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भारतेंदु-नाटकावली |
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वासना सत्य है तो अंतर्गति जाननेवाली सतीकुल- |
वासना सत्य है तो अंतर्गति जाननेवाली सतीकुल-सरोजिनी भगवती भवानी हमारी भावना अवश्य पूर्ण करेगी। |
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जिनी भगवती भवानी हमारी भावना अवश्य पूर्ण करेगी। |
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मन बच कर्म से जो हमारी भक्ति पति के चरणारविंद में |
मन बच कर्म से जो हमारी भक्ति पति के चरणारविंद में |
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है तो वे हमको अवश्य ही |
है तो वे हमको अवश्य ही मिलेंगे। अथवा न भी मिलें |
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तो इस जन्म में तो दूसरा पति हो नहीं सकता। स्त्रीधर्म |
तो इस जन्म में तो दूसरा पति हो नहीं सकता। स्त्रीधर्म |
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बड़ा कठिन है। जिसको एक बेर मन से पति कहकर |
बड़ा कठिन है। जिसको एक बेर मन से पति कहकर वरण |
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किया उसको छोड़कर स्त्री-शरीर की अब इस जगत् में |
किया उसको छोड़कर स्त्री-शरीर की अब इस जगत् में |
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कौन गति है। पिता-माता बड़े धार्मिक हैं। सखियों के |
कौन गति है। पिता-माता बड़े धार्मिक हैं। सखियों के |
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कोई है नहीं। (अपना वेष देखकर) अहा ! यह वेष मुझको |
कोई है नहीं। (अपना वेष देखकर) अहा ! यह वेष मुझको |
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कैसा प्रिय बोध होता है। जो वेष हमारे जीवितेश्वर धारण |
कैसा प्रिय बोध होता है। जो वेष हमारे जीवितेश्वर धारण |
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करें वह क्यों न प्रिय |
करें वह क्यों न प्रिय हो। इसके आगे बहुमूल्य हीरो के हार |
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और चमत्कार-दर्शक |
और चमत्कार-दर्शक वस्त्र सब तुच्छ हैं। वही वस्तु प्यारी |
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है जो प्यारे को प्यारी |
है जो प्यारे को प्यारी हो। नहीं तो सर्वसंपत्ति की मूल-कारण-स्वरूपा देवी पार्वती भगवान् भूतनाथ की परिचर्या |
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कारण-स्वरूपा देवी पार्वती भगवान् भूतनाथ की परिचर्या |
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इस वेष से क्यों करतीं ? सतीकुलतिलका देवी जनक- |
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शचीदुर्लभ गृह-सामग्री से भी धन की पर्णकुटी और पर्वत- |
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चरणपरिचर्या में है। जब तक अपना स्वतंत्र सुख है तब |
चरणपरिचर्या में है। जब तक अपना स्वतंत्र सुख है तब |
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