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चौथा दृश्य

स्थान-तपोवन । धुमत्सेन का आश्रम
{{C|{{Xx-larger|'''चौथा दृश्य'''}}}}
(घुमत्सेन, उनकी स्त्री और ऋषि बैठे हैं।

धुमत्सेन-ऐसे ही अनेक प्रकार के कष्ट उठाए है, कहाँ तक वर्णन
{{C|'''स्थान--तपोवन। द्युमत्सेन का आश्रम'''}}
किया जाय।

पहला ऋषि-यह आपकी सजनता का फल है।
{{C|(द्युमत्सेन, उनकी स्त्री और ऋषि बैठे हैं।)}}
(छापय )

क्यौं उपज्यौ नरलोक? ग्राम के निकट भयो क्यों ?
द्युमत्सेन--ऐसे ही अनेक प्रकार के कष्ट उठाए है, कहाँ तक वर्णन किया जाय।
सघन पात सों सीतल छाया दान दयो क्यों ?

मीठे फल क्यौं फल्यो ? फल्यौ तो नम्र भयो कित ?
पहला ऋषि--यह आपकी सजनता का फल है।

{{C|(छापय)}}

<poem><center>क्यौं उपज्यौ नरलोक? ग्राम के निकट भयो क्यौं?
सघन पात सों सीतल छाया दान दयो क्यौं?
मीठे फल क्यौं फल्यो? फल्यौ तो नम्र भयो कित?
नम्र भयो तो सहु सिर पै बहु बिपति लोक -कृत।
नम्र भयो तो सहु सिर पै बहु बिपति लोक -कृत।
तोहि तोरि मरोरि उपारिहैं पाथर हनिहै सबहि नित।
तोहि तोरि मरोरि उपारिहैं पाथर हनिहै सबहि नित।
जे सज्जन कै नै कै चलहिं तिनकी यह दुरगति उचित ॥
जे सज्जन ह्वै नै कै चलहिं तिनकी यह दुरगति उचित॥</center></poem>

दूसरा ऋषि-ऐसा मत कहिए । वरंच यों कहिए-
दूसरा ऋषि--ऐसा मत कहिए। वरंच यों कहिए--
चातक को दुख दूर कियो पुनि दीनो सबै जग जीवन भारी।

पूरे नदी-नद ताल-तलैया किए सब भॉति किसान सुखारी ॥
<poem><center>चातक को दुख दूर कियो पुनि दीनो सबै जग जीवन भारी।
पूरे नदी-नद ताल-तलैया किए सब भॉति किसान सुखारी॥
सूखेहू रूखन कीने हरे जग पूरयौ महामुद दै निज बारी।
सूखेहू रूखन कीने हरे जग पूरयौ महामुद दै निज बारी।
हे धन प्रासिन लौं इतनो करि रीते भए हूँ बड़ाई तिहारी॥
हे घन आसिन लौं इतनो करि रीते भए हूँ बड़ाई तिहारी॥</center></poem>