"पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६९४": अवतरणों में अंतर

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सकल संपदा बारूँ तुम पर प्यारी चतुर सुजान॥</center></poem>
सकल संपदा बारूँ तुम पर प्यारी चतुर सुजान॥</center></poem>


सावित्री--प्राणनाथ ! क्यों मुझे लजाते हौ? मैं कदापि तुम्हारे योग्य नहीं। न जाने मेरे कौन से पुरबले पुन्य उदय
<Br>सावित्री--प्राणनाथ ! क्यों मुझे लजाते हौ? मैं कदापि तुम्हारे योग्य नहीं। न जाने मेरे कौन से पुरबले पुन्य उदय
हुए जो आपकी श्री चरणसेवा मेरे बाँट पड़ी। प्राणवल्लभ ! आपके गुणों का अनुभव जो मेरे चित्त को है उसे क्या
हुए जो आपकी श्री चरणसेवा मेरे बाँट पड़ी। प्राणवल्लभ ! आपके गुणों का अनुभव जो मेरे चित्त को है उसे क्या
यह बिचारी चमड़े की जीभ कभी भी जान सकती है ?
यह बिचारी चमड़े की जीभ कभी भी जान सकती है ?
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{{C|(प्रेमाश्रु आँखो में भर आते हैं)}}
{{C|(प्रेमाश्रु आँखो में भर आते हैं)}}


सत्यवान--चलो रहने दो शिष्टाचार की बातें बहुत हो चुकीं। (ऊपर देख कर) ओहो! हम लोगों की बातों में इतना
<Br>सत्यवान--चलो रहने दो शिष्टाचार की बातें बहुत हो चुकीं। (ऊपर देख कर) ओहो! हम लोगों की बातों में इतना
दिन चढ़ आया, पिता के अग्निहोत्र का समय हो गया
दिन चढ़ आया, पिता के अग्निहोत्र का समय हो गया