"विकिस्रोत:आज का पाठ/२९ सितम्बर": अवतरणों में अंतर

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"रैदास या रविदास––रामानंदजी के बारह शिष्यों में रैदास भी माने जाते हैं जो जाति के चमार थे। इन्होंने कई पदों में अपने को चमार कहा भी है, जैसे––
::(१) कह रैदास खलास चमारा।
 
::(२) ऐसी मेरी जाति विख्यात चमार।
(१) कह रैदास खलास चमारा।
(२) ऐसी मेरी जाति विख्यात चमार।
ऐसा जान पड़ता है कि ये कबीर के बहुत पीछे स्वामी रामानंद के शिष्य हुए क्योंकि अपने एक पद में इन्होंने कबीर और सेन नाई दोनों के तरने का उल्लेख किया है––
::::नामदेव कबीर तिलोचन सधना सेन तरै।
 
::::कह रविदास, सुनहु रे संतहु! हरि जिउ तें सबहि सरै॥..."([[हिंदी साहित्य का इतिहास/भक्तिकाल- प्रकरण २ (रैदास)|'''पूरा पढ़ें''']])
नामदेव कबीर तिलोचन सधना सेन तरै।
कह रविदास, सुनहु रे संतहु! हरि जिउ तें सबहि सरै॥..."([[हिंदी साहित्य का इतिहास/भक्तिकाल- प्रकरण २ (रैदास)|'''पूरा पढ़ें''']])
<noinclude>[[श्रेणी:आज का पाठ सितम्बर]]</noinclude>