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सतोप्रताप
५८५
तक प्रेम नहीं। पत्नी का सुख एक-मात्र पति की सेवा है।
तक प्रेम नहीं। पत्नी का सुख एक-मात्र पति की सेवा है।
जिस बात में प्रियतम की रुचि उसी में सहधर्मिणी की
जिस बात में प्रियतम की रुचि उसी में सहधर्मिणी की
रुचि । अहा! वह भी कोई धन्य दिन अावेगा जब हम भी
रुचि। अहा! वह भी कोई धन्य दिन आवेगा जब हम भी
अपने प्राणाराध्य देवता प्रियतम पति की चरणसेवा में
अपने प्राणाराध्य देवता प्रियतम पति की चरणसेवा में
नियुक्त होगी। बृद्ध श्वशुर और सास के हेतु पाक आदि
नियुक्त होगी। बृद्ध श्वशुर और सास के हेतु पाक आदि
निर्माण करके उनका परितोष करेंगी। कुसुम, दुर्वा, तुलसी
निर्माण करके उनका परितोष करेंगी। कुसुम, दुर्वा, तुलसी
समिधा इत्यादि बीनने को पति के साथ धन में घूमेगी।
समिधा इत्यादि बीनने को पति के साथ वन में घूमेंगी।
परिश्रम से थकित प्राणनायक के स्वेद-सीकर अपने अंचल
परिश्रम से थकित प्राणनायक के स्वेद-सीकर अपने अंचल
से पोंछकर मंद-मंद वनपत्र के व्यजनवायु से उनका श्रीअंग
से पोंछकर मंद-मंद वनपत्र के व्यजनवायु से उनका श्रीअंग
शीतल और चरण-संवाहनादि से श्रमगत करेंगी। (नेत्र से
शीतल और चरण-संवाहनादि से श्रमगत करेंगी। (नेत्र से आँसू गिरते हैं)

प्रॉसू गिरते हैं)
( गान करते हुए सखीगण का आगमन)
{{C|(गान करते हुए सखीगण का आगमन)}}

(ठुमरी)
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सखीत्रय-

देखो मेरी नई जोगिनियाँ आई हो-जोगी पिय मन भाई हो।
{{Gap}}सखीत्रय--
खुले केस गोरे मुख सोहत जोहत दूग सुखदाई हो।
{{poem begin}}<Poem>देखो मेरी नई जोगिनियाँ आई हो--जोगी पिय मन भाई हो।
खुले केस गोरे मुख सोहत जोहत दूग सुखदाई हो॥
नव छाती गाती कसि बाँधी कर जप माल सुहाई हो।
नव छाती गाती कसि बाँधी कर जप माल सुहाई हो।
तन कंचन दुति बसन गेरुया दूनी छवि उपजाई हो ॥
तन कंचन दुति बसन गेरुआ दूनी छवि उपजाई हो॥
देखो मेरी नई जोगिनियाँ पाई हो।
{{Gap|5em}}देखो मेरी नई जोगिनियाँ आई हो।</poem>{{poem end}}
( सावित्री के पास जाकर)
{{C|(सावित्री के पास जाकर)}}
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[[श्रेणी:भारतेंदु नाटकावली]]