़ा तो रह। अभी मैंने तेरी आशा की जड़ न खोद डाली तो मेरा नाम नहीं।
तो मेरा नाम नहीं।


भारत-(डरता और कांपता हुआ रोकर) अरे यह विकराल-
<Br>भारत--(डरता और काँपता हुआ रोकर) अरे यह विकराल-वदन कौन मुँह बाए मेरी ओर दौड़ता चला आता है?
हाय-हाय इससे कैसे बचेंगे? अरे यह तो मेरा एक ही कौर कर जायगा। हाय ! परमेश्वर वैकुंठ में और राज-राजेश्वरी सात समुद्र पार, अब मेरी कौन दशा होगी? हाय अब मेरे प्राण कौन बचावेगा? अब कोई उपाय नहीं। अब मरा, अब मरा। (मूर्छा खाकर गिरता है)
वदन कौन मुँह बाए मेरी ओर दौड़ता चला आता है ?
हाय-हाय इससे कैसे बचेंगे ? अरे यह तो मेरा एक ही
कौर कर जायगा । हाय ! परमेश्वर वैकुंठ में और राज-
राजेश्वरी सात समुद्र पार, अब मेरी कौन दशा होगी?
हाय अब मेरे प्राण कौन बचावेगा ? अब कोई उपाय
नहीं। अब मरा, अब मरा । (मूर्छा खाकर गिरता है)