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शरीर में पौरुष हई नहीं। एक आँख थी सो भी गई। तीर्थभ्रमण और देवदर्शन से भी रहित हुए।
सतीप्रताप

शरीर में पौरुष हई नहीं। एक आँख थी सो भी गई।
<Br>प० ऋषि--आपके नेत्रो के इतने निर्बल हो जाने का क्या कारण है? अभी कुछ आपकी अवस्था अति वृद्ध नहीं हुई है।
तीर्थभ्रमण और देवदर्शन से भी रहित हुए।

प० ऋषि-आपके नेत्रो के इतने निर्बल हो जाने का क्या कारण
<Br>धुमत्सेन--वही कारण जो हमने कहा था। (उदास होकर) पुत्रशोक से बढ़कर जगत में कोई शोक नहीं है। गणक लोगो ने यह कहकर कि तुम्हारा पुत्र अल्पायु है, मेरा चित्त और भी तोड़ रखा है। इसी से न मैं ऐसा घर, ऐसी लक्ष्मी सी बहू पाकर भी अभी विवाह-संबंध नहीं स्थिर करता।
है ? अभी कुछ आपकी अवस्था अति वृद्ध नहीं हुई है।

धुमत्सेन-वही कारण जो हमने कहा था । ( उदास होकर)
<Br>दू० ऋषि--अहा! तभी महाराज अश्वपति और उनकी रानी इस संबंध से इतने उदास है। केवल कन्या के अनुरोध से संबंध करने कहते हैं।
पुत्रशोक से बढ़कर जगत में कोई शोक नहीं है । गणक

लोगो ने यह कहकर कि तुम्हारा पुत्र अल्पायु है, मेरा
{{C|(हरिनाम गान करते हुए नारदजी का आगमन)}}
चित्त और भी तोड़ रखा है। इसी से न मैं ऐसा घर,

ऐसी लक्ष्मी सी बहू पाकर भी अभी विवाह-संबंध नहीं
<Br>नारद--(नाचते और वीणा बजाते हुए)
स्थिर करता।

दू० ऋषि-अहा ! तभी महाराज अश्वपति और उनकी रानी
{{C|(चाल नामकीर्तन महाराष्ट्री कटाव)}}
इस संबंध से इतने उदास है । केवल कन्या के अनुरोध

से संबंध करने कहते हैं ।
<poem><center>जय केशव करुणा-कंदा। जय नारायण गोविंद॥
(हरिनाम गान करते हुए नारदजी का आगमन)
जय गोपीपति राधा-नायक। कृष्ण कमल-लोचन सुखदायक॥
नारद-(नाचते और वीणा बजाते हुए)
माधव सुरपति रावण-हंता। सीतापति जदुपति श्रीकंता॥
(चाल नामकीर्तन महाराष्ट्री कटाव)
बुद्ध नृसिंह परशुधर बावन। मच्छ-कच्छ-बपुधर गज-पावन॥
जय केशव करुणा-कंदा । जय नारायण
कल्कि बराह मुकुंदा। जय केशव करुणा कंदा॥</center></poem>
जय गोपीपति राधा-नायक । कृष्ण कमल-लोचन सुखदायक।
माधव सुरपति रावण-हंता। सीतापति जदुपति श्रीकंता ॥
बुद्ध नृसिंह परशुधर बावन । मच्छ-कन्छ-बपुधर गज-पावन ॥
कल्कि बराह मुकुंदा । जय केशव करुणा कंदा ।
गोविंदा॥