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उसके ‘सुरति’ और ‘निरति’ शब्द बौद्ध सिद्धों के है । बौद्धधर्म के अष्टागमार्ग के अंतिम मार्ग हैं-सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि । 'सम्यक् स्मृति' वह दशा है जिसमे क्षण क्षण पर मिटने वाला ज्ञान स्थिर हो जाता है और उसकी शृखला बँध जाती है। ‘समाधि मे साधक सब संवेदनो से परे हो जाता है । अतः ‘सुरति’, ‘निरति’ शब्द योगियों की बानियों से आए है, वैष्णवों से उनका कोई संबंध नहीं ।
उसके 'सुरति' और 'निरति' शब्द बौद्ध सिद्धों के हैं। बौद्धधर्म के अष्टांगमार्ग के अंतिम मार्ग हैं––सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि। 'सम्यक् स्मृति' वह दशा है जिसमें क्षण क्षण पर मिटने वाला ज्ञान स्थिर हो जाता है और उसकी शृंखला बँध जाती है। 'समाधि' में साधक सब संवेदनों से परे हो जाता है। अतः 'सुरति', 'निरति' शब्द योगियों की बानियों से आए है, वैष्णवों से उनका कोई संबंध नहीं।
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