"पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६९४": अवतरणों में अंतर
रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) |
रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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सकल संपदा बारूँ तुम पर प्यारी चतुर सुजान॥</center></poem> |
सकल संपदा बारूँ तुम पर प्यारी चतुर सुजान॥</center></poem> |
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सावित्री--प्राणनाथ ! क्यों मुझे लजाते हौ? मैं कदापि तुम्हारे योग्य नहीं। न जाने मेरे कौन से पुरबले पुन्य उदय |
<Br>सावित्री--प्राणनाथ ! क्यों मुझे लजाते हौ? मैं कदापि तुम्हारे योग्य नहीं। न जाने मेरे कौन से पुरबले पुन्य उदय |
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हुए जो आपकी श्री चरणसेवा मेरे बाँट पड़ी। प्राणवल्लभ ! आपके गुणों का अनुभव जो मेरे चित्त को है उसे क्या |
हुए जो आपकी श्री चरणसेवा मेरे बाँट पड़ी। प्राणवल्लभ ! आपके गुणों का अनुभव जो मेरे चित्त को है उसे क्या |
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यह बिचारी चमड़े की जीभ कभी भी जान सकती है ? |
यह बिचारी चमड़े की जीभ कभी भी जान सकती है ? |
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पंक्ति १५: | पंक्ति १५: | ||
{{C|(प्रेमाश्रु आँखो में भर आते हैं)}} |
{{C|(प्रेमाश्रु आँखो में भर आते हैं)}} |
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सत्यवान--चलो रहने दो शिष्टाचार की बातें बहुत हो चुकीं। (ऊपर देख कर) ओहो! हम लोगों की बातों में इतना |
<Br>सत्यवान--चलो रहने दो शिष्टाचार की बातें बहुत हो चुकीं। (ऊपर देख कर) ओहो! हम लोगों की बातों में इतना |
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दिन चढ़ आया, पिता के अग्निहोत्र का समय हो गया |
दिन चढ़ आया, पिता के अग्निहोत्र का समय हो गया |