"पृष्ठ:हिंदी साहित्य का इतिहास-रामचंद्र शुक्ल.pdf/११२": अवतरणों में अंतर
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पति ही |
{{block center|<poem><small>पति ही सूँ प्रेम होय, पति ही सूँ नेम होय, |
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पति ही |
{{gap|3em}}पति ही सूँ छेम होय, पति ही सूँ रत है। |
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पति |
पति ही है जज्ञ जोग, पति ही है रस भोग, |
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पति ही |
{{gap|3em}}पति ही सूँ मिटै सोग, पति ही को जत है॥ |
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पति ही है ज्ञान ध्यान, पति ही है पुन्य दान, |
पति ही है ज्ञान ध्यान, पति ही है पुन्य दान, |
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पति ही है तीर्थं |
{{gap|3em}}पति ही है तीर्थं न्हान, पति ही को मत है। |
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पति बिनु पति नाहिं, पति बिनु गति नाहिं, |
पति बिनु पति नाहिं, पति बिनु गति नाहिं, |
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सुंदर सकल |
{{gap|3em}}सुंदर सकल बिधि एक पतिव्रत है॥</small></poem>}} |
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सुनत नगारे चोट बिगसै कमलमुख, |
{{block center|<poem><small>सुनत नगारे चोट बिगसै कमलमुख, |
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अधिक उछाह फूल्यो मात है न तन |
{{gap|3em}}अधिक उछाह फूल्यो मात है न तन में। |
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फेरै जब |
फेरै जब साँग तब कोऊ नहिं धीर धरै, |
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कायर |
{{gap|3em}}कायर कँपायमान होत देखि मन में। |
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कूदि कै पतंग जैसे परत पावक माहिं, |
कूदि कै पतंग जैसे परत पावक माहिं, |
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ऐसे टूटि परै बहु |
{{gap|3em}}ऐसे टूटि परै बहु साँवत के गन में। |
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मारि घमसान करि सुंदर जुहारै श्याम, |
मारि घमसान करि सुंदर जुहारै श्याम, |
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सोई सूरबीर रूपि रहै जाय रन |
{{gap|3em}}सोई सूरबीर रूपि रहै जाय रन में॥</small></poem>}} |
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अंहकार हू तें तीन गुण सत, रज, तम, |
अंहकार हू तें तीन गुण सत, रज, तम, |
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तमहू तें महाभूत विषय-पसार |
{{gap|3em}}तमहू तें महाभूत विषय-पसार है॥ |
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रजहू तें |
रजहू तें इंद्री दस पृथक् पृथक् भई, |
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सत्तहू तें मन, आदि देवता विचार है। |
{{gap|3em}}सत्तहू तें मन, आदि देवता विचार है।</small></poem>}} |