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कि कबीरदास के शिष्य होने पर इन्होंने अपनी सारी संपत्ति, जो बहुत अधिक थीं लुटा दी । ये कबीरदास की गद्दी पर बीस वर्ष के लगभग रहे और अत्यत वृद्ध होकर इन्होंने शरीर छोड़ा ! इनकी शब्दावली की भी संतो में बड़ा आदर है । इनकी रचना थोड़ी होने पर भी कबीर की अपेक्षा अधिक सरल भाव लिए हुए है; उसमें कठोरता और कर्कशता नहीं है। इन्होने पूरबी भाषा का ही व्यवहार किया हैं। इनकी अन्योक्तियो के व्यंजक चित्रअधिक मार्मिक है क्योंकि इन्होंने खंडन-मंडन से विशेष प्रयोजन न रख प्रेमतत्त्व को ही लेकर अपनी वाणी का प्रसार किया हैं। उदाहरण के लिये कुछ पद नीचे दिए जाते है-
कि कबीरदास के शिष्य होने पर इन्होंने अपनी सारी संपत्ति, जो बहुत अधिक थी लुटा दी। ये कबीरदास की गद्दी पर बीस वर्ष के लगभग रहे और अत्यत वृद्ध होकर इन्होंने शरीर छोड़ा। इनकी शब्दावली का भी संतो में बड़ा आदर है। इनकी रचना थोड़ी होने पर भी कबीर की अपेक्षा अधिक सरल भाव लिए हुए है; उसमें कठोरता और कर्कशता नहीं है। इन्होंने पूरबी भाषा का ही व्यवहार किया है। इनकी अन्योक्तियों के व्यंजक चित्र अधिक मार्मिक हैं क्योंकि इन्होंने खंडन-मंडन से विशेष प्रयोजन न रख प्रेमतत्त्व को ही लेकर अपनी वाणी का प्रसार किया हैं। उदाहरण के लिये कुछ पद नीचे दिए जाते हैं––
{{block center|<poem><small>{{gap|2em}}झरि लागै महलिया गगन घहराय।
खन गरजै, खन बिजुली चमकै, लहरि उठै सोभा बरनि न जाय।
सुन्न महल से अमृत बरसै, प्रेम अनंद ह्वै साधु नहाय॥
खुली केबरिया, मिटी अँधियरिया, धनि सतगुरु जिन दिया लखाय।
धरमदास बिनवै कर जोरी, सतगुरु चरन में रहत समाय॥</small></poem>}}
{{rule|5em}}
{{block center|<poem><small>{{gap|2em}}मितऊ मड़ैया सूनी करि गैलो।
अपना बलम परदेस निकरि गैलो, हमरा के किछुवो न गुन दै गैलो॥
जोगिन होइके मैं वन वन ढूँढ़ौं, हमरा के बिरह-बैराग दै गैलो॥
संग की सखी सब पार उतरि गइलौं, हम धनि ठाढ़ि अकेली रहि गैलों॥
धरमदास यह अरज करतु है, सार सबद सुमिरन दै गैलो॥</small></poem>}}


'''गुरुनानक––'''गुरुनानक का जन्म सं० १५२६ कार्तिक पूर्णिमा के दिन तिलवंडी ग्राम जिला लाहौर में हुआ। इनके पिता कालूचंद खत्री जिला लाहौर तहसील शकरपुर के तिलवंडी नगर के सूबा बुलार पठान के कारिंदा थे। इनकी माता का नाम तृप्ता था। नानकजी बाल्यावस्था से ही अत्यंत साधु स्वभाव के थे। संवत् १५४५ में इनका विवाह गुरदासपुर के मूलचंद खत्री की कन्या सुलक्षणी से हुआ। सुलक्षणी से इनके दो पुत्र श्रीचंद और लक्ष्मीचंद हुए। श्रीचंद आगे चलकर उदासी संप्रदाय के प्रवर्त्तक हुए।
झरि लागै महलिया गगन घहराय ।
खन गरजै,खन बिजुली चमकै,लहरि उठै सोभा बरनि न जाय । सुन्न महल से अमृत बरसै, प्रेम अनंद है साधु नहाय ।।
खुली केवरिया,मिटो अँधियरिया, धनि सतगुरु जिन दिया लखाय । धरमदास बिनवै कर जोरी, सतगुरु चरन में रहत समाय ।।


पिता ने इन्हें व्यवसाय में लगाने का बहुत उद्योग किया पर ये सांसारिक व्यवहारों मे दत्तचित्त न हुए। एक बार इनके पिता ने व्यवसाय के लिये कुछ
मितऊ मडैया सूनी करि गैलो ।।

अपना चलम परदेस निकरि गैलो, हमरा के किछुवो न गुन दै गैलो ।
जोगिन होइके मैं वन वन ढूढौं, हमरा के बिरह-बैराग दै गैलो।। संग की सखी सब पार उतरि गइलो,हम धनि ठाढिं अकेली रह गैलों ।।
धरमदास यह अरज करतु है, सार सबद सुमिरन दै गैलो ।।

गुरुनानक– गुरुनानक का जन्म सं० १५२६ कार्तिक पूर्णिमा के दिन तिलवंडी ग्राम जिला लाहौर में हुआ। इनके पिता कालूचंद खत्री जिला लाहौर तहसील शकरपुर के तिलवंडी नगर के सूबा बुलार पठान के कारिंदा थे । इनकी माता का नाम तृप्ता था। नानकजी बाल्यावस्था से ही अत्यंत साधु स्वभाव के थे । संवत १५४५ में इनका विवाह गुरदासपुर के मूलचंद खत्री की कंन्या सुलक्षणी से हुआ । सुलक्षणी से इनके दो पुत्र श्रीचंद और लक्ष्मीचंद हुए। श्रीचंद आगे चलकर उदासी संप्रदाय के प्रवर्तक हुए।

पिता ने इन्हें व्यवसाय में लगाने का बहुत उद्योग किया, पर ये सांसारिक व्यवहारों मे दत्तचित्त न हुए। एक बार इनके पिता ने व्यवसाय के लिये कुछ