"पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६८७": अवतरणों में अंतर

→‎परीक्षण हुआ नहीं: '५३२ भारतेंदु-नाटकावली जयजय विष्णुभक्तभयहारी । बृ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
 
 
पन्ने की स्थितिपन्ने की स्थिति
-
अशोधित
+
शोधित
पन्ने का उपरी पाठ (noinclude):पन्ने का उपरी पाठ (noinclude):
पंक्ति १: पंक्ति १:
{{rh|५६२|भारतेंदु-नाटकावली|}}
पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा):पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा):
पंक्ति १: पंक्ति १:
<poem><center>जयजय विष्णुभक्तभयहारी। बृंदावन - बैकुंठ - बिहारी॥
५३२
जसुदा-सुअन देवकीनंदन। जगबंदन प्रभु कंसनिकंदन॥
भारतेंदु-नाटकावली
जयजय विष्णुभक्तभयहारी । बृंदावन बैकुंठ
बिहारी॥
जसुदा-सुअन देवकीनंदन । जगबंदन प्रभु कंसनिकंदन ॥
शंख-चक्र-कौमोदकि - धारी। वंशीधर बकबदन-बिदारी॥
शंख-चक्र-कौमोदकि - धारी। वंशीधर बकबदन-बिदारी॥
बृदाबन - चंदा । जय केशव करुणा-कंदा॥
जय बृदाबन - चंदा। जय केशव करुणा-कंदा॥
जय नारायण
जय नारायण गोविंदा।</center></poem>

गोविंदा ।
{{C|(सब लोग प्रणाम करके बैठाते हैं)}}
जय

( सब लोग प्रणाम करके बैठाते हैं)
धुमत्सेन-हमारे धन्य भाग कि इस दीनावस्था में आपके
<Br>द्युमत्सेन--हमारे धन्य भाग कि इस दीनावस्था में आपके दर्शन हुए।

दर्शन हुए।
<Br>नारद--राजन्! तुम्हारे पास सत्यधन, तपोधन, धैर्यधन अनेक धन हैं, तुम क्यों दीन हौ? और आज हम तुमको एक अति शुभ संदेश देने को आए है। तुम्हारे पुत्र का विवाह-संबंध हम अभी स्थिर किए आते हैं। सावित्री के पिता को भी समझा आए हैं कि उनकी कन्या सावित्री अपने उज्ज्वल पातिव्रत्य धर्म के प्रभाव से सब आपत्तियों को उल्लंघन करके सुखपूर्वक कालयापन करेगी और अपने पवित्र चरित्र से दोनो कुल का मान बढ़ावेगी। तुमसे भी यही कहने आए हैं कि सब संदेह छोड़कर विवाह का
नारद-राजन् ! तुम्हारे पास सत्यधन, तपोधन, धैर्यधन अनेक
धन हैं, तुम क्यों दीन हौ ? और आज हम तुमको एक
अति शुभ संदेश देने को आए है। तुम्हारे पुत्र का विवाह-
संबंध हम अभी स्थिर किए आते हैं। सावित्री के पिता
को भी समझा पाए हैं कि उनकी कन्या सावित्री अपने
उज्ज्वल पातिव्रत्य धर्म के प्रभाव से सब आपत्तियों को
उल्लंघन करके सुखपूर्वक कालयापन करेगी और अपने
पवित्र चरित्र से दोनो कुल का मान बढ़ावेगी। तुमसे भी
यही कहने आए हैं कि सब संदेह छोड़कर विवाह का
संबंध पक्का करो।
संबंध पक्का करो।

घुमत्सेन-मुझको आपकीआज्ञा कभी उल्लंघनीय नहीं है। किंतु-
<Br>द्युमत्सेन--मुझको आपकी आज्ञा कभी उल्लंघनीय नहीं है। किंतु--
नारद-किंतु फितु कुछ नहीं । विशेष हम इस समय नहीं

<Br>नारद--किंतु फिंतु कुछ नहीं। विशेष हम इस समय नहीं