"पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६८६": अवतरणों में अंतर
→परीक्षण हुआ नहीं: 'सतीप्रताप शरीर में पौरुष हई नहीं। एक आँख थी सो भी गई...' के साथ नया पृष्ठ बनाया |
रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) |
||
पन्ने की स्थिति | पन्ने की स्थिति | ||
- | + | शोधित | |
पन्ने का उपरी पाठ (noinclude): | पन्ने का उपरी पाठ (noinclude): | ||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
{{rh||सतीप्रताप|५६१}} |
|||
पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा): | पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा): | ||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
⚫ | |||
सतीप्रताप |
|||
⚫ | |||
⚫ | |||
तीर्थभ्रमण और देवदर्शन से भी रहित हुए। |
|||
⚫ | |||
<Br>धुमत्सेन--वही कारण जो हमने कहा था। (उदास होकर) पुत्रशोक से बढ़कर जगत में कोई शोक नहीं है। गणक लोगो ने यह कहकर कि तुम्हारा पुत्र अल्पायु है, मेरा चित्त और भी तोड़ रखा है। इसी से न मैं ऐसा घर, ऐसी लक्ष्मी सी बहू पाकर भी अभी विवाह-संबंध नहीं स्थिर करता। |
|||
है ? अभी कुछ आपकी अवस्था अति वृद्ध नहीं हुई है। |
|||
धुमत्सेन-वही कारण जो हमने कहा था । ( उदास होकर) |
|||
<Br>दू० ऋषि--अहा! तभी महाराज अश्वपति और उनकी रानी इस संबंध से इतने उदास है। केवल कन्या के अनुरोध से संबंध करने कहते हैं। |
|||
पुत्रशोक से बढ़कर जगत में कोई शोक नहीं है । गणक |
|||
लोगो ने यह कहकर कि तुम्हारा पुत्र अल्पायु है, मेरा |
|||
⚫ | |||
चित्त और भी तोड़ रखा है। इसी से न मैं ऐसा घर, |
|||
ऐसी लक्ष्मी सी बहू पाकर भी अभी विवाह-संबंध नहीं |
|||
⚫ | |||
स्थिर करता। |
|||
दू० ऋषि-अहा ! तभी महाराज अश्वपति और उनकी रानी |
|||
⚫ | |||
इस संबंध से इतने उदास है । केवल कन्या के अनुरोध |
|||
से संबंध करने कहते हैं । |
|||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
गोविंदा॥ |