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पति ही सूं प्रेम होय, पति ही सूं नेम होय,
{{block center|<poem><small>पति ही सूँ प्रेम होय, पति ही सूँ नेम होय,
पति ही हूँ छेम होय, पति ही सूं रत है ।
{{gap|3em}}पति ही सूँ छेम होय, पति ही सूँ रत है।
पति की है जज्ञ जोग, पति ही है रस भोग,
पति ही है जज्ञ जोग, पति ही है रस भोग,
पति ही सूं मिटै सोग, पति ही को जत है ।।
{{gap|3em}}पति ही सूँ मिटै सोग, पति ही को जत है॥
पति ही है ज्ञान ध्यान, पति ही है पुन्य दान,
पति ही है ज्ञान ध्यान, पति ही है पुन्य दान,
पति ही है तीर्थं, न्हान, पति ही को मत है।
{{gap|3em}}पति ही है तीर्थं न्हान, पति ही को मत है।
पति बिनु पति नाहिं, पति बिनु गति नाहिं,
पति बिनु पति नाहिं, पति बिनु गति नाहिं,
सुंदर सकल विधि एक पतिव्रत है ।।
{{gap|3em}}सुंदर सकल बिधि एक पतिव्रत है॥</small></poem>}}
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सुनत नगारे चोट बिगसै कमलमुख, । ।
{{block center|<poem><small>सुनत नगारे चोट बिगसै कमलमुख,
अधिक उछाह फूल्यो मात है न तन में ।
{{gap|3em}}अधिक उछाह फूल्यो मात है न तन में।
फेरै जब सॉग तब कोऊ नहिं धीर धरै,
फेरै जब साँग तब कोऊ नहिं धीर धरै,
कायर कॅायमान होत देखि मन में ।
{{gap|3em}}कायर कँपायमान होत देखि मन में।
कूदि कै पतंग जैसे परत पावक माहिं,
कूदि कै पतंग जैसे परत पावक माहिं,
ऐसे टूटि परै बहु सावंत के गन में ।
{{gap|3em}}ऐसे टूटि परै बहु साँवत के गन में।
मारि घमसान करि सुंदर जुहारै श्याम,
मारि घमसान करि सुंदर जुहारै श्याम,
सोई सूरबीर रूपि रहै जाय रन में ।।
{{gap|3em}}सोई सूरबीर रूपि रहै जाय रन में॥</small></poem>}}
इसी प्रकार इन्होंने जो सृष्टितत्त्व आदि विषय कहे हैं वे भी औरों के समान मनमाने और ऊटपटाँग नहीं हैं, शास्त्र के अनुकूल हैं। उदाहरण के लिये नीचे का पद्य लीजिए जिसमें ब्रह्म के आगे और सब क्रम सांख्य के अनुकूल है––

{{block center|<poem><small>ब्रह्म तें पुरुष अरु प्रकृति प्रगट भई,
इसी प्रकार इन्होंने जो सृष्टि तत्त्व आदि कहे हैं वे भी औरों के समान मनमाने और ऊटपटॉग नहीं हैं, शास्त्र के अनुकूल है। उदाहरण के लिये नीचे का पद्य लीजिए जिसमें ब्रह्म के आगे और सब क्रम सांख्य के अनुकूल है-
{{gap|3em}}प्रकृति तें महत्तत्व, पुनि अहंकार है।

ब्रह्म तें पुरुष अरु प्रकृति प्रेगट भई,
प्रकृति तें महतत्व, पुनि अहंकार है ।
अंहकार हू तें तीन गुण सत, रज, तम,
अंहकार हू तें तीन गुण सत, रज, तम,
तमहू तें महाभूत विषय-पसार है ।।
{{gap|3em}}तमहू तें महाभूत विषय-पसार है॥
रजहू तें इंद्रि दस पृथक् पृथक् भई
रजहू तें इंद्री दस पृथक् पृथक् भई,
सत्तहू तें मन, आदि देवता विचार है।
{{gap|3em}}सत्तहू तें मन, आदि देवता विचार है।</small></poem>}}