"पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५६१": अवतरणों में अंतर
रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) |
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जहँ भीम करन अर्जुन की छटा दिखाती। |
जहँ भीम करन अर्जुन की छटा दिखाती। |
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तहँ रही मूढ़ता कलह अविद्या-राती॥ |
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अब जहँ देखहु तहँ दुःखहि दुःख |
अब जहँ देखहु तहँ दुःखहि दुःख दिखाई। |
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हा हा ! भारतदुर्दशा न देखी |
हा हा ! भारतदुर्दशा न देखी जाई॥ |
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लरि बैदिक जैन डुबाई पुस्तक सारी। |
लरि बैदिक जैन डुबाई पुस्तक सारी। |
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करि कलह बुलाई जवनसैन पुनि भारी॥ |
करि कलह बुलाई जवनसैन पुनि भारी॥ |
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तिन नासी बुधि बल विद्या धन बहु |
तिन नासी बुधि बल विद्या धन बहु बारी। |
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छाई अब आलस-कुमति-कलह-अँधियारी॥ |
छाई अब आलस-कुमति-कलह-अँधियारी॥ |
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भए अंध पंगु सब दीन हीन बिलखाई। |
भए अंध पंगु सब दीन हीन बिलखाई। |
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हा हा ! भारतदुर्दशा न देखी |
हा हा ! भारतदुर्दशा न देखी जाई॥ |
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अँगरेजराज सुख साज सजे सब भारी। |
अँगरेजराज सुख साज सजे सब भारी। |
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पै धन बिदेस चलि जात इहै अति ख्वारी॥ |
पै धन बिदेस चलि जात इहै अति ख्वारी॥ |
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पंक्ति १८: | पंक्ति १६: | ||
दिन दिन दूने दुख ईस देत हा हा री॥ |
दिन दिन दूने दुख ईस देत हा हा री॥ |
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सबके ऊपर टिक्कस की आफत आई। |
सबके ऊपर टिक्कस की आफत आई। |
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हा हा ! भारतदुर्दशा न देखी |
हा हा ! भारतदुर्दशा न देखी जाई॥</center></poem> |
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