"पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५६१": अवतरणों में अंतर

 
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<poem><center>जहँ भए शाक्य हरिचंदरु नहुष ययाती।

जहँ राम युधिष्ठिर बासुदेव सर्याती॥

{{poem begin}}<poem>जहँ भए शाक्य हरिचंद नहुष ययाती।
जहँ राम युधिष्ठिर बासुदेव सर्याती ॥
जहँ भीम करन अर्जुन की छटा दिखाती।
जहँ भीम करन अर्जुन की छटा दिखाती।
तह रही मूढ़ता कलह अविद्या-राती॥
तहँ रही मूढ़ता कलह अविद्या-राती॥
अब जहँ देखहु तहँ दुःखहि दुःख दिखाई ।
अब जहँ देखहु तहँ दुःखहि दुःख दिखाई।
हा हा ! भारतदुर्दशा न देखी जाई ॥
हा हा ! भारतदुर्दशा न देखी जाई॥
लरि बैदिक जैन डुबाई पुस्तक सारी।
लरि बैदिक जैन डुबाई पुस्तक सारी।
करि कलह बुलाई जवनसैन पुनि भारी॥
करि कलह बुलाई जवनसैन पुनि भारी॥
तिन नासी बुधि बल विद्या धन बहु बारी ।
तिन नासी बुधि बल विद्या धन बहु बारी।
छाई अब आलस-कुमति-कलह-अँधियारी॥
छाई अब आलस-कुमति-कलह-अँधियारी॥
भए अंध पंगु सब दीन हीन बिलखाई।
भए अंध पंगु सब दीन हीन बिलखाई।
हा हा ! भारतदुर्दशा न देखी जाई ॥
हा हा ! भारतदुर्दशा न देखी जाई॥
अँगरेजराज सुख साज सजे सब भारी।
अँगरेजराज सुख साज सजे सब भारी।
पै धन बिदेस चलि जात इहै अति ख्वारी॥
पै धन बिदेस चलि जात इहै अति ख्वारी॥
पंक्ति १८: पंक्ति १६:
दिन दिन दूने दुख ईस देत हा हा री॥
दिन दिन दूने दुख ईस देत हा हा री॥
सबके ऊपर टिक्कस की ‌आफत आई।
सबके ऊपर टिक्कस की ‌आफत आई।
हा हा ! भारतदुर्दशा न देखी जाई ।।</poem>{{poem end}}
हा हा ! भारतदुर्दशा न देखी जाई॥</center></poem>
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