"पृष्ठ:हिंदी साहित्य का इतिहास-रामचंद्र शुक्ल.pdf/४७४": अवतरणों में अंतर
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भारतेदु हरिश्चद्र का प्रभाव भापा और साहित्य दोनों पर बड़ा गहरा पडा । उन्होने जिस प्रकार गद्य की भाषा को परिमार्जित करके उसे बहुत ही चलता मधुर और स्वच्छ रूप दिया, उसी प्रकार हिंदी-साहित्य को भी नए मार्ग पर लाकर खड़ा कर दिया। उनके भापा-संस्कार की महत्ता को सब लोगो ने मुक्त कंठ से स्वीकार किया और वे वर्तमान हिंदी गद्य के प्रवर्तक माने गए । मुंशी सदासुख की भाषा साधु होते हुए भी पंडिताऊपन लिए थी, लल्लूलाल मे ब्रजभाषापन और सदल मिश्र में पूरबीन था। राजा शिवप्रसाद का उदूपन शब्दों तक ही परिमित न था,वाक्यविन्यास तक में घुसा था । राजा लक्ष्मणसिंह की भाषा विशुद्ध और मधुर तो अवश्य थी, पर आगरे की बोल-चाल का पुट उसमे कम न था । भापा को निखरी हुश्री शिष्ट-सामान्य रूप भारतेंदु की कला के साथ ही प्रकट हुआ। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने पद्यकी ब्रज-भाषा का भी बहुत कुछ संस्कार, किया । पुराने पड़े हुए शब्दों को हटाकर काव्य-भाषा मे भी वे बहुत कुछ चलतापन और सफाई लाए । |
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इससे भी बड़ा काम उन्होंने यह किया कि साहित्य को नवीन मार्ग दिखाया और उसे वे शिक्षित जनता के साहचर्य में लाए। नई शिक्षा के प्रभाव से |