"विकिस्रोत:आज का पाठ/२९ सितम्बर": अवतरणों में अंतर

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-->'''[[हिंदी साहित्य का इतिहास/भक्तिकाल- प्रकरण २ (रैदास)|निर्गुण धारा (रैदास)]]''' [[लेखक:रामचंद्र शुक्ल|रामचंद्र शुक्ल]] द्वारा रचित [[हिन्दी साहित्य का इतिहास]] का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के '''नागरी प्रचारिणी सभा''' द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया था।
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"रैदास या रविदास- रामानंदजीरविदास––रामानंदजी के बारह शिष्यों, में रैदास भी माने जाते हैहैं जो जाति के चमार थे ।थे। इन्होंने कई पदों में अपने को चमार कहा भी है, जैसेजैसे––
( १ ) कह रैदास खलास चमारा ।।
( २ ) ऐसी मेरी जाति विख्यात चमार ।
 
( ) कह रैदास खलास चमारा ।।चमारा।
ऐसा जान पड़ता है कि ये कबीर के बहुत पीछे स्वामी रामानंद के शिष्य हुए क्योंकि अपने एक पद में इन्होने कबीर और सेन नाई दोनों के तरने का उल्लेख किया है-
( ) ऐसी मेरी जाति विख्यात चमार ।चमार।
ऐसा जान पड़ता है कि ये कबीर के बहुत पीछे स्वामी रामानंद के शिष्य हुए क्योंकि अपने एक पद में इन्होनेइन्होंने कबीर और सेन नाई दोनों के तरने का उल्लेख किया है-है––
 
नामदेव कबीर तिलोचन सधना सेन तरै ।तरै।
कह रविदास, सुनहु रे संतहु ! हरि जिउ तें सबहि सरै।। सरै॥..."([[हिंदी साहित्य का इतिहास/भक्तिकाल- प्रकरण २ (रैदास)|'''पूरा पढ़ें''']])
<noinclude>[[श्रेणी:आज का पाठ सितम्बर]]</noinclude>