"पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६८४": अवतरणों में अंतर
→परीक्षण हुआ नहीं: 'चौथा दृश्य स्थान-तपोवन । धुमत्सेन का आश्रम (घुमत्स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया |
रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) |
||
पन्ने की स्थिति | पन्ने की स्थिति | ||
- | + | शोधित | |
पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा): | पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा): | ||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
⚫ | |||
स्थान-तपोवन । धुमत्सेन का आश्रम |
|||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
{{C|'''स्थान--तपोवन। द्युमत्सेन का आश्रम'''}} |
|||
किया जाय। |
|||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
नम्र भयो तो सहु सिर पै बहु बिपति लोक -कृत। |
नम्र भयो तो सहु सिर पै बहु बिपति लोक -कृत। |
||
तोहि तोरि मरोरि उपारिहैं पाथर हनिहै सबहि नित। |
तोहि तोरि मरोरि उपारिहैं पाथर हनिहै सबहि नित। |
||
जे सज्जन |
जे सज्जन ह्वै नै कै चलहिं तिनकी यह दुरगति उचित॥</center></poem> |
||
दूसरा ऋषि-ऐसा मत |
दूसरा ऋषि--ऐसा मत कहिए। वरंच यों कहिए-- |
||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
⚫ | |||
सूखेहू रूखन कीने हरे जग पूरयौ महामुद दै निज बारी। |
सूखेहू रूखन कीने हरे जग पूरयौ महामुद दै निज बारी। |
||
हे |
हे घन आसिन लौं इतनो करि रीते भए हूँ बड़ाई तिहारी॥</center></poem> |