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५८६
{{Gap|7em}}(लावनी)
भारतेंदु-नाटकावली
लवंगी--
(लावनी)
{{Gap|2em}}सखि! बाले जोबन महा कठिन ब्रत कीनो।
लवंगी-
{{Gap|2em}}यह जोग भेख कोमल अंगन पर लीनो॥
सखि ! बाले जोबन महा कठिन ब्रत कीनो।
{{Gap|2em}}अबहीं दिन तुमरे खेल-कूद के प्यारी।
यह जोग भेख कोमल अंगन पर लीनो ॥
{{Gap|2em}}पितु मातु चाव सों भवन बसो सुकुमारी॥
अबही दिन तुमरे खेल-कूद के प्यारी।
{{Gap|2em}}औढौ पहिरौ लखि सुख पावै महतारी।
पितु मातु चाव सों भवन बसो सुकुमारी॥
{{Gap|2em}}बिलसौ गृह संपति सखी गई बलिहारी॥
श्रोढी पहिरौ लखि सुख पावै महतारी ।
{{Gap|2em}}तजि देहु स्वॉग जो सबही बिधि सो हीनो।
बिलसौ गृह संपति सखी गई बलिहारी॥
{{Gap|2em}}यह जोग-भेष जो कोमल अँग पर लीनो॥
तजि देहु स्वॉग जो सबही बिधि सो हीनो ।
मधु०--सखि! यही जगत की चाल जिती हैं क्वारी।
यह जोग-भेष जो कोमल अंग पर लीनो ॥
{{Gap|2em}}उनके सबही बिधि मात-पिता अधिकारी॥
मधु०-सखि ! यही जगत की चाल जिती हैं क्वारी।
{{Gap|2em}}जेहि चाहैं ताकहॅ दान करै निज बारी।
उनके सबही बिधि मात-पिता अधिकारी॥
{{Gap|2em}}यामैं कछु कहनो तजनो लाज दुलारी॥
जेहि चाहैं ताकह दान करै निज बारी ।
{{Gap|2em}}बिनती मानहु हठ मॉहि बृथा चित दीनो।
यामैं कछु कहनो तजनो लाज दुलारी॥
{{Gap|2em}}यह जोग-भेष जो कोमल अँग पर लीनो॥
बिनती मानहु हठ मॉहि बृथा चित दीनो ।
सुर--सखि! औरहु राजकुमार बहुत जग मॉहीं।
यह जोग-भेष जो कोमल अंग पर लीनो ॥
{{Gap|2em}}विद्या-बुधि-गुन-बल-रूप-समूह लखाहीं॥
सुर-सखि ! औरहु राजकुमार बहुत जग मॉहीं।
{{Gap|2em}}चिरजीवी प्रेमी धनी अनेक सुनाहीं।
विद्या-बुधि-गुन-बल-रूप-समूह लखाहों॥
{{Gap|2em}}का उन सम कोऊ और जगत में नाहीं॥</poem>{{poem end}}
चिरजीवी प्रेमी धनी अनेक सुनाहीं।
का उन सम कोऊ और जगत में नाहीं॥
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[[श्रेणी:भारतेंदु नाटकावली]]