"विकिस्रोत:आज का पाठ/३० सितम्बर": अवतरणों में अंतर

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-->'''[[हिंदी साहित्य का इतिहास/भक्तिकाल- प्रकरण ३ प्रेममार्गी ( सूफी) शाखा|प्रेममार्गी ( सूफी) शाखा]]''' [[लेखक:रामचंद्र शुक्ल|रामचंद्र शुक्ल]] द्वारा रचित [[हिन्दी साहित्य का इतिहास]] का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के '''नागरी प्रचारिणी सभा''' द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया था।
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"जैसा कि पहले कहा जा चुका है, इस काल के निर्गुणोपासक भक्तों की दूसरी शाखा उन सूफी कवियों की है जिन्होनेजिन्होंने प्रेमगाथाओं के रूप में उस प्रेमतत्त्व का वर्णन किया है जो ईश्वर को मिलानेवाला है तथा जिसका आभास लौकिक प्रेम के रूप में मिलता है। इस संप्रदाय के साधु कवियों का अब वर्णन किया जाता है–है––<br>
कुतबन––ये{{larger|'''कुतबन'''}}––ये चिश्ती वंश के शेख बुरहान के शिष्य थे और जौनपुर के बादशाह हुसैनशाह के आश्रित थे। अतः इनका समय विक्रम की सोलहवीं शताब्दी का मध्यभाग (संवत् १५५०) था। इन्होंने 'मृगावती' नाम की एक कहानी चौपाई-दोहे के क्रम से सन् ९०९ हिजरी ( संवत् १५५८) में लिखी जिसमें चंद्रनगर के राजा गणपतिदेव के राजकुमार और कंचनपुर के राजा रूपसुरारि की कन्या मृगावती की प्रेमकथा का वर्णन है। इस कहानी के द्वारा कवि ने प्रेम मार्ग के त्याग और कष्ट का निरूपण करके साधक के भगवत्प्रेम का स्वरूप दिखाया है। बीच बीच में सूफियों की शैली पर बड़े सुंदर रहस्यमय आध्यात्मिक आभास हैं।..."([[हिंदी साहित्य का इतिहास/भक्तिकाल- प्रकरण ३ प्रेममार्गी ( सूफी) शाखा|'''पूरा पढ़ें''']])
<noinclude>[[श्रेणी:आज का पाठ सितम्बर]]</noinclude>