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[१] श्रीदामा कृष्ण के एक ग्वाल सखा । मन्त्री राधिका से तात्पर्य
है। [२] जाए उत्पन्न | [३] अंक अँकवार, हाथ फैलाकर' भेटना।
[१] श्रीदामा=कृष्ण के एक ग्वाल सखा। मन्त्री=राधिका से तात्पर्य है। [२] जाए=उत्पन्न। [३] अंक=अँकवार, हाथ फैलाकर भेंटना।
आने-अन्य, दूसरे को। [४] नेम=नियम, योग के विधि-विधान ।
आने=अन्य, दूसरे को। [४] नेम=नियम, योग के विधि-विधान।
[५] आन-किसी अन्य विषय में। .[६] सुरति-स्मरण आने पर।
[५] आन=किसी अन्य विषय में। [६] सुरति=स्मरण आने पर। हित-प्रेम। मिथ्या जात=भ्रम से उत्पन्न। एक=अद्वैत ब्रह्म।
'सदा...नात'=उद्धव का वचन। [७] क्रम=कर्म। [८] तूलमय=रूई से युक्त। [९] धूमरि=श्यामा, काली। [१०] अबेर-सबेरो=साँझ-सबेरे। [११] परमान-प्रमाण, मान्य। [१२] हेत=प्रेम। जाए=पुत्र। काजै=के लिए। दाँवरि=रस्सी। [१३] दाम=माला। रस=प्रेम। [१४] अनुहारि=बनावट। बसन=वस्त्र। रुचिकारि=रुचिर या कारी रुचि, श्याम वर्ण।
हित-प्रेम । मिथ्या जात भ्रम से उत्पन्न । एक अद्वत ब्रह्म । 'सदा"
बारि=जल। [१५] सुचित=स्वस्थ। [१६] जादवनाथ=श्रीकृष्ण। बरन=वर्ण, रंग। का पर०=किसे ले जाने के लिए भेजे गए हो। सयानप=चतुरता। जानि०=भली भांति समझ लिए गए हो। [१७] उत०=वहाँ से। ब्रजराज=नंद। प्रबोध=समझाना। बोलि=बुलाकर।
नात'=उद्धव का वचन । [७] क्रम-कर्म । [८] तूलमय रूई से
गुरु=गुरु की भांति। अबिगत=अज्ञेय। अगह=पकड़ में न आनेवाला। आदि अवगत=सर्वप्रथम ज्ञात। निरंजन=माया-रहित। रंजै=सब उसीके कारण शोभित होते हैं ('यस्य भासा विभाति')। निगम=शास्त्र। रसाल=रसमय। छाके=मस्त। हुतो=था। [१८] आहि=है। बासर-गत=दिन बीतने पर। [१९] सक़ट=रथ। रजक=धोबी। हति-तोड़कर। गज=कुबलयापीड़ हाथी।
युक्त । [९] धूमरि = श्यामा, काली। [१०] अमेर-सबेरो=साँझ-सबेरे।
मल्ल=मुष्टिक और चाणूर नाम के पहलवान। मातुल=मामा (कंस)। [२०] उपासी=उपासिका। [२१] जोग=अंग अष्टांग योग। ईसपुर=
[११] परमान-प्रमाण, मान्य । [१२] हेत-प्रेम । जाए-पुत्र । काज के
लिए । दाँवरि रस्सी । [१३] दाममाला । रस-प्रेम । [१४] अनुहारि=
बनावट { बसन-वस्त्रं ) रुचिकारि रुचिर या कारी रुचि, श्याम वर्ण ।
बारि जल । [१५] सुचित-स्वस्थ । [१६] जादवनाथ-श्रीकृष्ण । बरन=
, वर्ण, रंग। का पर०किसे ले जाने के लिए भेजे गए हो। सयानप=
चतुरता । जानि०=भली भांति समझ लिए गए हो। [१७] उत० वहाँ
से । ब्रजराज-नंद । प्रबोध-समझाना । बोलिबुलाकर । गुरु-गुरु की
भांति । अबिगत-अज्ञेय । अगह-पकड़ में न आनेवाला । आदि अवगत
सर्वप्रथम ज्ञात । निरंजन माया-रहित । रंजै-सब उसीके कारण शोभित
होते हैं ('यस्य भासा विभाति')। निगम शास्त्र । रसाल रसमय । छाके.
मस्त । हुतो-था। [१८] आहि है.। बासर-गत=दिन बीतने पर।
[१९] सकट रथ । रजक-धोबी । हति-तोड़कर। गज कुबलयापीड़ हाथी।
मल्ल-मुष्टिक और चाणूर नाम के पहलवान । मातुल मामा ( कंस)।
[२०] उपासी-उपासिका । [२१] जोग-अंग अष्टांग योग । ईसपुर-. ।