"पृष्ठ:हिंदी साहित्य का इतिहास-रामचंद्र शुक्ल.pdf/१११": अवतरणों में अंतर
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व्यर्थ की तुकबंदी और ऊटपटाँग बानी इनको रुचिकर न थी। इसका पता इनके इस कवित्त से लगता है–– |
व्यर्थ की तुकबंदी और ऊटपटाँग बानी इनको रुचिकर न थी। इसका पता इनके इस कवित्त से लगता है–– |
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{{block center|<poem><small>बोलिए तौ तब जब बोलिबे की बुद्धि होय, |
{{block center|<poem><small>बोलिए तौ तब जब बोलिबे की बुद्धि होय, |
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{{gap|3em}}ना तौ मुख मौन गहि चुप होय रहिए। |
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जोरिए तो तब जब जोरिबे को रीति जानै, |
जोरिए तो तब जब जोरिबे को रीति जानै, |
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{{gap|3em}}तुक छंद अरथ अनूप जामे लहिए॥ |
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गाइए तौ तब जब गाइबै को कंठ होय, |
गाइए तौ तब जब गाइबै को कंठ होय, |
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{{gap|3em}}श्रवण के सुनतहीं मनै जाय गहिए। |
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तुकभंग छंदभंग, अरथ मिलै न कछु, |
तुकभंग छंदभंग, अरथ मिलै न कछु, |
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{{gap|3em}}सुंदर कहत ऐसी बानी नहिं कहिए॥</small></poem>}} |
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सुशिक्षा द्वारा विस्तृत दृष्टि प्राप्त होने से इन्होंने और निर्गुणवादियों के समान लोकधर्म की उपेक्षा नहीं की है। पातिव्रत का पालन करने वाली स्त्रियों, रणक्षेत्र में कठिन कर्तव्य पालन करने वाले शूरवीरों आदि के प्रति इनके विशाल हृदय में सम्मान के लिये पूरी जगह थी। दो उदाहरण अलम् हैं–– |
सुशिक्षा द्वारा विस्तृत दृष्टि प्राप्त होने से इन्होंने और निर्गुणवादियों के समान लोकधर्म की उपेक्षा नहीं की है। पातिव्रत का पालन करने वाली स्त्रियों, रणक्षेत्र में कठिन कर्तव्य पालन करने वाले शूरवीरों आदि के प्रति इनके विशाल हृदय में सम्मान के लिये पूरी जगह थी। दो उदाहरण अलम् हैं–– |