"पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६९४": अवतरणों में अंतर
रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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यह बिचारी चमड़े की जीभ कभी भी जान सकती है ? |
यह बिचारी चमड़े की जीभ कभी भी जान सकती है ? |
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<Br>(प्रेमाश्रु आँखो में भर आते हैं) |
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<Br>सत्यवान--चलो रहने दो शिष्टाचार की बातें बहुत हो चुकीं। (ऊपर देख कर) ओहो! हम लोगों की बातों में इतना |
<Br>सत्यवान--चलो रहने दो शिष्टाचार की बातें बहुत हो चुकीं। (ऊपर देख कर) ओहो! हम लोगों की बातों में इतना |